Sholagarh @ 34 Kilometer - 6 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 6

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 6

बिल्ली का क़त्ल

इंस्पेक्टर सोहराब सिसली रोड पर पहाड़ों के बीच बनी कुदरती झील की तरफ जाने के लिए निकला था। वह पिछले कुछ दिनों से वहां जा रहा था। सुबह पांच बजे वह झील पर पहुंच जाता था। वहां एक घंटा योगा करने के बाद लौट आता था। गर्मियों में वैसे भी सुबह जल्दी हो जाती है। वह सार्जेंट सलीम को भी ले जाना चाहता था, लेकिन वह किसी भी सूरत में इतनी सुबह जाने के लिए तैयार नहीं हुआ।

आज सोहराब का बिल्ली ने रास्ता रोक लिया था। गुलमोहर विला के गेट के बाहर सामने ही पेड़ की डाली से एक बिल्ली फांसी से लटकी हुई थी। इंस्पेक्टर कुमार सोहराब घोस्ट से उतर आया। उसके हाथों में टार्च थी। वह टार्च की रोशनी में बिल्ली को ध्यान से देखने लगा।

यह मेन कून नस्ल की बिल्ली थी। इस नस्ल की बिल्लियां बाकी बिल्लियों से जरा लंबी होती हैं। यह अपनी वफादारी के लिए जानी जाती हैं। इन्हें ट्रेनिंग देना भी आसान होता है। इन बिल्लियों को पानी में खेलना बहुत पसंद है।

सोहराब ने बिल्ली के शव को चारों तरफ से ध्यान से देखा। उसने नीचे जमीन का भी जायजा लिया। बिल्ली को कहीं और मारकर यहां लटकाया गया था। उसे मारे जाने का नीचे कोई निशान नहीं था।

मारने वाले बिल्ली को यहां मारने का रिस्क नहीं ले सकते थे, क्योंकि बिल्ली मरने से पहले शोर मचाती और अपने को बचाने के हर जतन करती। बिल्ली का हत्यारा यह रिस्क नहीं उठा सकता था। दूसरी अहम बात यह थी कि दम घोंट कर मारे जाने पर जानवरों का पेशाब और पाखाना आम तौर पर निकल आता है। यहां ऐसा कोई निशान नहीं था।

सोहराब उस पेड़ की तरफ बढ़ गया, जिससे बिल्ली लटक रही थी। पेड़ के पास एक रूमाल पड़ा नजर आया। उसने हाथों में दस्ताने पहन लिए और रूमाल को उठाकर देखने लगा। कोने पर फैब्रिक पेंट से अंग्रेजी में वी लिखा हुआ था। उसने टार्च की रोशनी में ध्यान से देखा तो रूमाल पर बिल्ली के बाल चिपके हुए थे। यानी बिल्ली को इसी रूमाल से गला घोंटकर मारा गया था।

उसने आसपास की चीजों का बारीकी से जायजा लिया। कोई और खास बात नजर नहीं आई। सोहराब वापस बिल्ली के पास आ गया। उसने जेब से एक तेज धार वाला चाकू निकाला। जिस रस्सी से बिल्ली लटक रही थी उस पर निशाना साध कर चाकू को पूरी ताकत से उस पर उछाल दिया। रस्सी के कुछ बल कट गए और फिर बिल्ली के वजन से बाकी बल भी जल्दी ही टूट गए।

इंस्पेक्टर सोहराब काफी मुस्तैदी से नीचे खड़ा था। उसने बिल्ली के शव को जमीन पर नहीं गिरने दिया। बिल्ली की लाश को हाथों पर संभाल लिया। उसने बिल्ली को कार के बोनट पर लाकर रख दिया। चाकू को कार से एक टिशू पेपर निकाल कर साफ किया और चाकू वापस जेब में रख लिया।

उसने कार के डैशबोर्ड से एल्युमिनियम फॉयल निकाल कर उसमें बिल्ली के शव को लपेट दिया। इसके बाद लाश को डिग्गी में रखकर हाथों को सेनेटाइजर से साफ किया और कार स्टार्ट कर दी।

सड़क दूर तक सुनसान थी। घोस्ट का पिकअप लाजवाब था। तीन सेकेंड में उसने सौ की स्पीड पकड़ ली। कुछ आगे जाने के बाद सोहराब ने कार को सड़क के किनारे लगा दिया। डैशबोर्ड से मोबाइल उठाकर किसी के नंबर डायल किए। फोन पर कुछ निर्देश देने के बाद कार फिर चल पड़ी। कार का रुख खुफिया विभाग के कैंपस की तरफ था।

खुफिया विभाग के गेट पर पहुंचकर उसने खास अंदाज में दो बार हार्न बजाया। दो गार्ड गेट से कार की तरफ तेजी से चले आ रहे थे। उनके कार के नजदीक आने के बाद सोहराब ने एक बटन दबाया और डिग्गी खुल गई। दोनों गार्ड बिल्ली के शव को उठाकर शीशे के पास आकर खड़े हो गए।

पोस्टमार्टम हाउस पहुंचा दो। कहना मुझे रिपोर्ट ई मेल कर दें। दोनों गार्ड सलाम करके चले गए। सोहराब ने कार का शीशा चढ़ाया और कार तेजी से आगे बढ़ गई।

उसने घोस्ट को रिंग रोड की तरफ मोड़ दिया। इक्का-दुक्का गाड़ियां चलने लगी थीं। रिंग रोड पर कुछ आगे जाने के बाद कार सिसली रोड की तरफ मुड़ गई। जल्द ही सोहराब को अंदाजा हो गया कि उसकी कार का पीछा किया जा रहा है। इसका मतलब यह था कि बिल्ली को गेट के सामने टांगने वाले लोग वहीं मौजूद थे। उस पर नजर रखने के लिए।

इंस्पेक्टर सोहराब बेपरवाह बना रहा। वह कार को उसी रफ्तार से चलाता रहा। हालांकि पीछा करने वाली कार से निजात पाना उसके लिए ज्यादा मुश्किल नहीं था। कुछ आगे जाने पर पहाड़ों का सिलसिला शुरू हो गया। पहाड़ किसी देव की तरह खड़े नजर आ रहे थे।

कुछ देर बाद उसने देखा कि पीछा करने वाली कार रुक गई थी। सोहराब ने कार की स्पीड थोड़ा स्लो कर दी। पीछे वाली कार यू टर्न ले रही थी। शायद पीछा करने वालों ने इरादा बदल दिया था। सोहराब के होठों पर रहस्यमयी मुस्कुराहट फैल गई।

घोस्ट काली सड़क पर भागी चली जा रही थी। कुछ आगे जाने के बाद अब कार की स्पीड कम होने लगी थी। कार कुछ दूर जाकर दाहिनी तरफ मुड़ गई। आगे एक और मोड़ आया और घोस्ट उधर घूम गई। कुछ दूर चलने के बाद वह रुक गई। सोहराब ने कार को एक बड़ी समतल चट्टान पर रोका था। यह जगह सड़क से देखने पर नजर नहीं आती थी।

सोहराब कार से उतर आया। कुछ दूर चलने के बाद वह एक पहाड़ी दर्रे में उतर गया। यह दर्रा इतना पतला था कि एक बार में एक आदमी ही गुजर सकता था। दर्रा अंधेरे में डूबा हुआ था। उसने टार्च नहीं जलाई थी। ऐसा लगता था कि सोहराब को इस दर्रे के सारे उतार-चढ़ाव पता हैं। वह बड़े आराम से चल रहा था।

कुछ देर चलने के बाद वह दर्रे से बाहर निकलकर खुले में आ गया। सामने कुदरती झील शांत लेटी हुई थी। सुबह की हल्की हवा जरूर उसे कभी-कभी कंपकपा देती थी।

चारों तरफ ऊंचे पहाड़ थे। यह कुदरती झील इन पहाड़ों से बह कर आने वाले पानी से बनी थी। चूंकि यहां तक आने के लिए कोई सीधा रास्ता नहीं था, इसलिए इस झील के बारे में शायद कम ही लोग जानते थे। यहां चिप्स के खाली पैकेट और कोल्ड ड्रिंक की बोतल नजर न आने पर सोहराब ने यही मतलब निकाला था।

खुद सोहराब को साल भर पहले ट्रैकिंग के दौरान इस दर्रे का पता चला था। यह भी मुमकिन हो कि हाल के किसी भूकंप के बाद यह दर्रा बना हो। जिससे झील तक जाने का रास्ता बन गया हो।

कुछ देर पैदल चलने के बाद सोहराब एक जगह रुक गया। उसने शूज उतार दिए। इसके बाद रेत पर पालथी मार कर बैठ गया। वह मेडिटेशन कर रहा था।

जब सोहराब मेडिटेशन से धीरे-धीरे बाहर आया तो उजाला चारों तरफ फैल चुका था। सोहराब उठ गया। उसने जूते पहने और उसी दर्रे से बाहर आ गया।

जब वह कार मोड़ कर रोड की तरफ आ रहा था तो उसका पीछा करने वाली कार उसके सामने से तेजी से गुजर गई। कार को एक लड़की ड्राइव कर रही थी। वह अकेली थी।


गुमशुदगी


“शाने.... तेरी शान में गुस्ताखी करूं इससे पहले बेड टी आ जानी चाहिए।” सार्जेंट सलीम बिस्तर पर लेटे-लेटे ही फोन पर दहाड़ा।

एक नौकर तेजी से कमरे में दाखिल हुआ। उसके हाथ में चाय की ट्रे थी।

“अबे दार्जलिंग चला गया था क्या!” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“नहीं साहब... किचन में था।” नौकर ने मासूमियत से कहा।

“कोई बात नहीं बेटा। अगली बार तुझे भी दार्जलिंग ले चलेंगे।” सार्जेंट सलीम ने टी पॉट से कप में ग्रीन टी उंडलते हुए कहा। उसने कप में कुछ बूंद नींबू की डालीं और चाय की चुस्की लेने लगा।

“मियां साहबजादे! जल्दी से तैयार हो जाइए। मैं नाश्ते पर आपका इंतजार कर रहा हूं।” सोहराब ने दरवाजे पर से कहा। वह लौट आया था।

इंस्पेक्टर सोहराब आकर डायनिंग हाल में बैठ गया। उसने सिगार केस से एक सिगार निकाल ली और उसका कोना तोड़ने लगा। सिगार जलाने के बाद उसने कुछ कश लिए और केस के बारे में सोचने लगा। अभी तक पूरा केस हवा में ही था। उसका कोई ओर-छोर नहीं मिल रहा था।

अभी तक यह भी साफ नहीं हो सका था कि शेयाली की मौत कैसे हुई है? सिर्फ शक की बुनियाद पर कोई केस नहीं खड़ा हो सकता। उसने सोचा।

अगर माना जाए कि शेयाली की मौत नेचुरल है तो फिर बिल्ली का कत्ल की वजह क्या है? बिल्ली को आखिर किसने मार डाला और क्यों? क्या यह उसके लिए कोई इशारा है? या फिर चेतावनी?

सोहराब ने हाथों पर दस्ताने पहन लिए। जेब से एक पॉलिथिन निकाली और उसमें से रूमाल निकालकर देखने लगा। रूमाल पर फैब्रिक पेंट से अंग्रेजी में वी लिखा हुआ था।

“क्या बिल्ली का कत्ल विक्रम ने किया है?” उसने अपने आप से सवाल किया, “अगर यह रुमाल विक्रम का हुआ तो...!”

“यह रूमाल आपको कहां से मिला? यह तो विक्रम का है।” सार्जेंट सलीम उसके सामने की कुर्सी पर बैठते हुए बोला।

“इतने यकीन से कैसे कह सकते हो?”

“कल हाशना के साथ जब विक्रम होटल सिनेरियो में बैठा था तो उसने जेब से यही रूमाल निकालकर चेहरा साफ किया था।” सलीम ने कहा।

“इस जैसे जाने कितने रूमाल होंगे?”

“नहीं यह रूमाल खास है, क्योंकि इस पर विक्रम के सिग्नेचर हैं जब वह मुंह साफ कर रहा था तो वी लिखा यह हिस्सा मेरी तरफ था। तभी मैंने इसे देखा था।”

“ओह!” सोहराब के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच आईं। उसने सिगार को ऐश ट्रे में बुझा दिया। कुछ देर की खामोशी के बाद उसने सार्जेंट सलीम को सुबह बिल्ली की फांसी वाला पूरा वाकेया बयान कर दिया।

पूरी बात सुनने के बाद सलीम ने कहा, “यह काम विक्रम का ही है।”

“एक डिटेक्टिव को इतनी जल्दी नतीजे नहीं निकालने चाहिए।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा, “पेट लवर अपने जानवरों को लेकर इस तरह से क्रूर नहीं होते हैं।”

“आप ही ने तो कल बताया था कि उसने शेयाली की बिल्ली को गोली मार दी थी।” सार्जेंट सलीम ने याद दिलाते हुए कहा।

“विक्रम को बिल्ली की बेवफाई बरदाश्त नहीं हुई थी।”

“हो सकता है यह बिल्ली भी बेवफा निकली हो।”

“तुम्हारी बात मान लेते हैं कि इस बिल्ली को विक्रम ने ही मारा है, लेकिन यहां गुलमोहर विला के सामने इसे टांगने का क्या मतलब हो सकता है भला?”

“आपको चैलेंज किया गया है!” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“यह बात भी मान लेते हैं, लेकिन क्या वह इतना बेवकूफ है कि अपना रूमाल छोड़कर चला जाए।” सोहराब ने कहा।

“ऐसा करते हैं कि नाश्ता करने के बाद विक्रम से मिलकर चेक कर लेते हैं।” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“देखते हैं।”

अभी यह बातें हो ही रही थीं कि कोतवाली इंचार्ज मनीष डायनिंग हाल में दाखिल हुआ।

“आइए मनीष साहब!” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा, “कैसे आना हुआ।”

“बस इधर से गुजर रहा था। आपके लिए एक इनफार्मेशन भी थी। सोचा आपको बताता चलूं।” मनीष ने जेब से एक फोटो निकालते हुए कहा, “कल शाम विक्रम कोतवाली आया था। इस बिल्ली की गुमशुदगी लिखाने।”

“विक्रम ने क्या लिखाया है रिपोर्ट में?” सोहराब ने फोटो देखते हुए पूछा।

“उसने बताया है कि वह बिल्ली के साथ पार्क में घूम रहा था। तभी एक कुत्ते ने बिल्ली पर हमला बोल दिया। डर कर बिल्ली जंजीर तोड़कर भाग गई। उसने काफी तलाशा, लेकिन बिल्ली मिली नहीं” मनीष ने बताया।

"कोई और खास बात उसने बताई?"

"नहीं।" मनीष ने कहा, "लेकिन ऐसा लगता है कि यह बिल्ली उसे बहुत प्रिय थी।"

"मतलब?" सोहराब ने पूछा।

"आज तकरीबन सभी अखबारों में बड़ा सा इश्तेहार छपा है... और बिल्ली तलाश कर देने वाले को पांच लाख रुपये इनाम देने का वादा भी किया गया है।" मनीष ने बताया।

तभी करीमा नाश्ता लगाने लगा। मनीष जाने के लिए उठ खड़ा हुआ।

“नाश्ता करके जाना।” सोहराब ने कहा।

“नहीं सर, मैं नाश्ता करके निकला हूं।” मनीष ने कहा और सलाम करके चला गया।

सार्जेंट सलीम और इंस्पेक्टर सोहराब नाश्ता करने लगे।

“हम कुछ मिस कर रहे हैं?” सोहराब ने कहा।

“क्या?”

“इस पूरे मामले में हमने कैप्टन किशन को नजरअंदाज कर रखा है।” सोहराब ने कहा, “तुम आज श्रेया से मिलो। वह तुम्हें विक्रम और कैप्टन किशन दोनों के बारे में काफी कुछ बता सकती है।”

“कौन श्रेया?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“वह शेयाली की असिस्टेंट है। जिस दिन समुंदर में हादसा हुआ था, वह वहां आई थी।” सोहराब ने उसे श्रेया का मोबाइल नंबर देते हुए कहा।

इंस्पेक्टर सोहराब ने उसे मनपंसद काम सौंप दिया था। सार्जेंट सलीम ने मन ही मन स्कीम बना डाली। वह श्रेया के साथ लांग ड्राइव पर जाएगा।

*** * ***


सोहराब का पीछा करने वाली लड़की कौन थी?
बिल्ली का कातिल कौन था?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ का अगला भाग...