मुझे पता था कुछ तो गड़बड़ है | तुमने मुझे एक बार भी बताना लाजमी नहीं समझा |
"ऐसा कुछ नहीं है.. आंटी मैं... बस ..."
"अब मैं 71 साल की हूं अब ऐसे झटके सहन करने की ताकत मुझ में नहीं बची।"
"आंटी ... सॉरी ..."
जोशी अंकल उनकी पत्नी को संभालते हुए बोले-
"तू तर आमचा जीव घेऊन सोडला असता जर त्यादिवशी सिद्धार्थ ने तुला बघितले नसते.." अचानक बोलते बोलते हैं वह रो पड़े।
रिया अपने किए गए काम पर खुद ही शर्मिंदा थी।
"हम जब भी कोई गलत कदम उठाते हैं एक वक्त के लिए हम यह भूल जाते हैं कि अपने लोगों पर उसका क्या असर होगा ।" भले ही मिस्टर एंड मिसेस जोशी रिया के सगे माँ- बाप ना होकर सिर्फ पड़ोसी थे पर उसके बावजूद वृद्धावस्था में रहने वाले दिल के अकेलेपन को अपनी हंसी से अपनेपन से दूर कर दिया रिया ने जब खुद की बारी आयी तो रिया सब भूल गयी रिश्ते उसके लिए खोकले हो गए।
रिया जोशी काका की इस बात पर रोने लगी भले ही रिया आईसीयू से बाहर आ गई थी उसके बावजूद उसका दर्द कम नहीं हो हुआ था।
अभी भी ग्लूकोस की सलाइन उसके हाथ में लगी थी हाथों में बँडेज और आंखों से अपने गुस्ताखी पर आँसू।
जब विजय मिस्टर एंड मिसेज जोशी का बेटा उन्हें छोड़कर अमेरिका चला गया वह दोनों बहुत अकेले पड़ गए थे उन्हें लगा बच्चा पढ़ने गया है 2 साल में वापस आ ही जाएगा ऐसी आशा थी उन्हे लेकिन पढ़ाई खत्म होते ही वो वहा सेटल हो गया जॉब लगने के बाद कभी कबार घर, त्यौहार पर आता था लेकिन शादी होने के बाद मिस्टर एंड मिसेस जोशी का 3bhk का सपनों का आशियाना सुनसान हो गया। त्यौहार मनाना अपने वृद्धावस्था के कारण छोड़ दिया, ऐसा सोसाइटी वालों को लगता था।
"पर अगर इंसान के पास वो काम करने की वजह ना हो, जरूरत ना हो तो वह उस काम को करना लाझमी नहीं समझता मन में एक कसक क्यों काम करें? किसके लिए करें?"
वैसे ही कुछ हाल जोशी दंपत्ति का भी था - किसके लिए त्यौहार मनाये ? क्यों त्यौहार मनाए ? दशहरे पर सोसायटी के सबसे पुराने और आदरणीय सदस्य समझकर मिस्टर शिंदे तक उन्हें सोना देकर नमन करते थे और दिवाली पर फरहाल की कोई कमी नहीं होती दो ही सदस्य उसने भी तबीयत साथ नहीं देती फिर क्यों तकलीफ उठाएं।
रिया के आते ही कुछ बिगड़ सा गया था उनका गणित जीवन को बहुत पीछे छोड़ आने के बाद रिया ने एक नया बसेरा ढूंढ लिया था, जैसे पंछी ढूंढता है।
पहले पहले मिसेस जोशी को यह अपनापन कुछ रास नही आया थोड़ा इस बात पर वो उखडी झगडी पर रिया के अपनेपन की उन्हें कब आदत लग गई उन्हे पता ही नही चला।
ऐसे ही एक शाम रिया ऑफिस से घर आई साथ आते वक्त वह आइसक्रीम का डिब्बा भी लेकर आई थी आईसक्रीम के डिब्बे को देखकर जीवन के साथ होने वाली आईसक्रीम फाइट उसे याद आ गई जीवन को पिस्ता फ्लेवर पसंद था और रिया को चॉकलेट इसलिए आज रिया पहली बार दोनों फ्लेवर लाई थी डब्बे के एक हिस्से में चॉकलेट फ्लेवर और एक में पिस्ता पर हर बार की तरह हेड और टेल का खेल के जीतने वाले के साथ उसकी पसंदीदा आईसक्रीम शेयर करने का मजा आज कुछ फीका पड़ गया था ।
उसे पता था वो खुद अकेले इतनी आईसक्रीम खा नहीं पाती इसलिए उसने अपने पड़ोस में रहने वाले जोशी दंपत्ति को यह आईसक्रीम देने के बारे में सोचा ।
फ्रेश होने के बाद कपड़े बदल आईसक्रीम का डिब्बा लेकर उनके घर गई, घर पर नोक किया।
"कौन आहे?"कहते हुए मिसेस जोशी दरवाजे पर आयी।
"बोला काय पाहिजे तुम्हाला?"
"मैं आपके पडोस मे रहती हूं , मैं यहां किसी को नहीं जानती। मैंने आइसक्रीम खरीदी पर शेयर करने वाला कोई नहीं इसलिए सोचा कि आपके साथ मिल बाटकर..."
इस बात पर मिसेस जोशी थोडा उखडी एक अनजान लडकी अगर आईसक्रीम के जरिये बेहोश कर घर लूट लिया तो..
"क्यौ तुम्हारे घर में फ्रिज नहीं है?"
रिया अपना अपमान सहते हुए हंस कर बोली-
" हां है आंटी पर..."
"पर क्या? इन्हें डायबिटीज है।"
"पर आंटी यह शुगर फ्री है।"
"फिर भी हमें नहीं चाहिए।" इतना कह मिसेस जोशी ने दरवाजा मुंह पर बंद कर दिया।
रिया इडियट तुम्हें क्या जरूरत है पड़ोसी धर्म निभाने की सब संध्या की ही गलती है थोड़ी में डिस्टर्ब हुई नहीं जाओ दोस्त बनाओ,पड़ोसी धर्म निभाओ। पड़ोसी धर्म माय फुट।
वह अपनी दोस्त संध्या पर गुस्सा निकालने में इतनी व्यस्थ थी की सीढ़ियों से ऊपर आते हुए और उसके पीछे खड़े गृहस्थ भी उसे दिखाई नहीं दिए।
"किसे गालियां दे रही हो?" रिया अनजान आवाज के साथ पीछे मुड़ी आंखों पर चश्मा बुढ़ापे के कारण सर पर धूप से बचाने जितने बाल, हाथों में थैला और पहना हुआ साधारण सफेद रंग का शर्ट और खाकि पेंट रिया आंखें फाड़ फाड़ के उन्हे घुरे जा रही थी ।
"अंकल वो मै फ्लैट नंबर 112 के लिए आईसक्रीम लेकर आई थी वो मे उनके पड़ोस में ही रहती हूं पर शायद आंटी को आईसक्रीम शेयर करके खाने में कोई इंटरेस्ट नहीं है।"
"तुम्हें पता है फ्लैट नंबर 112 में कौन रहता है ?"
"नही वह मैं यहां नहीं आई हूं।"
"यहा कोई मेरा रिश्तेदार नहीं है मुझे अकेले..."
अचानक बोलते बोलते रिया अपने बात पर रुक गयी। "परेशनी महसूस होती है" वृद्ध व्यक्तिने बात को पुरा किया।
" मुझे भी..." अचानक ऐसा कुछ सुनते ही रिया का गला घबराहट के मारे सूख गया।
यह कहां फस गई तु रिया? बुड्ढा कुछ खिसका हुआ लगता है रिया की बड़ी-बड़ी आंखों और उसमें घबराहट देख वृद्ध व्यक्ति हंस पड़े।
"मुझे भी का मतलब ... फिर अपनी बात पर सोच विचार कर हंस पड़े।
"मैं सदाशिव जोशी रिटायर्ड प्रोफेसर और जिस आंटी की तुम बात कर रही हो वह मेरी धर्मपत्नी है।"
अचानक रिया की आंखें चमक उठी। रिया की मासूमियत पर एकबार फिर से मिस्टर जोशी हँस पड़े।
"आओ ... आओ अंदर आओ," मिस्टर जोशी ने डुप्लीकेट चाबी से घर को खोला मिसेस जोशी सोफे पर बैठ मराठी सीरियल को बड़ी गंभीरता से देख रहे थी, जैसे मिस्टर जोशी घर में घुसे "आला तुम्ही आणि पुन्हा एकदा बिट आणताना पाहून आणलेत ना." मिसेस जोशी मिस्टर जोशी पर घुस्सा करने मे इतने व्स्थ थी कि थैला अंदर लेकरं जाते हुए भी उनका ध्यान उसपर नही गया।
रिया ने पहने हुए स्लिपर शुज स्टँड पर रखे और अंदर चली आई। फ्रिज बंद कर मुड़ते हुए
तुम !? यहां कैसे आई ?
"घाबरू नका सरकार ... मी इथे तिला घेऊन आलो आहे." "तुम्ही गप्प बसा... आणि तुम्ही एका अनोळखी व्यक्ती ला घरात घेऊन आलात तरी कसं?" मिस्टर जोशी को कुछ समझ नही आ राहा था की वो क्या कहे रिया सिर्फ पिघालनेवाली आईसक्रीम की तरफ देख रही थी।
मिस्टर जोशी एक लंबी सास लेते हुए -"ही मिस्टर पुरोहित यांची नात आहे".
"काय ?"
त्यांनी तर ...
अगं हो त्यांनीच मला सांगितले .
मिसेस जोशी को मिस्टर जोशी के बातों का बिल्कुल भी यकीन नहीं था पर उन्होंने अपने पति पर विश्वास करना ज्यादा ठीक समझा।
जब मिस्टर जोशी और मिसेस जोशी आईसक्रीम फ्लेवर के लिए झगड़ा कर रहे थे तब रिया को उसमे खुदकी और जीवन की परछाई दिखाई दी।
फर्क बस इतना सा था कि मिसेस जोशी को चॉकलेट फ्लेवर की जगह पिस्ता फ्लेवर पसंद था और मिस्टर जोशी को चॉकलेट।
उस दिन के बाद रिया का आना-जाना जोशी सदन में बढ़ गया और एक दिन मौका देखकर रिया ने मिसेस जोशीं बता दिया कि वह मिस्टर पुरोहित की पोती नहीं हैं।
"यह बात मुझे पता है।'
यह बात आंटी को पता थी फिर भी वह क्यों चुप रही, इस बात की स्पष्टता के लिए उसने मिसेस जोशी से पुछा "आपको कैसे पता चला ?! और पता था तो..."
"मिस्टर पुरोहित का लड़का एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करता है।" रिया को फिर भी बात समझ नहीं आयी मिसेस जोशी बात को समझाते हुए- "मिस्टर पुरोहित के दो लड़के महेश और विष्णु , विष्णु बड़ा है उनके साथ रहता है उसे 8 साल का बेटा है और महेश की अभी भी शादी हुई है।"
रिया के चेहरे के प्रश्न और भी बढ़ते जा रहे थे मिसेज जोशी लोकर का धागा नीचे रख बोली - "उन्हें कोई पोती नहीं है और अगर आगे जाकर होगी भी तो वह तुम्हारे जितनी बड़ी ..." इतना बोल मिसेस जोशी रिया की तरफ तिरछी नजरों से देखने लगी।
रिया को सब समझ आ गया फिर आपने क्यों?!
"अभी मैं 68 साल की हूं लोगों को देखकर इतना समझ जाती हूं कि वह इंसान आखिर कैसा होगा। पहली बार मुझे तुम बिल्कुल पसंद नहीं आयी लेकिन धीरे-धीरे जब तुम से बातचीत बढ़ने लगी तो पता चला की तुम हमारी विजय की पक्की झेरॉक्स कॉपी हो वैसे ही बडबडपण, गुस्सा , शरारत..."
अचानक जोशी आंटी बोलते बोलते रो पडी।
"आंटी क्या हुआ?"
जोशी आंटी रिया के हाथों पर हाथ रखते हुए- "मुझे एक वचन दोगी बेटा.. हां आंटी बोलिए ... बेटा अगर तुम्हें कुछ चाहिए होगा ...अगर कुछ बोलना होगा ... अपने मन की बात तो कह देना ऐसा अचानक बिना बताए छोड़कर मत चले जाना।
रिया जोशी आंटी की आंखों में आंसू देख उसके भी आंखों भिग गयी,
"क्यौ आंटी आप ऐसा क्यों कह रही है?"
जोशी आंटी अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश करते हुए बोली- "विजय को अमेरिका कभी नहीं जाना था। विजय निवेदिता नाम की लड़की के पीछे पागल था निवेदाता के कारण विजय 12वीं में फेल हो गया।
रिया जोशी आंटी का हाथ पकडे हुए थी
उनके आसु कितनी भी कोशिश करने के बाद रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
"आंटी संभालीए अपने आप को।" अचानक रिया के साथ वह अपने अंदर का गुस्सा दर्द तकलीफ सब एक झटके में उगल गई।
"विजय के फेल होने के बाद उन्होंने उसे बहुत मारा और उसे बॉयज हॉस्टल में भेज दिया। बहोत तमन्ना थी कि उसकी मेरे पास रहने की। अचानक उनकी आंखें चमक उठीं उसका सपना था नौकरी लगने के बाद निवेदिता से शादी करना.. पर..पर.." मिसेस जोशी का गला रो-रो कर बैठ गया फिर भी वह आज रुकने वाली नहीं थी।
"पर इन्होंने निवेदिता के पिता को जाकर सब सच बता दिया निवेदिता को उसके पिता ने मामा के गांव भेज दिया।
कुछ एक साल बाद खबर आई उसकी शादी हो चुकी है। विजय को उन्होंने बॉयज हॉस्टल भेज देने के बाद वह पूरा बदल गया था मैं उसके फोन के इंतजार में घंटों बैठे रहती पर उसका फोन नहीं आता।"
"छुट्टियों में घर आता लेकिन दिन भर बस अपने रूम में किताब में आंखें गड़ाए बैठा मैंने अपने विजय को पल-पल खोते हुए देखा है।"
अचानक मिसेस जोशी की सांसें फूलने लगी हाथ थरथर कांपने लगे , यह देख कर दिया घबरा गई।
"आंटी प्लीज संभालीए अपने आपको।"
"संभाल ही तो रही हू.. १५ साल से संभालती तो आ रही हूं, १५ साल हो गए मैंने विजय को जी भर कर गले नहीं लगाया।"
एक दिन अचानक इंजीनियरिंग खत्म होते उसका फोन आया उसने कहा मुझे स्कॉलरशिप मिली है, मैं लंदन जा रहा हूं।
हमने उसे बहुत समझाने की कोशिश की उन्होंने तो सरकारी नौकरी की बात चलाई पर वह नहीं माना और एक दिन बिना बताए होस्टेल छोड़कर लंदन चला गया और लंदन से... अचानक मिसेस जोशी को को जोर-जोर से खासी शुरू हो गई।
रिया सोफे पर से झट से उठी और डाइनिंग टेबल की तरफ भाग कर गई।
मिसेस जोशी दु:ख भरी मुस्कान के साथ बुदबुदाई और
फिर ... अमेरिका।
रिया ने उन्हें पानी दिया उनकी पीठ थपथपाई मिसेस जोशी अपने आप को संभालते हुए बोली तुम मुझसे वादा करो "चाहे दुनिया में कुछ भी हो जाए तुम हमें बिना कुछ बताए छोड़कर नहीं जाना, हम विजय को पहले ही खो चुके हैं अब तुम्हे भी हम खोना नहीं चाहते।"
रिया अपने आंसुओं को संभालते हुए "मैं आपसे वादा करती हूं मैं आपको बिना बताए कभी छोड़कर नहीं जाऊंगी। मैं आपको बिना बताए कभी छोड़कर नहीं जाऊंगी।"
यही बोला था ना तुमने मिसेस जोशी रिया को गुस्से भरी आंखों से देखने लगी आंखों में गुस्सा और आँँसु दोनों शीत युद्ध लड़ रहे थे। रिया वह प्रॉमिस याद कर कर जोर जोर से रोने लगी।
रिया अपने दुख को दूसरे पर हावी नहीं होने देना चाहती थी इसलिए उसे अपने मुंह को दुसरी तरफ फेर कर दोनों हाथ जोड़कर मिसेस जोशी से माफी मांगने लगी माफ कर दीजिए माँ...
रिया और मिस्टर अँड मिसेस जोशी की बातचीत चल ही रही थी कि तभी रिया का बेड ढूंढते.. ढूंढते मिस्टर शिंदे वहा आकर पहुचे।