I am in your heart? - 3 in Hindi Love Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | तुम्हारे दिल में मैं हूं? - 3

Featured Books
Categories
Share

तुम्हारे दिल में मैं हूं? - 3

अध्याय  3

एक दिन छोड़कर एक दिन ही उसका काम होता है। मिनी बस से उतर कर मोती घर पर ही था।

घर के सामने आम के पेड़ की छाया के नीचे एक खटिया थी। उस पर मोती लेटा था ।

आम के पेड़ पर गिलहरियां इधर से उधर भाग रही थीं। अचानक खूब सारे हरे तोते अपने पंखों को फड़-फड़ाते हुए, की की... की आवाज करते हुए एक से दूसरे टहनी पर जा रही थी।

गिलहरियों ने जिन कैरियों को काटा था वे धड़ाधड़ नीचे गिर रहे थे।

"अरे मोती"

हाथ में चाय का कप लेकर आई सविता।

वह कॉटन की साड़ी पहनी हुई थी। माथे पर चंदन का टीका था। गले में सोने की चेन कानों में सोने के बड़े-बड़े टॉप्स पहनी थी। 60 साल की होने के कारण उसका शरीर ढलक गया था। सविता को देख मोती उठ कर बैठ गया।

"यह ले अदरक की चाय।" प्यार से उसे पकड़ाया।

चाय के कप को लेकर मोती चाय की चुस्की लेने लगा।

"खाने पर क्या बनाऊं ?"

"राबड़ी बना दो अम्मा उसे खाये बहुत दिन हो गए।"

"ठीक है बना दूंगी।"

कहकर उसने दीर्घ श्वास छोड़ा। उससे चाय के कप को लेकर उसके बगल में ही वह खाट पर बैठ गई।

"मोती" झिझकते हुए संकोच से बात शुरू की।

"हां" मोती ने अपने भौंहों को चढ़ाया।

"क्या हुआ रे ?" उत्सुकता से पूछा।

"क्या होना है?" समझा नहीं जैसे पूछा।

"दो दिन पहले मैंने तुम्हें एक फोटो दिया था ना"

"बाबा जी की फोटो ही तो ? उसे मैंने कांच का फ्रेम करने के लिए दुकान में दे दिया। उसे लेकर आना भूल गया। गाड़ी ले जाते समय लेकर आ जाऊंगा।"

"मैं उसके बारे में नहीं पूछ रही।"

"फिर ?"

"कल सुबह जब तुम काम पर रवाना हो रहे थे उस समय एक लड़की की फोटो तुम्हें दिखाया था | देखा तुमने, तुम्हें पसंद है ?"

"उसे मैंने नहीं देखा। वह तुम्हारे लकड़ी के अलमारी के ऊपर के खाने में रखा है। उसे निकालकर जिससे लिया था उसी को संभलवा देना अम्मा।"

"मोती तू अपने मन में क्या सोच रहा है ? वह लड़की कितनी सुंदर है तुम्हें पता है? सबसे मैंने अच्छी तरह पूछताछ कर ली। बहुत अच्छे स्वभाव वाली गुणी लड़की है। खाना बनाना और घर के कामकाज में एक्सपर्ट है। वह अपने घर की बहू बन के आए तुम्हारे लिए अच्छा रहेगा और मेरे लिए भी। तुम दोनों खुशी से अपना जीवन यापन कर के एक पोता-पोती मुझे दे दो तो मैं भी उस बच्चे के साथ खुशी से अपनी आंखें बंद कर लूंगी।" जल्दी-जल्दी बोलने के कारण वह हांफने लगी।

"मुझे अभी शादी नहीं करनी मां"

"अभी तो तू 28 साल का हो गया रे"

"लड़कों की 30 साल में भी शादी होती है मां।"

"तुम्हारी कोई भाई बहन कोई भी होता है तो इस परिवार की परिस्थिति अलग होती। फिर 40 साल में भी शादी कर सकते थे। तुझे मैंने बिना किसी समस्या के बड़ा किया । एक ही लड़का है इसीलिए कोई समस्या नहीं। समय पर शादी हो जाए तो मुझे खुशी होगी । तुझसे तीन साल छोटा है पुनीत, उसकी शादी हो कर दो बच्चे भी हो गए। यही शहर और यही गली हैं। सिर्फ पुनीत की मां ही नहीं सभी औरतें तुम्हारे बेटे की शादी अभी तक क्यों नहीं हुई? लड़की नहीं मिली क्या? नहीं तो किसी से प्रेम करता है क्या? मैं जवाब न दे पाने से सिर झुका कर रह जाती हूं।"

"अम्मा हम दूसरों के लिए नहीं जी सकते।"

"तुम्हारे मन के अंदर क्या है? कुछ तो बोलो । वह कोई भी लड़की हो उसके घर जाकर मैं बात करके पक्का कर दूंगी।" मोती से सविता बोली।

"तुमसे हो जाएगा क्या मां ?"

"मैं कर सकती हूं। कौन है रे लड़की ?" उत्सुकता से पूछी।"

"अभी बता नहीं सकता अम्मा।"

"क्यों रे ?"

"थोड़ी दिन और ठहरो मां"

"इस में ठहरने की क्या जरूरत है रे ? लड़की कौन है बताएं तो तुरंत उससे बात करके फैसला ही करना है ना?"

"बोलो तो तुम्हारे समझ में नहीं आएगा"

"समझूंगी ! तुम बताओं तो सही ।"

"मैं ही उस लड़की को चाहता हूं। वह लड़की मुझे पसंद नहीं करती।"

"मोती क्या तू सच कह रहा है ? ऊंचा पूरा, हष्ट पुष्ट, बढ़िया नाक नक्शा, राजकुमार जैसे दिखने वाले को वह पसंद नहीं करती? घमंडी लड़की होगी?" सविता गुस्से से पूछी।

"वह लड़की बहुत अच्छी है अब अम्मा ! उसकी मां नहीं है। उसके पिताजी, मौसी, दो छोटी बहनें ही हैं। उस लड़की की मौसी बहुत खराब राक्षसी जैसी है। इसलिए वह लड़की किसी से भी बात नहीं करती। सिर ऊंचा करके भी नहीं रहती। अपने सुराणा ज्वैलर्स में ही काम करती है और रोज मैं जो बस चलाता हूं उसी में आती-जाती है। मनोहरपुर में उतर कर चुपचाप चली जाती है।"

बिना किसी लाग-लपेट, लुकाव-छिपाव के सब कुछ साफ-सुथरा मोती ने बता दिया।

"तुमने उस लड़की से बिल्कुल बात नहीं की क्या ?"

"एक शब्द भी बात नहीं की ।"

"कितनी साल से उसे पसंद करता है ?"

"तीन साल से।"

"उस लड़की का नाम क्या है रे ?"

"गीता"

"नाम सुंदर है। वह कैसी है ?" आंखों में एक चमक के साथ सविता ने बेटे को देखा।

"तुम उसे एक बार देख लो तो.... तू ही मेरी बहू है ऐसा कह के तुम हाथ पकड़ कर घर ले कर आओगी मां।"

"तुम्हारी इच्छा ही मेरी इच्छा है । उस गीता को ही अपनी घर की बहू बनाकर लेकर आती हूं।" सविता की आवाज में एक उत्साह दिखाई दिया।

"पहले उस लड़की से मेरे मन में जो है उसे कह देता हूं। फिर तुम जाकर बात करो।"

"बिना समय गवाएं जल्दी से बात कर ले।"

"बात करूंगा।"

शर्माते हुए मोती हंसा।

उसके मन के अंदर गीता इधर से उधर दौड़ रही थी। अपनी पोनीटेल को हिलाते हुए झुमको को पहने, हिरनी जैसी आंखों पर काजल लगाए वह दिखाई दे रही थी।

'मेरी प्यारी गीता ! मेरी राजकुमारी, मेरी सपनों की रानी मेरी प्यारी तितली तुम्हारे दिल में मैं हूं क्या?"

'तुम्हारे दिल में मैं हूं क्या ?'

'तुम्हारे दिल में मैं हूं क्या ?"

बड़बड़ाते हुए अपने मन में बार-बार यही पूछ रहा था।

"क्यों नहीं अपने आप में क्या बात कर रहे हो ?" सविता ने पूछा।

"नहीं तो।"

"झूठ मत बोल ! तुझे अपने आप बोलते हुए, अकेले में अपने आप हंसते हुए मैं देख ही तो रही हूं। पागल होने के पहले उस लड़की से बात करके शादी करने की बात सोच।"

ऐसा मजाक कर रही थी सविता।

****