The truth of life in Hindi Motivational Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | जीवन का सत्य

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जीवन का सत्य

जीवन का सत्य

एक सुप्रसिद्ध महात्मा जी से एक नेताजी ने पूछा कि वे चाहते है कि उनकी मृत्यु के बाद भी उनके परिवार का भविष्य व्यवस्थित रहे। महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि व्यक्ति केवल सोच सकता है, प्रयास कर सकता है लेकिन अंतिम निर्णय और परिणाम तो ईष्वर और भाग्य के हाथ होता है। तुम स्वयं अपना भविष्य नही जानते और दूसरों के भविष्य की चिंता कर रहे हो। यह दुनिया जब तक व्यक्ति जीवित है तब तक कुछ और होती है और उसकी आंख मुंद जाने के बाद कुछ और हो जाती है। यदि तुम इसका अनुभव करना चाहते हो तो कर सकते हो लेकिन वह बहुत कटु होगा। किसी प्रकार तुम प्रचारित कर दो और लोगों को यह विश्वास दिला दो कि तुम्हारी मृत्यु हो गई है।

नेताजी ने महात्मा जी की बात मानकर एक दिन नाव पर बैठकर नदी पार करते समय बीच में ही नदी में छलांग लगा दी। वे भीतर ही भीतर तैरकर चुपचाप इस प्रकार उस पार हो गए कि लोगों को लगा कि नेताजी नदी में डूबकर मर गए है। यह खबर सभी जगह फैल गई। उनके घरवालों को जैसे ही पता चला सबसे पहले वे उनकी उस तिजोरी की चाबियाँ खोजने लगे जिसमें उनके देश और विदेश में जमा करोडों रूपयों के कागजात थे। वे जनता को दिखाने के लिए तो रो रहे थे परंतु वे वसीयत और अन्य जरूरी जायदाद से संबंधित कागजात एवं बंटवारें के संबंध में आपस में लगे हुए थे। नेताजी के जो अनुयायी थे वे धीरे धीरे दूसरे नेताओं के चमचे बन गए। नेताजी जिस पद पर थे, अब उस पर कोई दूसरा नेता आसीन हो गया था और मन ही मन नेताजी के मरने से खुश हो रहा था। उनके न रहने के कारण ही यह पद खाली हो गया था और उसे प्राप्त हो गया था।

नेताजी का जो धन व्यापारियों के पास लगा हुआ था, उसने उस पर चुप्पी साध रखी थी और उसे हडप लिया था। नेताजी ने अपने पद पर रहते हुए लागों के काम करवाने की जो घूस ली थी, वे सभी लोग उन्हें भ्रष्टाचारी और हरामखोर बतलाते हुए मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहे थे। इस प्रकार किसी को भी न ही उनकी मृत्यु का दुख था और न ही कोई उनका अभाव महसूस कर रहा था। नेताजी चुपचाप वेश बदलकर जीवन का सत्य देख रहे थे। इससे उनकी आत्मा को बडा कष्ट हुआ और उनका हृदय परिवर्तन हो गया। वे महात्मा जी के पास पहुंचे और उनके चरण छूकर बोले कि मुझे जीवन की वास्तविकता का अनुभव हो गया है। अब मुझे अपने परिवार, मित्रों तथा तथाकथित षुभचिंतकों व हितैषियों की वास्तविकता मालूम हो गई है। इतना कहकर वे अनजाने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर गए एवं वापिस उस षहर में कभी नही आए।

महात्मा जी ने उन्हें समझा दिया थ कि जीवन मे मृत्यु के उपरांत सकारात्मक, सृजनात्मक एवं रचनात्मक कार्य जो मानव जनहित में करता है वही याद रखे जाते है। उसका स्वयं का अस्तित्व मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाता है। सिर्फ अच्छे कर्मो से ही उसका नाम स्मृति में रहता है।