12.
आज फिर खाना खाते ही किसना को जोरों की मतली आई | वह बाथरूम की ओर भागा और जो भी थोड़ा बहुत खाया था, सब वमन कर दिया | पिछले कुछ दिनों से यही सिलसिला चल रहा था | भूख तो बिलकुल मर गई थी | जबरदस्ती कुछ खाने का प्रयत्न भी करता तो पाचन क्रिया लेने से इंकार कर देती | भरा हुआ शरीर शेनै:शनै काठी हुआ जा रहा था और आँखों के नीचे स्याह गड्ढे पद गए थे | ऊर्जारहित शरीर को धम्म से बिस्तर पर छोड़ देता और सांसें फूलने लगती | म्लान, क्लांत और श्रीहीन चेहरा किसी भावी अनिष्ट की ओर इंगित कर रहे थे |
आज सुबह की ही बात है | नहाकर जब वह आईने के समक्ष खड़ा हुआ तो उसका प्रतिबिंब भयंकर अटटहास करते हुए कहने लगा, “मुरख, रुपये कमाने की बदहवासी में तूने जो कुसंस्कार पाले, उसकी भारी कीमत तो तेरे शरीर को चुकानी ही होगी | यौवन को मौज-मस्ती में लुटाकर अब तू एक भिकारी है, सिर्फ भिकारी | जिस मरीचिका की तलाश में तू रेगिस्तान में दौड़ता रहा, वहां सिवाय एड़ियां रगड़कर मरने के और कुछ भी नही ” प्रतिबिंब के गायब होते ही किसना सिर से पांव सिहर उठा | स्वंय को संभालने का मौका ही न मिला और मूर्छित होकर वहीं धड़ाम से गिर पड़ा | न जाने कब तक इसी अवस्था में पड़ा रहा | होश में आया तो अस्पताल के बेड़ पर पड़ा पाया | सिरहाने राखी कुर्सी पर उसका ख़ास दोस्त नूरा बैठा हुआ था |
“अल्लाह का शुक्र है तू होश में आ गया | पिछले तीन घंटो से बेहोश था | वह तो अच्छा हुआ जो मैं सही वक्त पर पहुंच गया वरना ....”
किसना ने दौर्बल्ययुक्त हाथों से नूरा का हाथ थामते हुए पूछा, " नूरा क्या हो गया है मुझे, सच-सच बता, तुझे तेरे खुदा का वास्ता | " नूरा ने दोनों हथेलियों से उसका हाथों को थपथपाते हुए कहा, " ये तो मैं नहीं बता सकता, पर तू हौसला रख दोस्त | फिलहाल तो डॉक्टर ने सारे टेस्ट कराने को कहा है | देखते है। ... "
तभी सीस्टर ने कमरे में प्रवेश किया और नूरा की सहायता से किसना को व्हील चेयर पर बिठाकर टेस्ट करवाने लैब में लेकर गई | नूरा वहीं बैठा रहा | घंटे भर में किसना वापस आया और पुनः सिस्टर ने उसे अस्पताल के कपडे पहनाकर बैड पर लिटा दिया | जाते-जाते नूरा को कुछ हिदायतें देकर गई और कहा की शाम को पैथोलॉजी लैब सारी टेस्ट रिपोर्ट लेकर जाए | नूरा ने किसना को मौसमी का जूस पिलाने का प्रयत्न किया, पर बड़ी अनिच्छा से दो-तीन घूंट भरकर वह करवट लेकर सो गया |
शायद इंजेक्शन का असर था | नूरा भी कैंटीन में खाना खाने चला गया | वापस आया किसना गहरी नींद में सो रहा था | नूरा एक पत्रिका के पन्ने उलटने लगा |
शाम को सारी टेस्ट रिपोर्ट लेकर नूरा डॉक्टर से मिलने गया | डॉक्टर ने ध्यान से रिपोर्ट पढ़ा, फिर नूरा के मुखातिब हुआ, " तुम आजकल के नौजवानों के लिए जिंदगी कोई खेलने की चीज बनती जा रही है | अब में क्या कहूं ? तुम्हारा दोस्त एक ऐसी बिमारी का शिकार हो चुका है, जिसकी कोई दवा नहीं | नूरा की धड़कने बढ़ गई |
उसने डरते हुए पूछा, " सच बताइए डॉ. साहब, क्या हुआ है मेरे दोस्त को ?"
“उसे एड्स हो गया है और बचने की कोई गुंजाईश नहीं |” डॉक्टर ने साफ़-साफ़ लफ्जो में कहा | नूरा हक्का-बक्का रह गया |
“डॉक्टर साहब एक गुजारिश है मेरी | प्लीज़ आप ही उसे समझाकर बताएं, क्योंकि मेरी हिम्मत नहीं है |”
डॉक्टर ने कहा, " ठीक है तुम चलो, मैं आता हूं थोड़ी देर में |"
नूरा चिंता में डूबा हुआ कमरे में आया तो देखा छत की दीवार पर आंखें टिकाए हुए किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था | नूरा को मृत्यु शैया पर पड़े अपने दोस्त के लिए बड़ी सहानुभूति हुई | क्या सचमुच मेरा दोस्त मुझे अलविदा कह देगा ? शायद खुदा अच्छे इंसानो को अपने पास जल्दी बुला लेते हैं |
"कितनी मदद की है किसना ने उसकी | आज जो कुछ भी थोड़ा बहुत धंधे की कमाई खा रहा है, वो इसी दोस्त की बदौलत, जिसने नि: स्वार्थ भाव से उसे सीडी की दुकान खरीद कर दे दी और बदले में मैं उसके लिए कुछ भी करने में असमर्थ हूं |" नूरा ने सहज होने का अभिनय करते हुए किसना से पूछा, " अब कैसा महसूस हो रहा है ?" एक जबरन मुस्कान के साथ किसना ने पूछा, " नूरा, रिपोर्ट आ गई ? क्या कहा डॉक्टर ने ? नूरा तनिक हिचकिचाते हुए कहने लगा, " मुझे तो पता नहीं | खैर, डॉक्टर साहेब आते ही होंगे, उन्ही से पूछ लेंगे |" पहली सलाइन की बोतल खाली हो चली थी | नर्स दूसरी बोतल चढ़ा ही रही थी कि डॉक्टर राउंड लेते हुए आ पहुंचे | झुककर किसना की आँखों का परिलक्षण किया, फिर घडी देखते हुए उसकी नब्ज़ पकडे दो मिनट खामोश बैठे रहे |
"हां तो बेटे क्या नाम है तुम्हारा |" उनके पूछने पर किसना की जगह नूरा ने तपाक से उत्तर दिया |
"जी, किसना नाम है इसका |"
"हम्म ! तो घर मैं कौन -कौन है तुम्हारे ?" उन्होंने फिर पूछा | अबकी बार किसना ने जवाब दिया |
"जी सर मैं यहां अकेला ही रहता हूं | इलाहबाद में मेरी माताजी अकेली रहती रहती है |" कहकर किसना अपनी अम्मा के विषय में सोचने लगा | डॉक्टर साहेब ने गला खंखारते हुए भूमिका बांधनी शुरू की |
"देखो बेटे, मानव जीवन भीक में नहीं मिलता | कई जन्मों के पुण्य का फल है मनुष्य का जन्म | अपनी गलतियों के कारण आज तुम जिस असाध्य रोग का शिकार हुए हो, उसके लिए दवा और दुआ दोनों बेकार है | जिस जवानी को तुमने मौज-मस्ती में लुटा दिया, उसने बदले में तुम्हे 'एड्स' का रोग थमा दिया | साफ़ लफ़्ज़ों में कहूंगा की तुम्हे 'एड्स' हो चूका है और बचने की अब कोई उम्मीद नहीं | जिंदगी के बाकी बचे हुए दिनों को नेक काम और ईश्वर की प्राथना करके गुजरो
'एड्स' का नाम सुनते ही किसना पर वज्रपात हुआ | डॉक्टर की बातें उसके कानो में नहीं पड़ रही थी | उसका दिमाग सुन्न होता चला जा रहा था | अचानक उसे लगने लगा, जैसे की वह किसी विशाल नागरदोला (चकरघिन्नी) में बैठा है और समस्त ब्रम्हांड घूमता ही चला जा रहा है और फिर एक बार शारीरिक कमजोरी और मानसिक आघात के कारण वह मूर्छित हो गया | नूरा मित्र की हालत देख बेहद घबरा गया था | डॉक्टर और नर्स काफी कोशिशों के बाद उसकी मूर्छा को तोड़ने में सफल हुए | उन्होंने नूरा को बाहर ले जाकर कहा-
"देखो एड्स के मरीज़ों को हम अपने अस्पताल में नहीं रख सकते | कल तुम्हारे दोस्त को हम डिस्चार्ज कर देंगे | हां तुम चाहो तो एक मदद मैं इंसानियत के नाते कर सकता हूं | गुजरात में एड्स के रोगियों के लिए अर्पण के नाम से एक अस्पताल है, जहां वे जीवन के अंतिम समय गुजारते हैं | वहां के संचालक डॉ. स्मारक मेरे अच्छे मित्र है | चाहो तो तुम्हारे दोस्त के लिए बात कर सकता हूं | " नूरा के उत्तर की प्रतीक्षा में वे उसकी ओर देखने लगे |
उसने कुछ सोचते हुए मायूसी से उत्तर दिया, " ठीक है सर, आप उनसे प्लीज बात कर लें, मैं कल ही उसे ले जाने का बंदोबस्त करता हूं | किसना नूरा का ही प्रतीक्षा कर रहा था | नूरा के सिरहाने बैठते ही किसना उसकी बांह पकड़कर रोता चला गया | न जाने कितनी देर तक रोता रहा | आज नूरा ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की | उसे जी भरके आंसू बहाने दिया |