UJALE KI OR --15 in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर - 15

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उजाले की ओर - 15

 

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आ.स्नेही एवं प्रिय मित्रो

 सादर,सस्नेह नमन

     कई बार मन सोचता है कि हम आखिर हैं क्या?जीवन में उगे हुए ऐसे फूल जो शीघ्र ही मुरझा जाते हैं |किसी छोटी सी विपत्ति के आ जाने पर हम कुम्हला जाते हैं ,टूटने लगते हैं ,बिखर जाते हैं |वास्तव में यदि दृष्टि उठाकर अपने चारों ओर देखें तो पाएंगे कि हमारे चारों ओर लोग कितनी परेशानियों से घिरे हैं|जब हम उनकी परेशानियों को देखते हैं तब हम ऊपर वाले के प्रति  कृतज्ञ  होते हैं ,उसका धन्यवाद अर्पण करते हैं कि उसने तो हमें कितना कुछ दिया है ,अपनी रहमतों से नवाज़ा है ,हम पर अपने शुभाशीषों की बरसात की है फिर भी हम दुखी हो जाते हैं |

     मित्रो ! यह मानव-स्वभाव है हम सत्य और असत्य के परे भटकते हैं ,अनजानी काल्पनिक परेशानियों से जूझने लगते हैं और उसके परिणाम स्वरूप चैतन्य होने के उपरांत भी बार-बार शून्य पर

आ खड़े हो जाते हैं |चिंताओं से हम अपना मनोमस्तिष्क भर लेते हैं किन्तु क्या हम उन चिंताओं से मुक्ति प्राप्त कर पाते हैं ? नहीं न ? जीवन में जो कुछ भी घटित होना है वह सुनिश्चित है, यह बात सही है किन्तु एक और भी बात है और वह यह कि ईश्वर ने हमें अन्य जीवों के अतिरिक्त बुद्धि नामक एक ऐसा यंत्र प्रदान किया है जो हमें एक दिशा प्रदान करता है किन्तु इसके लिए हमें हर पल सचेत रहने की आवश्यकता होती है जो वास्तव में हम रह नहीं पाते |

     वर्षों पूर्व रेलगाड़ी में एक  लड़की मिली थी ,नाम तो अब स्मृति में नहीं है |उसके दो छोटे बच्चे

खूब शैतानी कर रहे थे |मैं भी उनके साथ उनकी शरारतों में सम्मिलित हो गई |हम सब खूब हँस-बोल रहे थे ,गाने गा रहे थे |वह लड़की भी कुछ इस प्रकार मुझसे हिल-मिल गई कि मुझे लगने लगा मानो उससे कितनी पुरानी पहचान थी | बच्चे कुछ देर खेल-खाकर थक गए थे ,उन्हें नींद ने घेर लिया |

     लड़की अपने बारे में बातें करने लगी |न जाने कितने कष्टों ,मानसिक त्रासों से घिरी थी |मैं उसकी बातचीत का अंदाज़ देखकर यह कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि वह लगभग पच्चीस –छब्बीस वर्ष की युवा लड़की भीतर से इतनी टूटी हुई होगी | मैं तो उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा ही देखे जा रही थी | उसने अपने बारे में जो कुछ भी मुझसे साँझा किया मैं हतप्रभ रह गई |मात-पिता विहीन लड़की को मामा-मामी ने न जाने कितने कष्ट देकर पाला और उन्नीस वर्ष में उसका विवाह कर दिया |विवाह के पश्चात दो वर्षों के भीतर ही पति की जब ह्रदय-रोग से मृत्यु हुई ,तब उसके जुड़वां बच्चे गर्भ में ही थे |घर में जेठ-जिठानी मामी से भी क्रूर !अब जीवन विवाह से पूर्व से भी बद्तर था |

और सब तो वह किसी प्रकार झेल लेती किन्तु जब जेठ की कुदृष्टि उस पर पड़ने लगी और उसे ज्ञात हुआ कि उसके जेठ तथा जेठानी मिलकर उसके रूप व यौवन का लाभ लेना चाहते हैं | वे उसे अपने काम के लिए किसी न किसी के पास भेजते रहते थे |ईश्वर की कृपा तथा अपनी चेतना के सहारे वह दुष्ट लोगों की गिरफ्त में आने से बच गई |किन्तु वह बौखला गई थी और उसने अपनी सचेत बुद्धि से वहाँ से बच्चों सहित निकलने का निर्णय लिया| किसी प्रकार अवसर का लाभ उठाकर वह  उस घर नामक जेल से छुटकारा पाने के लिए भाग निकली |अब वह अपनी बालपन की मित्र के पास जा रही थी जिसने उसे आश्वासन दिया था कि वह उसे किसी कोई काम अवश्य दिलवा देगी |उसकी वह मित्र दिल्ली में किसी एनजीओ में कार्यरत थी |

“यदि वहाँ पर भी तुम्हें मुश्किल आई तो ?”मेरा उससे प्रश्न था |

“तो देखा जाएगा आंटी...जो नहीं है अभी उसके बारे में अभी क्यों सोचूँ ?”और वह मुस्कुरा दी |उसके बच्चे भी गाढ़ी नींद में सोते हुए मुस्कुरा रहे थे |मुझे उसके चेहरे पर वही बालपन की बेफिक्री तथा मासूमियत लगी जो उसके बच्चों के चेहरे पर तैर रही थी |

      मुझे लगा सच ही तो कह रही है हम कभी उन कठिनाइयों की केवल कल्पना करके ही परेशान हो जाते हैं जो अभी हमारे समक्ष आई भी नहीं होतीं |उसकी इस सोच ने मुझे बहुत प्रभावित किया और मुझे लगा कि वह जीवन जीने की कला में कितनी निपुण है ,हमें उससे कुछ सीखने की ज़रुरत है |

हाल ही में लिखे अपनी एक युवा मित्र के शेर की याद आई,आपके साथ साँझा कर रही हूँ;

न तोलिए मुझे मिरी इस मुस्कुराहट से 
अश्कों का गहरा नीला समंदर हूँ मैं.... ( Dimple Gaud Ananya)

     तो मित्रो जीवन में हर पल हमें न जाने कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है किन्तु अनदेखी ,अनजानी परिस्थितियों के बारे में सोचकर हम व्यर्थ ही हलकान होते रहें ,यह उचित नहीं | यह सीख मुझे उस युवा लड़की ने कुछ ही देर में दे दी थी ,अब मैं कितना उस पर अमल कर सकी ,यह तो ठीक से नहीं कह सकती किन्तु उसकी इस बात ने मुझे सोचने के लिए बाध्य अवश्य किया कि जो परेशानी अभी नहीं है उसके बारे में सोचकर हलकान होने से कोई लाभ नहीं होता |मनुष्य को अपने समक्ष आई हुई परिस्थिति का सामना करना ही होता है |

 हम सब उस क्षण में रहें जो हमारे समक्ष है,प्रसन्न रहें ,आनंद में रहें

 

                                 इतना ही

                              आप सबकी मित्र

                                डॉ.प्रणव भारती