Benzir - the dream of the shore - 16 in Hindi Moral Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 16

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बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 16

भाग - १६

काशी जाने की तैयारी में मुन्ना जो-जो बताते जा रहे थे, मैं वो-वो करती जा रही थी। मेरे सामानों की ऑनलाइन सेल भी बढ़ती जा रही थी। एक दिन मैं अपने कमरे में काम कर रही थी। साथ ही मोबाइल पर एक यूट्यूब चैनल भी देख रही थी। वह किसी विदेशी औरत का चैनल था। उसमें वह महिलाओं के जो कपड़े खुद डिज़ाईन करती, सिलती थी, उन्हें पहन कर दिखाती भी थी कि शरीर पर कैसा फबता है। उसके चैनल को देखने वालों की संख्या लाखों में थी। उसको देखकर मेरे मन में आया कि अपने कपड़ों का मैं भी ऐसा ही कुछ प्रचार करूं क्या? इतने छोटे-छोटे कपड़े पहन कर भले ही अपना चैनल ना बनाऊं फेसबुक, इंस्टाग्राम पर फोटो व सारी बातें लिखकर तो डाल ही सकती हूं।

मुन्ना कितना बताता रहता है इन सब के बारे में। ऑनलाइन सेल के लिए कितनी कंपनियों के नाम बताता है। लेकिन पता नहीं ऐसे कपड़ों में मेरी फोटो वह पसंद करेगा कि नहीं। बड़ी मगजमारी कर मैंने फैसला किया कि, इस तरह अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए एक बार हाथ जरूर आजमाएंगे। बहुत सोच-विचार कर मैंने एक तरीका निकाला कि जैसे बहुत से लोग अपनी फोटो में चेहरा नहीं आने देते वैसे ही मैं भी करूंगी।

इसके लिए सबसे पहले मैंने मुन्ना से फोटो में काट-छांट करना, मोबाइल में टाइमर लगाकर कर फोटो खींचना सीखा। इसके बाद नई चीज करनी है, यह सोचकर इनरवियर की नई डिजाइनें तैयार कीं। इसमें चिकन कपड़े को भी आजमाया। मोबाइल पर देखती रहती थी कि इसके लिए नेट वाले कपड़े ही इस्तेमाल किए जा रहे हैं। उन्हीं को देखकर मैंने माइक्रो, मिनी, फुल, एक्स एल, एक्स्ट्रा लॉर्ज आदि कई साइज के कपड़े तैयार किये। यह करते-करते रात में सोते समय पहने जाने वाले कपड़े भी डिज़ाइन किये। सब कपड़े चिकन के थे, अलग-अलग रंग डिज़ाइन के।

यह मोबाइल का ही कमाल था जो मैं सब जानती-सीखती जा रही थी। उसी से देखकर फैशन का नया चलन भी जानती, कि लेटेस्ट ट्रेंड क्या है। फिर उसी में कुछ और बदलाव कर कुछ नया बनाती गई। मैंने औरतों के लिए चिकन की ही पैंट-शर्ट भी बनाई, साथ में वॉस्केट भी। यह सोच कर कि जो महिलाएं थोड़ी संकोची होंगी, उनके लिए यह एक नई स्टाइल भी होगी । दोहरा कपड़ा होने के कारण कपड़ा थोड़ा गफ हो जाएगा ।

यह सब बनाने के बाद पहनकर फोटो खींचने का वक्त आया तो मैं घबरा गई कि मैं यह क्या करने जा रही हूं। मेरे जिस बदन को सूरज की किरणें भी आज तक पूरा नहीं देख पाईं ऐसा करके तो मैं उसकी पूरी दुनिया के सामने नुमाइश लगा दूंगी। सारी दुनिया आंखें फाड़-फाड़ कर देखेगी। आहें भरेगी। मुझको लेकर ना जाने कैसे-कैसे ख्यालात मन में लाएगी। यूट्यूब की मेहरबानी से मैं मॉडलिंग का अलिफ, बे, पे, ते(उर्दू वर्ण माला के अक्षर) सब सीख गई थी। मैं छोटे-छोटे कपड़े पहनकर मोबाइल में टाइमर सेट कर चुकी थी। लेकिन हिम्मत डगमगा रही थी।

रात आधी बीत गई लेकिन मैं असमंज में पड़ी रही, जबकि मोबाइल अपना काम कर चुका था। मैं उसके सामने होती तो मेरी फोटो खिंच जाती। लेकिन मैं इससे अलग खुद से ही जंग किए जा रही थी। दिमाग में एक साथ दो-दो जंग में मशगूल थी कि, 'ऐसा मत कर बेंज़ी, तू आगे बढ़ने के लिए क्या अपना बदन दुनिया के सामने नुमाया करेगी। शुरू से आज तक जिसे सूरज भी पूरा नहीं देख पाया। सयानी होने के बाद जिसे सिवाय मुन्ना के पूरी कायनात में कोई नहीं देख सका। मुन्ना को तो तूने अपना शौहर माना हुआ है, तो वहां तो ऐतराज वाली कोई बात नहीं है। हालांकि शौहर तो तूने तूफ़ान वाली रात कार में उस पर अपना सब कुछ न्योछावर करने के कुछ दिन बाद माना था। आखिर तू दुनिया के सामने अपना बदन दिखाने की हिम्मत क्यों कर रही है।'

ख्यालों में इस बेंज़ी से मुकाबला करती बेंज़ी बड़ी तेज़-तर्रार थी। वह बोली, 'तूम कभी अंधेरी कोठरी से बाहर निकलकर खुली-खिली धूप में रहकर भी कुछ सोचा-समझा करो। तेरी सोच गूलर के मस्सों (कीड़ों) की तरह है। जैसे वह गूलर के अंदर रहते हैं। उसे ही वह सारी दुनिया समझते हैं। और जब गूलर टूटता है तो बोलते हैं या रब दुनिया इतनी बड़ी है। और आश्चर्य से उनकी रूह ही निकल जाती है। तो गूलर के मस्से ना बन बेंज़ी।अपनी अम्मी से ही सीख, जो पहले बिना बुर्के के बाहर नहीं निकलती थीं। तुम सब भी घर के आंगन में भी बिना सिर ढांके नहीं निकल सकती थीं।

आज सब कितना बदल गया है। तू अपनी मुंबई वाली बहनों से जान ही चुकी है कि, अब वो भी ना केवल समय के साथ चल रही हैं, बल्कि अब तो वह कभी-कभी जींस और कुर्ती भी पहनती हैं। उनके बच्चे कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ते हैं। और तू? अरे कोठरी वाली बेंज़ी मेरी बातों का मतलब यह नहीं कि तू बेशर्म बने, बेशर्मी अपनाए। तू जो भी करे, दायरे में रहकर करे। बस गूलर के मस्से ना बनी रहे। दुनिया में कितनी तो लड़कियां हिजाब पहनकर खेलकूद में भाग ले रही हैं। और तू अभी भी अंधेरे कमरे में दबी-कुचली लड़की सी, घुटने में सिर दिये बैठी है। इसी दम पर बिज़नेस की दुनिया में बहुत बड़ा मुकाम बनाने चली है। करना है, तो जो काम जिस तरह करना चाहिए उसे उसी तरह कर, नहीं तो गूलर के मस्से बनकर अंधेरी कोठरी के कोने में पड़ी, अनाज की बोरी की तरह छलनी होकर अपने को खत्म होने दे।

जैसे घुन अनाज चाल-चाल कर अनाज की बोरी भी चाल डालते हैं। वैसे ही तुझे भी कोठरी का घुप्प मनहूस अंधेरा चाल डालेगा। तू कुछ ही समय में सूख चुके हाड़-मांस की एक ठठरी बन चुकी होगी और फिर जल्दी ही खत्म हो जाएगी। अभी जो बदन तुझे फूल सा खिला-खिला लग रहा है। बड़ा गुमान करती है जिसे देख-देख कर, जरा याद कर कुछ बरस पहले का वक्त जब घर में ही कैद रहते-रहते यह पीलिया के रोगियों की तरह पीला-पीला मरियल सा हो गया था।

धूप की आहट से ही तेरी आंखें चुंधिया जाया करती थीं। तेरे ख्वाबों की रुपहली दुनिया में अम्मी अपने टूटे ख्वाबों की इमारत बनते देख रही हैं। देख, कुछ बड़ा करने का जो ख्वाब देखा है, अपनी अम्मी को भी दिखाया है, तो उसे मुकम्मल करने के लिए बड़े कदम उठाती जा। बड़े कदमों से ही बड़ी मंजिल नापी जाती है। ख्वाबों को हक़ीक़त में तब्दील किया जाता है। और जो यह नहीं कर सकती तो लड़खड़ाते कदमों से चार कदम आगे, दो कदम पीछे चलने से कुछ नहीं होने वाला।

इससे तुझे मिलेगी सिर्फ मायूसी और घुट-घुट कर खत्म हो जाने का सामान। और तू तो दो कदम नहीं आठ कदम पीछे जा रही है। सोच-सोच, तुरंत सोच बेंज़ी । और जो करना है तुरंत कर डाल। चल कदम बढ़ा, बड़े कदम, चल उठ ना।' तेज़-तर्रार बेंज़ी की बातों ने दबी-कुचली बेंज़ी में जोश, ऊर्जा ही नहीं हज़ार वोल्ट का करंट दौड़ा दिया।'

बेनज़ीर की प्रभावशाली वर्णन क्षमता देखकर मैं उनकी तारीफ किए बिना नहीं रह सका। मैंने बीच में रोकते हुए कहा, 'बहुत ही शानदार वर्णन कियाआपने। बिलकुल एक सधी हुई लेखिका की तरह। आपका यह हुनर भी आपकी पर्सनालिटी का प्लस पॉइंट है। मन कर रहा है बस सुनता ही रहूं, आप आगे बताइये।'

'तारीफ के लिए शुक्रिया, तो अपनी भीतरी जंग से जीत कर मैं उठ बैठी, फिर से कैमरा तैयार किया, और फोटो के लिए तैयार हो गई। तभी ज़ाहिदा-रियाज़ के कमरे से कुछ आवाज आई। मैं चौंक उठी। मेरे कमरे की बत्ती जल रही थी। मैं पहले की तरह टिमटिमाती नहीं तेज़-तर्रार बेंज़ी की तरह तेज़-तर्रार वाली लाइट में थी। मुझे लगा कि दरवाजे की झिरी से वो दोनों मेरी ही तरह मुझे देख रहे हैं। मैं सहम गई। इन दो छोटे-छोटे कपड़ों में मुझे देखकर दोनों न जाने क्या-क्या सोच रहे होंगे।

मैंने जल्दी से अपना कुर्ता उठाया और उससे खुद को सामने से ढंका और गुस्से में झिरी से उनके कमरे में देखने लगी कि अगर इन दोनों को इधर देखता पकड़ लिया तो कल ही मकान खाली करा लूँगी। लेकिन मैं गलत निकली। वह दोनों वैसे ही निकले जैसे अमूमन रहते थे। वह तो अपनी ही दुनिया में खोए एक दूसरे को बेपनाह मोहब्बत किए जा रहे थे। बच्चा सो रहा था। मैं एक नजर डाल कर वापस अपनी जगह आ गई यह सोचते हुए कि, रात भर ये मुए मोहब्बत ही करते रहते हैं। पता नहीं सोते कब हैं। इसके अलावा इनके पास जैसे कोई काम ही नहीं है।

मैंने फिर से कैमरा तैयार किया और एक-एक कर सारे कपड़े पहनकर फोटो खींची। माइक्रो वाले कपड़ों पर एक बार फिर डरी, संकुचाई। लेकिन फिर तेज़-तर्रार बेंज़ी की बातें याद आते ही खींच डाली कि बड़े ख्वाब को हक़ीक़त में बदलने के लिए बड़े कदम उठाने ही पड़ते हैं।

सब फोटो खींचने के बाद मैंने उन्हें एडिट किया। गर्दन से ऊपर का हिस्सा क्रॉप कर दिया। मुन्ना फोटो एडिटिंग के बारे में जो बताता था वह सब कर दिया। फोटोज पोस्ट करने से पहले एक बार फिर से साइट पर जाकर ऐसी मॉडलों को देखा तो मुझे एहसास हुआ कि, मेरा बदन मॉडलों की तरह कटावदार तो है लेकिन उतना दुबला नहीं। मैं उनके सामने मोटी लग रही हूं। एक प्लस साइज मॉडल लग रही हूं। मगर यह भी सच है कि खराब नहीं लग रही हूं। थोड़े भरे हुए बदन की अपनी एक अलग खूबसूरती है। नज़ाकत है।

मगर साथ ही एक कमी भी मैं साफ देख रही थी कि उन मॉडलों के शरीर जहां संगमरमर से पॉलिश्ड लग रहे थे, वहीं मेरा सामान्य सा लग रहा था। फिर सोचा चलो काम भर का तो है। मुन्ना ने बताया था कि इन सब की फोटो खींचने से पहले बड़ी तैयारी की जाती है। पूरे शरीर की वैक्सनिंग से लेकर न जाने क्या-क्या करी जाती है। कई वीडियो भी दिखाए थे कि मेकअप करने वाले कैसे उनका मेकअप करती हैं। मॉडल उस समय बुत बनी खड़ी या फिर बैठी ही रहती हैं।'

'वाह! एक बार फिर कहूंगा कि आप निश्चित ही बड़े शानदार ढंग से, सारी बातें बता रही हैं । साथ ही मेरा एक भ्रम दूर कर दिया कि, स्वयं से संवाद केवल लेखक ही किया करते हैं। लेकिन आपने तो इससे एकदम अलग फील्ड की होकर भी, जिस तरह हाई लेविल का आत्म संवाद किया है, वह वाकई प्रशंसा योग्य है। उस समय आपका यह आत्म-संवाद और कहां तक चला।'

'शुक्रिया, आगे भी मैं इसी जिद्दोजहद में खुद से लड़ती-उलझती काशी जाने की तैयारी करती रही। तरह-तरह की डिजाइनें बना-बना कर रखती रही। मुन्ना तैयारियों की एक-एक बात रोज पूछते थे। जिस दिन मैंने मॉडलिंग वाली फोटो डाली उसके करीब चार-पांच दिन के बाद मैं रात को अपने काम में जुटी हुई थी। तभी मोबाइल पर मुन्ना की कॉल आ गई। मैंने जैसे ही कॉल रिसीव की वैसे ही उधर से चूमने की आवाज़ आई।

मैंने कहा, 'एक बजने वाले हैं और तुम अभी तक पुच्च-पुच्च कर रहे हो।'

मेरी बात पर वह जोर से हंस पड़े। मैंने कहा, 'अरे इसमें हंसने वाली क्या बात है?'

'तुम बात ही ऐसी कर रही हो। किस करने को पुच्च-पुच्च कह रही हो।'

मैंने भी हंसते हुए कहा, 'बात एक ही है, चाहे उसे चुम्मा कहो या फिर किस। बात तो बस चूमने भर की है ना।'

'नहीं, चूमने भर की नहीं और भी बहुत कुछ करने की है।'

'क्या?'

'पास आओ तो बताएं।'

'अच्छा तो तरीका भी तुम्हीं बताओ कि छोटे से मोबाइल में कैसे आऊं करीब।'

'कहा न करीब आओ बताता हूं।'

इतना कहकर उन्होंने फोन काट दिया। मैं समझ गई कि अब वीडियो कॉल आएगी। कुछ सेकेंड बाद ही मैंने उनकी वीडियो कॉल रिसीव की और फिर पिछली तमाम बार की तरह वीडियो कॉल के जरिए हमारी बेपनाह मोहब्बत चलती रही।

उसके बड़े प्यार इसरार पर मैंने उसे वही मॉडलिंग वाले कपड़े पहनकर दिखाए। उसने उसी दिन नेट पर सारी फोटो देख ली थी। मैंने सोचा था कि, मैं उसे काशी चलने से दो-चार दिन पहले यह नई डिज़ाइन के कपड़े दिखाऊँगी। मुझे ध्यान नहीं था कि, मेरी आईडी में मुन्ना भी तो लिंक है। उसने मेरी हिम्मत की दाद दी। जितनी हो सकती थी उतनी तारीफ की। कसीदे पढ़ डाले। साथ में यह जोर देकर कहा कि तुममें एक खूबसूरत मॉडल बनने के सारे गुण हैं। मैंने झूठ बोला कि, 'फोटो में मैं नहीं हूं। घर पर जो लड़कियां काम करने आती हैं, उन्हीं में से एक है।'

तो उसने हंसते हुए कहा, ' मज़ाक किसी और से करो, जिसने तुम्हें देखा है, उससे नहीं। इन फोटो से तुम एक बार अपनी अम्मी को कंफ्यूज कर सकती हो, लेकिन मुझे नहीं। जिसने अपनी जानेमन के रोम-रोम को प्यार किया है। देखा है। ना जाने कितनी बार गाड़ी, कमरे, विराने से लेकर खुले आसमान के नीचे तक।'

उसने तमाम ऐसी और बातें कहीं कि, मुझे शर्म के साथ-साथ हंसी भी आती रही।

मैंने कहा, 'तुम सही कह रहे हो। मैं तो तुम्हें बस यूं ही छेड़ रही थी। देख रही थी कि तुम्हारी आंखें कितनी तेज़ हैं।'

'तो बताओ कितनी तेज़ हैं।'

'इतनी कि दिल में क्या है, वह भी देख लो।'

'तो बताऊं, अभी तुम्हारे दिल में क्या है।'

'बताओ'

'यही कि मैं तुम्हें अपनी बाहों में भरकर...।'

'बस-बस, मुझे मालूम है कि आगे क्या कहोगे।अरे मेरे दिल में ऐसा कुछ नहीं है समझे।'

'मैं जो कह रहा हूं, तुम्हारे दिल में वही है समझीं।'

इसी तरह हमारे प्यार-मोहब्बत की बातें चलती रहीं। हम रोज-रोज और ज्यादा एक दूसरे में गहरे उतरते जा रहे थे।

देखते-देखते काशी जाने का समय एकदम सामने आ खड़ा हुआ। मैंने इस दौरान कम से कम सत्रह-अट्ठारह घंटे रोज काम किया। जुनून सवार था कि वहां पर अव्वल आना है। आला दर्जे की हुनरमंद का खिताब जीतना है। प्रदर्शनी के लिए इतने कपड़े, इतनी, डिज़ाइनें तैयार की थीं कि, पूरे चार बड़े-बड़े सूटकेस भर गए थे। अम्मी को भी सब दिखाती रही। माइक्रो, मिनी, लार्ज, एक्स एल, को छोड़ कर। सोते समय पहनने वाले कपड़ों यानी कि स्लीपिंग सूट और चिकन के लेडीज पैंट-शर्ट, विथ वॉस्केट को देखकर अम्मी आश्चर्य से बोलीं थीं, 'अरे बेंज़ी तू इतना सोच लेती है। मुझे तो जो कुछ भी सिखाया गया उससे ज्यादा कुछ सोच ही नहीं पाई। तू सच में बहुत बड़ी हुनर वाली है। काशी में तू सबसे बड़ी हुनरमंद का खिताब जरूर पाएगी । बड़ा नाम करेगी तू। तेरा काम अब इतना ऊंचा हो गया है कि, अब मेरे पास तुझे बताने के लिए कुछ भी बचा ही नहीं है। अब तो मैं तुझसे सीखा करूंगी।'

कहती-कहती अम्मी बड़ी भावुक हो गईं। मेरा लंबा समय अंधेरी कोठरी में बीत जाने पर फिर अफसोस जताने लगीं थीं, कि यह सब कर उन्होंने सारे बच्चों के संग बड़ी ज्यादती की थी। फिर वही बातें दोहराने लगीं कि, 'सारे बच्चों का मुस्तकबिल मैंने अपने हाथों से ही तबाह कर दिया। मेरी अक्ल पर पत्थर पड़े हुए थे कि मैं इतनी जरा सी बात समझ नहीं पाई कि जो कुछ ऊपर वाले ने तय किया है वही होगा। मगर मैं जाहिल अपनी मर्जी चलाने की कोशिश करती रही।'

मैंने देखा अम्मी कुछ ज्यादा ही ग़मगीन होती जा रही हैं तो उन्हें समझाते हुए कहा, 'हमारे साथ जो कुछ हुआ, सब ऊपर वाले की रज़ा थी, और आगे जो भी होगा वह भी उसी की रज़ा से होगा। अपने को गुनाहगार मान कर क्यों खुद को सजा दे रही हो।'

'नहीं बेंज़ी मैं खुद को सजा नहीं दे रही। मैं तो इतना भर कह रही हूं कि, आदमी को समय रहते अक्ल आ जाए, तो उसकी झोली हमेशा खुशियों से भरी रहती है। और जो नहीं आती है तो मेरी तरह उसका दामन दुखों से भरा रहता है।'

इतना कहते-कहते उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बह चली। मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें चुप कराया। जब जाने के सिर्फ दो दिन बचे तो मुझे अम्मी के खाने-पीने की, देखभाल की चिंता सताने लगी। उसके पहले जाने की खुशी में, जोश में, यह बात मेरे ज़ेहन में आई ही नहीं थी। इस चिंता ने मुझे इतना परेशान किया कि, मैं रात भर काम तो करती रही लेकिन इस मसले का हल क्या निकालूं, ज़ेहन में यही बात बार-बार चलती।

आधी रात के करीब मन में आया कि, अम्मी भी अब-तक इस मसले पर कुछ बोली ही नहीं हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि वह भीतर ही भीतर मेरे जाने से नाराज हैं। लेकिन अपनी एक जवान औलाद के उत्साह और जज्बे को देखकर, अपनी बात कह नहीं पा रही हैं। मेरी भी मगज में न जाने कैसा भूसा भरा है कि, सबसे वाजिब बात भी दिमाग में नहीं आई।