Hostel Boyz (Hindi) - 1 in Hindi Comedy stories by Kamal Patadiya books and stories PDF | Hostel Boyz (Hindi) - 1

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Hostel Boyz (Hindi) - 1

प्रस्तावना : 20वीं सदी की शुरुआत में हमारे जीवन का एक नया अध्याय शुरू हुआ। हॉस्टल लाइफ का अनुभव मेरे जीवन में नया था और मैं इसे लेकर बहुत उत्साहित था। मैंने Graduation किया और Post Graduation करने जा रहा था। नया शहर, नया कॉलेज, नया हॉस्टल, नए सहपाठी और नए दोस्त। आज के मोबाइल युग में जब मोबाइल का आविष्कार नहीं हुआ था तब जीवन में जो मजा था वह मैं आपके सामने पेश कर रहा हूं| हर दिन नए अनुभव, नई चुनौतियां और नए रोमांच मेरे हॉस्टल के जीवन का एक प्रमुख हिस्सा बन गए थे। उन अवसरों को याद करके हम आज भी रोमांचित हो जाते है।

हॉस्टल में सभी लोगों के साथ रहना एक अलग अनुभव है। विभिन्न शहरों के लोगों के बीच, अलग-अलग बोलियों के साथ, अलग-अलग जीवन शैली के साथ रहना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन सब कुछ भूल कर एक-दूसरे से मिलना और मिलाना हमारी भारतीय संस्कृति की पहचान है। मेरी राय में, सभी को जीवनकाल में एक बार हॉस्टल का अनुभव करना चाहिए। उससे जीवन के विभिन्न दृष्टिकोण और पहलुओं का अनुभव होता है।

हॉस्टल लाइफ के उतार-चढ़ाव, कई मौके आपको जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं। यह आपको जीवन में स्वतंत्र बनाते है, जीवन की नींव रखते है, जो बहुत महत्वपूर्ण बात है। स्वतंत्रता, आत्म सम्मान, जागरूकता, अनुशासन, एकता जैसे गुणों को विकसित करता है। जैसे मूर्तिकार एक पत्थर को हथौड़े और शिनीसे तोड़के उसमे से मूर्ति बनाता है वैसे ही हॉस्टल लाइफ आपको मजबूत बनाता है। सचमुच हॉस्टल लाइफ के अनुभव अद्वितीय, अवर्णनीय और अद्भूत थे।

हॉस्टल का वर्णन : मेरा हॉस्टल राजकोट शहेर के मध्य में पंचनाथ प्लोट विस्तार में स्थित था। पास में ही पंचनाथ महादेव का मंदिर स्थित था। हॉस्टल की पिछली सड़क पर हनुमानजी की देरी थी। हॉस्टल लगभग 1000 गज के एक विस्तार में था। हॉस्टल भवन का निर्माण पुराना था, लेकिन बहुत मजबूत था और एक महल की तरह 2 मंजिलों के साथ एक पुरानी हवेली जैसा था। हॉस्टल में 50 से 60 छात्रों के लिए पर्याप्त कमरे थे। हॉस्टल के मुख्य द्वार के पास छोटे पौधों और पेड़ों के साथ एक बडा Ground था। हम कभी-कभी वहां पर क्रिकेट खेला करते थे। हॉस्टल के अंदर पहुँचने से पहले एक लंबी चाली पड़ती थी। हॉस्टल के अंदर पहुंचते ही एक बड़ा भोजनालय और कन्वीनर का कार्यालय था। भोजनालय में हॉस्टल के सभी लोग एक साथ भोजन लेते थे। छात्रों के लिए अध्ययन कक्ष नीचे की मंजिल पर था जबकि ऊपर की ओर (दूसरी मंजिल पर) काम करने वाले लोगों के लिए कमरे थे। हॉस्टल को छात्रों, शिक्षार्थियों और कामकाजी लोगों के तीन समूहों में विभाजित किया गया था। हॉस्टल के कमरे की छत लगभग 20 फीट ऊंची थी और कमरे लगभग 20 फीट चौड़े और 40 फीट लंबे थे। हॉस्टल के कमरे इस प्रकार थे जैसे कि एक शानदार हवेली के कमरे। प्रत्येक कमरे में पांच से छह लोगों को आराम से समायोजित करने के लिए पर्याप्त थे। वायु परिसंचरण के लिए बड़ी खिड़कियां थीं। कमरे में पंखा, बिस्तर, मेज आदि भी प्रदान किए गए थे। पुराने छात्रों के नाम हॉस्टल के कमरों की दीवारों पर बॉलपेन या उत्कीर्णन के साथ उकेरे गए थे, जैसा कि पुराने दिनों में प्रथा थी। कमरा अच्छी तरह हवादार था। हॉस्टल में पीने के पानी के लिए एक बड़ा फिल्टर था।
हॉस्टल के पीछे सर्दियों में गर्म पानी के लिए एक बड़ी चिमनी और खाना पकाने के लिए एक बड़ी रसोईघर के साथ एक बड़ा आंगन था। टॉयलेट और बाथरूम, कन्वीनर कार्यालय के पीछे की ओर की गली में स्थित थे। हॉस्टल में लगभग 60-70 लोग रहते थे, जिनमें से 15-20 छात्र थे। हमारे हॉस्टल की एक विशेषता यह थी कि हर कोई एक दूसरे को उसके गाँव के नाम से जानता था जैसे कि प्रीतेश दीव, चिराग पंचासर, भाविन जूनागढ़ आदि ...


हॉस्टल के दूसरे मंजिल पर कमरों के बीच एक बड़ा प्रार्थना होल था। हॉस्टल में रोज़ सुबह और शाम की प्रार्थनाएँ होती थीं। अन्य छात्रावासों की तरह, इस हॉस्टल के भी नियम थे जिनका सभी को पालन करना था। हम छात्रों को उसमें से थोडी रियायत दि गयी थी। हॉस्टल में नियमों के बावजूद हम लोग एक दूसरे के कमरे में बिना किसी रोकटोक के जा सकते थे। हॉस्टल में मॉनिटर हॉस्टल के लोगों का ध्यान रखता था। मॉनिटर को सुनिश्चित करना होता था कि हॉस्टल में सभी लोग नियमों का पालन करें। हॉस्टल में पान, मावे, फाकी, तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट पीना सख्त मना था। वैसे तो हमारे हॉस्टल में मॉनिटर का बहुत महत्व नहीं था, लेकिन इसकी वजह से हॉस्टल के लोग थोड़े अनुशासन में रहते थे।


हॉस्टल में बाहर से बहनें खाना बनाने, कूड़ेदान और बर्तन धोने के लिए आती थीं। हॉस्टल में सभीको अपने अपने कपड़े खूद ही धोने पड़ते थे। हां, अगर आपके पास पैसा है तो आप बाहर कपड़े धुलवा सकते हैं। लेकिन ज्यादातर लोग हॉस्टल में ही अपने कपड़े धोते थे। दोपहर के समय हॉस्टल में लोगो को सोने की अनुमति नहीं थी वैसे ही रात 11 बजे के बाद हॉस्टल से किसी को भी बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। हॉस्टल के लोगो के लिए सुबह में केवल दूध मिलता था, अगर किसीको चाय पीनी हो तो उसको बाहर होटल में जाना पड़ता था।

क्रमश: