दुबई के बुर्ज खलीफा के रास्ते पे सी-साईड के बीच की और तेजी से गाड़ी दोड रही थी। गाड़ी की रफ्तार से ज्यादा उसकी धड़कन तेज थी। गाडी एक बड़े से घर के पोर्स में आ के खड़ी रही। माया गाडी से उतर के घर के अंदर गई। वही घर जो वह दो साल पहले छोड़ गई थी, बिलकुल वैसा ही था, घर का डोईगरुम देख रही थी कि ... तभी उसे फिजा की कही बात उसके मनमे सुनाई दी.. पता है हमारे बेडरुम से समंदर नजर आता है, हसीन व्यू है, लेकिन समीर कहते है मुझसे हसीन दुनिया में कोई हो ही नहीं सकता। बस मुझे देखते जाते है। फिजा की बात याद आते ही माया के कदम बेडरुम की और चल पड़े। बेडरुम में आते ही बेड की पास की दिवार पे फिजा और समीर के फोटो से भरी पडी थी।
उफ्फ माया... जब से समीर मेरी जिंदगी में आए है मुझे इस घर की सभी चीजें खुबसुरत लगने लगी है। समीर कहते है अगर तुम्हारा बस चले तो इस घर की हर दिवार पे तुम हम दोनों की तसवीर लगा दो। वो सारी बाते और गाने वह गाती थी बेडरुम में जाते ही माया को बस फिजा की कही सारी बाते कानो में गूंज रही थी । माया को लगा फिजा की यादें उस पार भारी हो रही है,वह बोखला गई जैसे अभी मौत उसे निगल जाएगी। माया डरी हुई बेडरुम से पुल के पास पीछे पीछे चलने लगी। और वह किसीसे टकराई वो होश में नहीं थी। उसने देखा तो समीर उसे दोनों हाथ से पकड़े उसे होश में ला रहा था,... माया.... माया! क्या हुआ तुम्हें। और वह समीर को सुन्न हो कर देखे जा रही थी। वह कुछ कहना चाह रही थी, लेकिन आवाज ही नहीं निकल रही थी। समीर मानो उसके देख कर समझ ने की कोशिश कर रहा था कि माया को हो क्या गया है। वो भी उसे देख रहा था
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कहानी शुरू हुई थी आज से 25 साल पहले। माया, समीर और मीत तीनो साथ में ही बड़े हुए। हालाकि समीर माया के पिताजी के दोस्त का बेटा। दोनों ने साथ ही बड़े हुए, और पढाई भी साथ में की और दोनो बिजनेस पार्टनर थे। समीर के पिताजी की फैमिली में उन तीनो के अलावा और कोई नहीं था। समीर जब आठ साल का था तब उसके माँ-बाप की कार ऐकसीडन्ट में मौत हो गई थी। तबसे समीर इन लोगों के साथ ही रह रहा था। जब समीर दस साल का हुआ तब माया का जन्म हुआ। समीर के माँ-बाप के मोत के बाद वो बिलकुल गुमसुम सा रहता था। लेकिन माया के जन्म के बाद वो उसके साथ टाइम बिताने लगा। उसका ख़याल और खाना - पीना सब उसके साथ ही रहेता था। मानो कोई मुरजाए हुए पौधे को पानी डालने के बाद जान मिल गई हो। माया की माँ भी खुश थी की समीर का कीसी चीज में मन लग रहा है।
माया इस बार समीर से बहोत नाराज़ थी। समीर खयाल ही हमेशा ऐसे रखता था की माया उससे बहोत लगाव हो गया था। माया को जो भी चाहिए वो कोई उसे दिलाए या नहीं, समीर उसकी हर ख़्वाहिश पुरी करता था। माया के हर नखरे और गलती को वही पर्दा डालता था। कभी कभी तो माया समीर से बालो की चोटीया भी बनवाती थी।
एक बार समीर से ज्यादा मार्क उसकी क्लासमेट कविता को आए थे। माया कविता पर गुस्से हो के उसका बहोत बुरा चित्र बना रही थी। समीर को माया की उस नादानी पे हसना आ रहा था। समीर ने कहा कि ऐसे मुंह फुलाए क्यो बैठी हो... अरे कविता को पता भी नहीं है कि मेरी एक छोटी सी दोस्त है वो चाहती है कि मुझसे कोई ना जीते ।जीतना तो दुर की बात मेरे बराबर भी कोई ना आए। और मैं हंमेशा जीत जाउ मुझे कोई ना हरा पाए।
तो और नहीं तो क्या! चिटींग की होगी उसने वरना आप जीतने मार्क और किसी के आ नहीं सकते। समीर को उसकी नादानी पे हसना आ रहा था।
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समीर के लाड प्यार ने माया को बिगाड़ के रख दिया है। माया की माँ उसकी दादी से शिकायत करने लगी।
तभी माया के पापा ने आ कर खुशख़बरी दी की उसके बड़े भाई-भाभी और उसकी बेटी फिजा इन्डिया आ रहे हैं। दादी बहुत खुश थी की फीजा आ रही है।
दो दीनो में वह लोग इन्डिया आ भी गई। सब बैठ के बाते कर रहे थे की फिजा की माँ ने कहा कि वह 5 दिन ही यहाँ रहेंगे। उसके बाद तरह टर्की चले जाएंगे। फिजा को हिस्टरी में इन्टरेस्ट है। और वह वही जा के पठेगी।
यह सुनते ही सब उदास हो गए। माया की माँ वहाँ से उठ के चली गई। दरस्सल बात ऐ थी की फीजा माया की सगी बहन थी। जब भाई और भाभी को पता चला कि उनके यहाँ बच्चे नहीं हो सकते तभी उसकी भाभी ने कहाँ की फिजा मुझे दे दो। आप के पास मित तो है और तभी माया उसके पेट में थी। फिजा 3 साल की थी जब वह लोग उसे अपनी बेटी बनाकर दुबई ले गए थे। आज इतने साल बाद आइ थी। और फिर चली जाएगी। माया की माँ और भाभी उस बारे में बात कर रहे थे तब पता नहीं था की फिजा उनकी बाते सुन रही थी। वह उदास हो के घर के बाहर जा ने लगी।
भाभी मे फिजा के अडोप्सन के वक्त खुदगर्ज हो गए थी। आपने फिजा को हमे सोप कर हमारी खुशी बढा दी है।
पाँच दिन तो मानो चुटकी में बीत गए। माया चाहती थी की फीजा उनके साथ कुछ दिन और रहे। और उनके जाने कि वजह से वो उदास थी। माया की माँ ने फिजा को गले लगा के विदा किया। लेकिन फिजा ने मानो सच का स्वीकार कर लिया हो। उसने ऐसे ही गुडबाइ कह दिया। जैसे के कुछ जानती ही ना हो।
और ऐसे ही समय बितता गया। माया कब बड़ी हो गई किसी को पता ही नहीं चला। लेकिन वह अभी भी इतनी ही शरारती और जिद्दी थी।