प्रकरण 3 : घर की धोराजी
मेरे गाँव का नाम हॉस्टल के लोगों में डर पैदा करने के लिए काफी था। मैं धोराजी गाँव का मूल निवासी था और लोग हमारे तथाकथित "घर की धोराजी" कहावत से पहले से ही परिचित थे। मै धोराजी का था और दूसरा विनय के कराटे ननचक्कू की वजह से हमारे सामने लड़ने की कोई हिम्मत नहीं कर पाता था। हॉस्टल के लोगों को मानसिक रूप से हराने के लिए चिको और प्रितलो काफी थे। वह दुश्मन के कमरे में घूस जाते थे और उनके साथ दोस्ती कर लेते थे और उसके मन में यह डाल देते थे कि हमारा ग्रुप के साथ दोस्ती रखने में ही उन सबकी भलाई है। जबकि प्रियवदन और भाविन शांति दूत थे। वह हॉस्टल से लोगों से पहेचान बढ़ाके उनको अपनी साइड में कर लेते थे। हॉस्टल की शुरुआत में हमारे सख्त रवैये के कारण हॉस्टल के लोग हमारे साथ झगड़ा करने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। हम भी शांति से रहना चाहते थे। हालांकि, हमारे ग्रुप की दादागीरी से प्रेरित होकर, हमारे कन्वीनर ने हमको "गुंडे" ऐसा उपनाम दिया था। हमारे हॉस्टल में आने से पहले हॉस्टल के छात्रों की छवि काफी शांत थी जो हमारे आने के बाद पूरी तरह से उलट गई थी। हमारा स्वभाव झगड़ालू नहीं था, लेकिन हमारे ग्रुप के किसी भी सभ्य को दादागिरी बर्दाश्त नहीं होती थी, इसलिए हमको बदमाश लोगों के खिलाफ सख्त कदम उठाने पडते थे। हम ऐसे लोगों को छोड़ते नहीं थे, जो हॉस्टल में दादागिरी करते थे। इसीलिए हॉस्टल में हमारे ग्रुप की छाप "घर की धोराजी" की पड़ी थी।
प्रकरण 4 : हॉस्टल का भूत
हमारे कमरे पुरानी हवेली के कमरों के जैसे दिखते थे। रात को जब हमारे सभी कमरों की लाइटे बंद हो जाती थी, तो हमारा हॉस्टल भूतिया महल जैसा लगता था। कमरे के दोनों तरफ बेड थे और कमरे के बीच में एक जगह थी जहा पर एक काला Circle बना हुवा था।
अक्सर हमारे कमरे में सभाए होती थीं, तो हम हर दिन अलग-अलग विषयों पर चर्चा करते थे। कभी फिल्म की चर्चा, कभी क्रिकेट की, कभी राजनीति की, कभी शिक्षा की, कभी धर्म की, कभी संस्कृतियों की। इन चर्चाओं के लिए अलग-अलग कमरों के लोग हमारे कमरे में आते थे और बैठते थे। कभी-कभी भूतिया बातचीत होती थी क्योंकि भूतों का विषय उस समय दिलचस्प और हमारा पसंदीदा था। एक-एक करके सब अपने अनुभव साझा करने लगे। भूत हैं या नहीं ?, अगर हैं, तो वे कहाँ हैं ?, वे क्या करते हैं? उसको लेकर चर्चाएं होने लगी थीं। हमारे ग्रुप ने सभी को प्रभावित करना शुरू कर दिया था कि "दुनिया में भूत हैं"। क्योंकि यह भूतो की बातो से हमारी कई समस्याए हल हो सकती थी। भूतो की कहानियां सुनाकर सभी अपने-अपने तरीके से दूसरों को डराने की कोशिश कर रहे थे। हमारे ग्रुप का डराने-धमकाने में कोई जवाब नहीं था।
मैंने भूतों के चार-पाँच किस्से सुनाए, जिनसे सभी को यकीन हो गया कि भूत होते हैं। लोहा गर्म था और हम एक के बाद एक हथौड़ा मार रहे थे।
प्रियवदन और प्रितला ने कमरा नंबर 10 में भूतों के बारे में बात करके बताया की रात में उस कमरे में कोई पत्थर और लाठीया फेंकते हैं, कमरे की खिड़कियां अपने आप खुल जाती है और बंद हो जाती हैं, कमरे से पायल की आवाजे आती है। प्रियवदन और प्रितला की कहानी सुनकर मैंने यह कहा की हमारे कमरे में भी भूत हैं और कमरे के बीच में जहाँ पर काला circle है वहा पे एक कुआँ था जहा पे हॉस्टल के छात्र ने कूदकर खुदखुशी कर ली थी इसलिए सबने मिलके कुए को बंद कर दिया है और उसके उपर काले रंग का एक circle बना दिया है। रात में अजीब सी आवाजे और शोर उस घेरे में से आते हैं। विनय ने कहा कि बाथरूम नंबर 5 भी भूत हैं। नल अपने आप चालू हो जाता है, कपड़े अपने आप गिर जाते हैं, बाल्टी से अपने आप पानी बाहर निकल जाता है। एक-एक कर हमने भूतों की ऐसी कहानियां बनाईं कि हॉस्टल के लोग अपने कमरों में जाने से भी डरने लगे। हम हीरो बनने का दावा करने वालों को जीरो बना देंते थे। फिर क्या था सभी ने हमारी बातों पर विश्वास कर लिया और ऐसा करके हमने भूतो का दाखिला हॉस्टल में करवा दिया।
कई बार हम दूसरे ग्रुप के साथ शर्ते लगाते थे, जैसे कि तीसरी मंजिल में हॉस्टल बोर्ड को छूकर वापस आना, बाथरूम नंबर 5 में 30 मिनट के लिए देर रात तक रहना, पूरी रात हमारे हॉस्टल के कमरा नंबर 10 में बिताना। ब्लाइंडफोल्ड करके तीसरी मंजिल तक पहुचना| सीढ़ियों का उपयोग किए बिना दूसरी मंजिल से ग्राउंड फ्लोर तक पहुचना आदि। हमारी ऐसी शर्तो के कारण, जेतपुर के एक लड़के के पैर में फ्रेकचर हो गया था। उसके बाद कन्वीनर की सख्ती की बजह से हमारी सारी शर्तें बंद हो गईं थी।
हॉस्टल में भूतो की कहानी बहुत लंबे समय तक चली थी और हमें भी भूतो की कहानीयो को आगे बढ़ाने में रुचि थी क्योंकि इससे हमें बहुत ही फायदा मिलता था। जब हमारे ग्रुप का कोई व्यक्ति भूतो की कहानी सुनाता, तो हम उसे हर संभव तरीके से साबित करने की कोशिश करेते थे, लेकिन जब हॉस्टल में कोई ओर हमें भूत की कहानी सुनाता तो हम हँसकर उसकी बात को टाल देते थे और ये साबित कर देते थे कि उनकी कहानियाँ जूठी है। यह हमारी रणनीतियों में से एक रणनीति थी।
हॉस्टल में भूतों को लाने में हमारे ग्रुप का फायदा यह था कि जब हम सुबह उठते थे तब हॉस्टल के सभी लोग बाथरूम में शॉवर लेने के लिए जाते थे इसलिए हमें बाथरूम खाली होने का इंतजार करना पड़ता था, अब हमारा काम आसान हो गया था, क्योंकि कोई भी 5 वें बाथरूम में शॉवर लेने की हिम्मत नहीं कर पाता था यानी कि वो बाथरूम हमारे लिए आरक्षित हो गया था और हम किसी भी समय इसमें आराम से स्नान कर सकते थे। दूसरा कारण यह था की हॉस्टल में हमारे ग्रुप का महत्व ओर भी बढ़ गया था क्योंकि सभी को यह लगता था कि केवल हम लोग ही भूतों का सामना कर सकते हैं।
हमारे भूतों की कहानियों से हारिज का एक लड़का इतना भयभीत हो गया था कि उसे अगले दिन उसे ट्यूशन में दस्त हो गए थे।
हम अपनी भूतों की कहानी को सच साबित करने के लिए समय-समय पर भूतों के साथ प्रयोग किया करते थे। हमारे हॉस्टल में शौचालय बाथरूम हमारे कमरे के पीछे की ओर गली में स्थित था। हमारी भूत की कहानी की वजह से, हॉस्टल के लोग रात में गली में बाथरूम जाने से डरते थे। हमारे कमरे की खिड़की उस गली के बीच में थी। जब कोई रात में बाथरूम करने के लिए आता था, तो हम अपने कमरे की लाईट बंद कर देते थे और खिड़की से भूतिया मुंह बनाके उसको डराते थे। कभी चादर से सिर ढंककर तो कभी मुंह पर पाउडर लगाकर लोगों को डराया करते थे। एक बार गढ़डा गाँव का एक छात्र ऊपर से नीचे बाथरूम करने के लिए आया, उसने जैसे ही मेरे पाउडर लगे हुए मुँह को देखा की वही पर बाथरूम कर लिया। ऐसा था हमारे हॉस्टल का भूत।
क्रमश: