Akshaypatra - 6 in Hindi Short Stories by Rajnish books and stories PDF | अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य - 6

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अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य - 6

अक्षयपात्र: अनसुलझा रहस्य

(भाग - ६)


परीक्षित पांडुओ के अकेले उत्तराधिकारी थे। परीक्षित जब राजसिंहासन पर बैठे तो महाभारत युद्ध की समाप्ति हुए कुछ ही समय हुआ था, इन्हीं के राज्यकाल में द्वापर का अंत और कलयुग का आरंभ होता है। एक दिन राजा परीक्षित ने सुना कि कलयुग उनके राज्य में घुस आया है और अधिकार जमाने का मौका ढूँढ़ रहा है।
एक दिन राजा परीक्षित शिकार पर जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक व्यक्ति हाथ में डंडा लिए बैल और गाय को पीटते हुए दिखा। राजा ने अपना रथ रुकवाया और क्रोधित होकर उस व्यक्ति से पूछा- ‘तू कौन अधर्मी है, जो निरीह गाय और बैल पर अत्याचार कर रहा है। तेरे कृत्य के लिए मैं तुझे मृत्युदंड दे सकता हूं।
राजा परीक्षित की बात सुनकर वह व्यक्ति जो वास्तव में कलयुग था, डर से कांपने लगा। कलयुग का वध करने के लिए राजा ने अपनी तलवार निकाल ली। इस पर कलयुग त्राहि-त्राहि करते हुए राजा के पैरों में गिर गया। राजा अपनी शरण में आए हुए व्यक्ति की हत्या नहीं करते थे। तो उन्होंने कलयुग को जीवन दान दिया और कहा कि मेरे राज्य की सीमाओं से दूर निकल जाये और कभी लौटकर मत आये। इस पर कलयुग गिड़गिड़ाते हुए विनती करने लगा कि महाराज आपका राज्य तो संपूर्ण पृथ्वी पर है। परन्तु परम पिता ब्रह्मा ने 4 युगों का निर्माण किया जो हैं सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग। अब जब स्वयं ब्रह्मा जी ने मुझे यहां रहने के लिए निर्धारित कर रखा है तब आपका मुझे यहां नहीं रहने देना, परम पिता के फैसले को चुनौती देने जैसा हुआ।
तब राजा परीक्षित को यह आभास हुआ कि वह ब्रह्मा जी के खिलाफ नहीं जा सकते है और उन्होंने कलयुग की विनती स्वीकार करते हुए उसे रहने के लिए जुआ, मदिरा, परस्त्रीगमन और हिंसा जैसी चार जगह दे दीं। इस पर कलयुग ने विनती की- राजन! ये चारों जगह मेरे लिए पर्याप्त नहीं है, आप एक और स्थान मुझे दीजिए। इस पर राजा ने उसे सोने अर्थात स्वर्ण में रहने की अनुमति दे दी और शिकार के लिए आगे बढ़ गए। कलियुग को स्थान देते समय राजा यह भूल गए कि उन्होंने सिर पर सोने का ही मुकुट पहना है।

राजा से स्थान मिलते ही कलयुग तब तो वहां से चला गया। लेकिन थोड़ी देर बाद सूक्ष्म रूप में वापस आया और राजा के मुकुट में बैठ गया। शिकार के रास्ते में राजा को प्यास लगी तो वह शमिक ऋषि के आश्रम में चले गए। उस समय शमिक ऋषि ध्यान में लीन थे और राजा द्वारा पानी मांगे जाने पर भी उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। इस पर राजा के मुकुट में बैठे कलियुग ने अपना असर दिखाया और बुरे प्रभाव के कारण उनकी मति भ्रष्ट हो गई और उन्होंने एक मरा हुआ सांप शमिक ऋषि के गले में डाल दिया। पृथ्वी के किसी मनुष्य पर कलियुग का यह पहला प्रभाव था और उसने सबसे संस्कारी राजा को ही अपना शिकार बनाया।

शमिक मुनि के तेजस्वी पुत्र का नाम श्रृंगी था। उस दौरान वह किसी काम से बाहर गया था। लौटते समय रास्ते में उसने सुना कि कोई आदमी उसके पिता के गले में मृत सर्प की माला पहना गया है। कुपित ऋषिपुत्र श्रृंगी ने पिता के इस अपमान की बात सुनते ही हाथ में जल लेकर शाप दिया कि जिस पापत्मा ने मेरे पिता के गले में मृत सर्प की माला पहनाया है, आज से सात दिन के भीतर तक्षक नाम का सर्प उसे डस ले। आश्रम में पहुँचकर श्रृंगी ने पिता से अपमान करनेवाले को उपर्युक्त उग्र शाप देने की बात कही। ऋषि को पुत्र के अविवेक पर दुःख हुआ और उन्होंने एक शिष्य द्वारा परीक्षित को शाप का समाचार कहला भेजा।
जिससे वे सतर्क रहें।
जब राजा परीक्षित को यह समाचार मिला कि ऋषि पुत्र ने उनको शाप दे दिया और सातवें दिन उनकी मृत्यु हो जायेगी तब उन्होने सभी ऋषियों और महात्माओं को बुलाया। अन्त में शुकदेवजी आये तो उन्होने श्रीमद् भागवत् कथा का श्रवण करने का सुझाव दिया। जिससे उनके अंदर मृत्यु को लेकर भय खत्म हो जाये और वो मानसिक रूप से निर्वाण के लिए तैयार हो जाए।
शुकदेव जी महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे। वह वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि के ज्ञानी थे। शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को वट वृक्ष के नीचे शुक्रताल में कथा सुनाई।

राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाते हुए शुकदेव को छह दिन बीत गए और उनकी मृत्यु में बस एक दिन शेष रह गया।

उन्होंने शुकदेव को अक्षयपात्र के बारे में बताया और यह भी कहा कि अगर वो कलयुग में किसी के हाथ रहा तो किसी की भी मति भ्रष्ट करेगा अतः उसे कहीं छिपाने का उपाय बताए।

शुकदेव ने अपनी शक्तियों से एक गुफा का निर्माण किया और उस गुफा में मंत्रो द्वारा उस अक्षयपात्र को अदृष्यरूप में छिपा दिया।

सातवें दिन तक्षक ने आकर उन्हें डस लिया और विष की भयंकर ज्वाला से उनका शरीर भस्म हो गया।

कहते हुए अवंतिका अपनी बात खत्म करती है।

यश : इसमें बाहर निकलने का ज्ञान तो है ही नहीं।

अवंतिका: यहां शंखलिपी में लिखी हुई कहानी के कुछ अंश मैं पढ़ पाईं जिन्हें मैंने अपने द्वारा पढ़ी गई किताबों के आधार पर पूरा गढ़कर सुनाया। शंखलिपी तो मुझे भी अच्छी तरह नहीं आती और शायद आज के समय में पूरी तरह किसी को भी नहीं।
सैम: इन फालतू की बातों में हमने बहुत समय खराब कर लिया। अब यहां से निकलने का हमें फिर से प्रयास करना होगा, इससे पहले कि हम सदा के लिए यहीं दफन हो जाए।

तीनों दोस्त कई घंटों के अथक प्रयत्नों के बाद बाहर निकलने का कोई मार्ग न मिलने पर हताश होकर बैठ जाते है।

अवंतिका: सैम, यश, सुनो!!
दिमाग में एक ख्याल आया है।
क्यों न इस भ्रम और सपनों की दुनियां में जाने का फिर से प्रयास करें। हो सकता है यही हमें बाहर निकालने का रास्ता दिखाएं।
सैम: न बाबा न!!
पिछली बार जो हुआ वो क्या कम है। इस बार वो औरत कहीं अपनी हवस न मिटा ले (आंख मारते हुए)
यश: अवंतिका, हम सब का पिछला अनुभव बेहद बुरा रहा।
अवंतिका: लेकिन को सब सपना था। हमें बस उससे बाहर निकलने का तरीका खोजना है।..और इस बार हम एक साथ जायेंगे।
सैम: एक साथ, वो कैसे।
अवंतिका: हम एक ही सपने में जायेंगे।
सैम: ऐसा कैसे हो सकता है?
अवंतिका: कोशिश करके देखते है।
यश: हमें क्या करना होगा?
अवंतिका: मैंने जो कहानी सुनाई हमें उसे सोचना है और उस समय में जाना है जब शुकदेव छठवें दिन उस अक्षयपात्र को छुपाने का प्रयोजन बताते है।
सैम: उसी दिन और वहां क्यों? हम सब घर चलते है। या फिर उस कॉफी हाउस के बाहर।
अवंतिका: हमारा मन वहां जा सकता है पर हमारा हमारा शरीर नहीं। लगता है ये एक पहेली है जिसे बिना सुलझाए शायद हम यहां से बाहर न निकल पाए। जिन्होंने इस गुफा का निर्माण किया वहीं हमें इससे बाहर निकालने का रास्ता दिखाएंगे। उस दिन शुकदेव और राजा परीक्षित दोनों के ही बीच अक्षयपात्र और उसे छुपाने का अध्याय हुआ था।
यश: वाऊ अवंतिका, यू आर ग्रेट! क्या आईडिया आया है।
सैम: लेकिन हम एक ही सपने में साथ पहुचेंगे और ऐसा होगा कि हम भ्रम या स्वप्न कि दुनिया में जहां चाहे वहां जा सकते है अभी ये सिर्फ एक कल्पना ही है।
अवंतिका: हां, सैम! पर कोशिश करके देखते है। तुम्हारे पास कोई और आईडिया हो तो बताओ।
सैम: फिलहाल तो नहीं। लेकिन एक बात पूछनी थी?
अवंतिका: हां, कहो?
सैम: छिपकली के इत्तू से दिमाग में इतनी वड्डी वड्डि बातें आती कहां से है।
अवंतिका: बेटा, देखियो एक दिन यही छिपकली तुझ छोटे से कॉकरोच को एक दिन जरूर खायेगी।
यश: तो फिर हम सोचना शुरू करें।
तीनों कहानी के उसी अध्याय का मन में स्मरण करते है।

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(डिस्क्लेमर : यहां बताई गई सभी बातें, स्थल, विचार, कथा सब काल्पनिक है। पौराणिक बातों का उल्लेख सिर्फ कहानी को रोचक बनाने के लिए किया गया है। इसका मकसद किसी की भी धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने का नहीं है।)

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क्रमशः

शमिक मुनि के तेजस्वी पुत्र का नाम श्रृंगी था। उस दौरान वह किसी काम से बाहर गया था। लौटते समय रास्ते में उसने सुना कि कोई आदमी उसके पिता के गले में मृत सर्प की माला पहना गया है। कुपित ऋषिपुत्र श्रृंगी ने पिता के इस अपमान की बात सुनते ही हाथ में जल लेकर शाप दिया कि जिस पापत्मा ने मेरे पिता के गले में मृत सर्प की माला पहनाया है, आज से सात दिन के भीतर तक्षक नाम का सर्प उसे डस ले। आश्रम में पहुँचकर श्रृंगी ने पिता से अपमान करनेवाले को उपर्युक्त उग्र शाप देने की बात कही। ऋषि को पुत्र के अविवेक पर दुः