sahityik virasat ka anurakshan-panchmahal ke sahutykar in Hindi Book Reviews by ramgopal bhavuk books and stories PDF | साहित्यिक विरासत का अनुरक्षण - सन्दर्भ पंचमहल जिला ग्वालियर

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साहित्यिक विरासत का अनुरक्षण - सन्दर्भ पंचमहल जिला ग्वालियर

साहित्यिक विरासत का अनुरक्षण - सन्दर्भ पंचमहल जिला ग्वालियर

राम गोपाल भावुक

आज से बीस वर्ष पूर्व कथाकार प्रमोद भार्गव जी और मैं डॉ0 सीताकिशोर खरे जी से मिलने सेवढ़ा गये थे। उस दिन हमसे डॉ0 खरे जी ने कहा था--आप लोग अपने-अपने क्षेत्र की साहित्यिक विरासत के अनुरक्षण के कार्य करने में लग जायें। फिर मेरी ओर मुखातिव होते हुये बोले-‘आपके इर्द-गिर्द महाकवि भवभूति की कर्मस्थली पद्मावति नगरी एवं पिछोर में संत कन्हरदास की साहित्यिक सम्पदा विखरी हुई है, उसे संरक्षित करने का कार्य करैं।’

ग्वालियर जिले की डबरा तहसील में पद्मावति नगरी स्थित है। यह क्षेत्र संस्कृत साहित्य के गौरव महाकवि भवभूति की कर्म स्थली रही है। प्रतिवर्ष कालीदास अकादमी के सौजन्य से ग्वालियर एवं पद्मावति नगरी में अखिल भारतीय महाकवि भवभूति समारोह का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

महाकवि भवभूति का लगभग सम्पूर्ण साहित्य प्रकाशित है। किन्तु अभी भी प्रकाशित साहित्य से भवभ्ूाति की कर्मस्थली के कई स्थलों की पहिचान कराना शेष हैं। एक उदाहरण के माध्यम से मैं अपनी बात कहना चाहूँगा। भवभूति कार्यक्रम में पधारे विद्वानों ने हमारे समक्ष प्रश्न रखा -‘आप कैसे कह सकते हैं कि महावीर चरितम् की रचना इसी भू भाग की देन है?’

इस प्रश्न का उत्तर हमने यों दिया है-‘ महावीर चरितम् का प्रारम्भ विश्वामित्र के यज्ञ से किया गया है। भवभूति विदर्भ प्रान्त से व्याकरण, न्यायशास्त्र एव मीमांशा का अध्ययन करने पदमावती नगरी में गुरुदेव ज्ञाननिधि के पास आये थे। यह स्थल उनके मन को इतना भा गया कि उन्होंने इसे अपनी कर्मस्थली ही बना लिया। पदमावती के परिक्षेत्र गिजोर्रा(गिरजोर) गाँव के निकट विश्वामित्र की खाड़ी स्थित है। विदर्भ प्रान्त से आकर वे इस स्थल को देखने अवश्य गये होंगे। इसी कारण महावीर चरितम् की रचना विश्वामित्र के यज्ञ से की है।

आप कहेंगे कि विश्वामित्र की यज्ञशाला यहाँ? मित्रो, इस प्रश्न के उत्तर में मेरा कहना है कि विश्वामित्र ने देश के अनेक स्थानों पर यज्ञ किये हैं। उनमें से एक यज्ञशाला पदमावती नगरी के परिक्षेत्र में है, इसमें हमें सन्देह नहीं होना चाहिये।

ऐसे ही एक दूसरा प्रसंग ‘शम्बूक वध और भवभूति’ वर्तमान साहित्य पत्रिका ने प्रकाशित कर उसे चर्चा का विषय बनाया है। इस समय एक ऐसा ही प्रसंग ‘भवभूति के कालप्रियानाथ’ याद आ रहा है। जिसका प्रकाशन इग्ंिांत के शताब्दी वर्ष के विशेषांक में किया है। जिसका सम्पादन माननीय जगदीश जी तौमर ने किया है। मेरा ‘भवभूति’ उपन्यास इन्हीं शोध कार्यो का परिणाम है।

महाकवि भवभूति की कर्मस्थली के अनुरक्षण हेतु, हम लोग अपने नये विकसित डबरा नगर का नाम करण

‘भवभूति नगर’ के रुप में बदलवाने के लिये प्रयास रत हैं। हम सब ने अपने पते में भवभूति नगर लिखना शुरू कर दिया है। माननीय केविनेट मन्त्री नरोत्तम मिश्र जी विधान सभा में इस प्रश्न को उठा चुके हैं।

अब अपने क्षेत्र के आज से एक सौ पचास वर्ष पूर्व सम्वत् 1831 में ग्वालियर जिले के सेंथरी ग्राम में मुदगल परिवार में जन्मे संत साहित्य के रचियता कन्हर दास जी की बात करना चाहता हूँ-पंचमहल की माटी को सुवासित करने एवं पंचमहली बोली को हिन्दी साहित्य में स्थान दिलाने श्री खेमराज जी ‘रसाल’ द्वारा कन्हर पदमाल के 145 पदों को सम्वत् 2045 में प्रकाशित किया था एवं ‘पंचमहल की माटी’ सम्पादक नरेन्द्र जी उत्सुक के बारह पदों को छोड़कर मैंने इस कार्य को आगे बढ़ाया और सन्1997 ई0 में उनके पदों को खोजकर इनके अतिरिक्त 632 पद और प्रकाशित किये हैं। इस तरह कन्हर पदमाल के 789 पद हम प्रकाशित कर चुके हैं। इसके कुल पदों की संख्या का प्रमाण-

सवा सहस रच दई पदमाला।

कृपा करी दशरथ के लाला।।

के आधार पर 1250 है। यह शास्त्रीय संगीत की अमूल्य धरोहर है, जिसमें-

तीस रागनी राग छः, रचि पदमाला ग्रंथ।

गुरु कन्हर पर निज कृपा, करी जानकी कंथ।।

इन रागों में-रागदेश ताल, राग अड़ानों ताल, झझौटी ताल, राग देश इकताला, राग परज ताल, राग सोहनी ताल, राग ईमन ताल, राग देशताल जतको, केदारौ ताल, श्री ताल बिहाग ताल, आदि हैं, यदि सभी रागों के नाम गिनाये ंतो अनेक पृष्ठ भर जायेंगे।

विज्ञजनों को समर्पित करने-मर्यादा पुरुषोत्म श्री राम की जीवन झाँकी एवं लीला पुरुषोत्तम श्री कृष्ण की जीवन झाँकी से साम्य उपस्थित करने में संत कन्हरदास जी पूरी तरह सफल रहे हैं। यथा-

रघुनन्दन प्यारे खेलैं अवध में होरी।।

सुन्दर भरत लखन रिपुसूदन, डारत रंग बरजोरी।

अवध वधू मिलि कै सब आईं, राम रंग रंग बोरी।।

कन्हर लखि आनन्द मनोहर, देह गेह बिसरो री।।

इसी तरह होरी के पद में एक साम्य और देखें-

सरजू तीर मची होरी

रघुवर लक्षमन भरत सत्रुहन, पकर-पकर रंग में वोरी।

खेलत सखा सखियन युत सुन्दर ,हास विलास दुहुँ ओरी।

कन्हर बार -बार बलिहारी, हेरन मृदु जन मन चोरी।।

इस पद में तो वृज की तरह होरी के खेल में सखियाँ भी हैं। ऐसे कई पद हैं, जिनमें श्री राम के जीवन की लीला में श्री कृष्ण की जीवन झाँकी से साम्य उपस्थित किया गया है।

हमारा पंचमहल क्षेत्र वृज और बुन्देल खण्ड के मध्य का क्षेत्र है। बृज, बुन्देली, डंगासरी , अट्््््््ठाइसी एवं खड़ीबोली के समिश्रण ने पंचमहली बोली के शब्दों में ऐसी मिठास उडेली है कि पंचमहली बोली अपना अलग अस्तित्व लेकर हमारे सामने खड़ी है।

पंचमहली बोली का मैं अपने आप को सबसे पहला कवि, कथाकार मानता था लेकिन कन्हर साहित्य ने मेरा यह मोह भंग कर दिया है।

जीवाजी विश्वविद्यालय के सौजन्य से इन दिनों कन्हरपद माल प्रकाशित की गई है जिसके पदों की संख्या 1052 है। किन्तु उस कृति में हमारी तरह उनने संत मन्हर दास कृत संत कन्हर दास का प्रमाणिक जीवन चरित्र नहीं दिया है।

कन्हर पदमाल के अन्त में ‘इति श्री रामचन्द्र चरन किंकर कन्हरदास विरचित पदमाल सम्पूर्ण ,सम्वत् 1909 लिखा है। कन्हरदास जी के शिष्य संत मन्हरदास ने अपने गुरु का जीवन चरित्र दोहा-चौपाई छन्द में लिखा है। अन्त में स्वामी मन्हरदास जी विरचित कृति तिथि बैशाख कृष्ण 1 गुरुवार सम्वत1965 वि0 दिया है। इसका अर्थ है, कन्हरदास जी का यह दिव्य चरित्र उनके शिष्य मन्हरदास के द्वारा 56 वर्ष बाद का लिखा हुआ है।जो मुझे सबसे अधिक प्रमाणिक लगा है।

श्री गुरु कन्हर सांच मन्हर के मन में बसे।

हरिजन हर्षे बांच अमित अखाड़ा प्रेम का।

इस समय कन्हरदास जी की गुरु परम्परा का एक छन्द याद आरहा है-

जप मन राम चरन सुखरासी।।

प्रेमदास स्वामी निसिवासर

कह-कह गुन हरषासी।

तिनके शिष्य भये लक्ष्मन वर

राम ध्यान उर ल्यासी।।

तिनके दयाराम गुन निधि भये

भक्त गुरुन की आसी।

तिनके मानदास गुन जुत भये

रामचरन रति पासी।।

तिनके कृपा सुदृ्रष्टि भये ते

कन्हर वरन राम गुनगासी।।

हमें गर्व है इस साहित्य पर जीवाजी विश्व विद्यालय से डॉ0 नीलिमा शर्मा जी इस विषय पर शोध कर चुकी हैं।

अब हम गौरी शंकर सत्संग समिति डबरा के माध्यम से इस क्षेत्र की प्राचीन पाण्डुलिपियों के प्रकाशन का कार्य कर रहे हैं। हमने अभी तक ‘कन्हर पदमाल’ के अतिरिक्त करुणा बत्तीसी रचियता माधौदास, भारत की पाँच वीरागनायें रचियता राजेन्द्र रज्जन,एवं काव्यकुन्ज रचियता नरेन्द्र उत्सुक आदि कृतियों का प्रकाशन बिना किसी अनुदान सहयोग के किया है।

ग्वालियर साहित्य अकादमी के द्वारा प्रकाशित लोकमंगल पत्रिका के संरक्षक एवं सम्पादक डॉ0 भगवान स्वरुप शर्मा‘चैतन्य’ ने देश की अनेक विभूतियों में अटल विहारी वाजपेई, मुकुट विहारी सरोज, आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी एवं बदी्रनारायण तिवारी आदि पर विषेशंाक प्रकाशित किये जा चुके हैं । इन दिनों राष्ट्र कवि श्रीकृष्ण सरल जी पर विषेशंाक प्रकाशित किया जारहा है। दतिया निवासी पंण्डित श्री महेश कुमार मिश्र ‘मधुकर’ जी पर भी विषेशंाक प्रकाशित करने की योजना है।

इस तरह डॉ0 चैतन्य साहित्यिक विरासत का अनुरक्षण करने में लगे हैं। वे इस कार्य हेतु बहुत-बहुत वधाई के पात्र हैं।

हमारा लोक साहित्य भी विलुप्ति के कगार पर है। हमारी लोकाक्तियाँ एवं मुहावरे जिनमें हमारी परम्परायें एवं संस्कृति समाहित है जो विलुप्त होरही हैं। कुछ दैनिक जीवन में प्रयुक्त हो रहे शब्द भी गायब हो रहे हैं ,जैसे- कलेऊ, वियालू जैसे शब्दों का स्थान विरेकफास्ट एवं डिनर लेते जा रहे हैं।

कुछ लोकाक्तियाँ एवं मुहावरे हमारे समाज को दिशा भ्रमित कर रहे हैं। उनकी पैनी धार को हम साहित्यकारों को मोड़ने का प्रयास करना चाहिये। मैंने इस दिशा में कुछ कदम उठाये हैं-देखिये

भैंसें की भैंसें गईं भडियन बैर विसाय।

जे बातिन ने सभी को कायर दियो बनाय।।

बिटिया वाप कैं साठ हैं तोऊ बाकी नाँठ।

कहन पुरातन चल बसी निकस रही अब गाँठ।।

लाठी जाके हाथ में भैंसे बाकी शान।ं

आतंक यों पैठा हुआ जन जीवन में जान।।

इस तरह मैंने अपनी पंचमहली बोली की शल्य क्रिया कर, उसे दिशा देने का भी प्रयास किया है।

लोकाक्तियों एवं मुहावरों पर डॉ0 अनिल कुमार गुप्ता ने संग्रह का काम किया हैं। जिसका प्रकाशन म0 प्र0 साहित्य अकादमी कर रही है।

अस्तु साहित्यिक विरासत का अनुरक्षण करने के लिये हम सतत् प्रयत्न शील हैं।


मो0 09425715707

पता- कमलेश्वर कॉलोनी (डबरा) भवभूति नगर जिला ग्वालियर म.प्र. 475110


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