गाँव के कुएँ पर___
कस्तूरी को आता हुआ देखकर ,विमला बोली__
लो आ गई महारानी,अब पूछ लो।।
तभी शीला बोल पड़ी___
क्यों री !तेरा ब्याह तय हो गया और तूने हमें बताया ही नहीं॥
वो बताने वाली थी,लेकिन लाज आ रही थी,कस्तूरी बोली।।
अच्छा! हम सखियों से कैसी लाज और फिर तेरे ना कोई बहन ना भौजाई तो अपने मन की बातें हम से ना कहेंगी तो किससे कहेगी, माया बोली।।
अच्छा! अब तो बता रही हूँ, क्यों मेरा दम बिगाड़ने पर तुली हो,कस्तूरी बोली।।
वो तो मेरे बाबूजी ना बताते तो पता ही ना चलता, शीला बोली।।
हाँ! ये कस्तूरी भी ना,बहुत घुन्नी है, मजाल है किसी की कि कोई बात इसके मुँह से उगलवा ले,माया बोली।।
अच्छा! अब तो पता चल गया ना,तो अब क्यों मेरी जान खा रही हो,कस्तूरी बोली।।
वो सब तो ठीक है, पहले ये बता तूने उसे देखा है, विमला ने कस्तूरी से पूछा।।
नहीं, देखा,कस्तूरी बोली।।
ये उस जमाने की बात है, जब बड़े बूढ़े अपनी पसंद से लड़का या लड़की देखकर ब्याह तय कर देते थे,दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे शकल शादी के बाद ही देख पाते थे,तब शादियांँ सोलह सत्रह साल में हो जाया करतीं थीं,उस समय कोई भी नियम कानून नहीं थे कि लड़के की उम्र कितनी होनी चाहिए या कि लड़की की उम्र कितनी होनी चाहिए,कम उम्र मे शादियाँ हो जातीं थीं। ।
इसी तरह कस्तूरी की भी शादी तय कर दी गई, सावन का महीना आया,दूसरे गाँव के बड़े शिवमंदिर के टीले में मेला लगा,बहुत से गाँवो के लोग उमड़ पड़े मेले में,कस्तूरी भी अपनीं सहेलियों के साथ मेला देखने गई, सब सहेलियाँ बहुत खुश थीं क्योंकि वें आजाद थी और आजादी किसी भी इंसान के लिए बहुत मायने रखती हैं और वैसे भी कस्तूरी का ये आखिरी मेला था अपनी सहेलियों के साथ फिर उसका ब्याह होने वाला था,वो एक नए बंधन मे बंधने वाली थी।।
सब सहेलियों ने अपनी अपनी पसंद की काँच की चूड़ियाँ खरीदीं, हिंडोले में झूली,बंदर का नाच देखा,अपने अपने लिए रंग बिरंगी ओढ़नियाँ खरीदी,इतना सब करने के बाद सबको जोरों की भूख लगीं,विमला बोली चल समोसा और जलेबियाँ खाते हैं, उधर देखों सब गरम गरम बन रहा है।।
सब एक टीले पर बैठ गईं और कस्तूरी से बोलीं,चल सबके लिए तू ले आ समोसा और जलेबी।।
मैं अकेले नहीं जाती एक और कोई साथ मे चलो,कस्तूरी बोली।।
अरे! ले आ ना कस्तूरी, सब बोलीं।।
अच्छा, जाती हूँ, कस्तूरी बोली।।
कस्तूरी ने समोसा जलेबी खरीदी,दुकानदार को पैसे दिए और पत्तल लेकर आ ही रही थीं कि किसी ने धक्का दे दिया, वो जमीन पर गिर पड़ी और साथ में सारे पत्तल भी,रात को बारिश हुई तो जगह जगह कीचड़ था,कस्तूरी के सारे कपड़े खराब हो चुके थे।।
हाथ पैर और कपड़े भी कीचड़ में सन चुके थे,कस्तूरी को बहुत गुस्सा आया और वो उठी___
उस लड़के से बोली___
क्यों जी! ठीक से नहीं चल सकते,लड़की देखी नहीं की,गंदी हरकतें शुरु।।
वो लड़का कुछ नहीं बोला और दुकान मे जाकर कुछ खरीदने लगा,कस्तूरी ने मन में सोचा,कोई फायदा नहीं बहस करकें, अब तो मेरे पास पैसे भी नहीं हैं और वो सहेलियों के पास खाली हाथ उदास होकर लौट गई।।
क्यों री! खाली हाथ लौट आई,सबने पूछा।
तुमसे कहा था कोई तो चलो,सब लेकर आ रही थीं, किसी ने धक्का दिया और मेरे साथ साथ सब जमीन पर गिर पड़ा,कस्तूरी बोली।।
अब तो उतने पैसे भी नहीं बचे,लगता हैं भूखे ही रहना पड़ेगा,माया बोली।।
तभी कोई बीस इक्कीस साल का लड़का कुछ पत्तल लेकर उन सबके पास आकर बोला____
ये रहें आप सब के जलेबी समोसें,मुझसे धोखे से इन्हें धक्का लग और ये गिर गई, साथ में समोसे जलेबी भी गिर गए, आप सब खाइएं और इतना कहकर वो लड़का जाने लगा।।
तभी कस्तूरी बोली,माफ कीजिएगा, मैने आपको गलत समझा और बहुत बुरा भला भी कहा।।
कोई बात नहीं, मैं भी आपकी जगह होता तो यही करता और इतना कहकर वो लड़का चला गया लेकिन कस्तूरी के हृदय में एक छाप छोड़ गया।।
दिन बीतते गए, कस्तूरी के ब्याह की घड़ियाँ भी नजदीक आ गईं,कस्तूरी की सहेलियों ने उसे तैयार किया,बारात जनवासे जा पहुँची,बारात का स्वागत किया गया,फिर दूल्हा फेरों के लिए घर के द्वार आ पहुँचा,सारी औरतें और लड़कियाँ दूल्हे की शकल देखने उमड़ पड़ी और जैसे ही कस्तूरी की सहेलियों ने दूल्हे को देखा तो फौरन कस्तूरी को बताने दौड़ पड़ी____
कस्तूरी! ये तो वही मेले वाला,समोसा और जलेबी देने वाला हैं, बड़ी नसीबवाली हैं री! तू तो,तुझे दूल्हा पहले ही देखने को मिल गया,कस्तूरी के मन मे तो जैसे मारे खुशी के लड्डू फूट गए,वो बहुत खुश हुई।।
ब्याह के समय दूल्हे ने दुल्हन को देखने का बहुत प्रयास किया लेकिन सफल ना हो सका,एक तो पेट्रोमैक्स(गैस लालटेन) की हल्की रोशनी और ऊपर से बुजुर्गों का ख्याल,दुल्हन के मेहदीं लगी हथेलियाँ और महावर लगें पैर ही देख पाया,,
दुल्हे के कलेवा का समय हो तो सारी बूढ़ी बुजुर्ग औरतों ने उसे और उसके दोस्तों को घेर लिया फिर कस्तूरी की सहेलियों के पहुँचते ही सबकी हँसी ठिठोली चलने लगी,तभी दूल्हे को सहेलियों ने बताया कि जीजा जी चिंता ना करिए,आपकी दुल्हन वहीं हैं,मेले जिसके आपने समोसा जलेबी गिरा दिए थे,अब तो दूल्हे की बाँछें खिल गईं।।
कस्तूरी विदा होकर ससुराल गई, निहारन और सारे नेगचार होने के बाद उसे दूल्हे से मिलने का मौका मिला, दोनों ही एक दूसरे को पाकर बहुत खुश थे,पन्द्रह दिन दोनों साथ मे रहे फिर कस्तूरी के पगफेरों की रसम का समय हो गया,कस्तूरी मायके आ गई, लेकिन वो खुश नहीं थी,ऐसे ही विरह में एक महीने बीत गए फिर उसके पति शशीकांत की चिट्ठी आई कि मैं तुम्हें लेने आ रहा हूँ क्योंकि मेरी छुट्टियाँ खत्म होने वाली हैं, फौज़ मे वापस जाना होगा, मैं मुश्किल से तुम्हारे साथ हफ्ते भर ही रह पाऊँगा।।
शशी आया और कस्तूरी को हँसी खुशी विदा करके ले गया,हफ्ते भर दोनों के बहुत प्यार से कटे और फिर शशी को कस्तूरी ने रोते हुए विदा किया,
शशी बोला ,रो मत पगली! अगली छुट्टियों में जल्द ही घर लौटूँगा।।
कस्तूरी ऐसे ही विरह के दिन काट रही थी,उसे शशी बिन कुछ ना सुहाता,सास समझाती तब वो खाना खाती,घर में बेचारे बूढ़े बुढ़िया ही थे,बहु को उदास देखकर उन्हें भी तकलीफ़ होती,कस्तूरी को कुछ समय बाद पता चला कि वो माँ बनने वाली हैं, सास तो जैसे बहु की बलाइयाँ ले लेकर ना थकती,उसका पूरा ख्याल रखती लेकिन ये खुशी बहुत दिनों तक ना रही,पता चला कि सरहद पर जंग छिड़ गई हैं और शशी उस जंग का हिस्सा हैं और फिर एक रोज जो किसी ने ना सोचा था वहीं हुआ,शशी शहीद हो गया और तिरंगे में लिपटा हुआ शव घर आया,जवान बेटे का शव देखकर मां बाप की छाती फट गई और गर्भवती कस्तूरी का रो रोकर बुरा हाल हुआ,मात्र सत्रह साल की उम्र में वो विधवा हो गई।।
कस्तूरी के माँ बाप से बेटी का दुख ना देखा गया और उन्होंने उससे अपने साथ चलने को कहा लेकिन कस्तूरी ने बूढ़े सास ससुर का मुँह देखा और मायके नहीं गई, सास ससुर का सहारा बनकर ससुराल में ही रही,कुछ दिनों बाद चाँद से बेटे को कस्तूरी ने जन्म दिया, हुबहू बाप के नैन नक्श लेकर बेटा पैदा हुआ,सास ससुर भी खुश थे,कुछ दिनों बच्चे के साथ रहकर कस्तूरी पति का ग़म भूल गई और बच्चे की परवरिश में लग गई, बेटा बड़ा होने लगा,अब कस्तूरी अपने खेतों को भी सम्भालने का काम करने लगी क्योंकि ससुर जी बूढ़े हो गए थे और साथ में बीमार भी रहने लगें थे और फिर एक दिन वो इस दुनिया से अलविदा हो गए।।
समय रेत के समान मुट्ठी से फिसला जा रहा था,कुशाग्र ने अब इंजीनियरिंग काँलेज की पढ़ाई भी पूरी कर ली थीं लेकिन इसी बीच कस्तूरी की सास भी चल बसीं, अब कस्तूरी खुद को बहुत अकेला अनुभव करने लगी थी,मायके से भाई भी आ जाता कभी कभी खैर खबर लेने लेकिन कस्तूरी मायके नहीं जाती अपना घर छोड़कर,वो कहती उसके पति की यादें हैं इस घर में हैं,इस घर की जिम्मेदारी है मेरे ऊपर मैं इसे छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी।।
अब कुशाग्र एक आरकिटेक्चर इंजीनियर बन गया था,बहुत से पुल और फ्लाईओवर उसकी देखरेख में बनें,कुशाग्र कुछ दिनों तक तो बहुत ईमानदारी से काम करता रहा लेकिन अब उसके ऊपर शहर के बड़े बड़े व्यापारियों और नेताओं के दबाव बनने लगे तो उसकी नीयत भी डाबाडोल हो गई अब वो बहुत पैसे कमाने लगा,खराब और सस्ते मैटेरियल का यूज करने लगा।।
कुछ ही दिनों में कुशाग्र के पास बड़ी कार और बड़ा सा बंगला हो गए, अपने बेटे की तरक्की देखकर कस्तूरी खुश थीं, एक अच्छी सी लड़की देखकर बेटे का घर बसा दिया, किस्मत से बहु भी समझदार निकली लेकिन तब भी कस्तूरी ने अपने पति का घर ना छोड़ा,वो तो वहीं गाँव में ही बस गई।।
ऐसे ही पाँच साल और बीत गए, कस्तूरी दादी बन गई, कुशाग्र और नीलिमा अपने बेटे के साथ कभी कभी गाँव जाते उससे मिलने,जीवन ऐसे ही चल रहा था कि एक रोज कुशाग्र की सहमति से बना फ्लाईओवर गिर गया और उसके नीचे ना जाने कितने ही लोगों की दबकर जान चली गई, इन्क्वायरी हुई,कुशाग्र कसूरवार निकला,कस्तूरी को अपनी परवरिश पर भरोसा ना हुआ और वो इसका जवाब माँगने जेल जा पहुँची कुशाग्र के पास।।
कुशाग्र से पूछने पर उसने कस्तूरी से नजरें नहीं मिलाईं और बोला,माँ! मैं लालच में अंधा हो गया था और फिर कस्तूरी ने कुछ नहीं पूछा,बोली,मैं मंदिर गई थी मुझे लगा तू निर्दोष हैं, ये रहा प्रसाद,तू खा लेना और कस्तूरी अपने गाँव लौट आई,रात भर पति की फोटो को सीने से चिपकाए रोती रही और सुबह गाँववालों को वह मरी मिली।
उसके हाथ में एक चिट्ठी थी उसमे लिखा था कि उसने ही अपने बेटे को प्रसाद में जहर दिया था और खुद भी वो प्रसाद खा लिया आखिर मेरे पति ने देश के लिए अपनी जान दी थी और मैं अपने गद्दार बेटे को कैसे माफ कर देती क्योंकि मैं एक शहीद की विधवा थी।।
समाप्त___
सरोज वर्मा___