Desh aur Dharam ke parey in Hindi Short Stories by Laiba Hasan books and stories PDF | देश और धर्म के परे

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देश और धर्म के परे

करीब चार साल पहले की बात है मैं अपनी फैमिली के साथ अजमेर शरीफ से वापस लौट रही थी। बारह बजे अजमेर सियालदह ट्रेन आई और हम सब उसमें चढ़ गए। मम्मी ने टिकट पहले से ही हाथ में लिया हुआ था ताकि सीट ढूंढने में परेशानी ना हो। ये हमारी सीट हैं उन्होंने सामान नीचें रखा और मुझे बैठने का इशारा करते हुए कहा। मैं बोगी में इधर उधर देखने लगी। तभी टीटीई साहब आ गए मम्मी ने अपना और बाबा का टिकट पहले ही हाथ में लिया हुआ था उनके मांगने पर उन्हें थमा दिया और मेरा टिकट निकालने लगीं जोकि दूसरे बैग में था। मम्मी के बहुत ढूंढने के बाद भी जब वो बैग नहीं मिला तो हम समझ चुके थे के बैग चोरी हो गया है। और उधर टीटीई साहब शायद ये समझ चुके थे के हमने टिकट लिया ही नहीं। उस बैग में टिकट के साथ साथ 5000 रूपये भी थे। टीटीई साहब के सब्र का बांध आब शायद टुट रहा था। इस बार उन्होंने सख्त आवाज़ में टिकट की मांग की। मेरी मम्मी उन्हें समझाने की कोशिश करने लगीं के वो बैग चोरी हो गया है जिसमें टिकट था। लेकिन वो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थे पता नही उन्होंने हमें क्या समझ लिया था। वो गुस्से में बोले ठीक है 1000 दो टिकट के। मेरी मम्मी ने पैसा ढूँढना शुरू कर दिया लेकिन सिर्फ 100 रूपये ही मिलें। मम्मी ने उन्हें फिर से समझाने की कोशिश किया के हमारे पास इसके आलावा एक रूपया भी नहीं है। लेकिन इस बार वो और ज्यादा गुस्से में आ गए और चिल्लाने लगे। झूठ बोलते हैं आप लोग जानबूझ कर टिकट नही लिया होगा आब जुर्माना भी नहीं भर रहे हैं यहां तो मैंने पकड़ लिया पता नहीं कहाँ तक बिना टिकट आए होंगे आप लोग रूको में अभी पुलिस लेकर आता हु। मै बहुत ज्यादा डर गई ये सुनकर और मैंने मम्मी की तरह देखा वो भी बेहद परेशान नजर आ रही थीं। आप चाहें तो हमारा पूराना टिकट देख लें हम कभी बिना टिकट सफर नहीं करते। मम्मी ने एक बार फिर उन्हें समझाना चाहा। जो भी दिखाना हो आब पुलिस स्टेशन में जाकर दिखाईये गा, इतना बोल कर जाने लगे। तभी पीछे से किसी ने आवाज लगाई सुनिये, सर एक मिनट रुकिये । टीटीई साहब रूक गए। पिछली सीट पर से दो आदमी उठकर टीटीई साहब के पास आये और बोले, आप रुकिये में और में और मेरे साथी इनका जुर्माना भरेंगे। वो चारों लोग बंगलादेश से थे। उन्होंने आपने साथ की सीट पर बैठे तीन लोगों की तरफ इशारा करते हुए कहा। उन चार लोगों ने थोड़ा - थोड़ा पैसा मिलाकर 1000 किया और टीटीई साहब को दे दिया। मम्मी ने 100 रूपये भी देने चाहें लेकिन उन्होंने ये कहकर रूपये लेने से मना कर दिया के सफर लम्बा है और आप लोगों के पास पैसे भी नहीं है आप को जरूरत पड़ सकती है। मम्मी ने उनका बहोत शुक्रिया अदा किया।
दूसरे दिन हम आपने शहर बनारस पहुंच गए लेकिन रेल का ये सफर हमें अभी तक याद है, मैने इस कहानी में उन लोगों के धर्म के बारे मे इस लिये नहीं लिखा क्यो की उन्होंने अगर हम लोगों की मदद करते समय हमारा धर्म देखा होता तो शायद वो हमारी मदद ना करते, ना वो इस देश के थे ना हमारी उनसे कोई जान पहचान थी वो दोबारा कभी मिलें भी नही आज भी जब हम लोग उन्हें याद करते हैं तो ना हिन्दू समझ कर ना मुस्लिम समझ कर बल्कि एक सच्चा इनसान समझ कर याद करते है।