Diwali in Hindi Short Stories by रामानुज दरिया books and stories PDF | दिवाली

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दिवाली

घना अंधेरा था, हवा के तेज सायं सायं चलने की
आवाज़ उस छोटी सी खिड़की से आ रही थी जिसपे अभी तक पल्ला नहीं लग पाया था। दीपक की रोशनी से पूरा घर रोशन था हर जगह पर , कोई कोना तक बचा नहीं था पूरा घर जगमगा रहा था सिवाय उस कमरे के जिसमें ध्रुव रहता है। उसे रोशनी से उतनी ही नफरत थी जितनी कि अपने आप से।
बाहर द्वार पर पटाखे फोड़े जा रहे थे, मिठाइयां बंट रही थी कुछ लोग लेकर आते तो कुछ लोग लेने के लिए आते आने जाने का मिलन चल रहा था सब खुशी से झूम रहे थे सबसे ज्यादा तो खुश ध्रुव की अपनी पत्नी और उसके दो छोटी बेटियां जो पिछले एक महीने से आने की तारीख पक्की कर रही थी खुशी के मारे फूलों न समा रही थी ।
चारों तरफ खुशी का माहौल था हर कोई झूम रहा था सिवाय ध्रुव के। ध्रुव उसी कमरे में लेटा है जहां आज भी सन्नाटा पसरा हुआ है औऱ रातें उसी स्पीड में बढती जा रही है बिना रुके बिना थके।
थोड़ी देर में सब खाना पानी करके पटाखे वगैरा फोड़ के बिस्तर पर जल्दी ही आ जाते हैं क्योंकि काफी दिनों बाद ये संयोग बना था। ध्रुव की पत्नी भी अपने सारे काम फटा फट निपटाके दस बजे तक विस्तर ले लेती है आज तो उसने इतनी तेजी से सारे काम निपटा लिए की कुछ पता ही नही चला। ध्रुव की पत्नी बिस्तर पर आते ही ध्रुव को छेड़ना सुरु कर देती है हंसी मजाक काफी करती है वैसे तो ध्रुव दोपहर में ही आ गया है लेकिन समय के अभाव की वजह से मिल नहीं पाए। ध्रुव एक दम शांत लेटा है उसके ऊपर दीवाली का कुछ खास असर नही दिख रहा।ध्रुव की पत्नी तन मन से लगी है उसे रिझाने में , हर तरीके से कभी माथा चूमती, कभी गाल चूमती तो कभी सीने से लगा लेती। जोर जोर से हंसती और उसे भी हंसाने का प्रयास करती। आज तो दुनिया की सबसे अज़ीज़ खुशी पा रही थी क्योंकि उसका पति उसके पास है। ध्रुव की पत्नी कभी बालों को खोलती, कभी सारी बदलती, कभी लिपस्टिक तो कभी काज़ल तो कभी पायल हर ओ जतन कर रही थी जितना कि उसके पास था और एक स्त्री के पास रिझाने के जितने भी पत्र थे ओ बरी बारी से अपने हर एक हथियार को आज़मा रही थी लेकिन कहते हैं न कि जब दिल मे किसी की कसक रहती है तो किसी और उपाय से कुछ होता नही है बस उसकी दवा भी वही दर्द ही होता है जिसके द्वारा दर्द दिया गया होता है। लेकिन ध्रुव एक दम बुत की तरह पड़ा ऊपर छत की ईंटों को गिन रहा था जिसकी सफाई न होने की वजह से साफ साफ दिख रहे थे और गाहे बेगाहे उसमें लगी लोहे की रॉड भी दिख रही थी जो गरीबी की चरमता को छूकर बिवस्ता की ओर उन्मुख होने को मजबूर कर रही थी। ओ काभी ईंटों की साइज तो कभी अपनी वाइफ तो कभी अपनी असफल और बर्बाद लाइफ के बारे में सोंचता तो कभी उसकी याद आ जाती जो सबको धकेल कर आगे निकल जाती और सब पर भारी हो जाती और ओ खो जाता उन यादों की गहराई में जिसमे कभी कंकड़ फेंक कर तो कभी साथ साथ गोते लगाये थे चाहतो के । बहुत आश थी उसे की ओ एक मैसेज या फोन जरूर करेगी , ओ एक बार दीवाली wish जरूर करेगी क्योंकि ये उन दोंनो की पहली दीवाली थी लेकिन कहते हैं न कि गर इच्छाएं घोड़ा होती तो उन पर बैठ कर हर कोई सैर कर लेता मगर अफ़सोस ऐसा कुछ होता नही है। समय अपनी तीब्र गति से बढ़ता रहा और ओ बेजान बना लेटा रहा और उसकी यादों के साथ ही खुशियां मनाता रहा उसे पता ही नही चला कि रात कब थक कर उसके साथ सो गई।