Ek Duniya Ajnabi - 19 in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | एक दुनिया अजनबी - 19

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एक दुनिया अजनबी - 19

एक दुनिया अजनबी

19 -

अभी तक प्रखर उन दोनों नई मित्रों से पूरी तरह से परिचित नहीं हुआ था | उस दिन कॉफ़ी-हाउस में उन दोनों से थोड़ा-बहुत परिचय हुआ |एक-दूसरे के बारे में जाना, एक हद तक |

आश्चर्य में था प्रखर यह जानकर कि सुनीला मैडिकल के अंतिम वर्ष में पढ़ रही है |प्रखर ने उसे जिस स्थान पर देखा था, उसके लिए मानना कठिन था, किन्तु सच था | ऐसे वातावरण में रहकर कोई शिक्षा के प्रति कैसे इतना समर्पित हो सकता है ? उसके मन में ढेरों प्रश्न कुलबुला उठे |

आख़िर सुनीला उन लोगों के बीच में क्यों थी? क्या वह भी उसी जमात की थी लेकिन यह पूछने का साहस कोई छोटी बात नहीं थी |

निवि सुनीला की बहुत करीबी दोस्त थी, वह पब्लिक रिलेशंस में पी.एच.डी कर रही थी और समय मिलने पर अपनी सेवाएँ रोगियों को देती थी | इसीलिए प्रखर को उसका चेहरा पहचाना सा लगा जबकि वह उस समय इस स्थिति में नहीं था कि किसी से बात कर सकता या कुछ बोल सकता या उसे कुछ भी याद रहता |

निवि उसकी दुर्घटना की गंभीरता को समझती थी, उसने अस्पताल में कई दिन प्रखर के लिए रात की ड्यूटी की, वहाँ रहकर उसका ध्यान रखा था जिसके बारे में प्रखर को कोई चेतना नहीं थी |निवि ने उसकी सहायता मानवता के लिहाज़ से की थी, उसे सपने में भी गुमान नहीं था कि इस बंदे से फिर कभी मुलाकात हो भी सकती है |

वो समय कुछ ऐसा था जो भी प्रखर को मिलता, उससे कुछ कहता, वह उसके साथ चल देता | वह अपने मस्तिष्क से कुछ भी सोचने की स्थिति में नहीं था, किसीके कहे हुए को आधार मान उसके सुझाए रास्ते पर चल पड़ता | उसका अपना मस्तिष्क काम ही नहीं करता था, ब्लैंक सा हो जाता | कुछ भी सोचने की शक्ति उसे दगा दे जाती |

एक बार कॉफ़ी का दौर जो शुरू हुआ तो आगे बढ़ता ही गया |ये तो होना ही था | निर्बल मन व तन का व्यक्ति बड़ी जल्दी दूसरों से प्रभावित हो जाता है, यह आकर्षण शरीर व मन दोनों का ही होता है | निवि के बारे में पता चला वह भी टूटा हुआ दिल लिए घूम रही थी | एक सुनीला के अलावा उसकी कोई दोस्त उसके इतने करीब नहीं थी |प्रश्न यह भी था जिस वर्ग में सुनीला रहती थी, उसमें किसी मित्र का इस प्रकार घुल-मिल जाना भी एक चुनौती ही था, परिवार की, समाज की चुनौती !

टूटे हुए तारों की झंकार निवि को झंझोड़ती, चार साल वह किसी के प्रेम में थी, आसमान के तारे उसकी मुट्ठी में थे, सूर्य की पहली किरण उसके चेहरे को रोशन करती थी, बिना मौसम की बहार उसके दिल व मुखमंडल पर विभिन्न रंगों व सुवास के फूल खिलाती थी |जब वह अपने प्रेम के साथ मोटरसाइकिल पर हवा से बातें करती, किसी शहज़ादी से कम तो नहीं समझती थी, उसकी स्वप्निल आँखें दुनिया-जहान की सैर कर आतीं |

एक दिन अचानक ही उसकी मुहब्बत ने अपने विदेश जाने का मटका उसके सिर पर फोड़ दिया ;

"निवि, सॉरी, मुझे अमरीका जाना ही पड़ेगा ---"

"तुम तो मेरे साथ ही पी.एच.डी करने वाले थे, फिर अचानक अमरीका का चक्कर ? " निवि एकदम बौखला उठी |

चार साल से उसके साथ घूम रही थी, कितने सपने सजाए थे, कितने 'फ्यूचर-प्लान्स' बने थे| एक संबंध में बँध चुकी थी वह उसके साथ, अपने भविष्य के प्रति बिंदास हो चुकी थी | डॉक्टर पिता की बेटी थी, उसके परिवार में उस लड़के के बारे में सब परिचित थे और उनकी ओर से वह अपने संबंध के लिए स्वतंत्र थी | लेकिन इस गाज के अचानक गिरने से वह हड़बड़ा गई ;

"ऐसा कैसे हो सकता है ? तुम पापा से बात कर चुके हो, मेरे पूरे परिवार ने तुम्हें स्वीकारा है अब तुम अपना वायदा कैसे तोड़ सकते हो ? " वह बिखरने लगी, उसकी आँखों के आगे चाँद-तारे टूटकर गिरने लगे |

"अरे यार ! वहाँ एक अच्छी यूनिवर्सिटी में एडमीशन मिल गया है न ? "नाटक करते हुए प्रेमी ने कहा, न जाने कितना उदास था !

"अचानक मिल गया ? तुमने तो बताया नहीं ? " निवेदिता डिस्टर्ब हो गई |

"तुमसे बताया तो था कि भाभी के पिता जी अमरीका में रहते हैं और वो मुझे वहाँ की यूनिवर्सिटी में एडमीशन दिला सकते हैं --"

"हाँ, ठीक है, पर उनका कोई तो स्वार्थ होगा ----"निवि को अपनी खोटी मुहब्बत पर शक हो गया था |

"चाहते हैं, उनकी बेटी की शादी मुझसे हो जाए ---"

"तो----? '

"मम्मी-पापा, भाई-भाभी सभी मुझ पर प्रेशर डाल रहे हैं ---अब मैं भी कितना लड़ता उनके साथ ? आखिर तो उन्होंने पैदा किया, पाला-पोसा ---बहुत लड़ चुका अपने और तुम्हारे रिश्ते के लिए, अब थक गया हूँ| "

निवि के प्रेमी ने कुछ ऐसा दिखाने की कोशिश की मानो वह उसके व अपने रिश्ते के लिए कोई क़ुर्बानी देने जा रहा हो |अरे ! तो भाई, कर न कुर्बानी ! नाटक क्यों कर रहा था ?

"मुझसे थक गए हो --और जब मुझसे संबंध बनाए थे, मेरे आगे-पीछे घूम रहे थे तब तक तुम्हें तुम्हारी माँ ने न तो पैदा किया था, न ही तुम्हारे परिवार ने तुम्हें पाला-पोसा था --? " इतनी भौंदू नहीं थी वह , रोज़ ही तो ऎसी घटनाएँ होती थीं | इसमें कहाँ, कुछ नया था |न जाने हर प्रेमिका को लगता है कि उसके रिश्ते जैसा पाक़ व मज़बूत रिश्ता दूसरा कोई हो ही नहीं सकता |