Lahrata Chand - 32 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | लहराता चाँद - 32

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लहराता चाँद - 32

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

32

कुछ समय बाद संजय ने अवि के कमरे जाकर देखा। वह अवचेतन अवस्था में थी। शरीर बुखार से तप रहा था। संजय अपने कमरे में जाकर दवा और इंजेक्शन ले आए। इंजेक्शन और दवा के साथ पानी पिलाकर वहाँ से बाहर कमरे में आ गए। उन्होंने पूरी रात सोफ़े पर ही गुजार दिया। अवि को अपनी माँ के लिए तड़पता देख वे अस्थिर हो उठे। संजय को समझमें नहीं आ रहा था कि कैसे समझाएँ अपनी बेटियों को। वे करते भी तो क्या? जबसे दुर्घटना हुई है तब से रम्या की कमी बाधित कर रही है उन्हें।

संजय रम्या के साथ गुजरे आखिरी पलों को याद करते हुए उस अमावस की रात में बाहर निकल गए। उस दिन ऐसे ही एक अमावस की रात थी जिस दिन हादसा हुआ था।

लंबे समय के बाद रम्या अपनी मानसिक बीमारी से ठीक हो चुकी थी। अनन्या और अवन्तिका भी छोटे थे। उनके पारिवारिक जीवन से शंकाएँ दुश्चिन्ताएँ मिट चुकी थीं। नये साल के अवसर पर रम्या के माता-पिता रम्या के घर आये थे। जब रमेश ने परिवार समेत नये साल की पार्टी सेलिब्रेट करने बुलाया तो संजय ने खुशी-खुशी हाँ कह दिया। ऑफिस से लौटते ही रम्या को तैयार होने को कह कर वह फ्रेश होने वाशरूम चला गया। रम्या सालों बाद घर आये अपने माता-पिता को छोड़कर जाने को तैयार नहीं थी। उसने संजय को अकेले जाने के लिए मना भी लिया। लेकिन उसकी माँ नहीं मानी उन्होंने बच्चों को अपने पास रख कर रम्या को संजय के साथ जाने को कहा।

"माँ, मुझे नहीं जाना है। संजय अकेले चले जाएँगे।"

"नहीं बेटा तुम दोनों साथ जाओ। खुशी का मौका है, पति पत्नी को साथ रहने का एक भी मौका गँवाना नहीं चाहिये। जाओ तैयार हो जाओ। बच्चों को हम सँभाल लेंगे। आप दोनों हो आओ।"

"लेकिन माँ आज हम सब साथ में... रहे तो अच्छा है ना?"

हाँ पर ऐसे मौके पर आप दोनों साथ रहना चाहिए। बच्चों को देखने के लिए हम हैं । क्यों अनु बेटा?

- हाँ नानी।

जाओ तैयार हो जाओ। खुशी का मौका है साथ-साथ जाओ और साथ-साथ वापस आओ।" रम्या की माँ पार्वती जी ने कहा।

माँ के कहने पर रम्या पार्टी में जाने को तैयार हुई। दोनों अपनी कार में निकले। तय किया हुआ स्थल 12किलोमीटर दूर था। रास्ते में एक पहाड़ी अतिक्रम करना था जिसके एक तरफ एक खाई थी। पतला रास्ता और ऊबड़-खाबड़ जमीन, फिर भी दोनों समय पर पहुँच गए। शोर शराबे के बीच सब खूब मस्त थे। शरारती मूड़ में दोस्तों के कहने पर संजय भी 2पेग पी लिए थे। और पार्टी खत्म होते ही वे दोनों अपनी गाड़ी में वापस निकल गए। गाड़ी चलाते हुए संजय के चेहरे पर पसीना देखकर रम्या ने पूछा, "क्या हुआ संजय, एसी चालू है फिर भी आप पसीने-पसीने क्यों हो रहे हो?"

  • - थोड़ी सी शराब पी ली थी।
  • - तो फिर आप बैठो मैं ड्राइव करती हूँ।
  • - नहीं मैं करता हूँ । शराब इतना ज्यादा नहीं पी है कि ड्राइव न कर सकूँ।
  • - फिर भी आप बैठो, संजय मुझे ड्राइव करने दो।
  • - नहीं मैं ठीक हूँ रम्या। 2 पेग से कुछ नहीं होता। गाड़ी का एसी बढ़ाता हूँ। तुम बैठो। कहकर वह गाड़ी में जा बैठा। रम्या भी चुपचाप गाड़ी में जा बैठी।
  • वे सड़क छोड़ पहाड़ी रास्ते से गुजर रहे थे। अमावास की अंधेरी रात, घना कोहरे में सड़क पार करते हुए एक गाय के सामने आ जाना और ठीक उसी वक्त एक गाड़ी की हैड लाइट की रोशनी उसके आँखों पर चमकना एक साथ हुआ। वह गाय को बचाते हुए रोशनी की वजह से अपने हाथों से आँखें बंदकर दिया। गाय को बचाते बचाते गाड़ी का ब्रेक लगाया। गाड़ी उसके सामने आने वाली गाड़ी से टकराकर रास्ते के किनारे एक पेड़ से टकरा गई। कार बड़ी सी आवाज़ करके रुक गई। उसको इतना ही याद था कि उसने दुर्योधन को फ़ोन कर बुला लिया फिर सब कुछ अंधेरे में डूब गया। फिर क्या हुआ कैसे वह अस्पताल पहुँचा उसे याद नहीं।
  • #####
  • रात के अंधेरे में अनमने चलते संजय बहुत दूर निकल गया। रास्ते के दोनों तरफ लंबे घनेरे दरख़्त अंधेरे में भयानक दिख रहे थे। वह अपने ही सोच में डूबा हुआ था और किस ओर जा रहा है वह भी अनजान था। अपने आप में खोए हुए था कि सामने आती गाड़ी भी नज़र नहीं आई। अगर गाड़ी अचानक ब्रेक देकर रुकी न होती तो उस अँधेरे में और एक हादसा होने की पूरी सम्भवना बन गई थी। कुछ ही मिनटों में संजय बीच सड़क पर गाड़ी के सामने खड़े थे। गाड़ी की हेडलाइट उनके आँखों पर पड़ने से उन्होंने अपने हाथों से आँखों को बंद कर लिया।
  • उस अंधेरी रात में डिस्पेंसरी से लौटती अंजली की गाड़ी के सामने एक व्यक्ति अचानक आ जाने से वह आकस्मिक ब्रेक लगाकर गाड़ी रोकी। अगर थोड़ी भी देर होती तो गाड़ी उस आदमी से टकरा सकता था। अंजली गाड़ी से उतर कर उस व्यक्ति के सामने आ खड़ी हुई और संजय को देख चकित हो गई।
  • - संजय आप? आप इस वक्त यहाँ क्या कर रहे हैं, जानते हैं अगर मैंने अचानक ब्रेक न लगाई होती तो तुम मेरे गाड़ी के नीचे आ गए थे।
  • संजय कुछ सुनने की स्थिति में नहीं था। वह अंजली की ओर देखे बिना ही वहाँ से जा रहा था। लेकिन अंजली उसे ऐसे ही नहीं जाने दे सकती थी। उसने संजय को रोकने का प्रयास किया लेकिन वह कुछ सुनने की हालत में नहीं था। अंजली उसका हाथ पकड़ कर गाड़ी के पास ले आई और उसे गाड़ी में बिठाकर दरवाज़ा बंद किया। वह खुद ड्राइविंग सीट पर बैठकर, "संजय आप ठीक तो है ना?" गाड़ी का दरवाज़ा बंद करते पूछा।
  • - "हूँ," संजय जैसे होश में आया और कहा, "हाँ, हाँ मैं ठीक हूँ।"
  • - क्या आप को घर पर छोड़ दूँ?
  • - "हाँ। बस इतना ही निकला उसके मुँह से। अंजली ने उसकी हालत देखकर कुछ और पूछना ठीक नहीं समझा। वह चुपचाप ड्राइविंग करने लगी। उसके घर के पास आते ही गाड़ी को रास्ते की एक ओर रोक दिया। संजय गहरी सोच में डूबा हुआ था।
  • - "संजय घर आ गया है।"
  • - "हाँ," कहकर उतरने ही वाला था अंजली ने फिर से कहा, "बच्चे कैसे हैं?"
  • - ठीक हैं,
  • - कुछ प्रॉब्लम तो नहीं?"
  • - नहीं सब ठीक है।"
  • - अगर मेरी कोई मदद की जरूरत हो तो..."
  • - नहीं सब ठीक है, मैं हूँ ना सब ठीक हो जाएगा, सब ठीक हो जाएगा। तुम जाओ।" संजय गेट खोलकर अंदर चला गया।
  • ####
  • अनन्या रात भर कमरे में टहलती रही। उसके सामने पहाड़ सी समस्या खड़ी थी। आज तक दोनों ने पापा की बात को कभी भी नकारा नहीं। आज उनके ऊपर माँ की मौत का इल्जाम है चाहे जानबूझकर हो या अनजान में। दुर्घटना कैसे घटी आज तक इस बात को पर्दे के पीछे रखा गया था शायद यही बात उसे चुभ रही है। उसने खुद भी कभी जानने की कोशिश नहीं की। शक की सुई पापा की ओर बढ़ जाए उससे पहले सच्चाई जानना जरूरी है।
  • अवि को इस वक्त उसकी जरूरत है। अवि के दिल पर जो चोट लगी है उसका इलाज आसान नहीं। उसका भरोसा जीतना, पापा और उसके बीच समन्वय स्थापित करना बहुत जरूरी है। वरना बात धीरे-धीरे बिगड़ सकती है। घटना के इतने सालों बाद इस बात का पता चलना अवन्तिका और अनन्या के लिए बहुत दुखदायक था लेकिन पापा को भी माँ को खोने के दुख का एहसास है।
  • अगर पापा के मन में माँ के प्रति कोई अन्य कोई विचार होता तो वे अब तक अकेले ही जीवन न बिताते और उन्होंने इस घटना के लिए पल पल प्रायश्चित किया है। सोचते हुए जब अनन्या अवन्तिका के कमरे में गई अवि का शरीर काँप रहा था। नींद में भी वह अपनी माँ को याद कर बुदबुदा रही थी। "पा... पा पापा ने माँ को मारा है।"
  • अनन्या ने ब्लैंकेट लेकर अवि को ओढ़कर ए.सी बंद किया। ठंड़े पानी में भीगे कपड़े से उसके माथे पर रख उसके सिर को अपने गोद में लेकर उसके चेहरे पर जमा हुआ पसीना पोंछने लगी। "अब तुम्हें कैसे समझाऊँ अवि। इसमें पापा की गलती बस इतनी थी वे थोड़ी सी शराब पी लिए थे और दुर्घटना में पापा भी घायल हो गए थे। पापा, मामा को बहुत प्यार करते थे और करते हैं। यह सिर्फ एक दुर्घटना ही था कैसे यकीन दिलाऊँ तुम्हें...?" उसने दुःखी होकर कहा।