Humanity in Hindi Motivational Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | मानवीयता

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मानवीयता

मानवीयता

राजीव और हरीश आपस में मित्र थे। दोनो इंजीनियरिंग कालेज के अंतिम वर्ष के छात्र थे। दुर्भाग्यवश दोनो ही अनुत्तीर्ण हो गए। हरीश एक ठाकुर परिवार से संबंध रखता था। उसके माता पिता गांव की परम्परा के अनुसार जल्दी ही उसका विवाह करा देना चाहते थे। उन्होंने उसके लिए एक सुशील, शिक्षित एवं गृहकार्य में कुशल लडकी देख रखी थी। उन्होंने अपने बेटे को उसे देखने के लिए बुलाया। उसे जब इस बात का पता चला तो वह बहुत घबराया। गांव जाने पर उसे बताना पडेगा कि वह फेल हो गया है। उसने अपने मित्र राजीव से सलाह मांगी। उसने उससे कहा कि अभी तुम्हारी उम्र शादी करने की नही है। पहले अपनी पढाई पूरी करो और कही अच्छी नौकरी प्राप्त करो। जब कमाने लगोगे तभी अपना और उसका खर्च उठा सकोगे अन्यथा हर समय अपने खर्चों के लिए तुम अपने माता पिता पर ही निर्भर रहोगे।

हरीश को उसकी बात उचित प्रतीत हुई। वह लडकी देखने गांव नही गया। उसके माता पिता ने इसके बाद भी उसका रिश्ता उस लडकी से तय कर दिया। विवाह की तिथि भी तय हो गई। विवाह की तिथि के पहले ही गांव के रिश्तेदार कालेज पहुंचकर उसे गांव ले गए। वह शादी करने को तैयार नही था फिर भी उसे वह लडकी बहुत पसंद आई। वह रात को अपने मित्रों के सहयोग से घर से भाग गया। उसकी काफी खोज खबर हुई पर नही मिल सका। उस लडकी का विवाह नियत तिथि पर किसी और लडके के साथ संपन्न कर दिया गया।

हरीश के माता पिता को बहुत क्रोध आया और उन्होने हरीश से अपने सारे संबंध तोड लिए। हरीश ने अपनी पढाई पूरी की और एक विदेशी कंपनी में अच्छी नौकरी प्राप्त कर ली। कुछ वर्षों के बाद उसे पता चला कि जिस लडकी के साथ उसका विवाह होना था, उसका एवं उसके पति का एक दुर्घटना में निधन हो गया है। उनकी एक बच्ची अनाथ हो गई है। इससे उसका मन बहुत द्रवित हुआ। वह सांत्वना देने लडकी के माता पिता के पास गया। उसने वहाँ दस माह की बच्ची को देखा और उसे अपने पुराने दिनो का स्मरण हो आया। वह बहुत व्यथित था। एक ओर तो उसे उस लडकी से विवाह न हो पाने का दुख था और दूसरा वह उस बच्ची को देखकर और उसके जीवन के विषय में सोच सोच कर चिंतित था। वह बच्ची की माँ को दिल से चाहता था लेकिन अपनी नादानी के कारण विवाह से वंचित रह गया था।

उसने उस लडकी के परिवार वालों की बडी अनुनय विनय की और उस बच्ची को गोद ले लिया। हरीश के माता पिता को जब यह पता चला तो उन्होंने सभी बीती बातों को भुलाकर उसे अपना लिया और उस बच्ची को उन्होंने अपने पास रख लिय। समय बीतता गया और वह बच्ची बडी हो गई। उन्होंने उसे पढाया लिखाया और उचित समय पर उसका संबंध एक अच्छे और संपन्न परिवार में कर दिया। उस बच्ची के विवाह का आमंत्रण राजीव को मिला तो उसने मुझे इसके विषय में सब कुछ विस्तार से बतलाया। उसने यह भी बतलाया कि हरीष ने आजीवन विवाह नही किया और अपना जीवन उस लडकी की परवरिश में ही समर्पित कर दिया। मैं यह सोचकर आज भी एक अलौकिक अनुभूति से अभिभूत हो जाता हूँ कि आज भी हमारे बीच संवेदना, मानवीयता, त्याग और समर्पण के ऐसे उदाहरण जीवित है।