लहराता चाँद
लता तेजेश्वर 'रेणुका'
31
जब ड्राइवर अमर क्लिनिक पहुँचा अनुराधा ने डॉ.संजय से उसकी आने की खबर दी। वे उसे अंदर बुलाकर बिठाए।
- बोलो अमर कैसे आना हुआ? सब ठीक तो है?
- सब ठीक है डॉ साहब। जेल की सज़ा को पूरा करने के बाद कुछ ही महीने पहले रिहा हुआ हूँ। आते ही आपसे मिलने चाहा मगर मेरी पत्नी का देहांत हो जाने से नहीं आ सका। मेरे अनुपस्थिति में मेरी पत्नी जो दमा की मरीज़ थी उसका इलाज से लेकर मेरे परिवार का पूरा ख्याल रखा है आपने। आप के कारण बेटा अभी अच्छी नौकरी करने लगा है। दोनों बेटियों की शादी हो गई। अब आप की दया से मैं टैक्सी खरीदकर चला रहा हूँ, जिंदगी बहुत अच्छी चल रही है। आप को धन्यबाद कहने आया हूँ।
- इसमें धन्यवाद की क्या बात है अमर। तुम मेरा इल्जाम अपने सिर लेकर जेल चले गए। तुम्हारे होने पर जो भी कुछ तुम्हारे परिवार को मिलना चाहिए था वह बस मैंने पूरा किया है। तुम्हारे एहसान का बदला चुकाने की एक छोटी-सी कोशिश की थी मैंने।
- जो भी हुआ एक हादसा ही तो था।
- हाँ मगर तुम उस वक्त इल्जाम अपने सिर न लेते तो मेरे बच्चों का क्या होता मैं सोच भी नहीं सकता था। रम्या के मना करने के बावजूद दोस्तों के साथ थोड़ी सी शराब ली थी, वही मेरा कसूर था। उस समय गाड़ी चलाना मेरी गलती थी लेकिन यकीन मानो मैं पूरे होश में था। मेरा नसीब खराब था कि उस हादसे में मेरी पत्नी चल बसी और मेरे बच्चे असहाय हो गए। उस समय तुम ही थे जिसने मुझे जेल जाने से बचाया।
- आप खुद को दोष न दीजिए साहब।
- दुर्घटनाएँ कब किस तरह जिंदगी में आ टकराएँगी किसे पता। ...
'अवन्तिका जो संजय से पिकनीक जाने के लिए इज़ाज़त लेने दौड़ आई थी, उसके कानों ने यही सारी बात सुन ली। माँ का एक्सीडेंट यूँ ही नहीं हुआ था यानी माँ जीवित रहती अगर पापा ने शराब पीकर गाड़ी चलायी न होते। पापा का शराब पीकर गाड़ी चलाने की शिकार माँ बन गई। फिर उस गलती को छिपाने पापा ने अमर को पैसे दिए कि इल्जाम वह अपने सिर ले ले।'
अवन्तिका के मन में उठती लहर थमने का नाम नहीं ले रही थी। दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। साँसे फूलने लगी। वह वहाँ खड़ी नहीं हो पाई, क्लीनिक से सीधे रास्ते पर पहुँची।
अवन्तिका की पूरी बात को ना सुनना संजय के लिए दूसरा हादसा था। लेकिन इससे बे-खबर संजय और अमर के बीच बात चल रही थी।
"अंधेरी रात पहाड़ी रास्ता अचानक दूसरी ओर से एक गाय रास्ते पर आ गई। तभी सामने आ रही गाड़ी की रोशनी मेरे आँखों में चुभ गई और मैंने बैलेंस खो दिया। तभी मेरी गाड़ी सामने गाड़ी से टकरा गई। सज़ा तो मेरी रम्या को और मेरे बच्चों को भुगतनी पड़ी। मेरे बच्चे बिन माँ के अनाथ हो गए। अब तुम आज़ाद हो। समय गलत था एक पल में सब कुछ खत्म हो गया।
- बच्चे कैसे हैं साहब?
- ठीक हैं। अब दोनों ही बड़ी हो गई। बड़ी ने पूरा घर को सँभाल लिया है। बिल्कुल उसी समय अनुराधा दौड़कर आई , "डॉक्टर, अवन्तिका बेबी स्कूटर से टकरा गई है। और बहुत चोट आई है।
अवि और यहाँ, वह कब आई? थोड़ी ही देर पहले। जब आप किसी से बातकर रहे थे। वह सीधे आपकी कमरे में आई और तुरन्त रोते हुए सड़क पर चली गई और...
जब संजय दौड़कर बाहर आया तब तक अवन्तिका को किसी ने उठाकर पार्क के एक बेंच पर बिठा दिया था।
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डॉ.संजय को यह पता भी नहीं था कि दूसरे कमरे में अवन्तिका उनकी सारी बात सुन चुकी थी। रम्या की एक्सीडेंट से मौत हो जाना, वह एक्सीडेंट संजय के शराब पीकर गाड़ी चलाने से होना एक के बाद एक बाद बातें परत दर परत खुल रही थी और उसी वक्त अवन्तिका की वहाँ मौजूदगी संयोग बन गई थी।
जैसे-जैसे इन्हीं बातों की जानकारी अवन्तिका के कानों तक पहुँच रही थी उसके कदमों के नीचे जमीन खिसक रही थी। वह अपने डैड को बिना फ़ोन किये अचानक आ पहुँची थी। जिससे एक सत्य सदमा बनकर अवन्तिका पर पहाड़ फ़टने जैसा घातक साबित हुआ। जिस सच को अपने बच्चों से अभी तक छुपाये रखा था उसकी सच्चाई सामने आ गई और जिन्दगियाँ बिखरनी ही थी।
"ये धोखा है हमें छलाया गया है, माँ यूँ ही नहीं मरी, वह मारी गई। सड़क हादसा उसका कारण बना, लेकिन यह टाला जा सकता था अगर पापा शराब न पीए होते। मेरे पापा ही माँ की मौत के दोषी हैं। मेरे पापा माँ की मौत का.... उफ्फ।" उसके मन में चल रही उथल-पुथल को कैसे सँभालती जो कि कभी उसे आया ही नहीं।
उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था। वह बुरी तरह काँप रही थी। इतने में रास्ते चलते एक दो पहिए वाहन से टकराकर सड़क पर गिर पड़ी। वह होश खो बैठी थी कि वाहन चालक राकेश ने रास्ते पर गाड़ी छोड़कर उसे दोनों हाथों से उठाकर सामने पार्क के बेंच पर बिठाया। और पानी सींचकर होश में लाया। होश में आते ही वह 'दीदी' कहकर रोने लगी। राकेश उसे सामने क्लिनिक पर चलने के लिए कहा लेकिन अवन्तिका कुछ भी सुनने की हालात में नहीं थी। राकेश उसके घर वालों का नम्बर पूछने पर उसने अपनी दीदी का नम्बर दिया। राकेश ने उस नम्बर को फ़ोन लगाया अवि की अनन्या से बात कराई।
जैसे ही डॉ.संजय को इस बारे में पता चला वह दौड़कर बाहर आये। अवन्तिका को बिठाकर उसके पैर में सूजन के लिए जाँच करने लगे। लेकिन अवन्तिका ने उनके हाथ को हटा दिया।अवन्तिका ने उन्हें छूने तक की इजाजत नहीं दी। सिस्टर अनुराधा फर्श्ट एड बॉक्स ले आई।
डॉ.संजय अनन्या के कहने पर चिंतित होकर अपने क्लीनिक की ओर दो कदम बढ़ाये लेकिन उनके पैरों ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिए। और एक पत्थर की बेंच पर वहीं बैठ गए। उनमें हिम्मत नहीं थी अपने टूटते परिवार को छोड़कर क्लिनिक में जाने की। उनके आँखों के सामने गहरा अंधेरा छा गया था। वह एक मुर्ति की तरह वहीं बैठे रहे। ना सोचने की शक्ति थी ना कुछ कहने का होश। वे अपने बच्चों को टूटते देख रहे थे पर कुछ करने की क्षमता उनमें नहीं थी।
बहुत देर तक अवन्तिका सिसकती रही। जब उसका सिसकना बंद हुआ अनन्या ने उसको शांत करते पूछा, "अवि तुम तो बंगलोर जाने की परमिशन लेने आई थी फिर क्या हो गया?"
अवन्तिका मुश्किल से बताया कि वह सुबह घर से सीधे डिस्पेंसरी पहुँची तब सिस्टर ने कहा पापा लैब में किसी अंकल से बातकर रहे हैं। उसने सोचा अंदर जाऊँ या नहीं। पहले कमरे में ही बैठी रही। गर्मी से पसीना छूट रहा था तब सिस्टर ने पापा के कमरे में बैठने को कहा। जब मैं अंदर गई पापा और अंकल दोनों की बातें सुनाई दे रही थी। उस दौरान पापा कह रहे थे कि उनसे एक्सीडेंट हो गया था और माँ चल बसी। "दीदी माँ .. माँ का एक्सीडेंट हुआ था।"
- हाँ ये तो पहले से जानते हैं ना।
- एक्सीडेंट ऐसे ही नहीं हुई थी दी आप क्यों समझ नहीं रही। पापा की वजह से माँ की मौत हुई है। .... "
- प..पापा ने ..... मतलब? क्या कहना चाहती है तू?
- पापा शराब पीकर गाड़ी चला रहे थे दी। शराब पीकर दुर्घटना करी थी जिससे माँ की मौत हो गई।
अनन्या को बात समझ में आने में थोड़ी देर लगी।
- हाँ दीदी माँ का एक्सीडेंट यूँ ही नहीं हुआ था पापा शराब पीकर गाड़ी चला रहे थे। माँ के मना करने के बावजूद। अगर माँ की बात सुनकर गाड़ी न चलाते तो ऐसा नहीं हुआ होता। माँ आज हमारे साथ होती दीदी। पापा की वजह से माँ इस दुनिया से चल बसी। वह पापा ही थे जिसने हमें अनाथकर दिया दीदी। कहते हुए रोँ पड़ी।
- यह सब तुम्हें किसने बताया?
- दीदी मैने पापा को किसी से बात करते सुना।
- कौन थे वह?
- न... नहीं दी वह कौन थे मैने न... नहीं देखा, मैंने पीछे से देखा वह कोई 45साल के होंगे। उनके बा.. बाल थोड़े सफेद हो गए थे। उनकी बातें सुनकर मुझे बहुत डर लगा दी मैं ने रोते हुए वहाँ से चली आई। यहाँ पहुँच कर आप को फ़ोन किया। हो सकता है मुझे वापस आते हुए डैड ने देखा हो या सिस्टर अनुराधा ने डैड को बताई हो।
अनन्या पत्थर सी बैठ गई। उसके सीने पर सिर रखे अवन्तिका रोँ रही थी। कुछ ही दूरी पर संजय बेंच पर बैठे हुए थे। उनमें कोई हलचल नहीं थी। उनके होंठ बड़बड़ा रहे थे 'अब क्या होगा? अब क्या होगा? कैसे समझाऊँगा बच्चों को?'
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सिस्टर अनुराधा परेशान थी कि रोगियों को कैसे वापस भेजे? वे सब बहुत देर से बैठकर संजय का इंतज़ार कर रहे थे। दोपहर का समय था। उसने सभी को माफी माँगते हुए डॉक्टर की किसी इमरजेंसी के कारण अनुपस्थिति बताकर सब को जाने के लिए कहा। लेकिन उन लोगों ने डॉक्टर से मिले बिना जाने से इनकार कर दिए। अनुराधा ने दुर्योधन को फ़ोन कर सारी बात बताई और संभव हो तो आने को कहा। कुछ ही समय में दुर्योधन अपनी गाड़ी लेकर वहाँ पहुँचे। दुर्योधन ने संजय की जूनियर डॉक्टर को बुलाकर उन्हें केस सँभालने को कहा और अनुराधा से पूछा, "सिस्टर संजय कहाँ है?"
उसने अवन्तिका को रोते हुए बाहर जाना और उसके पीछे डॉ.संजय के चले जाने की घटना दुर्योधन को बतायी।
- अब अवन्तिका कहाँ है? कैसी है? घबराकर दुर्योधन ने पूछा।
- अवंतिका उस पार्क में है। डॉ.संजय उसके पीछे गए थे।
- अच्छा ठीक है मैं देखता हूँ। कहकर बड़े-बड़े कदमों से पार्क की ओर चल दिये। पार्क में संजय को ढूँढ़ा पर वहाँ कोई नहीं दिखे। दुर्योधन ने डॉ.संजय को फ़ोन लगाया पर फ़ोन कोई नहीं उठाया। डॉ.संजय के न दिखने से वह वापस अपनी गाड़ी की तरफ जा रहे थे कि डॉ.संजय को रास्ते के दूसरे तरफ पार्क की बेंच पर बैठे हुए देखा।
अनन्या अवन्तिका को लेकर जा चुकी थी। जाते हुए उन दोनों ने पापा की ओर एक नज़र देखा और आगे बढ़ गईं। डॉ.संजय उनकी नज़रों में घृणा का साया देखकर सहन नहीं कर सके। वह वैसे ही उसी जगह पत्थर की तरह बैठे रहे।
दुर्योधन ने संजय के पास आकर कँधे पर हाथ रखकर हिलाया। फिर उनका हाथ पकड़ कर वहाँ से उठा कर घर की ओर ले गए। संजय एक मशीन की तरह दुर्योधन के साथ चलते हुए उन की गाड़ी में बैठे। रास्ते में संजय की हालत देखते हुए दुर्योधन कोई सवाल नहीं किया। डॉ.संजय भी कुछ कहने सुनने की स्थिति में नहीं थे। दुर्योधन ने डॉ.संजय को घर के अंदर ले जाकर सोफे पर बिठाया और रसोई से पानी लेकर दिया। घर में किसी के होने की कोई आवाज़ नहीं था।
उन्होंने अनन्या को फ़ोन लगाया। फ़ोन बहुत देर तक बजती रही लेकिन कोई उठाया नहीं। कुछ देर बाद अनन्या अवन्तिका को लेकर घर पहुँची। वह अवन्तिका के हाथ पकड़कर उसे धीरे उसके कमरे में ले गई। डॉ.संजय और डॉ दुर्योधन को देख हमेशा की तरह हँस नहीं पाई, चुपचाप अंदर चली गई।
अवन्तिका को पलँग पर बिठाकर "अवि! इंजेक्शन दिला दिया है लेकिन 2 दिन सँभलकर रहना होगा। अपना ध्यान रखना मैं हल्दी वाली दूध ले आती हूँ।" कहकर किचेन से गरम दूध लेने चली गई।
- दीदी !
- बोलो अवि
- अब हम क्या करेंगे?
- तुम उस बारे में चिंता मत करो। मुझ पर छोड़ दो। अब तुमको आराम की जरूरत है। कुछ देर सो जाओ उठने के बाद सोचते हैं क्या करना है। अनन्या ने उसे दूध पिलाकर कम्बल ओढ़ाकर बाहर आई।
सीढ़ियाँ उतरते ही दुर्योधन ने बुलाया, "बेटा अनु अवि कैसी है।"
अनन्या सिर हिलाकर "ठीक है" कहा।
- "बेटा अवि और संजय का ख्याल रखना। कोई भी जरूरत पड़े तो मुझे फ़ोन करना।"
- "जी।" अनन्या ने सिर हिलाकर सहमती जताई।
दुर्योधन समझ गया उस गंभीर माहौल में कुछ कहना सुनना उनके बीच गलतफहमी बढ़ा सकता है इसलिए अनन्या और डॉ.संजय को कुछ समय अकेले छोड़ना ही ठीक समझा।
दुर्योधन जानते थे जब सच सामने आयेगा तो कुछ ऐसा ही होगा। और जितनी जल्दी सच सामने आजाए तो उतना अच्छा है। बल्कि इन् सारी बातों को बच्चों के सामने कबूल करने की हिम्मत डॉ.संजय में नहीं थी। इसलिए कभी इस बारे में उन्होंने कहने की हिम्मत भी नहीं की। और जब सच सामने आया अवन्तिका का संजय को एक गुनहगार की नज़र से देखना बरदाश्त नहीं हो रहा था।
अनन्या पानी पीने किचन में गई। पूरा दिन किसी ने कुछ भी नहीं खाया था। फ़्रिज से बोतल निकाल कर पानी पीकर संजय के लिए गिलास भर पानी उनके सामने टेबल पर रखकर पलट रही थी संजय ने उसे आवाज़ दिया। अनु रुक गई।
"बेटा मेरी वजह से ...... तुम्हारी माँ ... लेकिन यकीन मानो जिस दिन यह घटना हुई उस दिन मैंने इतना भी नहीं पिया था कि होश खो बैठूँ। रात का वक्त था और हल्की सी बारिश थी। रास्ता कोहरे से भरा हुआ था। सामने से आते हुए एक गाय को बचाते हुए मेरी गाड़ी सामने से आती गाड़ी से टकरा गई। दोनों गाड़ी को गहरी चोट लगी। मैंने जब खुद को सँभाला देखा तुम्हारी माँ के माथे पर गहरी चोट लगी थी। तुरंत मैने दुर्योधन को फ़ोन किया। दुर्योधन ड्राइवर राम को भी साथ ले आये। फिर बाद में क्या हुआ मुझे भी पता नहीं। जब आँखें खुली तब दुर्योधन सामने था। मैंने जैसे ही रम्या के बारे में पूछा उसने सिर झुका दिया। कुछ नहीं कहा। बार बार पूछता रहा लेकिन तब तक रम्या की प्राणवायु हवा में मिल चुकी थी।"
संजय टूटकर बैठ गए फिर भी खुद में कहने लगे - जो भी हो मेरी ही वजह से तुम दोनों ने अपनी माँ को खोया है। मुझे जो भी सज़ा देना चाहो दे सकते हो। मैं तुम दोनों का गुनहगार हूँ।" कहते हुए आँख पोंछे।
अनन्या की आँखों से अश्रु बह रहे थे। सब कुछ सुनने के बाद कुछ कहने की हालत में नहीं थी। वह चुपचाप अपने कमरे में जा कर दरवाज़ा बंदकर ली।