Ek Duniya Ajnabi - 23 in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | एक दुनिया अजनबी - 23

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एक दुनिया अजनबी - 23

एक दुनिया अजनबी

23-

"रवि मोहन शर्मा मेरे पापा का, मोहनी, मेरी माँ का नाम ---मैंने दोनों का नाम मिला अपना नाम रखने की कोशिश की है , अच्छा किया न ? "उसने अपने नाम का खुलासा करते हुए विभा से पूछा |

"शर्मा ---? ब्राह्मण हो ---? " विभा ने जानबूझकर माला जपती हुई स्त्री की ओर टेढ़ी आँख से देखते हुए कहा |

"हमारी जात, बामन-बनिया थोड़े ही देखती है दीदी ---वो तो मैंने यूँ ही आपको बता दिया वरना हमारी क्या जात, क्या बिरादरी ---? "उसने एक लंबी साँस भरी |

शायद बामन सुनकर स्त्री की भौंहों के बल कुछ ज़्यादा ही गहरे हो गए थे, वह कुछ नहीं बोली, हिकारत से अपना चेहरा सिकोड़े रही |शायद वह कुछ ऐसा भी सोच रही हो कि वह बेचारा झूठ बोल रहा था या फिर बामन में ऐसी मरदनुमा औरत !

विभा के मन में तीर सी लगी ये बात ! जैसे किसीने उसके मन में छुरा घोंप दिया हो |

उसकी आँखें आँसुओं से भीग गईं | शरीर और मन से तो इनको भी वैसे ही सुख-दुःख होते हैं जैसे हम लोगों को | फिर इनसे घृणा कैसी और क्यों भला ? इनका मज़ाक क्यों? जब हम कहते हैं कि पूरी सृष्टि के रचयिता ईश्वर हैं तब क्या ये सृष्टि में नहीं आते ?

"हमें इतनी हिकारत से देखते हैं दुनिया वाले ---एक बात बताओ दीदी ---"उसने कुछ रुककर कहा |

विभा ने एक प्रश्नवाची दृष्टि उसके चेहरे पर डालकर उसके प्रश्न को तवज्जो दी ---

"चलो, हम तो न मरद, न औरत, अनपढ़ भी ठहरे ---आप तो खूब पढ़ी-लिखी हो ---" विभा को कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्या कहना चाहता था वो ?

"ये बताओ, आत्मा का क्या लिंग होता है ? " उसने बेबाकी से पूछा |

"अम्मा, आप ही बताओ, आप तो इतनी पूजा-पाठ करती हो ----"

अम्मा का मुख और भी टेढ़ा हो आया, उन्होंने अपना चेहरा उसकी ओर से घुमा लिया और माला को घूमाने की गति और तेज़ कर दी | रेलगाड़ी की गति धीमी होने लगी थी |

"दीदी ! धन्यवाद आपका, बच्ची मेरी गोदी में देने के लिए | लेकिन सोचना आप जो मैंने पूछा है, अम्मा आप भी ----" उसने बच्ची विभा की गोदी में दी और दोनों हाथ जोड़ लिए, बिटिया व बेटे के सिर पर हाथ फेरकर पुचकारा |

विभा ने उसे कुछ रुपए देने चाहे लेकिन उसने मना कर दिया --

"आपसे बहुत मिला दीदी, इतना तो अब तक किसीसे नहीं मिला , दो मिनट खिड़की पर रुकना" धीमी होती हुई गाड़ी में से उसने प्लेटफ़ॉर्म पर छलाँग लगा ली और चाय के स्टॉल की तरफ़ तेज़ी से दौड़ा |

उत्सुकतावश विभा खिड़की के पास खड़ी हो गई थी, बेटे को खिड़की की सीट पर बैठाकर बिटिया को सँभाले वह उधर की तरफ़ देख रही थी जिधर वह गया था |

गाड़ी वहाँ दो मिनट के लिए ही रुकने वाली थी, मोदी नगर स्टेशन था | लोगों के बीच में से दौड़ता हुआ वह आता दिखाई दिया | गाड़ी कुछ पल थमकर फिर से रेंगनी शुरू हो गई थी |

"ले बेटे ! ---"कुछ समझ में आता, उससे पहले उसने बेटे के खिड़की पर रखे हाथ में पार्ले ग्लूकोज़ का छोटा पैकेट पकड़ा दिया |

अपने हाथ में पैकेट पकड़े बच्चे ने एक बार माँ की ओर सहमी दृष्टि से देखा | विभा ने मुस्कुराकर बच्चे को बिस्किट का पैकेट लेने के लिए कहा फिर बाहर की ओर उसके चेहरे पर नज़र गड़ा दी जिसकी आँखों से आँसू लगातार बह रहे थे |विभा की आँखों ने बहुत कुछ देखा उसके चेहरे से भी अधिक उसके मन की व्यथा को समझा, एक उदासी सी उसके भीतर भी घिर आई |

गाड़ी चलने लगी, वह प्लेटफ़ॉर्म पर साथ-साथ चल रहा था, अपनी साड़ी के पल्लू से आँखों से बहते आँसू पोंछते हुए | पाँचेक मिनट में गाड़ी ने रफ़्तार पकड़ ली |