Immoral - 10 in Hindi Fiction Stories by suraj sharma books and stories PDF | अनैतिक - १०

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अनैतिक - १०

सैलरी आ गयी थी, बहोत खुश था! पर बाहर जा नही सकता था. रात को हम खाना खाने बैठ गये, मैंने सोचा आज माँ को पूछ ली लूँगा की कशिश की कहानी क्या है पर हिम्मत ही नहीं हुई, हम सब ने खाना खाया और मै अपने कमरे में आ गया, रोज की तरह आज भी मै कशिश के मेसेज का इंतजार करने लगा, रीना के पापा शहर के बड़े बिल्डर थे तो मै जानता था की कशिश को घर का काम तो था पर उतना ज्यादा नहीं, उसके यहाँ काम के लिए २-३ नौकर लगाये हुए थे. रीना के पापा और मेरे पापा बहोत अच्छे दोस्त थे. अक्सर हम दोनों के फॅमिली में साथ खाना वगैरे होता रहता. पर रीना का बड़ा भाई,निकेत अलग था उसे बहोत बुरी आदते थे जिनके वजह से उनके घर से हमेशा झगड़ने की आवाजे आती रहती, मुझे अब तक ये समझ नही आया था की कशिश जैसे लड़की उनके घर की बहु कैसे बनी?इसीलिए मेरा मन हमेशा ये ही जानने के लिए उत्सुक रहता,

"हाय" सॉरी आज थोड़ी लेट हो गयी..,

कोई बात नहीं, खाना हुआ आपका?

उसने सिर्फ "हाँ" कहा

मै सोच रहा था की क्या मुझे कशिश को उसके बारे मे पूछना चाहिए या नहीं...शायद अब वो मुझे मुझ से ज्यादा समझने लगी थी, वो समझ गयी थी की मुझे उसे कुछ पूछना है...

हाँ बोलो न..

मैंने कहा..क्या?

वही जो आपको पूछना है?

आपको कैसे पता चला? मुझे आपसे कुछ पूछना है...

२ महीने से रोज बात कर रहे है हम, इतना तो जानने लगी हूँ आपको...

नहीं कुछ नहीं मै बस आपके बारे मे जानना चाहता था..पर अगर आप नहीं बताना चाहो तो कोई बात नहीं

मै बताउंगी पर अभी नहीं...वक़्त आने पर,

ये बात मुझे कुछ समझ नही आई पर मैंने भी ज्यादा कुछ पूछा नहीं..और हम आज की बाते करने लग गये, कैसे रीना और वो आये थे, वो मुझे अपनी बाते बताने लगी. उसके बाते में मैंने इतने दिनों में कभी भी उसके माँ पापा के या बहन भाई के बारे मे नहीं सुना था उसने कभी मुझे इस बारे में कभी कुछ नहीं बताया था..हमने थोड़ी बाते की और फिर मै काम करने लग गया..शायद वो भी बिजी हो गयी उस रात हमारी ज्यादा बाते नहीं हुइ!

महीने का आखरी दिन था, लटका हुआ काम पूरा करना था, इसीलिए मुझे सोने में सबेरे के ६ बज गये थे तब तक माँ उठ चुकी थी और उन्होंने मेरे लिए कॉफ़ी बनाकर लायी

"क्यों करता है इतना काम?"

करना पड़ेगा न माँ, पैसा कमाना है ना..

बेटा सुन न, छोड़ दे ये नौकरी, देख अपने यहाँ भी तो बहोत कंपनी है. तुझे तो अच्छा खासा अनुभव है तो यहाँ जॉब क्यों नहीं देखता?

हाँ माँ सही है पर और ३ साल ही तो बचे है अग्रीमेंट ख़त्म हो जाएगा फिर मै यही जॉब करूँगा

खेती है अपनी, अच्छा पैसा बन ही जायेगा, छोड़ दें ना ये जॉब

नहीं माँ, मैंने कहा न अब नहीं छोड़ सकता, और मुझे खुद के पैरो पर खड़ा होना है..

तुझसे तो बात करना ही बेकार है ..ठीक है सो जा जल्दी

हाँ कहकर मै सो गया और नींद भी मुझे जल्दी ही लग गयी..वैसी भी ये रात काम बहोत हो गया था इसीलिए मैंने बिना फ़ोन हात लगाये सोना ही ठीक समझा. जब मेरी नींद खुली दोपहर के २ बज गये थे, माँ पापा ने मुझे नहीं उठाया वो जानते थे मुझे नींद में उठाना मतलब शेर को जगाना...लॉकडाउन के वजह से मेरे बाल और दाढ़ी बहोत बाद गये थे और फिर आप जब नींद में से उठ्ते हो तो एकदम चेहरा निकर सा दीखता है, मुझे टी शर्ट खोलकर सोने की आदत थी, जर्मनी में फ्लैट पर मै अकेला रहता था तो मै टी शर्ट बनियान खोलकर सोता और घर पर भी मै टी शर्ट बनियान खोल कर ही सोता था, वैसे भी कॉलेज के वक़्त से जिम जाता था तो मेरी बॉडी अच्छी खासी फिट थी. जैसे ही उठा मैंने मुह पर पानी मारा अब भी मेरी आँखे थोड़ी ही खुल रही थी और रूम से बाहर हॉल में जाने लगा, सामने का नजारा देख कर मै शॉक हो गया.. रीना की पूरी फॅमिली हमारे यहाँ लंच पर आई हुइ थी, सबने मुझे एक नज़र से देखा और ऐसे देखा जैसे मै आसमान का वो सूरज हूँ जो २ महीने के बारिश के दिनों के बादलो के बाद आज निकला हूँ, अन्दर ही अन्दर मुझे माँ पर गुस्सा भी बहोत आ रहा था पर जो आँखे अभी तक नींद से चिपकी हुई थी वो मानो राजधानी सुपरफास्ट के जैसे नींद को कोसो दूर छोड़ दी थी, सबने मेरी ओर देखा ..मुझे समझ ही नहीं आया की आगे क्या करना है सोचा पहले अपनी टी शर्ट पहन लू फिर बाहर आता हूं पर लगता है बहोत देर हो चुकी थी..

रीना की मम्मी ने आवाज़ लगाई," रोनी, बेटा आ ना यहाँ ..कब आया तू इंडिया?

जी २ महीने हो गये आंटी

घर क्यों नहीं आया?

नाईट शिफ्ट थी, वक़्त ही नही मिलता था पर आज मै आने वाला था रीना से मिलने...