Apne-Apne Karagruh - 13 in Hindi Moral Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | अपने-अपने कारागृह - 13

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अपने-अपने कारागृह - 13

अपने-अपने कारागृह-12

दूसरे दिन उषा अपनी ननद अंजना के घर उससे मिलने गई । घंटी बजाने जा ही रही थी कि अंदर से तेज तेज आवाजें सुनकर घंटी दबाने के लिए बढ़े हाथ पीछे हट गए ।

' चाय बना कर देने में जरा सी देर हो गई तो आप इतना हंगामा कर रही हैं । आपकी वजह से ही मैं अपने मित्र की जन्मदिन की पार्टी से जल्दी आई हूँ ।'

' जल्दी आ गई तो कौन सा एहसान कर दिया !! मैं अब कुछ नहीं कर पाती हूँ तो तुम्हारे लिए बोझ बन गई हूँ । क्या क्या नहीं किया मैंने तुम्हारे और इस घर के लिए... तुम्हारे दोनों बच्चे देवेश और संयुक्ता मेरे ही हाथों पले बढ़े हैं । अरे, मेरा नहीं तो कम से कम अपने पापा का ही ख्याल कर लिया कर । मयंक होता तब तो तू आती ही न ।'

' पूरा दिन आपकी सेवा करने के पश्चात भी आप संतुष्ट नहीं रह पातीं तो मैं कुछ नहीं कर सकती । आखिर मैं भी अपनी जिंदगी जीना चाहती हूँ ।

' जा अपने कमरे में जा... हम बुड्ढे बुढ़िया की परवाह ही किसे है ? तुम लोगों के लिए तो हम कचरे का ढेर हैं ,बस फेंक ही नहीं पाते हो ।'

उषा और अजय इस वाद विवाद को सुनकर समझ नहीं पा रहे थे कि घंटी बजाएं या ना बजाएं । अजय अंजना को बिना बताए आकर सरप्राइज देना चाहते थे पर अब उन्हें लग रहा था कि किसी के घर बिना बताए जाना उसकी तार-तार होती जिंदगी में ताक-झांक करने जैसा है । अनिश्चय की स्थिति में वे लौटने की सोच ही रहे थे कि मयंक आ गए उन्हें देखकर मयंक ने कहा , ' भाई साहब भाभी जी आप ...आप लोग बाहर क्यों खड़े हैं ? अंजना तो कल से ही आपका इंतजार कर रही है ।' कहते हुए मयंक ने घंटी बजा दी ।

अंजना ने दरवाजा खोलते ही उन्हें देखकर कहा ,'भैया भाभी आप अचानक…'

' हां दीदी , बस एक छोटा सा सरप्राइज देना चाहते थे इसलिए फोन नहीं किया था ।' उत्तर उषा ने दिया था ।

अंजना ने उनकी खातिरदारी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी पर उसके चेहरे पर छाया असंतोष कहीं न कहीं से झलक ही जाता था विशेषतया तब जब उसकी सास घुमा फिरा कर बार-बार एक ही बात कहतीं पूरी जिंदगी काम किया है । इसके बच्चे देवेश और संयुक्ता मेरे हाथों ही पले बढ़े हैं । क्या-क्या पापड़ नहीं बेले बच्चों के लालन-पालन में... पर अब मुझसे कोई काम नहीं होता । परवश हो गई हूँ किसी को क्या कहूँ, समय के साथ स्वयं को बदलना एवं सहना पड़ता ही है ।

ममा के घर के माहौल तथा अंजना के घर के माहौल की उषा ने तुलना की तो जाने अनजाने वह सोचने को मजबूर हो गई क्या सिर्फ अंजना की ही गलती है या उसकी सास ही उसके साथ सहयोग नहीं करना चाहतीं । अगर आपसी सामंजस्य न हो तो देर सबेर ऐसी घटनायें होंगी ही, तब क्या घर का वातावरण सामान्य रह पाएगा ? क्या बच्चों की ऐसे माहौल में स्वस्थ परवरिश संभव है ?

उस दिन ऐसे ही अनेकों प्रश्न लिए उषा अंजना के घर से लौटी थी ।

*********

दो दिन पश्चात अजय और उषा का सामान आ गया और वे अपने 3 बैडरूम के विला में आ गए । उनका पार्क फेसिंग विला था । घर को सेट कर ही रहे थे कि एक युगल ने घंटी बजाई । अजय के बाहर आते ही उन्होंने कहा, ' हम आपके पड़ोसी हैं । मैं डॉ रमाकांत एवं यह मेरी पत्नी उमा ।'

' आइए...आइए ।' अजय उनको घर के अंदर लेकर आये तथा उससे उनका परिचय करवाया ।

' आज का डिनर आप हमारे साथ हमारे घर करेंगे ।' उमा ने उनकी ओर देखते हुए कहा ।

' इसकी क्या आवश्यकता है ? हम मैनेज कर लेंगे ।' अजय ने कहा ।

' अब हम पड़ोसी बन गए हैं । एक अच्छा मित्र ही एक अच्छा पड़ोसी हो सकता है । उस दिशा में यह डिनर एक छोटा सा प्रयास है ।' रमाकांत ने कहा ।

' पर...।'

' पर वर कुछ नहीं भाई साहब । आपको आना ही होगा ।' उमा ने आत्मीयता से कहा ।

यद्यपि मम्मा ने उसकी सहायता के लिए रामदीन को उसके साथ भेज दिया था पर वे उनके आग्रह को ठुकरा नहीं पाए अंततः उन्होंने अपनी सहमति दे दी ।

शाम को वे उनके घर गए ।

' आइए अजय जी हम आपका ही इंतजार कर रहे थे ।' कहते हुए रमाकांत उन्हें अंदर ले गए ।

अंदर आकर वह बैठे ही थे कि उमा एक ट्रे में जूस और नाश्ता लेकर आ गईं तथा कहा, ' वेलकम वेलकम... आप आए हैं तो बहुत ही अच्छा लग रहा है ।'

उमा बहुत ही सुलझी हुई लगी । रमाकांत एक वर्ष पूर्व ही सी.एम.ओ. के पद से सेवानिवृत्त हुए थे । वह भी इस शहर में पैर जमाने का प्रयास कर रहे थे । वह गोरखपुर से थे पर सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्होंने अपने स्थाई निवास के लिए लखनऊ को ही चुना था । उनका मानना था कि लखनऊ सेंट्रल प्लेस है जिसके कारण कहीं भी आने-जाने के लिए यू.पी . के अन्य जिलों की तुलना में यहां अच्छी सुविधाएं हैं । उनके दोनों बच्चे श्रेया और शैवाल ऑस्ट्रेलिया और स्कॉटलैंड में थे ।

उमाकांत और अजय आपस में बातें करने लगे । उषा, उमा की सहायता करवाने के उद्देश्य से उमा के मना करने के बावजूद किचन में चली गई । किचन बहुत ही व्यवस्थित और साफ सुथरा था । खाना भी उन्होंने पहले से ही बनाकर हॉट केस में डाइनिंग टेबल पर रख दिया था बस पूरियाँ ही तलनी थीं ।

' अगर मैं आपको आपके नाम से बुलाऊँ तो बुरा तो नहीं लगेगा ।' पूरी बनाते हुए उमा ने उससे पूछा ।

' बिल्कुल नहीं , आप मुझे उषा कहकर बुला सकती हैं ।'

' दरअसल मुझे श्रीमती शर्मा या वर्मा कहना कभी अच्छा नहीं लगा । हम अपने नाम के बजाय अपने पति के नाम से क्यों पहचानी या बुलाई जाएं आखिर हमारी भी तो कोई पहचान है, हमारा भी अपना अस्तित्व है ।' उमा ने उससे कहा ।

' आप ठीक ही कह रही हैं । मेरी भी यही सोच रही है पर कुछ लोगों को नाम से पुकारा जाना पसंद नहीं होता है ।'

' किसी और को हो या ना हो पर मुझे और आपको कोई आपत्ति नहीं है तो हम एक दूसरे को नाम से ही पुकारेंगे ।'

' ओ.के. उमा जी । आप तो एक वर्ष से यहाँ पर हैं । आपको यहां कैसा लग रहा है ? क्या-क्या एक्टिविटीज हैं ?'

' एक्टिविटी तो बहुत है यहाँ पर । महिलाओं की किटी चल रही है । हम लोगों का एक सीनियर सिटीजन ग्रुप भी है ।'

'सीनियर सिटीजन ग्रुप...।'

' इस ग्रुप में सभी सेवानिवृत्त दंपति है । सभी अपनी- अपनी तरह से जीने का प्रयास कर रहे हैं ।'

' सभी जीने का प्रयास कर रहे हैं , आपने ऐसा क्यों कहा उमा जी ?'

' उषा सेवानिवृत्ति के पश्चात जीवन प्रारंभ करना जीवन की एक नई सुबह है पर यह सुबह आशाओं से भरी नहीं है । इस जीवन में न कोई आस है और न ही कोई उमंग ,बस जीवन काटना मात्र है... एक ऐसा जीवन , जिसकी किसी को आवश्यकता ही नहीं है ।'

' उमा जी आप यह क्या कह रही हैं ? हमने अपनी सारी जिम्मेदारियां भली-भांति निभाई हैं । जिम्मेदारियों से मुक्त हुए तो यह विचार क्यों ? अभी तक हम औरों के लिए जीते आए थे, अब हमें अपने लिए अपनी इच्छा अनुसार जीना चाहिए ।' अनायास ही उषा के होठों पर अजय की विचारधारा आ गई थी ।

' बच्चों से दूर मन का खाली हिस्सा न जाने क्यों सोचने लग जाता है कि अब हमारी किसी को आवश्यकता नहीं है । तब मन अवसाद से भर उठता है ।' कहते हुए उमा के चेहरे और उदासी छा गई थी ।

' बच्चे अपनी जगह खुश हैं , खुश रहें । संतुष्टि का यही भाव हमारे अंदर चेतना का संचार करें , हमारा बस यही प्रयास रहना चाहिए ।'

' तुम ठीक कह रही हो उषा पर मन न जाने क्यों कभी-कभी बेहद असंतुष्ट हो जाता है । खैर..अगले शनिवार को यानी 9 मार्च शशि अरोड़ा के घर सिटीजन ग्रुप की गोष्ठी है । अभी हमारे इस ग्रुप में सात फैमिली हैं । सभी सेवानिवृत्त हैं । तुम भी हमारे साथ चलना यदि वहाँ का माहौल उपयुक्त लगे तो अगले महीने से ज्वाइन कर लेना ।'

' क्या होता है इस गोष्ठी में ?'

'एक राउंड तंबोला होता है इसके पश्चात कोई गेम , तत्पश्चात एक घंटे किसी टॉपिक पर विचार विमर्श होता है । इस बार का विषय है ' श्री कृष्ण का बाल रूप ' किसी एक पर ज्यादा बोझ न पड़े इसलिए जिसके घर गोष्ठी होती है उसके घर सब लोग एक-एक डिश बनाकर ले जाते हैं । इसके अतिरिक्त हर त्योहार पर गैदरिंग करने की भी हम लोग कोशिश करते हैं ।'

' अभी तो होने होली आने वाली है ।'

' हाँ 18 मार्च को होली है । 17 मार्च को धुलेंडी के दिन श्रीमती लीना एल्हेन्स के घर पर प्री होली समागम है । उनके घर होली जलाई जाती है अतः यह कार्यक्रम उनके घर ही होता है ।

' वाह उमा जी ...वास्तव में बहुत अच्छा है आपका यह ग्रुप ।'

' हाँ उषाजी, महीने में एक दिन तो हम अपनी जिंदगी जी ही लेते हैं । सबसे बड़ी बात हमारे साथ हमारे पति भी एन्जॉय करते हैं वरना लेडीज किटी में हम स्त्रियां तो एन्जॉय करती हैं पर हमारे पतिदेव घर में बैठे हमारा इंतजार करते रहते हैं । यह मुझे अच्छा नहीं लगता था । पहले की जिंदगी और अब की जिंदगी में काफी अंतर आ गया है । पहले यह लोग ऑफिस में रहते थे और हम अपनी खुशियां दूसरी जगह तलाशती थी पर अब हमें ऐसी जगह तलाशनी हैं जहां दोनों को खुशियां मिल पाए ।'

उमा की बात सुनकर उषा कुछ कह पाती तभी अजय की आवाज आई , 'खाना हो गया हो तो चलें।'

' हाँ जी, बस आई ।' बातें करते-करते कब खाना पीना हो गया पता ही नहीं चला ।

उमा और रमाकांत को धन्यवाद देते हुए वे घर आ गए थे । अजय तो सो गए थे पर उषा की आँखों में नींद नहीं थी । उसे न जाने ऐसा क्यों महसूस हो रहा था कि जीवन की प्रत्येक अवस्था एक नया संदेश लेकर आती है । हर अवस्था की अलग अलग आवश्यकताएं हैं , अलग चुनौतियां हैं । इंसान को सुनिश्चित करना होगा इन बदली अवस्था में उसकी प्राथमिकताएं क्या हैं पर एक बात अवश्य है वह प्रौढ़ शिक्षा केंद्र खोलने का अपना इरादा नहीं बदलेगी ।

सुधा आदेश

क्रमशः