प्राचीन काल से ही भारत में समुदायों के बीच भेदभाव देखा गया है। प्राचीन भारत ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शुद्र जातियों में विभक्त था। जिनके कार्य भी उनकी जाति के अनुसार विभक्त थे। जैसे केवल ब्राह्मण जाति को ही धार्मिक अनुष्ठान करने का अधिकार प्राप्त था। ब्राह्मण के घर जन्मा बच्चा भी जन्म-जात ब्राह्मण ही कहलाता था। इसके विपरीत शूद्र केवल सेवा करने के लिए बाध्य थे। शुद्रो को धर्म उपदेश पढ़ने का भी अधिकार नहीं था। इस प्रकार ब्राह्मण समुदाय का विकास होता गया और निम्न समुदाय के लोग निम्न ही रह गये। जब भारत आजाद हुआ तो इस भेदभाव को खत्म करने के लिए भारतीय सरकार ने संविधान में कुछ नियम बनाये। जिनका वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक में किया गया है।
इन अनुच्छेद के अनुसार किसी भी व्यक्ति को धर्म, लिंग, जाति व जन्म स्थान के आधार पर किसी सार्वजनिक सुविधा से वंचित रखना अपराध की श्रेणी में आता है।
देश में समानता होना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि असमानता के कारण देश के विकास पर नकारत्मक प्रभाव पड़ता है। इसका मुख्य कारण है कि योग्य व्यक्ति को अगर उसकी योगयता अनुसार मंच नही मिलेगा तो वह खुद को विकसित करने में असमर्थ रहेगा और उसके विकास पर ही देश का विकास निर्भर है। असमानता के कारण निम्न वर्ग के लोगों को उचित शिक्षा नहीं मिल पाती।
कभी कभी असमानता के कारण व्यक्ति के आत्म-सम्मान को भी क्षति पहुँचती हैं। जिसका उस पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकता हैं। सभी व्यक्तियों को स्वेच्छानुसार जीवन यापन करने का अधिकार होना चाहिए।
भारतीय संविधान द्वारा दिये जाने वाले कुछ अधिकार-
* धर्म, जाति, लिंग व जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव के खिलाफ़ अधिकार
* सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर का अधिकार
* अपने विचार व्यक्त करने, सभा करने, संगठन बनाने, आंदोलन करने की स्वतंत्रता
इन सब नियम कानून के बावजूद हम यह नहीं कह सकते कि असमानता पूर्ण रूप से समाप्त हो चुकी है। उदाहरण के लिए हम देख सकते हैं कि लिंग केवल पहचान के लिए नहीं वरन सामाजिक भेदभाव का कारण भी माना जाता है। चाहे कार्यस्थल हो, सार्वजनिक स्थान हो या कोई भी अन्य जगह स्त्री को अलग और पुरूष को तवज्जो दी जाती है।
जन्मस्थान के आधार पर भी सामाजिक भेदभाव देखा जाता है। जब कोई पूर्वोत्तर राज्य का व्यक्ति उत्तर या मध्य भारत में आता है तो लोग उसे अलग नजर से देखते हैं, चीनू चिंगी नाम से उन्हें संबोधित करते हैं और कोई उत्तर भारत का व्यक्ति दक्षिण भारत जाता है तो उन्हें वह चालाक, लड़ाकू वाला माना जाता है।
हम देखते हैं कि जब भी कोई व्यक्ति अपने स्थान से दूर दूसरे स्थान जाता है तो उसे भेदभाव का सामना करना ही पड़ता है।
यही नहीं भाषा, रंग-रूप, पहनावे आदि के कारण भी लोगों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है, बेशक़ हमारे संविधान में इसके खिलाफ़ कितने ही कानून क्यों न हो।
इस सबका कारण शायद पूर्वाग्रह हो सकता है, किन्तु कारण जो भी रहा हो सवाल यह है कि क्या भविष्य में यह भेदभाव कभी समाप्त हो पाएगा ???