Ankaha Ahsaas - 29 in Hindi Love Stories by Bhupendra Kuldeep books and stories PDF | अनकहा अहसास - अध्याय - 29

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अनकहा अहसास - अध्याय - 29

अध्याय - 29

दोनो विभाग से बाहर निकलकर छत की ओर चले गए।
मधु ने आभा को छत की गेट पर छोड़ दिया और वापस आ गई।
छत पर पहुँचकर आभा ने देखा की शेखर सचमुच वहाँ पर बेंच के ऊपर बैठा था। वह नीचे की तरफ देख रहा था।
हेलो शेखर। आभा सकुचाते हुए बोली।
ओ, हेलो आभा। आओ बैठो। एक पल के लिए शेखर ने सिर उठाकर उसे देखा फिर सिर दुबारा नीचे कर लिया।
बैठो ना ? शेखर ने फिर कहा।
मैं ठीक हूँ शेखर। वो खड़ी ही रही। क्या तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो ? आभा थोड़ी आत्मविश्वास दिखाते हुए बोली।
हाँ। कहना तो चाहता हूँ पर हिम्मत नहीं हो रही है। शेखर इधर उधर देखते हुए बोला।
ठीक है फिर मैं जाती हूँ। अगर तुममें हिम्मत नहीं है तो रूककर क्या फायदा। आभा पीछे पलटती हुई बोली।
प्लीज रूको ना आभा। कहकर वो खड़ा हो गया।
आभा पीछे पलटी तो देखा कि शेखर घुटनों पर आ गया था। उसने अचानक आभा का हाथ पकड़ लिया।
मैं ये हाथ जीवन भर पकड़े रहना चाहता हूँ आभा क्या तुम मुझे स्वीकार करोगी। शेखर अब भी सिर झुकाए हुए था।
कब से ये बात दिल में रखे थे ? आभा दिखावा करते हुए पूछी।
जब से तुमसे पहली बार मिला था लगभग छह महीने पहले से।
तो कहा क्यों नहीं ? उठो और आंखों में आंखे डालकर बोलो। आभा बोली।
शेखर उठा और इधर-उधर फिर से देखने लगा। अचानक आभा ने उसका चेहरा दोनो हाथों से पकड़ लिया। शेखर एकदम सिहर गया। उसकी आंखे चार हुई।
अब बोलो ?
आई लव यू आभा !!!
आई लव यू टू शेखर। कहकर वो शेखर से लिपट गई।
शेखर का मनोरथ पूरा हो गया। उसके खुशी की सीमा ना थी।
अचानक आभा उससे अलग हो गई।
अनुज को कैसे बतायेंगे शेखर ? वो तो मुझसे शादी करने के लिए आतुर है।
मुझे समझ नहीं आ रहा आभा अनुज को कैसे बताऊँ।
तभी शेखर का फोन बजा।
ये अनुज का ही फोन है आभा। मैं जाता हूँ तुम थोड़ी देर बाद आना। अगर किसी ने देखा लिया तो और मुसीबत हो जाएगी।
हाँ शेखर तुम सही कह रहे हो और अगर अनुज को पता चला तो और भी बुरी तरीके से नाराज हो जाएगा। तुम चलो मैं पीछे आती हूँ, यह कहकर वो रूक गई और शेखर चला गया।
कहाँ गया था यार । अनुज बोला।
बस भाई यही कॉलेज में सर्वे कर रहा था कि कहीं कोई दिक्कत तो नहीं।
अच्छा बैठ। तुमसे एक जरूरी बात करनी हैं।
बताओ ? शेखर ने पूछा।
देख यार। मुझे आभा से जल्द से जल्द शादी करनी है। एक सप्ताह के अंदर ही।
यह सुनकर शेखर सकपका गया। वो असमंजस में था कि कैसे बताए अनुज को कि वो उसकी मंगेतर से प्यार करता है।
अच्छा ?
अच्छा क्या ? तुम्हें उसकी सारी जिम्मेदारी उठानी है।
ओह !! तो ये बात है।
हाँ। सारी तैयारी तुम्हें ही करवानी पड़ेगी।
आज मैं माँ से बात करके दिन फिक्स कर लूँगा । फिर हम तैयारी चालू कर देंगे।
तुझे इतनी हड़बड़ी क्यों है अनुज। आराम से मुहुर्त देखकर शादी कर लेना।
अच्छा बुरा क्या मुहुर्त देखकर हमारे जीवन में आता है शेखर। मैं ये सब में यकीन नहीं करता। तुम बस तैयारी चालू कर दो, और आभा को भेजो। वो मधु के साथ कैंटीन साईड गयी है। मैं उससे भी बात कर लेता हूँ।
शेखर उठकर चला गया।
अनुज सोचने लगा। रमा की वजह से मैं क्यों दुखी रहूँ। धूमधाम से शादी करूँगा और विदेश जाऊँगा हनीमून के लिए।
इधर शेखर जब छत पर पहुंचा तो आभा वहाँ नहीं थी। उसे लगा वो नीचे मधु और रमा के पास चली गई होगी इसलिए वो नीचे आया।
हेलो मधु। आभा यहाँ आई है क्या ?
वो तो आपसे ही मिलने गई थी शेखर जी। मधु बोली।
हाँ वो मुझसे मिलने आयी थी और उसने मेरे प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया।
ओह। ये तो बहुत अच्छी बात हो गयी। रमा बोली। अब तो अनुज को बताया जा सकता है। तुम दोनों मिलकर बता दो। रमा बोली
हाँ बता तो देंगे पर आभा है कहाँ ? एक घंटा हो गया है वो अब तक किसी को दिखी नहीं कहाँ गई होगी। चलो एक बार पूरा कॉलेज देख लेते हैं।
वो तीनो फिर पूरा कॉलेज घूम आये परंतु आभा कहीं दिखी नहीं। अब उनको चिंता होने लगी थी। वो तीनों कॉलेज के गेट पर पहुँच गए।
गार्ड भैया। आभा मैडम बाहर गई क्या ?
नहीं सर। गार्ड बोला
पिछले एक घंटे में कौन-कौन बाहर गया। शेखर ने पूछा।
कुछ बच्चे और गगन सर अपनी वैन से स्टोर का सामान लेकर गए।
ओह !! मतलब वो कॉलेज से बाहर ही नहीं गई है। तो फिर गयी कहाँ। तभी शेखर का फोन बजा। ये अनजान नम्बर से था।

क्रमशः

मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे - भूपेंद्र कुलदीप