Charlie Chaplin - Meri Aatmkatha - 6 in Hindi Biography by Suraj Prakash books and stories PDF | चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 6

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 6

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

6

पिता जी मिस्टर जैक्सन को जानते थे। वे एक ट्रुप के संचालक थे। पिता जी ने मां को इस बात के लिए मना लिया कि मेरे लिए स्टेज पर कैरियर बनाना एक अच्छी शुरुआत रहेगी और साथ ही साथ मैं मां की आर्थिक रूप से मदद भी कर पाऊंगा। मेरे लिए खाने और रहने की सुविधा रहेगी और मां को हर हफ्ते आधा क्राउन मिला करेगा। शुरू-शुरू में तो वह अनिश्चय में डोलती रही, लेकिन मिस्टर जैक्सन और उनके परिवार से मिलने के बाद मां ने हामी भर दी।

मिस्टर जैक्सन की उम्र पचास-पचपन के आस-पास थी। वे लंकाशायर में अध्यापक रहे थे और उनके परिवार में चार बच्चे थे। तीन लड़के और एक लड़की। ये चारों बच्चे अष्टम लंकाशायर बाल गोपाल मंडली के सदस्य थे। मिस्टर जैक्सन परम रोमन कैथोलिक थे और अपनी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह करने के बारे में उन्होंने अपने बच्चों से सलाह ली थी। उनकी दूसरी पत्नी उम्र में उनसे भी थोड़ी बड़ी थी। वे हमें पूरी नेकनीयती से बता दिया करते कि उन दोनों की शादी कैसे हुई थी। उन्होंने एक अखबार में अपने लिए एक बीवी के लिए एक विज्ञापन दिया था और उसके जवाब में तीन सौ से भी ज्यादा ख़त मिले थे।

भगवान से राह सुझाने के लिए दुआ करने के बाद उन्होंने केवल एक ही लिफाफा खोला था और वह खत था मिसेज जैक्सन की ओर से। वे भी एक स्कूल में पढ़ाती थीं और शायद ये मिस्टर जैक्सन की दुआओं का ही असर था कि वे भी कैथोलिक थीं।

मिसेज जैक्सन को बहुत अधिक खूबसूरती का वरदान नहीं मिला था और न ही उन्हें किसी भी निगाह से कमनीय ही कहा जा सकता था। जहां तक मुझे याद है, उनका बड़ा सा, खोपड़ी जैसा पीला चेहरा था और उस पर ढेर सारी झुर्रियां थीं। शायद इन झुर्रियों की वज़ह यह रही हो कि उन्हें काफी बड़ी उम्र में मिस्टर जैक्सन को एक बेटे की सौगात देनी पड़ी थी। इसके बावजूद वे निष्ठावान और समर्पित पत्नी थीं और हालांकि उन्हें अभी भी अपने बेटे को छाती का दूध पिलाना पड़ता था, वे ट्रुप की व्यवस्था में हाड़-तोड़ मेहनत करके मदद किया करती थीं।

जब उन्होंने रोमांस की अपनी दास्तान सुनायी तो यह दास्तान मिस्टर जैक्सन की बतायी कहानी से थोड़ी अलग थी। उनमें आपस में पत्रों का आदान-प्रदान हुआ था लेकिन उन दोनों में से किसी ने भी दूसरे को शादी के दिन तक नहीं देखा था और बैठक के कमरे में उन दोनों के बीच जो पहली मुलाकात हुई थी और परिवार के बाकी लोग दूसरे कमरे में इंतज़ार कर रहे थे, मिस्टर जैक्सन ने कहा था, "बस, आप वही हैं जिनकी मुझे चाह थी।" और मैडम ने भी वही बात स्वीकार की। हम बच्चों को ये किस्सा सुनाते समय वे विनम्र हो कर कहतीं,"लेकिन मुझे नहीं पता था कि मुझे हाथों-हाथ आठ बच्चों की मां बन जाना पड़ेगा।"

उनके तीन बच्चों की उम्र बारह से अट्ठारह बरस के बीच थी और लड़की की उम्र नौ बरस थी। उस लड़की के बाल लड़कों की तरह कटे हुए थे ताकि उसे भी मंडली के बाकी लड़कों में खपा लिया जा सके।

हर रविवार को मेरे अलावा सब लोग गिरजाघर जाया करते थे। मैं ही उन सब में अकेला प्रोटैस्टैंट था, इसलिए अक्सर उनके साथ ही चला जाता। मां की धार्मिक भावनाओं के प्रति सम्मान न होता तो मैं कब का कैथोलिक बन चुका होता क्योंकि मैं इस धर्म का रहस्यवाद पसंद करता था और घर की बनी हुई छोटी-छोटी ऑल्टर तथा लास्टर की मेरी वर्जिन की मूर्तियां, जिन पर फूल और मोमबत्तियां सजी रहतीं, मुझे अच्छी लगतीं। इन्हें बच्चे अपने बेडरूम के कोने में सजा कर रखते और जब भी उसके आगे से गुज़रते, घुटने टेक कर श्रद्धा अर्पित करते।

छ: सप्ताह तक अभ्यास करने के बाद मैं अब इस स्थिति में था कि बाकी मंडली के साथ नाच सकूं। लेकिन चूंकि मैं अब आठ बरस की भी उम्र पार कर चुका था, मैं अपनी आश्वस्ति खो चुका था और पहली बार दर्शकों के सामने आने पर मुझे मंच का भय लगा। मैं मुश्किल से अपनी टांगें हिला पा रहा था। हफ्तों लग गये तब कहीं जा कर मैं मंडली के बाकी बच्चों की तरह एकल नृत्य करने की हालत में आ सका।

मैं इस बात को ले कर बहुत अधिक खुश नहीं था कि मुझे भी मंडली के बाकी आठ बच्चों की तरह क्लॉग डांसर ही बना रहना पड़े। बाकी बच्चों की तरह मैं भी एकल अभिनय करने की महत्त्वाकांक्षा रखता था। सिर्फ इसलिए नहीं कि इस तरह के काम के ज्यादा पैसे मिलते थे बल्कि इसलिए भी कि मैं शिद्दत से महसूस करता था कि नाचने के बजाये इस तरह के अभिनय से कहीं ज्यादा संतुष्टि मिलती है। मैं बाल हास्य कलाकार बनना चाह सकता था लेकिन उसके लिए स्टेज पर अकेले खड़े रहने का माद्दा चाहिये था। इसके अलावा मेरी पहली भीतरी प्रेरणा यही थी कि मैं एकल नृत्य के अलावा जो कुछ भी करूंगा, हास्यास्पद होगा। मेरा आदर्श दोहरा अभिनय था। दो बच्चे कॉमेडी ट्रैम्प की तरह कपड़े पहने हों। मैंने यह बात अपने एक साथी बच्चे को बतायी और हम दोनों ने पार्टनर बनना तय किया। ये हमारा कब का पाला सपना पूरा होने जा रहा था। हम अपने आपको ब्रिस्टॉल और चैप्लिन - करोड़पति ट्रैम्प कहते और ट्रैम्प गलमुच्छे लगाते, और हीरे की बड़ी बड़ी अंगूठियां पहनते। हमने उस हर पहलू पर विचार कर लिया था जो मज़ाकिया होता और जिससे कमाई हो सकती लेकिन अफ़सोस, ये सपना कभी भी साकार नहीं हो सका।

दर्शक अष्टम लंकाशायर बाल गोपाल मंडली पसंद करते थे क्योंकि जैसा कि मिस्टर जैक्सन कहते थे - हम थियेटर के बच्चों जैसे बिलकुल भी नहीं लगते थे। उनका यह दावा था कि हमने कभी भी अपने चेहरों पर ग्रीज़ पेंट नहीं पोता, और हमारे गुलाबी गाल वैसे ही गुलाबी थे। यदि कोई बच्चा स्टेज पर जाने से पहले जरा-सा भी पीला दिखायी देता तो वे हमें बताते कि अपने गालों को मसल दें। लेकिन लंदन में एक ही रात में दो या तीन संगीत सदनों में काम करने के बाद अक्सर हम भूल जाते और स्टेज पर खड़े हुए थके-मांदे और मनहूस लगने लगते। तभी हमारी निगाह विंग्स में खड़े मिस्टर जैक्सन पर पड़ती और वे ज़ोर-ज़ोर से खींसें निपोरते हुए अपने चेहरे की तरफ इशारा कर रहे होते। इसका बिजली का-सा असर होता और हम अचानक हँसी के मारे दोहरे हो जाते।

प्रदेशों के टूर करते समय हम हर शहर में एक-एक हफ्ते के लिए स्कूल जाया करते। लेकिन इससे मेरी पढ़ाई में कोई खास इज़ाफा नहीं हुआ।

क्रिसमस के दिनों में हमें लंदन हिप्पोड्रोम में सिंडरेला पैंटोमाइम में बिल्ली और कुत्ते का मूक अभिनय करने का न्यौता मिला। उन दिनों ये नया थियेटर हुआ करता था और इसमें वैराइटी शो और सर्कस का मिला-जुला रूप हुआ करता था। इसे बहुत खूबसूरती से सजाया जाता और काफी हंगामा रहा करता था। रिंग का फर्श नीचे चला जाता था और वहां पानी भर जाता था और काफी बड़े पैमाने पर बैले होता। एक के बाद एक बला की खूबसूरत लड़कियां चमकीली सज-धज में आतीं और पानी के नीचे एकदम गायब हो जातीं। जब लड़कियों की आखिरी पंक्ति भी डूब जाती तो मैर्सलाइन, महान फ्रांसीसी जोकर, शाम की बेतुकी, चिकनी पोशाक में सजे धजे, एक कैम्प स्टूल पर बैठे हाथ में मछली मारने की रॉड लिये अवतरित होते और बड़ा-सा गहनों का बक्सा खोलते, अपने कांटे में हीरे का एक नेकलेस फंसाते और उसे पानी में डाल देते। थोड़ी देर के बाद वे छोटे आभूषण निकालते और कुछ बेसलेट फेंकते, और इस तरह पूरा का पूरा बक्सा खाली कर डालते। अचानक वे एक झटका खाते और तरह-तरह की मजाकिया हरकतें करते हुए रॉड के साथ संघर्ष करते हुए प्रतीत होते और आखिर कांटे को खींच कर बाहर निकालते और हम देखते कि पानी में से एक छोटा-सा प्रशिक्षित कुत्ता बाहर आ रहा है। कुत्ता वही सब कुछ करता जो मार्सलीन करते। अगर वे बैठते तो कुत्ता भी बैठ जाता और अगर वे खड़े होते तो कुत्ता भी खड़ा हो जाता। मार्सलीन साहब की कॉमेडी हंसी-ठिठोली से भरी और आकर्षक थी और लंदन के लोग उनके पागलपन की हद तक दीवाने थे।

रसोई के एक दृश्य में मुझे उनके साथ करने के लिए एक छोटा-सा मजाकिया दृश्य दिया गया। मैं बिल्ली बना हुआ था और मार्सलीन एक कुत्ते की तरफ से पीछे आते हुए मेरे ऊपर गिर जाने वाले थे जबकि मैं दूध पी रहा होता। वे हमेशा शिकायत किया करते कि मैं अपनी कमर को इतना नहीं झुकाता कि उनके गिरने के बीच आड़े आऊं। मैंने बिल्ली का एक मुखौटा पहना हुआ था और मुखौटा ऐसा कि जिस पर हैरानी के भाव थे। बच्चों के लिए पहले मैटिनी शो में मैं कुत्ते के शरीर के पिछले हिस्से की तरफ चला गया और उसे सूंघने लगा। जब दर्शक हंसने लगे तो मैं वापिस मुड़ा और उनकी तरफ हैरानी से देखने लगा और मैंने एक डोरी खींची जिससे बिल्ली की घूरती हुई आंख मुंद जाती थी। मैं जब कई बार सूंघने और आंख मारने का अभिनय कर चुका तो स्टेज मैनेजर लपका हुआ बैक स्टेज में आया और विंग्स में से पागलों की तरह हाथ हिलाने लगा। लेकिन मैं अपने काम में लगा रहा। कुत्ते को सूंघने के बाद मैंने रंगमंच सूंघा और फिर अपनी टांग उठा दी। दर्शक हँस हँस कर दोहरे हो गये। शायद इसलिए क्योंकि ये हरकत बिल्ली जैसी नहीं थी। आखिरकार मैनेजर से मेरी अंाखें मिल ही गयीं और मैं इतना कूदा-फांदा कि लोग हँसते हँसते लोट पोट हो गये। वे मुझ पर झल्लाये,"इस तरह की हरकत फिर कभी मत करना।" यह कहते हुए उनकी सांस फूल रही थी,"तुम जरूर इस थियेटर के मालिक लॉर्ड चैम्बरलिन को ये थियेटर बंद करने पर मजबूर करोगे।"

सिंडरेला को आशातीत सफलता मिली। और हालांकि मार्सलीन साहब को कहानी तत्व या प्लॉट के साथ कुछ लेना-देना नहीं था, फिर भी वे सबसे बड़ा आकर्षण थे। कई बरसों के बाद मार्सलीन न्यूयॉर्क के हिप्पोड्रोम में चले गये और उन्हें वहां भी हाथों-हाथ लिया गया। लेकिन जब हिप्पोड्रोम की जगह सर्कस ने ले ली तो मार्सलीन साहब को जल्दी ही भुला दिया गया।

1918 या उसके आस पास की बात है, रिंगलिंग ब्रदर्स का थ्री रिंग सर्कस लॉस एंजेल्स में आया तो मार्सलीन उनके साथ थे। मैं ये मान कर चल रहा था कि उनका ज़िक्र पोस्टरों में होगा लेकिन मुझे यह देख कर गहरा धक्का लगा कि उनकी भूमिका बहुत से उन दूसरे जोकरों की ही तरह थी जो पूरे रिंग में यहां से वहां तक दौड़ते नज़र आते हैं। एक महान कलाकार तीन रिंग वाले सर्कस की अश्लील तड़क-भड़क में खो गया था।

बाद में मैं उनके ड्रेसिंग रूम में गया और अपना परिचय दिया और उन्हें याद दिलाया कि मैंने उनके साथ लंदन के हिप्पोड्रोम में बिल्ली की भूमिका अदा की थी। लेकिन उनकी प्रतिक्रिया उदासीन थी। यहां तक कि अपने जोकर वाले मेक-अप में भी उनका चेहरा सूजा हुआ लग रहा था और वे उदास और सुस्त लग रहे थे।

एक बरस बाद न्यू यार्क में उन्होंने खुदकुशी कर ली। अखबारों में एक कोने में छोटी-सी खबर छपी थी कि उसी घर में रहने वाले एक पड़ोसी ने गोली चलने की आवाज़ सुनी थी और मार्सलीन को फर्श पर पड़े हुए देखा था। उनके एक हाथ में पिस्तौल थी और ग्रामोफोन रिकार्ड अभी भी घूम रहा था। रिकार्ड पर जो गीत बज रहा था, वह था, "मूनलाइट एंड रोजेज़।"

कई मशहूर अंग्रेज़ी कॉमेडियनों ने खुदकुशी की है। टी ई डनविले, जो बहुत ही आला दरजे के हंसोड़ व्यक्ति थे, ने सैलून बार के भीतर जाते समय किसी को पीठ पीछे यह कहते सुन लिया था,"अब इस शख्स के दिन लद गये।" उसी दिन उन्होंने टेम्स नदी के किनारे अपने आप को गोली मार दी थी।

मार्क शेरिडन, जो इंगलैंड के सर्वाधिक सफल कामेडियन थे, ने ग्लासगो में एक सार्वजनिक पार्क में अपने आपको गोली मार दी थी क्योंकि वे ग्लासगो के दर्शकों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे थे।

फ्रैंक कॉयन, जिनके साथ हमने उसी शो में काम किया था, जांबाज़, हट्टे-कट्टे कामेडियन थे और जो अपने एक हल्के-फुल्के गाने के लिए बहुत प्रसिद्ध थे:

आप मुझे घोड़े की पीठ पर दोबारा सवार नहीं पायेंगे

ऐसा नहीं है वह घोड़ा चढ़ सकूं जिस पर मैं

जिस घोड़े पर मैं चढ़ सकता हूं वो तो

है वो जिस पर मोहतरमा सुखाती है कपड़े स्टेज के बाहर वे हमेशा खुश रहते और मुस्कुराते रहते। लेकिन एक दोपहर, अपनी पत्नी के साथ घोड़ी वाली गाड़ी पर सैर की योजना बनाने के बाद वे कुछ भूल गये और अपनी पत्नी से कहा कि वह इंतज़ार करे और वे खुद सीढ़ियां चढ़ कर भीतर गये। बीस मिनट के बाद जब वह ऊपर यह देखने के लिए गयी कि उन्हें आने में देर क्यों हो रही है तो उसने उन्हें बाथरूम के फर्श पर खून से लथपथ पड़े हुए पाया। उनके हाथ में उस्तरा था और उन्होंने अपना गला काट कर अपने आपको लगभग खत्म ही कर डाला था।

अपने बचपन में मैंने जिन कई कलाकारों के साथ काम किया था और जिन्होंने मुझे प्रभावित किया था, वे स्टेज पर हमेशा सफल नहीं थे बल्कि स्टेज से बाहर उनका विलक्षण व्यक्तित्व हुआ करता था। जार्मो नाम के एक कॉमेडी ट्रैम्प बाजीगर हुआ करते थे जो कड़े अनुशासन में काम करते थे और थियेटर के खुलते ही हर सुबह घंटों तक अपनी बाजीगरी का अभ्यास किया करते थे। हम उन्हें स्टेज के पीछे देख सकते थे कि वे बिलियर्ड खेलने की छड़ी को अपनी ठुड्डी पर संतुलित कर रहे हैं और एक बिलियर्ड गेंद उछाल कर उसे इस छड़ी के ऊपर टिका रहे हैं। इसके बाद वे दूसरी गेंद उछालते और पहली गेंद के ऊपर टिका देते। अक्सर वे दूसरी गेंद टिकाने में चूक जाते। मिस्टर जैक्सन ने बताया कि वे चार बरस तक लगातार इस ट्रिक का अभ्यास करते रहे थे और सप्ताह के अंत में इसे पहली बार दर्शकों के सामने दिखाना चाह रहे थे। उस रात हम सब विंग्स में खड़े उन्हें देखते रहे। उन्होंने बिलकुल ठीक प्रदर्शन किया और पहली ही बार ठीक किया। गेंद को ऊपर उछालना और बिलियर्ड की छड़ी पर ऊपर टिका देना और फिर दूसरी गेंद उछालना और उसे पहली गेंद के ऊपर टिका देना लेकिन दर्शकों ने मामूली सी तालियां ही बजायीं।

मिस्टर जैक्सन ने उस रात का किस्सा बताया था, उन्होंने जार्मो से कहा था,"तुम इस ट्रिक को बहुत ही आसान बना डालते हो। इस वज़ह से तुम इसे बेच नहीं पाते। तुम इसे कई बार मिस करो, तब जा कर गेंद को ऊपर टिकाओ, तब बात बनेगी।" जार्मो हंसे थे,"मैं इतना कुशल नहीं हूं कि इसे मिस कर सकूं।" जार्मो मानस विज्ञान में भी दिलचस्पी रखते थे और हमारे चरित्र पढ़ा करते। उन्होंने मुझे बताया था कि मैं जो कुछ भी ज्ञान हासिल करूंगा, उसे बनाये रखूंगा और उसका बेहतर इस्तेमाल करूंगा।

इनके अलावा, ग्रिफिथ बंधु हुआ करते थे। मज़ाकिया और प्रभाव छोड़ने वाले। उन्होंने मेरा मनोविज्ञान ही उलट-पुलट डाला था। वे दोनों कॉमेडी ट्रैपीज़ जोकर थे और दोनों ट्रैपीज़ पर झूला करते। वे मोटे पैड लगे जूतों से एक दूसरे के मुंह पर जोर से लात जमाते।

"आह," लात खाने वाला चिल्लाता।

"ज़रा एक बार फिर मार कर तो दिखा।"

"ले और ले। एक और लात"

और फिर लात खाने वाला हैरानी से देखता रह जाता और आंखें नचाता और कहता,"अरे देखो, उसने फिर से लात मार दी है।"

मुझे इस तरह की पागलपन से भरी हिंसा से तकलीफ होती। लेकिन स्टेज से बाहर वे दोनों भाई बहुत प्यारे, शांत और गम्भीर होते।

मेरा ख्याल है, किंवदंती बन चुके ग्रिमाल्डी के बाद डान लेनो महान अंग्रेज़ कॉमेडियन रहे। हालांकि मैंने कभी भी लेनो को उनके चरम उत्कर्ष पर नहीं देखा, वे मेरे लिए कॉमेडियन के बजाये चरित्र अभिनेता अधिक थे। लंदन के निचले वर्गों के सनक से भरे जीवन के उनके खाके, स्कैच अत्यंत मानवीय और दिल को छू लेने वाले होते, मां ने मुझे बताया था।

प्रसिद्ध मैरी लॉयड की प्रसिद्धि छिछोरी औरत के रूप में थी। इसके बावजूद जब हमने उनके साथ स्ट्रैंड में ओल्ड टिवोली में अभिनय किया तो वे ज्यादा गम्भीर और सतर्क अभिनेत्री लगीं। मैं उन्हें आंखें चौड़ी किये देखता रहता। एक चिंतातुर, छोटी-मोटी महिला जो दृश्यों के बीच आगे-पीछे कदम ताल करती रहती थीं।

वे तब तक गुस्से में और डरी रहतीं जब तक उनके लिए मंच पर जाने का समय न आ जाता। उसके बाद वे एकदम खुशमिजाज दिखतीं और उनके चेहरे पर राहत के भाव आ जाते।