Desire to live in free air in Hindi Women Focused by r k lal books and stories PDF | खुली हवा में जीने की तमन्ना

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खुली हवा में जीने की तमन्ना


खुली हवा में जीने की तमन्ना

आर0 के0 लाल


इन्दु ने नितिन से कई बार अपने बैवाहिक जीवन के बारे में बात की लेकिन उसे नहीं लगा कि वे

दोनों एक दूसरे के साथ ज्यादा समय तक रह पाएंगे। इसलिए उन दोनों ने पूरा मन बना लिया था कि एक दूसरे से अलग हो जाएँ। शादी के तीन साल बीत जाने के बाद भी उनमें कोई सामंजस्य नहीं हो सका था। आपस में उन्हें एक दूसरे पर कोई विश्वास नहीं रह गया था। इन्दु तो बहुत बातें सह लेती थी परंतु नितिन कभी कम्प्रोमाइज़ नहीं करता था। इसलिए वे आगे का रास्ता स्वयं अलग –

अलग तय करना चाहते थे। जहां इन्दु अपने भाग्य को कोसती थी वहीं नितिन इन्दु के चरित्र पर शक करता था। इन्दु चाहती थी कि उनके डिवोर्स होने से पहले उसकी किसी दूसरे शहर में एक अच्छी जॉब लग जाए और वह नितिन से दूर चली जाए। इन्दु ने इसी इरादे से पूना के एक कंपनी में नौकरी के लिए आवेदन किया था । साक्षात्कार के लिए उसे एक दो दिन के लिए पूना जाना था इसलिए उसने नितिन के एक पुराने दोस्त नीरज को अपनी व्यवस्था कराने के लिए कह दिया था ।

नितिन का दोस्त होने के नाते नीरज उसकी वाइफ़ इन्दु से पहले एक दो बार मिल चुका था लेकिन

उसके बारे में कम ही जानता था। इन्दु को नीरज के बारे में शायद सब कुछ पता था । नीरज उसे लेने बस स्टॉप गया था और बस अड्डे पर उसके आने का इंतजार करता रहा , करीब आधे घंटे के बाद इन्दु की कॉल आयी और पूछा, “आप कहाँ पर हैं? नीरज जाकर उससे मिला, हेलो किया। इन्दु के साथ उसकी फ्रेंड दिशा भी आई थी। सभी कार से लगभग दस मिनट में नीरज के फ्लैट पर पहुंच गए जहां वह अकेला ही रहता था । उसकी शादी हो चुकी थी मगर किसी हादसे में उसकी पत्नी का निधन हो गया था और अभी तक उसने दूसरी शादी नहीं की थी। ।

इन्दु के साथ मिलकर नीरज के दिल को एक अलग ही फील हुआ वो देखते ही मन को भा गयी । उसने देखा कि वह बहुत ही सरल स्वभाव की महिला थी । सादे ड्रेस में वह बहुत ही शालीनता पूर्वक व्यवहार करती हुई दिखाई पड़ रही थी। न जाने क्यों उसको देख कर नीरज बहुत थ्रिल और एक्साइटमेंट महसूस कर रहा था। घर पहुँच कर नीरज ने कहा, तुम लोग बैठो मैं तुम लोगों के लिए चाय बना देता हूं”। इन्दु ने कहा, “अभी नही, पहले मैं फ्रेश होऊंगी और आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। मैं और मेरी दोस्त दिशा दोनों मिल कर चाय भी बनाएँगे और खाना भी”। फिर दिशा ने चाय बनाई और इन्दु ने अपने साथ लायी हुयी मिठाई और नमकीन सबके लिए निकाला। चाय पीते हुये सब गप्पे मार रहे थे। बातें करते करते कब शाम हो

गयी पता ही नही चला। दिशा ने कहा कि नीरज जी , कही बाहर चलते हैं । साथ मे डिनर भी बाहर ही करके आएंगे। सब राजी हो गए । वे सभी शाम करीब सात बजे घूमने गए और दस बजे तक डिनर करके वापस आ गए। अभी तक इन्दु ने नितिन के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला था। न जाने नीरज को क्यों लग रहा था कि इन्दु का बैवाहिक जीवन ठीक नहीं चल रहा था।

बिस्तर पर लेटने के बाद नीरज इन्दु के बारे में देर तक सोचता रहा और सो गया। रात को करीब एक बजे रूम में कुछ आहट सुनाई दी। देखा तो वो इन्दु ही थी। वह नीरज से बोली मुझे नींद नहीं आ रही है। नीरज ने कहा , तुम्हें एतराज न हो तो थोड़ी कोल्ड ड्रिंक ले कर कुछ बातें करते हैं। फिर पछा कि क्या बियर चलेगी? इन्दु ने मना कर दिया तो पेप्सी लेकर दोनों बातें करने बैठ गए। पहले नीरज ने उसे अपनी फैमली और पत्नी के हादसे के बारे में बताया और फिर बताया कि कैसे पूना में वह सेटल

हो गया है क्योंकि उसे पूना के पिम्परी एरिया में ही अपना काम करना पड़ रहा है। नीरज ने पूना की खास खास जगहों के बारे में तथा उसका इतिहास इन्दु को बताया । उसने बातों बतों में कह दिया कि एडवेंचर लोगों को और लवर्स को वहाँ सब कुछ मिलेगा और लोग अपने पार्टनर के साथ वहाँ कुछ खास पल बिताने जाते हैं। नीरज ने कहा, “अगर एक दिन का समय निकालो तो मैं तुम लोगों को कुछ जगहें घूमा दूँगा”। यह सुन कर इन्दु की आँखों में एक अलग तरह की चमक आ गयी थी, बोली ठीक है। फिर उसने नीरज की गर्लफ्रैंड के बारे में पूछ लिया तो नीरज ने कहा वह एक गाँव से है और उसे ऐसी कोई मिली ही नहीं जिसे वह अपनी गर्ल फ्रेंड मान पाता। फिर नीरज ने उससे पूछा, “तुम्हारा नितिन के साथ कैसा चल रहा है “? उसने बात काटते हुए कहा फिलहाल मैं अपने केरियर पर ध्यान देना चाहती हूँ। उसने बात बदल दी और चिमबली का रास्ता पूछने लगी जहां कल उसका इंटरव्यू था।

दूसरे दिन सब लोग सुबह सुबह तैयार होकर चिमबली के लिए निकल गए। उस कंपनी का पूना में एक रियल इस्टेट का बिजनेस था। उनका ऑफिस संभालने के लिए कोई महिला चाहिए थी जो क्लाइंट को अच्छे से हैंडल कर सके और साथ ही एक प्राइवेट सेक्रेटरी का भी काम कर सके। इन्दु सब मनाने को तैयार थी मगर उसे कंपनी के क्वार्टर में अकेले रहना पसंद नहीं था , इसलिए बात नहीं बनी। इन्दु बहुत निराश थी। इससे पहले भी वह जिस जगह नौकरी करती थी वहाँ का माहौल भी अच्छा नहीं था। वह कह रही थी आज सभी की नियत खराब ही होती है। लगता है मुझे कोई अच्छी

नौकरी नहीं मिलेगी। नीरज मन ही मन सोच रहा था कि अगर मौका लगा तो मैं इन्दु को अपने यहाँ नौकरी का ऑफर दे दूंगा । न जाने क्यों नीरज इन्दु की तरफ आकर्षित हो गया था। उसने सोचा कि यदि इन्दु उसकी हो जाए तो वह उससे शादी भी कर सकता था। मगर क्या इन्दु नीतिन को छोड़ कर उसके पास आएगी? इन्दु को देख कर उसे लग रहा था कि वह भी नितिन के साथ खुश नहीं है।

नीरज इन्दु से इस बारे में बात करना चाहता था।

दूसरे दिन सुधा के सिर में दर्द हो रहा था इसलिए नीरज केवल इन्दु को पूना दिखने ले गया । वे आगा

खान पैलेस गए। पूरा महल देखने के बाद दोनों कैंटीन में चाय पीने बैठे तो नीरज ने छेड़ दिया कि अपने बारे में बिस्तार से बताओ। मैं तुम्हारी दिल से मदद करना चाहता हूँ मगर तुम्हें अपनी कहानी एकदम सच बतानी होगी।

इन्दु ने बताया, “बचपन से मैं बहुत अभागी रही हूँ और बहुत कष्ट सहे हैं। सभी ने मेरा फायदा उठाया और फिर मतलब निकल जाने के बाद छोड़ दिया । अपनी कहानी बताते हुये इन्दु की आंखे आँसू से डबडबा गईं जिसे वह बार बार अपनी रूमाल से पोंछती रही और नीरज सब कुछ सुनता रहा। इन्दु ने बताया, “ मेरा बचपन बम्बई में ही गुजरा है । मेरे दो बड़े भाई भी मेरे साथ ही रहते थे। पिता जी एक मिल में काम करते थे। मुझे बचपन में ही लड़कों वाले स्कूल में डाल दिया गया था, इसलिये मुझे लड़कों में थोडा भी इंटरेस्ट नही था । मुंबई में लड़कियां कुछ जल्दी ही बड़ी हो जाती है उनके रहन-सहन का अंदाज और पहनावा उनमें एक अलग किस्म का आकर्षण पैदा करता है, मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। मेरी चाल के लड़के मुझे हमेशा घूरा करते थे। मैं बचपन से बहुत खूबसूरत थी,

मेरी खूबसूरती मेरे लिए कई दफे अभिशाप बन गई थी। सभी लोग मेरे तरफ अट्रेक्ट होते और फिर मुझसे मेलजोल बढ़ाते। मैं उनकी बातों में अक्सर आ जाती थी और फिर न कुछ होते हुए भी मेरी चर्चा सभी जगह होती रहती। घर वालों ने दसवीं कक्षा के बाद मेरी पढ़ाई छोड़वा दी थी। मैंने यह महसूस किया था कि सिर्फ एक व्यक्ति की कमाई से पूरा परिवार चलाना मुश्किल हो रहा था इसलिए, मैंने एक डिपार्टमेंटल स्टोर में सेल्स गर्ल के रूप में नौकरी कर ली। उस समय मैं शायद पंद्रह या सोलह साल की रही हूंगी । स्टोर का मैनेजर सुहेल एक यंग लड़का था। उससे मेरी काफी पटने लगी और मेरी उससे थोड़ी बहुत व्यक्तिगत बातचीत भी होने लगी थी। वो अक्सर मुझसे डिपार्टमेंटल स्टोर का हिसाब किताब लेने के लिए मेरे घर तक आ जाया करता

था। धीरे धीरे मैं हर बात उससे शेयर करने लगी, मैंने उसे अपने पढ़ने की तमन्ना के बारे में भी बताया तो उसने वादा किया कि वह पढ़ाई करने में मेरी मदद करेगा। कुछ किताबें और करेस्पांडेंस कोर्सेस के प्रोस्पेक्टस भी उसने ला कर दिये। शायद इन सब कारणों से मैं ही सुहेल की ओर खिंच गयी थी। मुझे लगता कि सुहेल से मेरा प्रेम हो गया था । हमारे अफेयर के दो महीने नहीं हुए थे कि मुझे

ऐसा लगा कि वह प्रेम नहीं बल्कि सुहेल का एक शारीरिक आकर्षण था । मैंने सुहेल को कंविन्स करना चाहा लेकिन वह नहीं माना और कहा यह हम लोग का सच्चा प्यार ही है। कभी-कभी वह मुझे किस कर लेता तो मुझे लगता है कि सही में यह मेरा प्यार है। मैं मानने को तैयार नहीं थी कि उसका कैरेक्टर या मेरा कैरेक्टर खराब है। मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब उसकी दीवानी हो गयी थी।

वह मेरी ओर कुछ ज्यादा ही हाथ बढ़ा रहा था । उसने मुझे बहुत प्रलोभन दिए जिससे डयूटी के बाद मैं रोज सुहेल के साथ घूमा करती थी, हम दोनों मिलकर काफी ज्यादा हंसी-मज़ाक किया करते थे। एक दिन हंसी-मज़ाक करते हुए मैं उसके कहने में आ गई। फिर वह मेरा फायदा उठाने लगा मगर मैं कुछ बोल नहीं सकी। पहली बार मिली और पहली बार में ही गड़बड़ हो गया। मैंने अपनी मम्मी को

बताया । उन्होंने मेरी बहुत पिटाई की थी । अगले कुछ दिन मैं स्टोर नहीं गयी और सुहेल को बताया। मैं बहुत रोयी जिससे सुहेल परेशान जरूर हुआ मगर उसने कोई ज़िम्मेदारी लेने से साफ मना कर दिया। मेरी क्या दशा हुयी थी मैं बयान नहीं कर सकती। फिर कुछ दिनों बाद मेरी मम्मी ने कोई दवा ला कर मुझे खिलाई तब किसी तरह मुझे छुटकारा मिला।

उस समय मैं बहुत छोटी थी इसलिए मेरी काली करतूत की बात किसी को नहीं बताई गयी लेकिन घर में किसी को यह बर्दाश्त नहीं हुआ । घर वालों तो मुझे घर से बाहर ही निकालना चाहते थे। मैं रोती बिलखती एकदम अकेली पड़ी रहती थी । स्टोर भी नहीं जा सकती थी। मैं नहीं समझी थी कि मेरी स्थिति मेरी जरा सी गलती के कारण इतनी निराशाजनक हो जाएगी। मेरे लिए कोई सहारा नहीं बचा था। अपने देश में शादी के पहले जब कोई लड़की ऐसी स्थिति में फंस जाती है तो वह मामला उसके लिए और पूरे परिवार के लिए अभिशाप से कम नहीं होता है। ऐसे में मैं वहां अपने माँ बाप के घर पर कैसे रह सकती थी। मैंने अपना घर छोड़

दिया और अकेले ही बाहर चली गयी बिना किसी को कुछ बताए। मैंने कई घरों के दरवाजे खटखटाये जिनको मैं जानती थी । मगर किसी ने बात तक नहीं की। कोई मेरी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था। मुझे किसी कानून के बारे में भी पता नहीं था, मुझे नहीं समझ में आ रहा था कि खुद को जिंदा रखने के लिए कहां से मदद लेनी चाहिए। मैं अपने को एकदम असमर्थ और असहाय महसूस कर रही थी। तभी मुझे ध्यान आया कि मेरी एक चाची नासिक में रहती हैं। मैं दोपहर वाली गाड़ी से नासिक उनके घर पहुँच गयी । चाची एक

अस्पताल में नर्स थी , मैं उनके यहां रहने का अनुरोध किया। पहले तो वे तैयार नहीं हो रही थी परंतु उनकी डिलीवरी हुयी थी इसलिए उन्हें एक कामवाली चाहिए थी । काम करने वाली मिलना कठिन था इसलिए मुझे उन्होंने अपने घर पर रख लिया । उन्होंने मेरे घर वालों को फोन करके बता दिया कि मैं वहां पर हूं। घरवाले तो मुझसे छुटकारा चाहते ही थे । उन्होंने कोई बहुत ज्यादा एतराज

नहीं किया।

मेरी स्थिति ऐसी हो गयी थी कि जब मैं किसी को भी हँसते हुये देखती तो मुझे लगता कि वह मेरा मजाक उड़ा रहा है। मुझे लगा कि मेरा मानसिक संतुलन असहज हो रहा था। इसके बावजूद भी मैंने खुद को कमजोर नहीं होने दिया। मुझे लग रहा

था कि पढ़ाई-लिखाई करके मैं अपने जीवन में एक सकारात्मक बदलाव ला सकती हूं और अपनी जिंदगी को बेहतर कर सकती हूं। मैं हमेशा डिप्रेशन में रहती थी। चाची और उनके पड़ोसी सभी मेरा फायदा उठाना चाहते थे। किसी तरह मैं अपने को उनसे बचाए रखती। जब चाची का लड़का थोड़ा बड़ा हो गया तो मैंने फिर से अपनी पढ़ाई की शुरुआत की और पास के एक ही स्कूल में जाने लगी। अब मैं सिलाई करके चाची की आर्थिक मदद करती थी ताकि वे मुझे अपने पर बोझ न समझें । इस तरह मेरे सात आठ साल बीत गए। स्नातक पास होने के बाद मैं कोई प्रोफेशनल कोर्स करना चाहती थी। इसलिए मैंने बिना किसी को बताए बी ए का फार्म भर दिया। वह तो ईश्वर की कृपा थी कि मैं परीक्षा में बैठी और पहली दफा ही पास हो गई। चाची को पता चला तो वे इतनी खुश हुईं कि चाचा से फीस दिलाने का वादा कर लिया। ऐसा नहीं था कि मेरे माँ बाप ने हमें एकदम ही छोड़ दिया हो ,मेरे माता पिता और मेरा भाई हमेशा हमसे मिलने नासिक आते और जाते समय मेरी चाची को कुछ पैसे भी दे जाते। समय के साथ मैं अपनी गलतियों को भूल गयी थी। एक दिन मैं अपनी चाची के साथ नासिक के डिस्ट्रिक्ट डिसएबिलिटी रिहैविलटेशन सेंटर गयी जहां उस समय वे नर्स का काम करती थी। मुझे यह जानकार ताजुब्ब हुआ कि अपने देश में इतने ज्यादा विकलांग हैं । उनमें से ज्यादा की दशा भी अच्छी नहीं थी। उस सेंटर के कोआर्डिनेटर नितिन थे। मैंने देखा कि नितिन मुझे अपनी कनखियों से घूरे जा रहे थे। जब उनसे नहीं रहा गया तो उन्होंने चाची से मेरे बारे में पूछ ही लिया। चाची ने मेरी तारीफ की और कहा, “यह मेरी बेटी है। इसका बी ए का कोर्स पूरा हो चुका है कहीं नौकरी मिल जाती तो इसका भला हो जाता”। मुझे भी तो नौकरी की तलाश थी । नितिन ने दो चार प्रश्न पूछे और मुझे उस सेंटर में डेली वेजेज पर रख लिया। एक बार डी डी आर सी के काम के सिलसिले में मुझे दिल्ली जाना पड़ा । दिल्ली में कुछ दिनों तक मुझे ट्रेनिंग भी करनी थी। मैं दिल्ली में करीब दो हफ्ते तक रही । नितिन भी कभी कभी वहाँ आता। एक दिन नितिन ने कहा चलो तुम्हें जयपुर घुमा लाएँ। मैं उसके साथ जयपुर चली गयी । पहले हम दोनों की ज्यादा बातें नहीं होती थी हम लोग सिर्फ हाय हेलो तक ही सीमित थे लेकिन अब हम लोगों की काफी बातें होने लगी थी। उसके बाद तो हम दोनों की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता ही चला गया , जब भी हम दोनों एक दूसरे को मिलते तो हम दोनों को बड़ा ही अच्छा लगता । मैं नितिन के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने की कोशिश

करने लगी थी। एक दिन मैं और नितिन साथ में बैठे हुए थे कि नितिन ने मुझे अपने प्यार का इजहार करते हुये शादी के लिए प्रपोज कर दिया। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए लेकिन मैं नितिन को मना न कर सकी। उसने मुझसे शादी कर लिया। हम दोनों बड़े ही खुश रहते। हम दोनों की जिंदगी बड़े अच्छे से चलने लगी थी । वह भी मेरा साथ हमेशा ही अच्छे तरीके से दिया करते ।

एक दिन नितिन के किसी दोस्त की पार्टी थी तो नितिन ने जिद करके मुझे अपने साथ ले गया। वहाँ उसके कई दोस्त थे, देर रात तक पार्टी चली। उस रात मै जब सोने के लिए अपने कमरे में गयी तब मुझे एक फोन आया जो अंकिता का था। उसने मुझे अपना परिचय दिया और कहा कि मैं तुमसे मिल कर कुछ जरूरी बातें करना चाहती हूँ। उसने मुझसे कल दोपहर एक बजे एक रेस्टॉरेंट में मिलने के लिए कहा । मुझे उसने कुछ ज्यादा नहीं बताया और फोन काट दिया। समझ नही आ रहा था कि, क्या हो रहा है? रात भर यही सोचती रही की माजरा क्या है। दूसरे दिन मैं रेस्टॉरेंट समय से पहुँच गयी तो देखा की एक बहुत ही खूबसूरत लड़की टेबल पर अकेली बैठी थी। मैं समझ गयी की वह अंकिता ही होगी। वो मुझसे बोली , “बात करने के लिए यह जगह ठीक नही, कहीं ऐसी जगह चलते है, जहां और कोई न हो। हम शहर के बाहर एक पार्क में पहुँच गए जहां सन्नाटा था। वहां जाकर बैठते ही उसने सुबकते हुए रोना शुरू कर दिया। मै उसे रोने का कारण पूछने लगी तो उसने कहा, “मै और नितिन पहले से रिलेशनशिप में हैं। उसने मुझे शादी करने का भी वादा किया है। कल नितिन तुम्हारे साथ पार्टी में आया तो मैंने बाहर से ही देख लिया था, इसलिए मैं पार्टी में नहीं गयी और तुम दोनों के हरकतों को देख रही थी। बाद में मुझे सब पता चल गया कि तुमसे उसने शादी कर ली है मगर अब भी वह मेरे साथ ही घूमता है, रात में भी कभी कभी मेरे साथ रहता है। अक्सर मुझे अपने साथ बाहर भी ले जाता है। वह मुझे कहने लगी कि अब मैं क्या करूँ। मैं तो अपना जीवन ही समाप्त करना चाहती हूं।

मैंने खुल कर जब नितिन से पूंछा तो उसने कहा मैं चाहे जो करूँ तुम आराम से मेरे घर में पड़ी रहो। मेरे घर वाले तो तुम्हारा बहुत ख्याल रखते हैं। धीरे धीरे हमारी लड़ाई होने लगी, मार पीट भी । मैंने उन्हें बहुत सुधारने की कोशिश कि मगर कोई फायदा नहीं निकला, उल्टे वह मेरे चरित्र पर शक करता है। उसके घर वाले भी मुझे ताने मारते हैं, तब से मैं घुट- घुट कर जी रही हूँ। इतना कह कर इन्दु रोने लगी । आगे वह कुछ बोल नहीं पा रही थी।

नीरज ने उसे सांतावना देकर कहा तुम चाहो तो मेरी पत्नी बन सकती हो, मैं तुम्हें उससे मुक्ति दिला दूँगा और हम कानूनन जीवन साथी बन जाएंगे। इन्दु को लगा कि यहाँ भी धोखा मिल सकता है मगर एक नया रास्ता तो दिखाई पड़ रहा था जिस पर एक बार वह पुनः खुली हवा में जी सकने की गुंजाइस थी । रिस्क तो लेना ही पड़ेगा । उसने हाँ कर दी ।

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