17.
राशिद को लगातार ये संदेश मिल रहे थे कि वह मिशन को पूरा करने में तेजी लाए। उसे पता था कि उस पर बराबर नजर रखी जा रही है। वह खुद भी चाहता था कि मिशन जल्दी से जल्दी पूरा हो। उसे भारत की नई परमाणु प्रणाली को पंगु बनाने और नेस्तनाबूद करने का काम करना था। उसके आका भी जानते थे कि यह काम आसान नहीं था और कुछ दिनों के भीतर पूरा नहीं किया जा सकता था। यह मिशन पाकिस्तान के लिए इतना अहम था कि वह इसके लिए कुछ माह और इंतजार कर सकता था। यदि भारत की इस नई परमाणु प्रणाली के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां मिल जाती हैं और इस प्रोजेक्ट को नेस्तनाबूद कर दिया जाता है तो इस क्षेत्र में भारत को दशकों पीछे धकेला जा सकता था और उन जानकारियों के बल पर पाकिस्तान उससे आगे निकल सकता था।
राशिद उस प्रोजेक्ट से सीधे तौर पर जुड़ चुका था। पर, उसे जो काम सौंपे जा रहे थे, वे ऐसे न थे कि उसे अहम जानकारियां हासिल हो सकें और उसकी पहुंच मुख्य कंप्यूटर तक हो सके और वह पासवर्ड हासिल कर सके। मुख्य कंप्यूटर तक पहुंच बनाने और उसका पासवर्ड हासिल कर सकने के लिए यह जरूरी था कि वह हड़बड़ी में कोई कदम न उठाए। किसी को जरा सा भी शक होने पर पूरे मिशन पर ही पानी फिर सकता था। इसीलिए इस मिशन को लंबा समय दिया गया था। रणनीति यह थी कि अपनी काबिलियत, मेहनत और लगन के बल पर राशिद उच्च अधिकारियों का विश्वास हासिल कर ले और फिर ऐसी स्थिति में आ जाए जहां से वह पूरी प्रणाली को समझ ले, पासवर्ड हासिल कर ले और फिर उस नई परमाणु प्रणाली को नेस्तनाबूद कर दे।
इस मिशन को शुरू हुए चार माह से कुछ अधिक का समय बीत चुका था। इस ऑफिस में आए राशिद को लगभग तीन माह पूरे हो चुके थे। वह बिना कोई हड़बड़ी दिखाए कोशिश कर रहा था कि उस नई प्रणाली की बारीकियों को अच्छी तरह समझ ले। इसके लिए वह कोई भी काम करने को तैयार रहता था। उसे जो भी काम सौंपा जाता वह उसमें अपनी पूरी ताकत से लग जाता। उसने अपने व्यवहार और अपने काम से सभी को अपना बना लिया था। वह ईमानदारी से अपना काम करता और किसी भी काम में जरूरत से ज्यादा रुचि नहीं दिखाता था। चीजों को बहुत जल्दी समझ लेने और फिर उन्हें अमल में लाने की अपनी काबिलियत के बल पर ही उसने अपनी एक अलग जगह बना ली थी। उसके अधिकारी उससे बहुत खुश थे। उधर, राशिद को विश्वास था कि वह अपने मकसद को पाने के लिए कदम-दर-कदम बढ़ा जा रहा था। इसमें कितना समय लगेगा इसका अंदाजा उसे नहीं था, पर वह इस बात से मुतमईन था कि वह उम्मीद से जल्दी मुख्य कंप्यूटर तक पहुंच बना लेगा और उसका पासबर्ड हासिल कर लेगा। एकबार पासवर्ड उसके हाथ लग गया तो फिर उसे अपना मकसद हासिल करने से कोई नहीं रोक पाएगा। उसे पता था कि जैसे ही वह इस काम को अंजाम देगा शहर भर में अफरा-तफरी का महौल फैल जाएगा और उस सबके बीच आइएसआइ के एजेंट उसे वहां से निकाल कर सरहद पार करा देंगे।
अपने मज़हब और वतन के लिए वह जब इस बड़े मिशन को पूरा कर लेगा तो उसे कितना सुकून मिलेगा यह बस वही समझ सकता था। इस मिशन की सफलता से भारत में ही नहीं पूरे विश्व में जो तूफान मचेगा, उसकी फिलहाल कल्पना ही की जा सकती थी।
राशिद जिस सावधानी से और खुद को शक के दायरे में लाये बिना अपने काम में लगा था, उससे उसे यकीन था कि प्रोजेक्ट के उसके साथी और अधिकारी शायद ही कभी ये सोच पाएंगे कि वह किसी खास मकसद से उस प्रोजेक्ट से जुड़ा था। जब तक उन्हें पता चलेगा तब तक तो वह अपने मिशन को अंजाम देकर अपने मुल्क में पहुंच चुका होगा।
उसे पक्का पता था कि इस इतने बड़े मिशन को पूरा करने के बाद भारत की और अन्य देशों की खुफिया एजेंसियों से उसका नाम छुपा नहीं रह सकेगा। वह शायद उनकी हिट लिस्ट में भी आ जाए। हो सकता है कि आइएसआइ कभी यह स्वीकार न करे कि वह उनका आदमी था। पर, वह इस बात से खुद को तसल्ली देता रहता था और फख्र महसूस करता रहता था कि वह यह बड़ा और खतरे-भरा काम अपने वतन, अपने मज़हब और अपनी कौम के लिए कर रहा था। वह शुक्रगुजार था आइएसआइ के अफसरों का और उस परवरदिगार का जिसने उस नाचीज को इस अहम काम के लिए चुना था और उसे यह मौका अता फरमाया था। जब भी वह इस बारे में सोचता तो खुद की नजरों में ऊंचा उठ जाता। उसे खुद पर फख्र हो आता और वह और भी शिद्दत से अपने मिशन को पूरा करने के लिए ज़हनी तौर पर तैयार हो जाता।
उस दिन जब बड़े साहब ने उसे तुरंत ही मिलने के लिए बुलावा भेजा तो वह अंदर ही अंदर घबरा गया था। बड़े साहब का बुलाना उसे परेशान कर गया था क्योंकि उन्होंने अब तक उसे कभी नहीं बुलाया था। उसने सीधे तौर पर उनसे कभी बात नहीं की थी। वे सिर्फ उनके महकमे के इंचार्ज को ही अपने पास बुलाते थे और उसी के माध्यम से उनके बीच संपर्क रहता आया था। उसने ऐसा कोई भी काम नहीं किया था, जिससे उस पर किसी भी तरह का शक-शुबहा किया जा सकता हो। क्या किसी खुफिया एजेंसी ने उन तक इस मिशन की और उसके लिए काम करने वाले राशिद की जानकारी पहुंचा दी थी। क्या उसका खेल खत्म हो गया था और अब उसे पकड़ लिया जाएगा। यह सोचकर वहां जाने के लिए उसके पैर ही नहीं उठ रहे थे। तभी उसके इंचार्ज ने उसे याद दिलाया था – “बड़े साहब ने आपको बुलाया है, तुरंत वहां जाएं। उन्हें किसी बात में देरी बर्दाश्त नहीं होती।“
राशिद पहली बार बड़े साहब के केबिन में जा रहा था। वह जैसे ही वहां पहुंचा उनके केबिन के बाहर एक छोटे केबिन में बैठे उनके पीएस ने कहा – “साहब आपका ही इंतजार कर रहे हैं, आप सीधे अंदर चले जाएं।“
उसने धड़कते दिल से केबिन के दरवाजे पर ठक-ठक की और थोड़ा सा दरवाजा खोल कर पूछा – “मे आइ कम-इन सर?”
“आप राशिद हैं ना?”
“जी हां”
“ठीक है, अंदर आ जाएं।“
वह अंदर जाकर उनकी मेज के सामने खड़ा हो गया तो उन्होंने उसे कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए कहा – “राशिद, आपको यहां काम करते हुए कुछ ही महीने हुए हैं, कैसा लग रहा है यहां का काम?”
“जी अच्छा लग रहा है, बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है।“
“हूं, बहुत तेजी से सीख रहे हो। रिपोर्टें आती रहती हैं मेरे पास।“
“जी, कोशिश कर रहा हूं।“
“आपकी काबिलियत, मेहनत, लगन और ईमानदारी से सब बहुत खुश हैं। इतने कम समय में आपने प्रोजेक्ट के काम में जो अपना कंट्रीब्यूशन दिया है वह काबिले-तारीफ है।“
“जी शुक्रिया।“
“आपको यह बताने के लिए बुलाया है कि आपकी इस काबिलियत और मेहनत को देखते हुए अब आपको कुछ और महत्वपूर्ण काम में शामिल किया जाएगा। मुझे पूरा विश्वास है कि आप इस नए काम में भी अपनी काबिलियत दिखाएंगे।“
“जी सर, मुझे जो भी काम दिया जाएगा, उसे मैं पूरी मेहनत से करने की कोशिश करूंगा।“
“कल से आपका विभाग बदल जाएगा और आप सीधे मेरे मातहत काम करने वाले विभाग एक्स में काम करेंगे। यहां उन्हीं को रखा जाता है जिन लोगों पर हम हर तरह का भरोसा कर सकते हैं।“
“मैं आपको कभी किसी शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगा, सर।“
“मुझे पूरी उम्मीद है कि आप भरोसा नहीं तोड़ेंगे। इस विभाग में काम करते समय कुछ गोपनीय जानकारियां भी आपके पास रहेंगी। कर सकते हैं ना आप पर भरोसा?
“सर, मैं सिर्फ यकीन दिला सकता हूं। बस, इतना ही कह सकता हूं कि मैं कभी आपका भरोसा नहीं तोड़ूंगा।“
“ठीक है, कल सुबह आप विभाग एक्स में रिपोर्ट करें। आपके इंचार्ज को बता दिया जाएगा। फॉर्मल ऑर्डर बाद में निकलते रहेंगे। अब आप जा सकते हैं।“
केबिन से बाहर निकलते समय राशिद के मन का सारा भय जाता रहा था और उसकी धड़कनें सामान्य हों गई थीं। उसने मन ही मन अल्लाहताला का शुक्रिया अदा किया। कितना मेहरबान था वह उस पर। जिस मौके की तलाश में वह महीनों से लगा था, शायद अब वह उसे मिलने वाला था। सब्र का फल मीठा होता है।
दूसरे दिन से ही उसने विभाग एक्स में काम शुरू कर दिया था। कुछ ही दिनों में उसने वहां भी अपनी मेहनत और काबिलियत की धाक जमा दी थी। उसे अब सीक्रेट बैठकों में भी शामिल किया जाने लगा था। उसे कई ऐसी जानकारियां मिल रही थीं जो उसके मुल्क के लिए बहुत अहम हो सकती थीं और जिनके बल पर वह अपने मिशन को और तेजी से आगे बढ़ा सकता था। उसे अपने असली मकसद को अंजाम तक पहुंचाने का दिन नजदीक आता दिखाई देने लगा था। पर, मुख्य कंप्यूटर तक पहुंचने और पासवर्ड पाने तक, हो सकता है दो-तीन माह और निकल जाएं, पर वह अपने मकसद को अंजाम तक पहुंचाने के लिए की गई इतनी मेहनत और इंतजार को किसी भी कीमत पर बेकार नहीं जाने देना था।