पुस्तक समीक्षा
उपन्यास – जर्नी टू द सेंटर ऑफ अर्थ,
लेखक -जूल्स वर्न,
अनुवादक- श्री आलोक कुमार जी ।
जूल्स बर्न ने इस उपन्यास को एक विज्ञान कथा और यात्रा वृतांत के मिले जुले रूप में लिखा है। इस यात्रा वृतांत में आपको अबूझ पहेलियाँ, जानकारियाँ, अनजाने रहस्य मिलेंगे।
इसी के साथ ही अत्यंत जीवट वाले हैन्स का चरित्र अत्यंत प्रेरणात्मक है यदि उसके जैसे जीवट वाले, कर्मठ लोग हो सकें तो क्या नहीं बन सकते हैं। क्या नहीं कर सकते हैं पर ये सिर्फ कर्मठ लोगोन को प्रदर्शित करते हैं जब इनके साथ दिमाग अर्थात साइंटिस्ट अंकल, और अनुसरण करने वाले दिमाग और थोड़ी मेहनत भी दोनों का समावेश होने वाले नायक तीनों मिल जाते है तो बनती है यादगार कहानी, जर्नी टू द सेंटर ऑफ अर्थ। हैन्स का पात्र अपने चरित्र द्वारा बहुत सारे संदेश देता है। वह इन भूगर्भ के अंतिम छोर तक की यात्रा करने वाले यात्रियों के साथ क्यों गया !! उसने अपनी जान जोखिम क्यों डाली यह जब आप इस किताब को पढ़ेंगे, तब जानेंगे।
यह उपन्यास कहानी और यात्रा वृत्तांत को जोड़ कर ऐसे लिखा गया है कि बूढ़े बच्चे और सभी उम्र के लोगों द्वारा पढ़े जाने योग्य बन गया है। इस तरह से लिखा गया है इसके सभी पात्र, साथ ही पूरी घटनाएँ लगता है कि हमारी आँखों के सामने घट रहीं हैं।
“यदि परिस्थितियाँ न बदल सकें तो मन की स्थिति बदल लीजिये।”
यही बात लागू होती है इस उपन्यास के नायक पर। उसके बहुत होशियार, परंतु खडूस, साइंटिस्ट अंकल हैं जो नायक को अपने साथ ऐसी यात्रा अर्थात धरती के भीतर उसके भीतरी अंतिम छोर तक की यात्रा पर ले जाते हैं। जहां कई बार मृत्यु के दर्शन होते हैं लगता है कि अब बस नायक और उसके साथियों का अंत सुनिश्चित है।
मृत्यु से साक्षात्कार अच्छे हिम्मती नौजवानो को हिला कर रख देता है तो फिर अंकल तो प्रौढ़ उम्र के थे पर जहां लगन पक्की हो वहाँ कुछ भी आड़े नहीं आता है । न उम्र, न ससन्धानों की कमी। बस हौसले बुलंद होने चाहिए।
पाठक भी सांस रोक कर पढ़ता हुआ नायक के साथ उस लोक में विचरण करता है, जब कि नायक तो अपनी प्रेमिका, और उनकी भतीजी के साथ अपना संसार बसाना चाहता था, पर यहाँ आकर अंकल के साथ कठिन परिस्थितियों में फंस जाता है। जहां भूगर्भ के अंतिम छोर तक नीचे भयंकर तापमान में, मैग्मा तक जाना है। लगता है कि अब कभी भी यात्री बाहर जीवित नहीं आ पाएंगे?
बस यही जाने के लिए पढ़ना होगी यह किताब!! कि क्या-क्या घटनाएँ घटीं!! वे क्या परिस्थितियाँ थीं, जिनसे वे दो चार हुए।
इसमें एक पहेली भी है, जिसे नायक के साथ पाठक स्वयं भी डीकोड करता हुआ आगे बढ़ता है, जिससे दिमाग की अच्छी कसरत होती चलती है और पाठक को भी यह कसरत पसंद आती है। यदि पुस्तक में ऐसी कुछ हट कर चीजें होती हैं, जैसे पहेली, कविता, गीत, या चित्र तो पुस्तक और अधिक पठनीय बन जाती है। इसके द्वितीय संस्करण जो प्रकाशित होकर आ गया है, उसमें यात्रा से संबन्धित अनेक चित्रों का भी समावेश किया गया है जो एक प्लस पॉइंट है।
यह अनुवाद करने वाले लेखक आलोक कुमार जी का कमाल है। इनके अनुवाद ने सरल, सुंदर और सजीव शब्दों में इस उपन्यास को पाठकों के सामने रखा है। जिससे इसे पढ़ना और भी रोचक और आसान हो जाता है। यह हिन्दी साहित्य पढ़ने वालों के लिए एक सौगात है। वरना दूसरी भाषाओं में भी बहुत सुंदर और प्रेरक, दिमाग को स्फूर्ति प्रदान करने वाला साहित्य भरा पड़ा है ।
पर हिन्दी भाषी लोगों के लिए पढ़ने का सरंजाम, तब तक नहीं हो पता जब तक कि कोई साहित्य का जानकार अनुवाद न कर दे और अनुवाद भी माशा अल्लाह नहीं, बिलकुल ज्यों का त्यों, वरन उस किताब से भी अधिक रोचक, जीवंत। बस यही किया है आलोक कुमार जी ने।
इस उपन्यास में कहानी अपने साथ अनेक तरह की उत्सुकताएं, अनेक रोचक घटनाएँ लेकर चलती है, कई बार जिनको पढ़ते हुए पाठक दम साध कर पढ़ता ही जाता है। यह एक यात्रा वृतांत भी है जिसे एक बेहतरीन कहानी में ढाल कर लिखा गया है। जिसको पढ़ते हुए पाठक कब अंत तक जा पहुँचता है, पता ही नहीं चलता।
पृथ्वी के छिपे गर्भ की यात्रा के बहाने, वहाँ भीतर की गहराइयों में क्या-क्या हो सकता है? हीरे, जवाहरात, सोना, मगरमच्छ, चट्टानें, गुफाएँ, यह सब पढ़ने ही आगे पता चलेगा।
कुछ सिद्धांतों की व्याख्या, नए बनते प्रतिमान और कुछ पुराने टूटते सिद्धांत, जिन के कारण किताब रोचक बन सकी है ये सब इस उपन्यास में मिलेंगे। इसे पढ़ते हुए उत्सुकता अंत तक बनी रहती है कि आगे क्या होगा?
क्या धरती में भूगर्भीय सागर होते हैं? वहाँ पर कौन निवास करता था? अभी है कोई वहाँ रहने वाला जो उपन्यास के नायक को वहाँ मिलता है? विभिन्न बड़े आकार के जानवर, पशु , पक्षी, महा दानव इनका वर्णन अपने आप में अनोखा है। नायक वैज्ञानिक और उसके साथी कैसे लौटे? लौट पाये या उतने गर्म तापमान में बचे या नहीं? क्या होता है?
श्री आलोक कुमार जी एक जाने माने लेखक हैं इन्होंने इसके पढ़ने से पता चलेगा पहले ‘द चिरकुट’ और ‘राजकुमारी और शैतान बौने’ लिखकर प्रसिद्धि प्राप्त की है। इन्होंने जो अनुवाद किया है वह अत्यंत रोचक और जीवंत है। आलोक जी मेरी ओर से बहुत बधाई।
अंत मैं बताना चाहती हूँ कि इस उपन्यास को पब्लिश किया है #फ़्लाइड्रीम्सपब्लिकेशन ने जो अपने आप में जाना माना नाम है और हमेशा रोचक और कुछ अलग, #किताबेंहटकरके लाते हैं पाठकों के लिए। कवर बहुत सुंदर और आकर्षक है। आशा करती हूँ कि आलोक जी आगे भी ऐसी ही और किताबें लेकर आएंगे। किताब से जुड़े सभी नामों को मेरी बधाइयाँ।
कहानीकार- शोभा शर्मा।