Expressions - Evening and Youth in Hindi Short Stories by Yatendra Tomar books and stories PDF | अभिव्यक्ति - शाम और युवक

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अभिव्यक्ति - शाम और युवक

यह शाम भी बीती पिछली दो शामो की तरह ही उमस भरी थी। इसी उमस भरी शाम में एक युवक अपने घर की छत के पिछले हिस्से पर पड़ी हुई एक पुरानी बैंच पर बैठा हुआ था, बैंच का एक पैर कुछ छोटा था जो अन्य पैरों से संतुलन नहीं बना पा रहा था। यह वही बैंच थी जो उसके पिता ने उसके लिए बनबाई थी जब वो किशोर हुआ करता था, बैंच का आकार कुछ तरह दिया गया था ताकि उसे पढाई और कसरत दोनों के लिए ही उपयोग में लाया जा सके। युवक ने अपने मुख को पश्चिम दिशा की ओर कर रखा था जहाँ से वो दिनभर तपने के बाद क्षितिज की ओर बढ़ते सूरज को निहार रहा था,साथ ही हरे रंग से रंगे धान के खेतों को भी, पहाड़ भी छत से साफ-साफ दिखाई दे रहे थे जो बस कुछ ही दूरी पर बसे थे, बीच-बीच में बगुलों और चिड़ियों की कई कतारें एक के बाद एक गुजरे जा रही थी, तभी उसका ध्यान दूर आकाश में मंडराते काले बादलों पर गया पर गौर से देखने पर पता चला कि ये कोई बादल नहीं बल्कि फैक्ट्रीयों का उगला हुआ धुआँ था, उन्हीं फैक्ट्रियों का जिनमें हम मनुष्यों की तथाकथित जरुरतों और उपभोग की वस्तुएँ बनती हैं, वहीं धुआँ जो कोयले के जलने पर आता है जिसे धरती के वक्ष को भेद कर निकाला गया था। युवक ने अभी-अभी जिन हरे खेतो,पक्षीयो,पहाड़ों और जहरीले धुएँ को देखा वो स्वयं के सापेक्ष इन सभी दृश्यों का कुछ सामंजस्य बैठा रहा था और इस सामंजस्य ने उसे उस बिंदु पर ला पटका, जिससे धरती पर कभी पहली बार जीवन की शुरुआत हुई होगी,कैसे धीरे धीरे प्रकृति निर्मित हुई होगी, कैसे जीव जगत और मनुष्य बना होगा,कैसे मनुष्य पेड़ों और पहाड़ों की ओट में सोया करता था और चार पैरों पर चलता था, पत्तीयां और कंदमूल इत्यादि खाया करता था फिर कैसे धीरे धीरे मनुष्य की विकास यात्रा आगे बढ़ी, उसने आग की खोज कर ली ,पहिये की खोज कर ली ,नदीयो के किनारे खेती करना सीख लिया। जैसे जैसे बुद्धि विकसित होती गयी मानव अपनी सुगमता को बढ़ाता गया और शनै: शनै: भोगी बन गया और अब मनुष्य उस मुकाम पर खड़ा है जहाँ वो प्रकृति, समस्त जीवों और स्वयं का भी शोषण ही कर रहा है जिस प्रकृति को बनने में करोड़ों साल लगे उसे मनुष्य ने अल्प समय में ही उजाड़ दिया, जंगलों को मरूस्थल बना दिया , हिमखंडो को गला दिया, आकाश में कोसो मील दूर सुरक्षा परतों में छिद्र बना दिए ,प्रकृति से हमने अपने पुरातन रिश्ते को तोड दिया शायद ये सब उसी का परिणाम है,ये सब बातें युवक के मन पर आघात भी कर रही थी, युवक अभी भी विचार कर ही रहा था कि एकाएक मंदिर की घंटी की आवाज़ से उसका ध्यान टूटा,उसने देखा कि अंधेरा और भी घना हो चुका था और फिर वो युवक उस पुरानी बैंच को वहीं रिक्त छोड़कर उठ गया और एक गहरी सांस लेते हुए भीतर ही भीतर किसी को नमन करता हुआ चल दिया, किसी नये दृश्य की ओर।