इस छोटे से कस्बे में सभी ओर अमन और शांति थी । अब्दुल, सविता को बहन मानता था, सुखिया, रज्जाक को चच्चा कहता था और गफ्फुर व मनोहर की दोस्ती की मिसाले दी जाती थी । जूते गाॅंठने वाला गोविन्द अक्सर पं. रामदीन की दालान मे ही सो जाया करता था । इस गाॅंव में शायद ही कोई किसी की जाति पूछता हो । भला हो सरकारी कागजों का उनसे ही जाति का पता चलता था । ऐसा भी बिल्कुल नहीं था कि अब्दुल, गफ्फूर और रज्जाक दाढ़ी न रखते हो या मस्जिद की सीढ़ियाॅं न चढ़ते हो । सविता, रेखा भी करवा चौथ से लेकर होली तक के त्यौहार ना मनाती हो या सुखिया और मनोहर नवरात्रि में उपवास न रखते हो । इस कस्बे में सभी अपने धर्म का बरसों से पालन करते हुए दूसरों का आदर करते रहे थे । जब सविता के बच्चे की तबियत खराब हुई तो वो उसे पास की मजार पर झाड़ा लगवाने ले गई । अब्दुल ने भी उसके लिये हनुमान जी को नारियल चढ़ाना कबुला था ।
इस कस्बे में बरसों से खाली पड़े जमीन के टुकड़े पर बहुत सोच-समझ कर एक ओर मंदिर और दूसरी ओर मस्जिद का निर्माण सभी लोगाें ने मिल-जुल कर किया था । अब अक्सर मंदिर और मस्जिद की ओर जाने वाले बीच में बने चबूतरे पर साथ-साथ बैठ जाते ।
यहीं बातचीत होती, खैनी आदि होती और तो और कुछ बुर्जुगवार शतरंज जैसे खेलों में मग्न देखे जाते । अज़ान के साथ ही अब्दुल, गफ्फूर और रज्ज़ाक आदि नमाज़ अदा करने जाते तो आरती के समय सुखिया, मनोहर आदि चबूतरे की जगह मंदिर में होते ।
एक दिन मस्जिद को नेताजी ने लाउडस्पीकर दान में दे दिया । यह बात भी चबुतरे पर ही सबको मालूम चली । मनोहर बहुत खुश हुआ और बोला ‘‘चलो अब अज़ान होगी तो पूरा कस्बा सुनेगा ------’’ वो कान पर हाथ रखकर जोर से बोला ‘‘अल्लाह हो अकबर--------’’ अब्दुल बोला - ‘‘मनोहर ----- कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी ऊॅंची आवाज़ मंदिर में पूजा करने वालों के लिये परेशानी का सबब बन जाए।’’ मनोहर ने जवाब दिया ‘‘कैसी बात करते हो अब्दुल भाई, तुम जिसे इबादत कहते हो हम उसे ही पूजा । तुम्हारी पूजा से हमारी पूजा में परेशानी कैसे हो सकती है ।’’ सबने मिलकर यह निर्णय ले ही लिया कि लाउडस्पीकर मस्जिद पर आज ही लगेगा । बस फिर क्या था मनोहर, गफ्फूर और गोविंद ने मिलकर आनन-फानन में ही मस्जिद पर लाउडस्पीकर लगा दिया । सबसे पहले मनोहर ने ही ‘‘हैलो --------- हैलो------------ हैलो माइक टेस्टिंग’’ कहते हुये माइक टेस्ट भी किया । पं. रामदीन ने नए लाउडस्पीकर की खुशी में सबका मॅुह भी मीठा करवाया । जब कस्बे के बच्चे अज़ान से अलार्म का काम लेने गए । कभी कस्बे में दुःख की घड़ी होती तो अज़ान बिना लाउडस्पीकर के ही होती । इससे दुःखी परिवार के प्रति संवेदना प्रकट की जाती ।
एक दिन एक सफेद कार मंदिर के सामने आकर रूकी । पं.रामदीन ने देखा भगवा वस्त्रों में कोई प्रभावशाली महानुभाव है । इन महानुभाव ने भी मंदिर को लाउडस्पीकर देने की घोषणा कर दी । बस फिर क्या था महानुभाव के प्रस्थान के पूर्व ही पहले की ही तरह मनोहर, गोविंद और गफ्फूर ने मंदिर पर लाउडस्पीकर लगा दिया । इस बार गफ्फूर ने माइक टेस्ट किया और रज्जाक ने मॅुह मीठा कराया । महानुभाव को शायद यह दृश्य पसंद नहीं आता। वे जल्दी ही वहाॅ से प्रस्थान कर गए। अब कस्बे में दो लाउडस्पीकर अपनी-अपनी बात जोर से करते। मस्जिद वाला पहले की ही तरह अज़ान करता और मंदिर वाला आरती और भजन-कीर्तन के समय कस्बे के वातावरण को पवित्र करता।
इस बार रमजान और नवरात्रि साथ है । सभी अपने-अपने मुकद्दस और पवित्र दिनों की इबादत या पूजा के लिए तैयार थे। इसी समय क्षेत्र में राजनैतिक सरगर्मियाॅ भी चुनावों को देखते हुर बढ़ रही थी। कुछ रोज़ों के बाद नवरात्रि की बैठकी आ गई। आज कस्बे में अज़ान के साथ ही साथ देवी गीत भी गूंजते रहे। शाम को रोज़ा इफ्तार के बाद और माॅ दुर्गा की रात्रि पुजन से पूर्व सभी चबूतरे पर बैठे तो मंदिर में चल रहे जस के कारण किसी से कोई बात ही नहीं कर पा रहा था। लाउडस्पीकर के शोर में रज्जाक सुखिया को कुछ बोलता तो गोविंद उसको कुछ और ही जवाब देता। गफ्फुर को लगा कि यदि मंदिर के लाउडस्पीकर को थोड़ा घुमा दिया जाये तो सब बातचीत कर सकेंगे। गफ्फुर पुरे अपनेपन के साथ मंदिर पर लगे लाउडस्पीकर को खोलकर उसका मुॅह दूसरी ओर करने लगा। बस.............. न जाने कहाॅ से महानुभाव प्रगट हो गए और चिल्ला-चिल्ला कर बोले ‘‘देखो-देखो ये तुम्हारा लाउडस्पीकर उतार रहा है’’ लाउडस्पीकर खुला हुआ था, गफ्फुर, महानुभाव के कथन से घबराया हुआ, लाउडस्पीकर हाथ से छूटकर नीचे गिरा........... धड़ाम से। गफ्फूर अब भी ऊपर ही था। महानुभव ने भीड़ को उकसाना प्रारंभ कर दिया। गफ्फूर मंदिर की छत पर सहम गया। इधर नेताजी भी प्रकट हो गए। अपनी बिरादरी के व्यक्ति याने गफ्फूर पर होने वाले संभावित हमले को देखते हुए कुछ युवक मंदिर की ओर बढ़ने लगे। महानुभाव और नेताजी अपने-अपने पक्ष को ललकारने और उकसाने लगे। नेताजी और महानुभव की गाड़ियों में रखे शस्त्र युवकों के हाथ में आ गए। अब शस्त्रों से लैंस दोनों ओर के युवा आमने-सामने थे। अमन का चबूतरा महानुभाव और नेताजी की चालों का शिकार हो गया और लाउउस्पीकर के लिए खूनी संघर्ष का गवाह बनने जा रहा था।
संघर्ष अब हुआ कि तब हुआ बरसों की दोस्ती संघर्ष में आड़े आ रहीं थी। फिर भी उत्तेजना दोनों ओर थी। अभी लाउडस्पीकर पर आवाज आई ‘‘सभी लोग जहाॅ है वही रहे’’ ये मस्जिद का लाउडस्पीकर था और रज्जाक बोल रहा था। ‘‘मस्जिद पर देखो .........’’ सभी ने देखा मनोहर मस्जिद का लाउडस्पीकर खोल रहा था। बिरादरी के युवक मस्जिद की ओर गुस्से से बढ़े । रज्जाक बोला ‘‘मनोहर लाउडस्पीकर उतार लो इबादत के लिए इसकी कोई जरूरत नहीं। गफ्फुर तुम मंदिर का मनोहर तुम मस्जिद का लाउडस्पीकर महानुभाव को और नेताजी को दे दो। कस्बे के साथियों हम सब इन दोनों को लाउडस्पीकर के साथ कस्बे के बाहर तक छोड ़के आयेगे। रज्जाक की यह बात भीड़ में खड़ी सलमा, रेखा के साथ-साथ सबको अच्छी लगी। कुछ ही समय पश्चात् दो बंद लाउडस्पीकरों के साथ महानुभाव और नेताजी की एक विशाल रैली निकाली गई और उन्हें लाउडस्पीकरों के साथ ही कस्बे से बाहर छोड़ आ गया। अब कस्बे के लोग रमजान व नवरात्रि पर चबूतरे पर मिल-जुल कर आनंद ले रहे है।
आलोक मिश्रा "मनमौजी"
इस छोटे से कस्बे में सभी ओर अमन और शांति थी । अब्दुल, सविता को बहन मानता था, सुखिया, रज्जाक को चच्चा कहता था और गफ्फुर व मनोहर की दोस्ती की मिसाले दी जाती थी । जूते गाॅंठने वाला गोविन्द अक्सर पं. रामदीन की दालान मे ही सो जाया करता था । इस गाॅंव में शायद ही कोई किसी की जाति पूछता हो । भला हो सरकारी कागजों का उनसे ही जाति का पता चलता था । ऐसा भी बिल्कुल नहीं था कि अब्दुल, गफ्फूर और रज्जाक दाढ़ी न रखते हो या मस्जिद की सीढ़ियाॅं न चढ़ते हो । सविता, रेखा भी करवा चौथ से लेकर होली तक के त्यौहार ना मनाती हो या सुखिया और मनोहर नवरात्रि में उपवास न रखते हो । इस कस्बे में सभी अपने धर्म का बरसों से पालन करते हुए दूसरों का आदर करते रहे थे । जब सविता के बच्चे की तबियत खराब हुई तो वो उसे पास की मजार पर झाड़ा लगवाने ले गई । अब्दुल ने भी उसके लिये हनुमान जी को नारियल चढ़ाना कबुला था ।
इस कस्बे में बरसों से खाली पड़े जमीन के टुकड़े पर बहुत सोच-समझ कर एक ओर मंदिर और दूसरी ओर मस्जिद का निर्माण सभी लोगाें ने मिल-जुल कर किया था । अब अक्सर मंदिर और मस्जिद की ओर जाने वाले बीच में बने चबूतरे पर साथ-साथ बैठ जाते ।
यहीं बातचीत होती, खैनी आदि होती और तो और कुछ बुर्जुगवार शतरंज जैसे खेलों में मग्न देखे जाते । अज़ान के साथ ही अब्दुल, गफ्फूर और रज्ज़ाक आदि नमाज़ अदा करने जाते तो आरती के समय सुखिया, मनोहर आदि चबूतरे की जगह मंदिर में होते ।
एक दिन मस्जिद को नेताजी ने लाउडस्पीकर दान में दे दिया । यह बात भी चबुतरे पर ही सबको मालूम चली । मनोहर बहुत खुश हुआ और बोला ‘‘चलो अब अज़ान होगी तो पूरा कस्बा सुनेगा ------’’ वो कान पर हाथ रखकर जोर से बोला ‘‘अल्लाह हो अकबर--------’’ अब्दुल बोला - ‘‘मनोहर ----- कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी ऊॅंची आवाज़ मंदिर में पूजा करने वालों के लिये परेशानी का सबब बन जाए।’’ मनोहर ने जवाब दिया ‘‘कैसी बात करते हो अब्दुल भाई, तुम जिसे इबादत कहते हो हम उसे ही पूजा । तुम्हारी पूजा से हमारी पूजा में परेशानी कैसे हो सकती है ।’’ सबने मिलकर यह निर्णय ले ही लिया कि लाउडस्पीकर मस्जिद पर आज ही लगेगा । बस फिर क्या था मनोहर, गफ्फूर और गोविंद ने मिलकर आनन-फानन में ही मस्जिद पर लाउडस्पीकर लगा दिया । सबसे पहले मनोहर ने ही ‘‘हैलो --------- हैलो------------ हैलो माइक टेस्टिंग’’ कहते हुये माइक टेस्ट भी किया । पं. रामदीन ने नए लाउडस्पीकर की खुशी में सबका मॅुह भी मीठा करवाया । जब कस्बे के बच्चे अज़ान से अलार्म का काम लेने गए । कभी कस्बे में दुःख की घड़ी होती तो अज़ान बिना लाउडस्पीकर के ही होती । इससे दुःखी परिवार के प्रति संवेदना प्रकट की जाती ।
एक दिन एक सफेद कार मंदिर के सामने आकर रूकी । पं.रामदीन ने देखा भगवा वस्त्रों में कोई प्रभावशाली महानुभाव है । इन महानुभाव ने भी मंदिर को लाउडस्पीकर देने की घोषणा कर दी । बस फिर क्या था महानुभाव के प्रस्थान के पूर्व ही पहले की ही तरह मनोहर, गोविंद और गफ्फूर ने मंदिर पर लाउडस्पीकर लगा दिया । इस बार गफ्फूर ने माइक टेस्ट किया और रज्जाक ने मॅुह मीठा कराया । महानुभाव को शायद यह दृश्य पसंद नहीं आता। वे जल्दी ही वहाॅ से प्रस्थान कर गए। अब कस्बे में दो लाउडस्पीकर अपनी-अपनी बात जोर से करते। मस्जिद वाला पहले की ही तरह अज़ान करता और मंदिर वाला आरती और भजन-कीर्तन के समय कस्बे के वातावरण को पवित्र करता।
इस बार रमजान और नवरात्रि साथ है । सभी अपने-अपने मुकद्दस और पवित्र दिनों की इबादत या पूजा के लिए तैयार थे। इसी समय क्षेत्र में राजनैतिक सरगर्मियाॅ भी चुनावों को देखते हुर बढ़ रही थी। कुछ रोज़ों के बाद नवरात्रि की बैठकी आ गई। आज कस्बे में अज़ान के साथ ही साथ देवी गीत भी गूंजते रहे। शाम को रोज़ा इफ्तार के बाद और माॅ दुर्गा की रात्रि पुजन से पूर्व सभी चबूतरे पर बैठे तो मंदिर में चल रहे जस के कारण किसी से कोई बात ही नहीं कर पा रहा था। लाउडस्पीकर के शोर में रज्जाक सुखिया को कुछ बोलता तो गोविंद उसको कुछ और ही जवाब देता। गफ्फुर को लगा कि यदि मंदिर के लाउडस्पीकर को थोड़ा घुमा दिया जाये तो सब बातचीत कर सकेंगे। गफ्फुर पुरे अपनेपन के साथ मंदिर पर लगे लाउडस्पीकर को खोलकर उसका मुॅह दूसरी ओर करने लगा। बस.............. न जाने कहाॅ से महानुभाव प्रगट हो गए और चिल्ला-चिल्ला कर बोले ‘‘देखो-देखो ये तुम्हारा लाउडस्पीकर उतार रहा है’’ लाउडस्पीकर खुला हुआ था, गफ्फुर, महानुभाव के कथन से घबराया हुआ, लाउडस्पीकर हाथ से छूटकर नीचे गिरा........... धड़ाम से। गफ्फूर अब भी ऊपर ही था। महानुभव ने भीड़ को उकसाना प्रारंभ कर दिया। गफ्फूर मंदिर की छत पर सहम गया। इधर नेताजी भी प्रकट हो गए। अपनी बिरादरी के व्यक्ति याने गफ्फूर पर होने वाले संभावित हमले को देखते हुए कुछ युवक मंदिर की ओर बढ़ने लगे। महानुभाव और नेताजी अपने-अपने पक्ष को ललकारने और उकसाने लगे। नेताजी और महानुभव की गाड़ियों में रखे शस्त्र युवकों के हाथ में आ गए। अब शस्त्रों से लैंस दोनों ओर के युवा आमने-सामने थे। अमन का चबूतरा महानुभाव और नेताजी की चालों का शिकार हो गया और लाउउस्पीकर के लिए खूनी संघर्ष का गवाह बनने जा रहा था।
संघर्ष अब हुआ कि तब हुआ बरसों की दोस्ती संघर्ष में आड़े आ रहीं थी। फिर भी उत्तेजना दोनों ओर थी। अभी लाउडस्पीकर पर आवाज आई ‘‘सभी लोग जहाॅ है वही रहे’’ ये मस्जिद का लाउडस्पीकर था और रज्जाक बोल रहा था। ‘‘मस्जिद पर देखो .........’’ सभी ने देखा मनोहर मस्जिद का लाउडस्पीकर खोल रहा था। बिरादरी के युवक मस्जिद की ओर गुस्से से बढ़े । रज्जाक बोला ‘‘मनोहर लाउडस्पीकर उतार लो इबादत के लिए इसकी कोई जरूरत नहीं। गफ्फुर तुम मंदिर का मनोहर तुम मस्जिद का लाउडस्पीकर महानुभाव को और नेताजी को दे दो। कस्बे के साथियों हम सब इन दोनों को लाउडस्पीकर के साथ कस्बे के बाहर तक छोड ़के आयेगे। रज्जाक की यह बात भीड़ में खड़ी सलमा, रेखा के साथ-साथ सबको अच्छी लगी। कुछ ही समय पश्चात् दो बंद लाउडस्पीकरों के साथ महानुभाव और नेताजी की एक विशाल रैली निकाली गई और उन्हें लाउडस्पीकरों के साथ ही कस्बे से बाहर छोड़ आ गया। अब कस्बे के लोग रमजान व नवरात्रि पर चबूतरे पर मिल-जुल कर आनंद ले रहे है।
आलोक मिश्रा "मनमौजी"