TANABANA 24 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | तानाबाना - 24

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तानाबाना - 24

24

हर की पौङी के घाट पर ही कुछ पल यादें साझा कर खन्नी चाची और खन्ना चाचा तो चले गये पर इन सबको यादों के गहरे समंदर में गोते लगाने के लिए छोङ गये । रवि अपने पाकपटन के घर, अपने मंदिर, घर की गली और उस गली के दोस्तों की यादों में खो गया जिनके साथ उसका बचपन बीता था और जवानी आने से पहले ही सब छूट गया था । मंगला को अपना सतघरा याद हो आया तो उसकी आँखें गीली हो गयी । सुरसती अलग बैठी अपनी रुलाई रोकने की असफल कोशिश कर रही थी । किशन अपने छोटे भाइयों को साथ ले गंगा में उतर गया और तीनों भाई लहरों पर तैरने लगे । धर्मशीला सीढीयों पर बैठी लहरों का आना जाना देखती रही । आखिर थक गयी तो उसने भाइयों को पुकारा ।

इस बीच सूरज की लाल किरणें पीली होने लगी थी । घाट के घंटाघर पर दस बज रहे थे । आखिर सब सामान समेटा गया और ये लोग मंसादेवी के दर्शन करने चल पङे । तब रोपवे या सीढी की सुविधा नहीं थी । लोग पैदल ही भजन, भेंटें गाते दुर्गम रास्ते पार करते । श्रद्धा से ओतप्रोत होकर हर मुश्किल को पार करते हुए ये लोग सोलह मील पैदल चलकर पहाङ की चोटी पर स्थित मंदिर में पहुँचे । माथा टेक मन्नत का धागा बाँधा । तबतक एक बज रहा था । वहीं मंदिर की परिक्रमा में बैठ कर झोले से निकाल सबने कुछ मठरी, शक्करपारे खाए और नीचे लौट पङे ।

बाजार की सजी दुकानों वाली टेढी मेढी तंग गलियों से होते हुए ये लोग दक्ष मंदिर देखने के लिए कनखल जा निकले । कनखल राजा दक्ष प्रजापति की राजधानी मानी जाती है । सती माँ यहाँ की राजकुमारी बेटी थी जिसने तप करके भगवान शंकर को पति रुप में प्राप्त किया । और पिता द्वारा भगवान शिव का अपमान होने पर पिता द्वारा स्थापित यज्ञकुंड में आत्मदाह कर लिया । कनखल में पितरों के निमित्त तर्पण किया जाता है । यहाँ प्रसिद्ध शिव मंदिर और सतीकुंड के दर्शन पूजा अर्चना कर ये लोग वापिस लौटे ।

लौटते हुए वे मायापुरी में योगमाया के दर्शन करने भी गये । मायादेवी का मंदिर शक्तिपीठ सती के शिव के प्रति प्रेम का भी गवाह है । यहाँ माँ सती की नाभी गिरी थी इसलिए यहाँ तंत्र साधना होती है इसलिए इसे सिद्धस्थल कहा जाता है । यहाँ भैरव बाबा का थान भी है । कहा जाता है कि नगरकोतवाल भैरव के दर्शन के बिना माँ योगमाया के दर्शन का फल नहीं मिलता । .

गौरी-शंकर महादेव का मंदिर हरिद्वार के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलो ..में से एक है ।.इस मंदिर के बारे में प्रसिद्ध है कि शंकर जब सती को ब्याहने आए थे तो यहीं ठहर किए थे । इस मंदिर का उल्लेख शिवपुराण में भी मिलता है । .

अगले दिन गंगा स्नान के बाद वहाँ से एक इक्का किराए पर लिया गया । इक्कावाला उन्हें हरिद्वार और उसके आसपास के सभी दर्शनीय स्थल दिखाने ले गया । भीमगोडा जहाँ मंझले पांडव भीम ने एकादशी का निर्जल व्रत रखा था । और सप्तर्षि जहाँ तपलीन सात ऋषियों के प्रति सम्मान दिखाने के लिए गंगा मैया सात धाराओं में बँट गयी थी । आज भी सप्तधारा में नदी की सात धाराएँ स्पष्ट दिखाई देती है । जह्नु ऋषि का आश्रम जिनके कारण गंगा जाह्नवी कहलाई ।

यहाँ देखने योग्य तो अनगिनत स्थान थे पर सभी जगह जाना संभव न था । समय का अभाव था इसलिए बाकी क्षेत्र अगली बार देख लेंगे, ऐसा सोचकर ये लोग लौट पङे । वापस हर की पौङी घाट पर आए तो माँ गंगा की भव्य आरती की तैयारियाँ चल रही थी । नदी के शीतल जल में पाँव डुबाकर उन्होंने भी आरती देखी । पवित्र जल में पत्तों के दोने से बने नौका दीप अद्भुत दृश्य उपस्थित कर रहे थे । सब दिव्य । सब अलौकिक । आरती के बाद मचलती बलखाती लहरों पर इन्होने भी दीपदान किया और बस पकङकर सहारनपुर लौट आए । ये ढाई दिन मानो स्वर्ग में बीते थे । तन मन एकदम प्रसन्न हो गया था । वापस आकर ये दो दिन और सहारनपुर रहे । इस बीच किशन का रिश्ता तय हो गया तो सबने इसे माँ गंगा, माँ मनसा और योगमाया की कृपा माना । तीसरे दिन ये दोनों फरीदकोट के लिए निकले । नानी और माँ ने इन्हें तरह तरह की सौगातें देकर विदा किया । फरीदकोट आकर

जिंदगी फिर से उसी दिनचर्या पर आ गयी ।