Manas Ke Ram - 29 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | मानस के राम (रामकथा) - 29

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मानस के राम (रामकथा) - 29




मानस के राम
भाग 29



हनुमान द्वारा अशोक वाटिका का ध्वंस

राम की मुद्रिका देखकर सीता का सारा संशय समाप्त हो गया था। उन्होंने हनुमान से कहा,
"मुझे अब तुम पर पूर्ण विश्वास हो गया है। किंतु एक बात समझ में नहीं आती है कि मेरे स्वामी ने इतना विलंब क्यों कर दिया। क्या वह मुझसे किसी बात पर रुष्ठ हैं। पुत्र हनुमान उनसे जाकर कहना कि उनके वियोग में मेरे लिए एक एक पल काटना कठिन हो रहा है। यदि मुझसे किसी प्रकार की भूल हुई हो तो मुझे क्षमा कर दें। परंतु अब उनका वियोग सहन नहीं होता है‌।"
हनुमान ने कहा,
"हे माता आप यहाँ किस प्रकार कष्ट उठा रही हैं यह मैंने अपनी आंँखों से देखा है। परंतु माता प्रभु राम का दुख भी आपसे किसी मामले में कम नहीं है। आपके वियोग में उनके लिए भी एक एक पल युग के सामान बीतता है। उन्होंने मुझे आपको संदेश देने के लिए कहा था कि आपके पास ना रहने पर उन्हें समस्त प्रकृति अपने प्रतिकूल जान पड़ती है। नए कोमल पत्तों का स्पर्श मुझे आहत कर देता है। कमल के फूल शूल के समान लगते हैं। जब मेघ वर्षा करते हैं तो उनका जल मुझे तप्त तेल के समान लगता है।"
अपने स्वामी राम का दुख सुनकर सीता के नेत्रों से अश्रु बहने लगे। हनुमान ने कहा,
"माता प्रभु का कहना है कि उन्हें तो अपने हितैषी भी सुख नहीं दे पा रहे हैं। अपने ह्रदय की पीड़ा वह किसी से नहीं कह पाते हैं। वह तो बस इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि आपका कोई संदेश उन तक पहुंँचे। आप की खबर पाते ही वह लंका की तरफ कूच कर देंगे। महाराज सुग्रीव की वानर सेना तैयार है।"
हनुमान ने लंका में प्रवेश करते समय छोटा रूप धारण कर लिया था। इस समय भी वह उसी लघु रूप में थे। सीता ने कहा,
"पुत्र राक्षस बहुत ही मायावी और बलशाली हैं। सभी बहुत विशालकाय हैं। महाराज सुग्रीव की सेना में तो तुम्हारे जैसे ही वानर होंगे। इन विशाल राक्षसों का सामना वानर सेना कैसे कर पाएगी।"
सीता की शंका को समझ कर हनुमान ने कहा,
"माता अभी मैं आपको अपना एक विशाल मायावी रूप दिखाता हूंँ।"
यह कहकर हनुमान ने प्रभु श्री राम का नाम लिया और अपने शरीर का आकार बढ़ा दिया। उनके विशाल आकार को देखकर सीता संतुष्ट हो गईं‌। उन्होंने हनुमान को अपना आकार घटाने के लिए कहा। हनुमान अपने वास्तविक आकार में आ गए। ‌ उन्होंने कहा,
"जो पहले आपने देखा था वह मेरा लघु रूप था। ‌ स्वयं को राक्षसों से छिपाने के लिए। अब जो आप देख रही हैं वह मेरा वास्तविक रूप है। ‌ हमारी वानर सेना में उससे भी अधिक बलशाली योद्धा हैं। आप निश्चिंत रहें। प्रभु राम की सेना इन राक्षसों का संहार करके आपको ले जाने में सक्षम है।"
सीता राम के वियोग में बहुत दुखी थीं। राम का समाचार मिलने के बाद वह और अधीर हो गई थीं। उन्होंने हनुमान से कहा,
"पुत्र मेरे स्वामी राम से कहना कि सीता के लिए अब इस लंका में समय व्यतीत करना बहुत कठिन होता जा रहा है। यदि अब और विलंब किया तो मुझे जीवित नहीं पाएंगे।"
हनुमान ने हाथ जोड़कर कहा,
"यदि आप आज्ञा दें माता तो मैं अभी आपको अपने कंधे पर बैठाकर लंका से ले चलता हूँ। आप मेरी शक्ति पर भरोसा कर सकती हैं।"
सीता ने कहा,
"पुत्र मुझे तुम्हारे बल पर पूर्ण विश्वास है। परंतु मैं चाहती हूँ कि मेरे स्वामी राम स्वयं आकर दुष्ट रावण को उसके किए का दंड दें। यही उनका क्षत्रिय धर्म भी है कि वह स्वयं मुझे यहांँ से ले जाएं। जिससे उनका यश तीनों लोकों में फैले।"
हनुमान ने सर झुकाकर कहा,
"जैसी आपकी इच्छा माता।"
सीता को अब भय हो रहा था कि कहीं किसी राक्षस की दृष्टि हनुमान पर न पड़ जाए। उन्होंने कहा,
"पुत्र अब तुम अपने स्वामी के पास वापस लौट जाओ। अन्यथा किसी राक्षस की दृष्टि तुम पर पड़ जाएगी।"
हनुमान ने कहा,
"माता मुझे राक्षसों का भय नहीं है। किंतु मैं दूत होने के साथ साथ प्रभु राम का गुप्तचर भी हूँ। वापस जाने से पहले मैं शत्रुदल की सामर्थ्य की पूरी थाह लेना चाहता हूंँ।‌ उनके सैन्य संगठन, उनके शस्त्रागार और दुर्ग की संरचना इत्यादि के बारे में जानकारी लेकर मैं प्रभु राम को दूंँगा। यह सभी जानकारियां युद्ध में काम आएंगी।"
हनुमान की बात सुनकर सीता को हनुमान की बुद्धिमत्ता का भी अनुमान हो गया। उन्होंने कहा,
"ठीक है जाओ और प्रभु राम का नाम लेकर अपना कार्य संपन्न करो।"
हनुमान के मन में कुछ और भी चल रहा था। वह चाहते थे कि यहाँ से जाने से पहले वह कुछ ऐसा करें जिससे शत्रु के मन में भय उत्पन्न हो जाए। उन्होंने सीता से कहा,
"माता मुझे बहुत जोर से भूख लगी है। इस वाटिका में कई प्रकार के फल हैं। यदि आप अनुमति दें तो उन्हें खा लूंँ।"
सीता ने अनुमति देते हुए कहा,
"जाकर खा लो। किंतु वाटिका की रक्षा के लिए जो राक्षस तैनात हैं उनसे बचकर रहना।"
हनुमान मुस्कुरा कर बोले,
"माता यदि कोई कोलाहल सुनाई पड़े तो परेशान मत होइएगा। मुझ पर विश्वास रखिएगा। अपना कार्य पूर्ण करने के बाद जाने से पहले मैं आपसे मिलने अवश्य आऊंँगा।"
अपने मन में एक योजना लेकर हनुमान अशोक वाटिका के फल खाने के लिए चले गए।
अपनी योजना को पूरा करने के लिए हनुमान ने फल खा खा कर इधर उधर फेंकना शुरू कर दिया। उसके पश्चात उन्होंने बड़े बड़े वृक्ष उखाड़ कर फेंकने आरंभ किए। यह सब वह अशोक वाटिका के पहरेदारों का ध्यान खींचने के लिए कर रहे थे। शीघ्र ही पहरेदारों की दृष्टि वाटिका में उत्पात मचाने वाले वानर पर पड़ी। उनके अधिपति ने जाकर हनुमान को ललकारा,
"दुष्ट वानर क्या तुझे अपने प्राणों का भय नहीं है जो महाराज रावण की इस सुंदर वाटिका को उजाड़ रहा है। चुपचाप यहाँ से चला जा।"
हनुमान ने उनकी बात सुनने की बजाय उन पर आक्रमण कर दिया। कुछ लोगों का वध कर दिया। कुछ को बुरी तरह आहत कर दिया। जो बच गए वह अपने प्राण बचाकर भाग गए। भागकर वह रावण के पास पहुँचे। रावण को सारी बात बताते हुए बोले,
"महाराज एक उत्पाती वानर अशोक वाटिका घुस आया है। उसने अशोक वाटिका का ध्वंस कर दिया है। हमारे कई पहरेदारों को मार दिया है। हम बड़ी मुश्किल से अपने प्राण बचाकर आपके पास आए हैं।"

सारी बात सुनकर रावण ने क्रोध में कहा,
"तुम लोग एक वानर को नियंत्रित नहीं कर सके। कायरों की भांति यहाँ आ गए।"
रावण ने अपने सेनापति प्रहस्त के पुत्र जंबूमाली को योद्धाओं के एक दल के साथ हनुमान को पकड़ने के लिए अशोक वाटिका भेजा। जंबूमाली एक वीर योद्धा था। वहाँ पहुँचकर उसने अपने धनुष की प्रत्यंचा खींचकर एक भीषण ध्वनि उत्पन्न की। हनुमान ने जंबूमाली के साथ युद्ध कर उसका बुरा हाल कर दिया। उसके साथ आए को मसल कर रख दिया।
यह सूचना जब रावण के पास पहुँची तो उसे आश्चर्य हुआ कि यह कैसा वानर है। उसने अपने पुत्र अक्षय कुमार को एक दूसरे दल के साथ भेजा।
जब अक्षय कुमार अशोक वाटिका पहुँचा तो हनुमान ने ज़ोर से गर्जना करते हुए विशाल वृक्ष उखाड़ कर सेना पर फेंकने शुरू कर दिए। कुछ उन वृक्षों के नीचे दब गए। कुछ सैनिकों को हनुमान ने मुष्टिकाओं के प्रहार से मार दिया। कई सैनिकों को उन्होंने मसल कर भूमि पर पटक दिया। अक्षय कुमार के साथ रावण का भीषण युद्ध हुआ। अंत में हनुमान ने अक्षय कुमार का भी वध कर दिया।

हनुमान का ब्रह्मास्त्र में बंधना

अपने पुत्र अक्षय कुमार की मृत्यु का समाचार सुनकर रावण को यकीन हो गया कि अशोक वाटिका में उत्पात मचाने वाला कोई साधारण वानर नहीं है। वह चिंता में पड़ गया। उसका पुत्र इंद्रजीत अपने भाई की मृत्यु पर क्रोध में उबल रहा था। उसने अपने आसन से उठकर कहा,
"पिताजी आप मुझे आज्ञा दीजिए। मैं जाकर उस उद्दंड वानर को सबक सिखाता हूँ।"
रावण ने कहा,
"तुमने अपने पराक्रम से देवताओं और दानवों दोनों के ही बल को चूर चूर कर दिया है। देवराज इंद्र को पराजित कर तुमने इंद्रजीत नाम प्राप्त किया है। ब्रह्मा जी ने तुम्हारे तप से प्रसन्न होकर तुम्हें ब्रह्मास्त्र प्रदान किया है। यह कोई साधारण शत्रु नहीं है। उसने जंबूमाली और अन्य पाँच सेना नायकों को मार दिया। तुम्हारे वीर भाई अक्षय कुमार की हत्या कर दी। उस वानर से युद्ध करते समय तुम्हें अपने युद्ध कौशल के अतिरिक्त बुद्धि से भी काम लेना होगा। जाओ और विजयी होकर वापस आओ।"

अपने पिता से आया लेकर इंद्रजीत अशोक वाटिका की तरफ चल दिया। वह एक महान योद्धा था। अपने भाई की मृत्यु पर वह बहुत अधिक क्रोध में था। हनुमान ने अशोक वाटिका को ध्वस्त कर लंका के राजा को चुनौती दी थी।
इंद्रजीत ने हनुमान को ललकार कर कहा,
"उद्दंड वानर मैं तुम्हें तुम्हारी उद्दंडता के लिए सबक सिखाने आया हूँ। शांति से खुद को मेरे हवाले कर दो।"
हनुमान ने प्रत्युत्तर में एक और पेड़ उखाड़ कर इंद्रजीत के रथ पर फेंका। रथ टूट गया। इंद्रजीत भूमि पर आ गया। हनुमान ने उसके साथ आए सैनिकों को भी मारना शुरू कर दिया। इसके बाद हनुमान और इंद्रजीत के बीच युद्ध आरंभ हुआ। दोनों भीषण गर्जना करते हुए एक दूसरे की तरफ बढ़े। दोनों एक दूसरे से इस प्रकार भिड़ रहे थे जैसे दो विशाल पर्वत आपस में टकरा रहे हों। दोनों ही बल में एक दूसरे के सामान थे‌। देर तक दोनों के बीच द्वंद चलता रहा।
इंद्रजीत समझ गया कि हनुमान को शक्ति से पराजित नहीं किया जा सकता है। उसे अपने पिता की बात याद आई। रावण ने उससे कहा था कि उस वानर के साथ युद्ध करते समय अपनी बुद्धि का भी प्रयोग करना होगा। कोई और चारा ना देखकर इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र का संधान किया।
हनुमान जब ब्रह्मास्त्र देखा तो उसे हाथ जोड़कर प्रणाम किया। वह ब्रह्मास्त्र की शक्ति को निरर्थक नहीं जाने देना चाहते थे। वह चाहते थे कि इंद्रजीत उन्हें ब्रह्मास्त्र में बांधकर रावण के समक्ष प्रस्तुत करे। वह रावण को प्रभु रामचंद्र की शक्ति के बारे में बताना चाहते थे। हनुमान चुपचाप ब्रह्मास्त्र के आधीन हो गए।
सब तरफ इंद्रजीत की जय जयकार हो रही थी। विजय के दर्प में चूर इंद्रजीत ब्रह्मास्त्र में बंधे हनुमान को लेकर रावण के दरबार में प्रस्तुत हुआ।‌
हनुमान जब रावण के दरबार में पहुँचे तो उसके वैभव को देखकर चकित रह गए। अपने सिंहासन पर बैठा रावण इंद्र की शोभा को भी मात दे रहा था। हनुमान के मन में एक अजीब सा खयाल आया। उन्होंने सोचा यह रावण कितना शक्तिशाली है। वेदों का ज्ञाता है। शिव का परम भक्त है। अपने पुरुषार्थ से इसने इतना ऐश्वर्य अर्जित किया है। किंतु अपनी एक भूल के कारण इसे इन सबसे वंचित होना पड़ेगा। उन्होंने सोचा कि रावण को सही मार्ग पर लाने का प्रयास करना चाहिए।