ek rahasymayi ladka in Hindi Adventure Stories by Saroj Verma books and stories PDF | एक रहस्यमयी लड़का

Featured Books
Categories
Share

एक रहस्यमयी लड़का


अचानक पता नहीं क्या हुआ रेलगाड़ी को ,इतना याद नहीं मुझे, मैं तो बस अपने काम से एक छोटे कस्बे जा रहा था, मेरी कम्पनी ने मुझे उस कस्बे से पन्द्रह किलोमीटर दूर भेजा था क्योंकि मेरी कम्पनी को उस गांव में सरकारी हैंडपंप लगाने का ठेका मिला था तो कुछ जरूरी कागजी काम के लिए मुझे चुना गया था वहां जाने के लिए।।
मैं तो रात को रेलगाड़ी में बैठा था,रातभर का सफर था और मुझे बताया गया था कि बहुत छोटा सा कस्बा है वहां रेलगाड़ी बहुत कम समय के लिए रूकती है और वो गांव जहां मुझे जाना था वो कस्बे से पन्द्रह किलोमीटर दूर है लेकिन अचानक ही आधी रात के बाद रेलगाड़ी किसी चीज़ से टकराई और रेल के कई डिब्बे पटरी से उतर गए मतलब रेलगाड़ी दुर्घटना ग्रस्त हो गई, शायद कस्बे से थोड़ी दूर पहले ही।।
मुझे होश नहीं था, मैं दो तीन घंटे ऐसे ही बेहोश पड़ा रहा फिर सुबह के पांच बजे थे मेरी हाथघड़ी में जब मुझे होश आया, बिल्कुल अंधेरा था, मैं रेलगाड़ी से जैसे तैसे बाहर आया देखा तो बाहर अफरा तफरी का माहौल था।।
आस पास के लोग घायलों की मदद मे लगे थे और जो बिल्कुल ठीक थे वो भी लोगों की मदद में लगे थे और कुछ चिकित्सकीय मदद भी कस्बे से आ चुकी थीं।।
लेकिन मुझे इतनी फुरसत नहीं थी कि लोगों पर ज्यादा ध्यान दूं, मुझे तो गांव पहुंचना था,अपना काम निपटाना था, मैं उस समय थोड़ा स्वार्थी हो गया था।।
तभी एक बीस बाइस साल का लड़का मेरे पास आकर बोला__
बाबू जी!! कहीं तक छोड़ दूं आपको, मैं एक तांगेवाला हूं और वैसे भी रेलगाड़ी दुर्घटना ग्रस्त हो गई है आपको यहां कोई साधन जल्दी नहीं मिलने और फिर सुबह भी बस होने को हो।।
मैंने कहा मुझे भरतपुर जाना है, जानते हो उस गांव को।।
क्यो नही जानते बाबूजी,इस जगह का एक एक कोना हमरा जाना माना है, उस लड़के ने कहा।।
तो फिर चलो, कहां है तुम्हारा तांगा, मैंने पूछा।।
उसने कहा__
बाबूजी,ये रेल की पटरी को पार करके उस ओर खड़ा है हमरा तांगा।।
मैंने कहा चलो, ठीक है।।
एक तो सुबह का पहर,ऊपर से हल्का अंधेरा, पटरियों के दूसरी ओर खेत ही खेत थे,जिनकी फसल पककर सुनहरी हो गई थी,हल्की रोशनी में खेत बहुत ही सुंदर दिख रहे थे और दूसरी ओर टेसू के पेड़,चैत का समय था तो टेसू के नारंगी फूल भी आए हुए थे पेड़ों पर।।
मैं तांगे में बैठ चुका था और तांगा चलने लगा!!
मैंने लड़के से पूछा__
तुम्हारा नाम क्या है?
रामेश्वर!! रामेश्वर नाम है हमारा, बाबू जी,उस लड़के ने जवाब दिया।।
उस लड़के ने कहा__बाबूजी!! आपने कभी भूत देखा है?
मैंने कहा__नही!!
बाबू जी पता है,हम तो रोज देखते हैं।।
मैंने कहा,सच बताओ।।
उसने कहा__
सच!! बाबूजी,जो अभी रेलगाड़ी की दुर्घटना में लोग मर गए हैं,ना तो हमें दिखाई दे रहे थे, पता नहीं हमें काहे दिखाई देते हैं और बचपन से ही हमारे साथ ऐसा है, कोई ना कोई हमारे पास आकर हमसे मदद भी मांगता है,जिसका कुछ अधूरा रह जाता है।।
मैंने कहा !!तुम्हें डर नहीं लगता!!
वो बोला लगता है ना बाबूजी,कभी कभी बहुत डर लगता है,जब कौन चुड़ैल आ जाती है।।
अब हल्की हल्की सुबह होने लगी थी और हम रास्ते के नज़ारों को देखते हुए आगे बढ़ रहे थे तभी मुझे याद आया कि मेरे जरूरी कागजात और सामान तो रेलगाड़ी में ही रह गया है।।
मैंने कहा रामेश्वर हमें वापस जाना होगा।।
उसने कहा, ठीक है लेकिन हम अंदर तक नहीं जाएंगे फिर से कोई मरा हुआ हमसे बात करने आ पहुंचा तो आपको बाहर तक छोड़ आते हैं फिर आप अपना और कोई साधन देख लेना फिर सुबह भी होने वाली है अब हम घर जाकर नहा-धोकर,खा पीकर आराम करेंगे।।
मैंने कहा,ठीक है, मुझे वहां तक छोड़ दो।।
उसने मुझे दुर्घटना वाली जगह से बहुत दूर अपने तांगे से उतार दिया, मैंने मन में सोचा कि कितना अजीब रहस्यमयी लड़का था भूतों को देखने की बात कर रहा था,बोल रहा था कि मैं मरे हुए लोगों को देख सकता हूं।।
मैंने सोचा,चलो हटाओ, मुझे क्या लेना-देना, मैं तो अपना बैंग लेने आया हूं, कोई ना कोई दूसरा तांगा भी मिल ही जाएगा।।
और मैं उस अफ़रा-तफ़री,घुटन भरे माहौल में फिर जा पहुंचा, मैंने अपनी वोगी ढूंढी और अंदर घुस गया।
लेकिन अंदर जाते ही देखता हूं कि मेरा मृत शरीर लहुलुहान अस्त व्यस्त अवस्था में पड़ा है,इसका मतलब वो लड़का सच बोल रहा था कि वो मरे हुए लोगों को देख सकता है।।

समाप्त____
सरोज वर्मा___