antardwand - 6 in Hindi Women Focused by Sunita Agarwal books and stories PDF | अंतर्द्वन्द - 6

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अंतर्द्वन्द - 6

अंतर्द्वन्द - 6
अभी तक आपने पढ़ा कि नेहा की समय से पूर्व डिलीवरी हो जाती है और बच्चे की जान नहीं बच पाती है।अब आगे पढ़िए :-
वह अपने दुख से उबर भी नहीं पाती कि तभी एक महीने बाद, बाथरूम से सासुजी के जोर जोर से बड़बड़ाने की आवाजें आ रही थीं।सासुजी नहाती जा रही थीं और नेहा के बारे में भला बुरा कहे जा रही थीं।क्योंकि उनका ब्लाउज उधड़ा हुआ था, जिसे नेहा सिल नहीं पाई थी।'निखिल' माँ की बातें सुनकर कमरे में आया और नेहा को डाँटते हुए बोला "सारा दिन क्या करती रहती है? मम्मी का ब्लाउज नहीं सिल सकती थी।नेहा बोली "वह मुझसे कह भी तो सकती थीं सिलने के लिये, मुझे क्या पता था"। इस पर निखिल बोला "अब कहा जायेगा तभी काम होगा, कपड़े धोते, सुखाते या तह करते समय नहीं देखा था" और हर बार की तरह उसने नाराज होकर नेहा से बात करना बंद कर दिया।घर के कामकाज और छोटी बच्ची की वजह से वह नहीं देख पाई तो वह कहकर नहीं करवा सकती थीं।
क्या पहले ये लोग अपने काम खुद नहीं करते थे,अब तो बिना नेहा के तिनका भी नहीं उठता। जबकि वह एक महीने पहले ही कितनी बड़ी मानसिक पीड़ा से गुजरी थी।कुछ समय ठीक ठाक गुजरता, फिर निखिल छोटी सी बात का तिल का ताड बनाकर रूठ जाता।कई बार तो उसे ऐसा लगता जैसे निखिल ने उससे शादी करके उसपर कोई अहसान किया हो।इसी तरह दो साल का वक्त गुजरा और नेहा के दूसरे भाई की शादी भी तय हो गई।उसके पापा पहले सगाई से पहले, फिर शादी से पहले, न्यौता देने आए थे।लेकिन सगाई में कोई नहीं गया और नेहा भी नहीं गई क्योंकि उसे बड़े भाई की सगाई याद आ गई, जब नेहा अपने भाई के साथ जिद करके चली गई थी तो वहाँ से बापस आने पर उसके साथ बेहद खराब सलूक किया गया था।किसी ने उससे बात नहीं की थी।अब शादी करीब थी, नेहा को टेंशन हो रही थी कि अब क्या होगा।जब शादी से पहले उसके पापा और मामा आये तो उसने दिल कड़ा करके कह दिया कि में निखिल के साथ ही आ जाऊँगी।क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि पिछली बार की तरह फिर कोई बखेड़ा खड़ा हो।फिर उसने सोचा शायद निखिल का दिल पिघल जाए और वह उसे शादी में खुद लेकर चला जाये, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।निखिल शादी वाले दिन एन बारात की चढत के वक्त पर नेहा और बच्चों को सीधे बारात में ही लेकर पँहुचा और बारात की विदाई के समय वहीं से ही नेहा और बच्चों को लेकर लौटने लगा, उसके पापा और भाई ने बहुत रोकने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं रुका।नेहा अपनी किस्मत पर आँसू बहाती हुई निखिल के साथ बापस आ गई।वह पूरी शादी के दौरान अपने मायके की देहली पर नहीं चढ़ी थी।एक लड़की के लिये इससे ज्यादा मानसिक पीड़ा की बात और क्या हो सकती थी।ऐसा लगता था कि वह किसी की पत्नी न होकर प्रॉपर्टी है।वह छोटी छोटी खुशियों के लिये दूसरे की दया की मोहताज थी।उसने अपने मन को मार लिया था।दो दिन बाद उसका भाई शादी का सामान, कपड़े, मिठाई आदि लेकर आया।उस समय तो पता नहीं क्या सोचकर निखिल और निखिल की माँ चुप रहे।पर जब नेहा का भाई चला गया तो नेहा ने सामान खोलकर सासूमाँ को दिखाया।सासूमाँ सामान को देखकर फिर से शुरू हो गईं "हम क्या ऐसे समझ रखे हैं, जो चार दिन की बासी मिठाई भेज दी"।इस पर निखिल आपे से बाहर हो गया और नेहा को बुरी तरह डांटते हुए बोला "उठा कर रख इस मिठाई को, कल सारा सामान बापस करके आना"।और अगले दिन हल्की हल्की बारिश हो रही थी,उसी बारिश में निखिल नेहा को सामान सहित बस में बैठा आया।उसके दोनों बच्चों बेटी और बेटे को अपने पास रख लिया।और उसे सामान लौटाकर शाम तक बापस आने की चेतावनी दे दी।वह रास्ते भर आँसू बहाती रही थी,और सोचती रही थी कि उसे जीने के लिये और कितनी जिल्लत सहनी पड़ेगी।अपने मायके के शहर में आने पर दोनों हाथों में भारी बैग थामे बस से उतरी और अपने घर जाने के लिये ऑटो लिया।घर पँहुचकर जैसे ही वह अपने घर में घुसी, उसकी बहिन सामने आ गई। देखते ही खुशी से चहकती हुई बोली 'दीदी आप'वह बोली "हाँ अपनी नई भाभी से मिलने आई हूँ"।उनकी आवाज सुनकर उसकी मम्मी, पापा, भाई कमरे से निकल आये।वो सब उसे इस तरह अचानक आये देखकर हैरान रह गए ।हैरानी स्वाभाविक भी थी,जो बेटी शादी के सारे कार्यक्रमों के दौरान मायके की देहली नहीं चढ़ी, वही शादी के चार दिन बाद अचानक आ जाये तो हैरानी तो होगी ही।उन्होंने उससे पूछा "सब ठीक तो है" इस पर उसकी आँखों में आँसू आ गए।उसने बताया कि वह सामान लौटाने आई है।उसके मम्मी, पापा को बहुत दुख हुआ ,पापा चिंतित हो गए।वह बोले "क्या करूँ में? चलूँ तेरे साथ" वह बोली "नहीं पापा अब बहुत हो गया, में अकेली ही जाऊँगी,में अपना तो अपमान सह लूँगी,आपका अपमान मुझसे नहीं सहा जाएगा"।और दो चार घंटे रुककर वह भारी मन से अपनी ससुराल के लिये विदा हो ली थी। उसका भाई उसे बस में बिठाने आया।वह इस सब वाकये से बहुत दुखी था,वह बस में बैठ चुकी थी उसका भाई बाहर बस की खिड़की पर खड़ा था, बस के चलने तक, आँखों में आँसू लिये बोला "दीदी आपको मेरी कसम है,अब और ज्यादा अन्याय मत सहना,तुम अपने आपको अकेली मत समझना, तुम्हारे भाई हमेशा तुम्हारे साथ हैं और रहेंगे।उसकी बात सुनकर वह अपनी रुलाई नहीं रोक पाई।उसने अपने भाई को आश्वस्त किया कि वह अब कुछ भी गलत बर्दाश्त नहीं करेगी। उसने अपने आँसू पोंछे और एक दृढ़ निश्चय के साथ ससुराल के लिये रवाना हो गई।