Lata sandhy-gruh - 10 in Hindi Moral Stories by Rama Sharma Manavi books and stories PDF | लता सांध्य-गृह - 10

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लता सांध्य-गृह - 10

पूर्व कथा जानने के लिए पिछले अध्याय अवश्य पढ़ें।

दशवां अध्याय
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गतांक से आगे….
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नौ नम्बर कमरे में हैं दो बहनें,74 वर्षीय प्रभा एवं 61 वर्षीय विभा।पिता कस्बे के प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे।उस समय सरकारी स्कूलों में नौकरी पाना आज की तरह दुरूह कार्य नहीं था, न ही आजकल की भांति स्कूलों की भरमार थी।
पुष्तैनी घर में ही आधे हिस्से में चाचा जी का परिवार रहता था।अपना-अपना बनाना खाना था।बाद में दोनों परिवारों ने अपने हिस्से में आवश्यकतानुसार 2-2 कमरे औऱ बनवा लिए थे।
पिता की गणित एवं अंग्रेजी विषय पर अच्छी पकड़ थी।इन विषयों के लिए तब भी बच्चों को ट्यूशन की जरूरत पड़ती थी क्योंकि ज्यादातर माता-पिता अल्पशिक्षित होते थे।मां इंटर पास थीं, गांवों-कस्बों में तब इतनी शिक्षित महिलाएं भी नगण्य ही होती थीं।अच्छे-खासे बच्चे ट्यूशन के लिए आ जाते थे, छोटे बच्चों को मां पढ़ा देती थीं, तथा बड़े बच्चों को पिता जी देख लेते थे।
प्रभा के बाद लगभग 12 वर्षों के पश्चात विभा का जन्म हुआ था।मां की इच्छा तो एक बेटे के लिए प्रयास करने की थी लेकिन प्रगतिशील विचारों वाले पिताजी ने दो बेटियों में ही अपना परिवार पूर्ण मान लिया था।वे बेटियों को ही उच्चशिक्षित कर अपने पैरों पर खड़ा करना चाहते थे।,किन्तु प्रभा को पढ़ने का ज्यादा शौक नहीं था।लेकिन पिताजी का मानना था कि भविष्य अनिश्चित है अतः कोई न कोई व्यावसायिक कोर्स करना ही चाहिए, अतः स्नातक के पश्चात प्रभा को मौसी के यहां शहर में रखकर एक साल का ब्यूटी पार्लर का कोर्स करा दिया गया।ततपश्चात योग्य वर देखकर विवाह कर दिया गया।उस समय विभा मात्र 10 वर्ष की थी।
दो वर्ष बाद भी गोद न भरने के कारण जांच कराने पर ज्ञात हुआ कि प्रभा की दोनों नलिकाएं बन्द हैं, उस समय चिकित्सा पद्धति इतनी विकसित नहीं थी आज की तरह, जिसमें ऑपरेशन कर बन्द नलिकाओं को खोल दिया जाता है या आईवीएफ द्वारा भी कई सूनी गोदें भर जाती हैं।
अब चूंकि कमी प्रभा में थी,तो दूसरे विवाह के लिए ससुरालियों का दबाव पति पर बढ़ता गया,साथ ही प्रभा पर ज्यादतियां भी बढ़ती गईं।पुरूष को तो वारिस चाहिए ही,अतः प्रभा की सौतन आ गई घर में।शीघ्र ही दूसरी पत्नी गर्भवती हो गई।अब तो प्रभा ससुराल में मात्र नौकरानी बन कर रह गई थी।प्रभा ने तो पिता को पता ही नहीं लगने दिया था अपनी विपत्ति कथा का।वो तो एक दिन शहर में किसी कार्यवश आए थे तो प्रभा का हालचाल लेने अचानक ससुराल पहुंच गए थे, तब उन्हें सबकुछ ज्ञात हुआ।पहले तो दामाद को खूब खरीखोटी सुनाई,यहां तक कहा कि कमी तुममें होती तो क्या प्रभा यही करती तुम्हारे साथ ऐसा।उन्होंने तलाक की बात भी कही,किंतु वह तैयार नहीं हुई, क्योंकि उस जमाने में परित्यक्ता स्त्री को समाज अत्यंत हेय दृष्टि से देखता था, लेकिन पिताजी प्रभा को सदैव के लिए अपने साथ ले आए।महल्ले-समाज के लोगों ने प्रारंभ में थोड़ी कानाफूसी की,किंतु समय के साथ सभी भूल गए क्योंकि मां-पिता दृढ़ता से अपनी बेटी के साथ खड़े थे।फिर उन्होंने घर में ही प्रभा के लिए पार्लर खुलवा दिया, जिससे उसका मन भी लग जाए एवं वह अपने पैरों पर भी खड़ी हो जाय।
विभा पढ़ने में अच्छी थी,साथ ही 5-6 वर्षों में बहन का बसना-उजड़ना सब देख लिया था, अतः वह उच्च शिक्षित होने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थी।उसने भी अध्यापन का क्षेत्र चुना।MA, BEd करने के बाद उच्च माध्यमिक विद्यालय में शिक्षिका हो गई, उसकी पोस्टिंग दूसरे जिले में हुई थी, अतः पिताजी ने अच्छी तरह से देखभाल कर उसके रहने की व्यवस्था कर दी।नौकरी लगने के पश्चात माता-पिता ने विभा का विवाह कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहा।परन्तु प्रभा का हाल देखकर उसे विवाह से वितृष्णा हो गई थी।सभी ने समझाया कि यह आवश्यक तो नहीं कि तुम्हारे साथ भी ऐसा ही हो,लेकिन वह अडिग रही अपने अविवाहित रहने के फैसले पर।
समय धीरे-धीरे अपनी गति से व्यतीत होता रहा।उतार चढ़ाव तो जीवन क्रम है।पहले पिता फिर दो साल बाद मां भी संसार से पलायन कर गईं।उनके जाते ही पड़ोस में रहने वाले चचेरे भाइयों ने अपनी लोभी दृष्टि उनके घर पर गड़ा दी।तरह-तरह से प्रभा को परेशान करने लगे, अंततः थक कर विभा ने बड़ी बहन को अपने पास बुला लिया।वे समझ चुकी थीं कि चचेरे भाई घर पर कब्जा कर लेंगे, अतः दोनों बहनों ने घर को बेच दिया।उससे चाचा का परिवार अत्यंत क्रोधित हो गया था, वे धमकियां देते रहते थे।इन सबसे ऊबकर विभा ने दूर स्थानांतरण करवा लिया।उनके आगे-पीछे तो कोई था नहीं, इसलिए उन्होंने कहीं घर बनाने की भी आवश्यकता नहीं समझी।रिटायरमेंट के बाद दोनों बहनें सांध्य-गृह में आ गईं।
दसवां कमरा रिक्त छोड़ रखा था,घर में रहने वाले सदस्यों के मिलने आने वालों के लिए, जिससे वे उसमें रुककर कुछ समय हमारे साथ बिता सकें, क्योंकि माह में एक-दो बार किसी न किसी के मिलने वाले आ ही जाते थे।
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