Lahrata Chand - 33 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | लहराता चाँद - 33

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लहराता चाँद - 33

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

  • 33
  • दूसरे दिन सुबह दुर्योधन संजय से मिलने आया। उसे पता था इस वक्त संजय को हौसले की और बच्चों को सही सुझाव की जरूरत है। वरना इतने लंबी समय तक उसकी बच्चों के लिए की हुई कुर्बानी वृथा जाएगा और संजय का परिवार बिखर सकता है। दुर्योधन सीधे संजय के कमरे की ओर बढ़ गया। संजय अपने कमरे में सिगरेट पीते हुए गहरी सोच में कमरे में टहल रह था। दुर्योधन को देख संजय चुपचाप सोफे पर जा बैठा।

    दुर्योधन ने संजय के कँधे पर हाथ रखकर हिम्मत दी और पास बैठ कर पूछा, "अचानक सब क्या हो गया संजय?"

    "मेरी बदनसीबी ने मेरा पीछा कब छोड़ा है जो अब खुश रहने देगी। जब भी मैंने जिंदगी से समझौता करने की कोशिश की कोई ना कोई मुसीबत सामने आकर खड़ा हो जाती है। जिंदगी से लड़ने की हिम्मत अब नहीं रही दुर्योधन। न जाने कब मेरी रम्या मुझे बुलाएगी बस इसी का इंतज़ार है। अब जीने की कोई इच्छा नहीं रही। हर पल परिस्थितियों का सामना करते-करते थक गया हूँ। आराम करना चाहता हूँ, मेरे बच्चे ही मुझसे नफ़रत करने लगे ऐसी जिंदगी जीकर क्या करूँगा दुर्योधन। काश कि मैं भी... रम्या के साथ चला गया होता।"

    "ऐसे मत बोलो संजय। बच्चे अभी नादान हैं। कुछ समझ नहीं पा रहे हैं, यह स्थिति उनके लिए भी असहनीय है। तुम चिंता मत करो सब कुछ ठीक हो जाएगा, धैर्य रखो। बच्चों को समझाने के लिए मैं हूँ ना। तुम थोड़ी देर मन शांत रखकर आराम करो। तुम्हारी हालत देख मुझे चिंता होने लगी है।" कहकर उसने संजय को कुछ समय अकेले रहने को छोड़कर बाहर आ गया।

    - सावित्री भाभी कैसी हैं दुर्योधन?

    - वही जैसे कि हमेशा से हैं। पर कुछ समय से उनकी तबियत भी नाजुक चल रहा है। डॉक्टरों के भरोसे साँसे चल रही है।

    - मुझे सावित्री भाभी से मिलना है ले जाओगे दुर्योधन?

    दुर्योधन के मना करने का कोई कारण नहीं था इसलिए उन्होंने ,"ठीक है तैयार हो जाओ मैं एक फ़ोन करके अभी आता हूँ।" कहकर दुर्योधन नीचे लॉन में चला गया।

    ###

    बिल्कुल उसी समय अनन्या और अवन्तिका के बीच गहरी चुपी छाई हुई थी। कुछ समय पहले अवन्तिका ने अपना फैसला अनन्या के सामने रखा, जिसे सुनकर अनन्या चिंतित हो गई।

    - दी मैं अब पापा के साथ नहीं रह सकती। उन्होंने माँ को हमसे छीना है। चलो हम घर छोड़कर कहीं और चले जाएँगे।

    - अवि कैसी बातकर रही है, तुझे कोई अक्ल है कि नहीं, जिस पिता ने आज तक हमारे अलावा अपने लिए कभी कुछ सोचा ही नहीं ऐसे पिता को तुम छोड़कर जाना चाहती हो? पता है अगर उस दिन पापा हमारे लिए सोचे न होते तो उन्हें आज यह दिन देखना नहीं पड़ता। उन्हें कभी जेल जाने में कोई परहेज नहीं था। वे हमारे भविष्य के लिए सोचकर आज तक बिना जीवन संगिनी के अकेले गुजार रहे हैं। अगर तुम्हारे इस फैसले के बारे पापा को पता चलेगा तो उनपर क्या बितेगी?

    - नहीं दी, हमारा पालन पोषण उनकी जिम्मेदारी है और उन्हीं की वजह से मैं अपनी माँ से दूर हो गई। आप को पता है तब मैं बहुत छोटी थी, आज मुझे माँ की एक बात भी याद नहीं जिसे मैं उन्हें याद कर सकूँ। तुम्हें माँ का प्यार मिला है दी, लेकिन मुझे बिन माँ के ही जिंदगी काटनी पड़ी।

    - ऐसा न कहो अवि एक बार पापा के बारे में भी सोचो।

    - नहीं दी, मैं ने फैसलाकर लिया है।

    - लेकिन कहाँ जाओगी अवि?

    - क्या आप मेरा साथ नहीं दोगी दी?

    - मुझे वक्त चाहिए अवि, अभी इस वक्त मैं कोई भी फैसला नहीं ले सकती। कहीं कल इस फैसले वजह से पूरी जिंदगी पछताना पड़े।

    - यानी आप कहते हो कि आप मेरा साथ नहीं दे सकती?

    - ऐसा नहीं है अवि, मैं तुम्हारे साथ हमेशा हूँ लेकिन अभी कुछ समय रुक जाओ। मुझे अवन्तिका कुछ समय दो सोचने को।

    - तो फिर मुझे आप के बगैर ही जाना पड़ेगा। उसने निश्चित स्वर में कहा।

    - कहाँ जाओगी ये तो बताओ अवि।

    - पता नहीं मगर यहाँ नहीं रह सकती?" कहकर अवन्तिका सूटकेस में कपड़े भरने लगी।

    अनन्या ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वह किसीकी बात सुनने को तैयार नहीं थी। अनन्या दुविधा में पड़गई। अभी इस वक्त वह किसकी मदद ले सकती है? अचानक उसने डॉ अंजली को फ़ोन लगायी और सबकुछ उसे बताया। अंजली ने उसे दिलासा देकर चिंता न करने को कहा और वादा किया कि यथा संभव अवन्तिका को मनाकर वह अपने घर ले जाएँगी। अनन्या थोड़ी सी राहत की साँस ली।

    दुर्योधन घर से बाहर निकल कर एकांत में अपने घर फ़ोन लगाया। रवीना ने फ़ोन उठाई। रवीना घर की परिचारिका से ज्यादा घर की सदस्या है। एक रात रास्ते पर अस्तव्यस्त पड़ी रवीना को दुर्योधन ने अस्पताल में पहुँचाया और जगह-जगह खून की बहाव से तड़पती 35 साल की रवीना का इलाज कराया। उसके पूरी तरह ठीक होने तक उसका ख्याल रखा, रहने को घर देकर बेटी की तरह पाला। उसके स्त्रीत्व को कुचलकर रास्ते के किनारे मरने के लिए छोड़ दिए उसके मामा पर पुलिस केस दर्ज कराया।

    दुर्योधन ने उससे पूछा, "रवीना सावित्री कैसी है?"

    "मैडम का हालात ठीक नहीं है साहब मुझे बहुत फिक्र हो रही है।"

    - खाना कुछ खाया कि नहीं?"

    - नहीं साहब अभी तक मुश्किल से जूस पिलाई। डॉक्टर कुछ समय पहले आये हैं, आप उन्हीं से बात कर लीजिए।"

    - ठीक है, उनसे बात करवा दो।"

    रवीना ने फ़ोन डॉक्टर को दिया।

    - डॉक्टर सावित्री कैसी हैं?

    - वह ठीक नहीं हैं... दुर्योधन जी।

    - ... आप कहो तो अस्पताल में एडमिट कर देंगे। वहीं आपके निगरानी में रहेंगी तो मेरी हिम्मत बनी रहेगी।"

    - चिंता करने वाली बात ही है दुर्योधन जी, बेहतर होगा अगर अस्पताल में एडमिट कर दिया जाए।"

    - तो आप उसकी तैयारी कीजिए डॉक्टर मैं बहुत जल्द आ कर बाकी का फॉर्मलिटीज़ पूरा कर दूँगा।"

    - ठीक है मैं इंतज़ाम करता हूँ आप जल्दी पहुँचिए।"

    - धन्यवाद डॉक्टर।" कहकर फ़ोन काट दिया।

    अनन्या से, "अनन्या आज तक तुम्हारे पिताने अपनी ओर से सारे कर्तव्य पूर्ण किए है, अब तुम्हारी बारी। वह बहुत सदमें में है। वह अवन्तिका को लेकर बहुत विचलित है। पापा का ख्याल रखना तुम दोनोँ का कर्तव्य है। वह अंदर से पूरी तरह टूट चुका है। मुझे अभी जाना होगा, मैं फिर सुबह आउँगा।"

    "जी अंकल।" अनन्या ने सहमति जताई।

  • बिल्कुल उसी वक्त अवन्तिका सूटकेस लेकर बाहर आई।
  • "अनन्या, ये अवन्तिका सूटकेस लेकर कहाँ जा रही है?" दुर्योधन ने आश्चर्य से देखते हुए पूछा।
  • अनन्या कुछ नहीं कहा। दुर्योधन को देख अवन्तिका धीरे बैठक में आई।
  • उसके चेहरे पर नाराजगी साफ़ नज़र आ रही थी। दुर्योधन समझ गया कि क्या होने जा रहा है। दुर्योधन उसे रोकते हुए कहा, "अवन्तिका! तुम्हें पता है ना तुम्हारे पिताजी की हालत ठीक नहीं है, कल जो कुछ हुआ उससे उन्हें बहुत सदमा पहुँचा है। अनु तुम तो अवन्तिका को समझा सकती थी।"
  • अनन्या के मन में भी सवालों का अंबार था जिसे वह खुद ढूँढ रही थी। इस हालत में उसका कर्तव्य क्या है वह समझ नहीं पा रही थी। वह सिर झुकाकर खड़ी रही।
  • - अवन्तिका यह ठीक नहीं, क्या इतने दिन की परवरिश में तुम अपने पिता को बस इतना ही समझा? तुम्हारी माँ के जाने के बाद तुम दोनों छोटे बच्चों का पालन पोषण करना उसके लिए कितना कठिन था, फिर भी तुम्हारे लिए क्या-क्या नहीं किया उसने, उसकी क्या यही सज़ा है?" दुर्योधन ने उसे समझाने की प्रयत्नकर रहा था।
  • - हमें पापा ने हमेशा ही स्नेह दिया और हमारा हर तरह से ख्याल रखा। इसका अंदेशा है। लेकिन गलती तब तक क्षम्य है जब तक दूसरों को नुकसान न पहुँचे। जब किसी की गलती दूसरों का नुकसान पहुँचाता है या जीवन और मौत के बीच छोड़ती है तब वह अपराध बन जाती है। और पापा का शराब पीकर गाड़ी चलाना अपराध है जिसके लिए हम कभी माफ नहीं कर सकते। पापा का साथ देकर माँ के साथ अन्याय नहीं कर सकते जिसके वजह से माँ हमसे छीन गई है।
  • - अवन्तिका एक बार अपने पिता के हालात पर गौर करो, उन्होंने जानबूझकर कुछ नहीं किया जो हुआ वह एक हादसा था बेटा।" दुर्योधन उसे रोकने की कोशिश की।

  • - हमारे साथ रहते हमारे पापा ने कभी ये नहीं बताया कि वह हमारे दोषी हैं। वह हमारी माँ के दोषी हैं। हम तो हमारे पापा को भगवान मान बैठे थे चाचू, लेकिन वे हमारी परवरिश के द्वारा अपनी गलती का प्रायश्चितकर रहे थे।" अवन्तिका ने बेझिझक समाधान दिया। उसके मन में उमड़ते दुख और नाराज़गी आँसू के रूप में बह रहे थे।
  • "ऐसा न कहो अवि, ये सब उसने जानबूझकर नहीं किया। तुम्हें कुछ कहे जाए इसके लिए तुम दोनों बहुत छोटे थे। अगर तुम ही उसे गलत समझो तो ...

    "अवि, अनन्या एक मिनट इधर आओ।" दुर्योधन ने उनके हाथ पकड़कर सोफे पर बिठाया। और टेबल पर से मग में पानी ग्लास में भरकर उनके हाथ में दिया। अवन्तिका चुपचाप ग्लास ले ली।

    "अब बताओ अवि तुम्हें क्या संदेह है?"

    अवन्तिका कुछ नहीं कहा, चुप रही।

    "कुछ तो बोलो तुम्हें किस बात की नाराजगी है? क्या इसलिए कि तुम्हारा पिता को जेल नहीं हुई? या उसके वजह से रम्या मारी गई? या इसलिए कि उसदिन उसने पी रखी थी? बोलो तुम्हें किस बात से ऐतराज़ है?"

    - "आप जानते हैं हम कितने तरस गए हैं माँ के प्यार के लिए। 8साल की बच्ची थी अवन्तिका, उसका क्या दोष था जो माँ के प्यार से वंचित रह गई। और मैं 12साल की उम्र में ही बड़ी हो गई थी। स्कूल में सभी लड़कियाँ कई तरह से बातें करती थी जो उनकी माँ उन्हें समझाया करती थी। अनजानों से नज़र न मिलाना, पुरुषों के गंदी नज़रों से कैसे बचना है, लेकिन ये सब हमें बताता भी कौन? ये सारी बातें तो माँ ही समझाती है ना अंकल, लेकिन हमारा दुर्भाग्य है माँ के बिना हमें सब कुछ सहना पड़ा। ... " अनन्या की कंठ रुद्ध हो गई।

    - मन में ढ़ेर सारे सवाल थे पर पूछें किससे? शरीर मे हो रहे बदलाव को कैसे समझे? भय, संदेह, कई सारे प्रश्न, तन और मन में बदलती भावनाओं को किससे जानें समझे? हम तो ...हम तो माँ को खो चुके थे ना, फिर किससे पूछें? बस हम एक दूसरे को संबल देते रहे।" अनन्या के मन में दबी भावनाएँ और दुःख पहाड़ से फूटकर लावा सी बहने लगी।

    - हाँ मानता हूँ कि तुम्हें माँ की जरूरत थी जैसे सब को होती है। लेकिन तुमने अपने पापा से ये पूछा कि उस दिन क्या हुआ था क्या उसकी बात सुनने की कोशिश की?

    - नहीं लेकिन मेरी माँ की मौत का कारण पापा हैं, ये हमें क्यों जानने नहीं दिया? क्यों कि वह गुनहगार हैं। माँ के दोषी हैं हमारे सिर से माँ का साया छीनने के उत्तरदायी हैं।" अवन्तिका बोल उठी।

    - बस यही शिकायत है कि उसने तुम्हें पहले क्यों नहीं बताया? पर पापा को सफाई देने का एक मौका तो देकर देखो।

    - मेरी माँ की हत्या हुई है अंकल। वह भी मेरे डैड के हाथों। पीकर गाड़ी चलाना तो गुनाह है ना। चाहे वह कोई भी क्यों न हो। इस एक गलती की वजह से हमने हमेशा के लिए माँ को खोया है अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो हमारी माँ हमारी साथ होती।

    - तो फिर सुनो मैं बताता हूँ। उसने तब इसलिए नहीं बताया कि तुम बहुत छोटे थे। कुछ समझने के लायक नहीं थे। सिर्फ तुम्हें परवरिश की जरूरत थी। अच्छी देखभाल की जरूरत थी। और मैंने उसे कसम दे रखा था कि जब तक आप लोग बड़े न हो जाओ तब तक इस बात का जिक्र नहीं करेगा। समय आने पर सब कुछ साफ हो जाएगा। लेकिन तुमने तो दोषी को सफाई देने की मौका तक नहीं दिए सीधे सज़ा सुना दी। और जानते हो जब उसको अस्पताल में होश आया तब उसका पहला शब्द था, "रम्या .. रम्या कैसी है? "

    "तब मेरे पास कोई शब्द नहीं थे। रम्या के माता पिता भारती जी और शिवेंद्र जी इसी सदमे थे कि उनकी बेटी नहीं रही। संजय को बहुत ज्यादा चोट लगी थी, वह 3दिन तक बेहोश रहा। उसका होश आने तक बॉडी को मर्चु में रखा गया। भारती और शिवेंद्र जीने तुम दोनों को कैसे सँभाला सिर्फ वही जानते हैं।" कुछ देर चुप रहे फिर कहने लगे, "दुर्घटना के तुरन्त बाद संजय ने मुझे फ़ोन कर सूचित किया। मैंने अमर को लेकर वहाँ पहुँचा। अमर संजय की गाड़ी का ड्राइवर था। लेकिन संजय ने उस दिन उसे छुट्टी दे दिया था कि साल का पहला दिन वह भी अपने परिवार के साथ बिता सके। जब हम घटनास्थल पहुँचे गाड़ी की हालत बहुत खराब थी। रम्या की गाड़ी से बाहर उछलकर गिरने से बहुत चोट आई थी। सिर से खून बह रहा था। संजय रम्या के पास बेहोश पड़ा था। हम उन्हें अस्पताल ले गए। अमर ने बिना सोचे सारे इल्जाम अपने ऊपर ले लिया। वह ऐसा नहीं किया होता तो तुम दोनों माँ को खो ही चुके थे और पिता के प्यार से भी दूर हो जाते।"

    "और अब जब पता चला तो क्या हुआ? इतने दिनों के उसके त्याग उसकी पीड़ा उसका प्यार सभी एक पल में नफरत में बदल गया?"

    - पिताजी की नशे में होकर गाड़ी चलाना नहीं चाहिए था, ऐसे कई लोग रोज़ रास्ते पर दुर्घटना ग्रस्त होकर प्राण त्याग देते हैं, यही हमारे लिए भी जानलेवा साबित हुई। हमने भी माँ को खो दिया है।"अवन्तिका ने मुँह फुलाकर कहा।

    अवन्तिका को संबोधित करते हुए कहा, "मेरी बच्ची, रम्या को उसने भी तो खोया है, बेटा। अगर वह चाहता तो दूसरी शादी करके किसी और के ऊपर जिम्मेदारी डालकर निश्चिन्त हो सकता था। शादी का सुख त्यागकर वह अपने बारे में न सोचता तो आज शायद तुम ऐसे नहीं होते। सौतेले माँ के साये कैसी जिंदगी जी रहे होते तुम सोच भी नहीं सकते थे। उसने हर पल तुम्हारे बारे में सोचा है अपने बच्चियों के लिए वह अपनी पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी है। वह रम्या के जाने के बाद से हर एक पल खुद को कोसते रहा है। खुद को सज़ा दी है। क्या उसके त्याग की यही सजा काफी नहीं है?"