प्रकरण 1: हॉस्टल का अलार्म
वैसे तो, हम सब रात के राजा थे। हमारे कॉलेज का समय दोपहर में था इसलिए सुबह उठने का कोई समय निश्चित नहीं होता था। कभी 10 बजे तो कभी 11 बजे। हमारे ग्रुप के लोग हर सुबह जल्दी अलार्म लगाते थे और संकल्प लेते थे कि हम जल्दी उठेंगे लेकिन हर सुबह हमारे संकल्पों पर पानी फिर जाता था। 5-10 मिनट के अंतराल पर सभी अलार्म लगाते थे, यानी एक के बाद एक अलार्म के साथ हॉस्टल हमारे अलार्मो से गूंज उठता था। लेकिन अच्छी बात यह थी कि 5-5 अलार्म के बावजूद भी हम नहीं उठते थे और अलार्म बंद करने की जहमत भी नहीं उठाते थे। कभी-कभी अगर किसी की आंख खुल जाती, तो वह सोचता कि कोई और उठके अलार्म बंद कर देगा। इसलिए अलार्म बजते रहते थे जिसकी बजह से हॉस्टल के दूसरे कमरों के लोग उठ जाते थे और हमारे कमरे का दरवाजा खटखटाते थे लेकिन हम अजगर की तरह पड़े रहते थे। किसी को उठने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और वे सब थक के चले जाते थे लेकिन हमारे खौफ की बजह से कोई भी हमारे कन्वीनर से शिकायत करने नहीं जा पाता था। हॉस्टल में देर से उठने के कारण हमें सुबह दूध नहीं मिलता है, हमारा अधिकांश दूध दूसरे लोग ही पी जाते थे। हमें भी दूध पीने की बजाय नींद में अधिक रुचि थी।
प्रकरण 2 : हॉस्टल के गूंडो को सीधा किया
हॉस्टल के शुरुआती दिनों में हमने हॉस्टल के कन्वीनर के भतीजों का सामना किया था। गुजरात में एक कहावत के अनुसार, "सात नारिया" का मतलब वांकानेर के सात लोगों से था, इसलिए हम उन्हें “सात नारिया वांकलाओ” कहते थे। हमारे आने से ठीक पहले उन्होंने हॉस्टल में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। वो हॉस्टल में रहनेवाले लोगों को डराते थे। हॉस्टल के छात्र और कर्मचारी उससे डरते थे क्योंकि एक तो वो 7 लोग थे और दूसरा वो कन्वीनर के भतीजे थे। दादागीरी, मारपीट, लड़ाई और पिटाई उसकी दिनचर्या थी। पहले तो हमें उसके बारे में कुछ पता नहीं था लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया हमे उसके दादागीरी के कारनामे जानने को मिले लेकिन हम शुरू से ही आक्रामक थे और किसीसे भी डरते नहीं थे। उन्होंने हमारे ग्रुप पर भी दादागीरी आजमाने की कोशिश की लेकिन वो असफल रहे। शुरूआत में हम एक दूसरे को धमकी दीया करते थे, फिर हमारे दोनों ग्रुप के बीच एक समझौता हुआ। फिर हम एक दुसरे के रस्ते में आते नहीं थे| हमारे साहस और जुनून को देखकर, हॉस्टल के लोग हमारे पास आते और हमसे उन लोगो की दादागीरी के बारे में बात करते और उन बदमाशों के चंगूल से बाहर निकालने के लिए कहते। हमारे ग्रुप ने भी हॉस्टल के लोगों को इन सात बदमाशों की चंगूल से मुक्त करने का संकल्प लिया और बदमाशों को इस तरह सीधा किया कि वे हमारे रास्ते में आने की हिम्मत भी नहीं करेते थे। फिर तो वो लोग भी हमारे साथ दोस्ती बनाने के लिए उत्सुक थे लेकिन हमने हॉस्टल में दादागीरी नहीं करने की शर्त रखी, जिसको उन्होंने मान लीया बाद में वे हमारे अच्छे दोस्त बन गए थे।
क्रमश: