Sangam - 10 - last part in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | संगम--(अंतिम भाग)

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संगम--(अंतिम भाग)

शाम का समय था,गुन्जा मां को लेकर मंदिर गई थी, सीताराम जी दुकान पर बैठे थे,श्रीधर शाम की चाय पीने आया__
प्रतिमा ने सोचा, अच्छा मौका है, श्रीधर से गुन्जा के विषय में पूछने का, उसने श्रीधर को चाय देते समय हिम्मत करके पूछ ही लिया कि तुम्हें गुन्जा कैसी लगती है?
अच्छी है,स्वभाव अच्छा है, खाना अच्छा बनाती है,श्रीधर बोला।
मैंने ये नहीं पूछा,मेरा इरादा तो कुछ और ही है, मैं सीधे-सीधे पूछती हूं,क्या तुम गुन्जा से ब्याह करोंगे,प्रतिमा बोली।
श्रीधर बोला,सच बताऊं प्रतिमा___
मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि मैं गुन्जा से प्रेम करने लगूंगा, क्योंकि मैंने तुम्हें जब पहली बार देखा तो तुम मुझे अच्छी लगी थी, लेकिन कहें तो ये महज एक आकर्षण था जो कि उस उम्र में हो जाता है, फिर जब तुम मुझसे बात करने लगी तो ये आकर्षण मित्रता में बदल गया, मुझे लगा हम अब सदैव मित्र रहेंगे लेकिन जब तुम्हारा ब्याह तय हुआ तो तब मुझे एहसास हुआ कि शायद मेरे मन में तुम्हारे लिए प्रेम उपजने लगा था और मैं हमारी मित्रता को कलंकित नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने तुमसे बात करना बंद कर दिया और फिर मैं हमेशा के लिए तुमसे दूर होना चाहता था इसलिए फिर कभी नहीं लौटा लेकिन भाग्य ने हमें फिर मिला दिया लेकिन सच मानो वो सिर्फ़ कच्ची उम्र का आकर्षण था,प्रेम क्या होता है ये मुझे गुन्जा से मिलने के बाद पता चला और मैं उस से ही प्रेम करता हूं, मैं तुम्हारे और मेरे बीच की मित्रता को कभी ना कलंकित करूंगा और ना होने दूंगा।
तुम्हें याद है एक बार मैंने कहा था कि हमारी मित्रता राधा और कान्हा की तरह है, राधा और कान्हा ने अपने अपने कर्तव्य निभाने के लिए एक-दूसरे को छोड़ दिया था,इसी तरह मुझे और तुम्हें भी अपने अपने कर्तव्य निभाने है, अपनी मित्रता कायम रखते हुए,अब बोलो फिर से मेरी मित्र और मार्गदर्शक बनोगी, मैं वचन देता हूं कि अगर मेरा ब्याह गुन्जा से हुआ तो, मैं उसे सदैव खुश रखने का प्रयास करुंगा।
प्रतिमा बोली, मैं जैसे दीनू काका को अपने परिवार का सदस्य मानती थी, वैसे ही तुम्हें भी मानने लगी थी और तुमसे मित्रता के बाद मैं अपने मन की सारी बातें कह देती थी लेकिन मैंने भी तुम्हें सिवाय मित्र की नजर से ही देखा था और तुम मुझसे छोटे ही थे,तो तुमसे प्रेम करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था, मेरे मन में तुम्हारे लिए वो भाव कभी आए ही नहीं है, मैंने तो प्रेम सिर्फ शशी जी से किया है,जब पिता जी पहली बार रिश्ते की बात लेकर आए थे तो उनकी छवि को मैंने अपने मन-मंदिर में बसा लिया था और जब वो मुझे देखने आए तो उनकी छवि वैसी ही थी जैसी मैंने अपने मन में बनाई थी, उन्होंने जब मुझे पूरी शादी भर उदास देखा तो मुझसे प्रश्न भी पूछा था कि वो मुझे पसंद है कि नहीं और मैंने हां में जवाब देकर तुम्हारे बारे में भी बिना झिझक सब बता दिया था,भगवान! साक्षी कि मैंने हमेशा शशी जी से ही प्रेम किया है और तुम सिवाय मित्र के कोई भी नहीं और हमेशा मेरे मित्र रहोगे।
प्रतिमा ने एक बार फिर पूछा, तो फिर मैं हां समझूं!!
श्रीधर बोला,गुन्जा जैसी लड़की से कौन ब्याह नहीं करना चाहेगा,वो बहुत खुशनसीब होगा, जो उससे ब्याह करेगा।
और ये सब बातें,गुंजा भी सुन रही थी और मन ही मन प्रसन्न हो रही थी।
इतना सुनकर, प्रतिमा को बहुत संतोष हुआ लेकिन मां बाबूजी तक ये बात वो कैसे पहुंचाए,इस उधेड़बुन में लगी हुई थी।
प्रतिमा जैसे ही बात करके बाहर निकली,गुन्जा शरमाते हुए प्रतिमा से लिपट गई और उसकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े।
प्रतिमा,गुन्जा को छेड़ते हुए बोली,अब लगता है जल्द ही मूहूर्त निकलवाना पड़ेगा, "हमारी ननद रानी बहुत बेचैन है" और बोली फिक्र मत करो, मैं सब ठीक कर दूंगी।
फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि____
डाकिया, कुछ फौज के सरकारी कागजात लेकर आया, बोला हस्ताक्षर करके ये कागजात ले लीजिए।
सीताराम जी ने आवाज लगाई कि प्रतिमा आकर हस्ताक्षर करदो क्योंकि ये फौज के कागज है, वहीं ले तो अच्छा है।
कागज़ात लेते ही,प्रतिमा ने खोलकर देखें और पढ़कर वो भौंचक्की रह गई, पहले तो भागकर भगवान जी के कमरे में जाकर माथा टेका और वही से सिन्दूर लेकर अपने माथे पर लगाकर फूट-फूटकर रोने लगी,सब असमंजस में पड़ गये कि ऐसा क्या हुआ है जो प्रतिमा ऐसा व्यवहार कर रही है,वो कागजात श्रीधर ने अपने हाथ में लेकर पढ़ें और उसके चेहरे पर भी खुशी के भाव आ गये।
वो बोला, मां -बाबूजी , शशीकांत भइया जिंदा है, किसी और कैदी का नाम भी शशीकांत पाण्डेय था जो कि शहीद हो गया था लेकिन जब पिता के नाम मिलाये गये तो पता चला कि जो शहीद हुआ है वो हमारे शशीकांत भइया नहीं है।
सीताराम जी बोले तो हमारा शशीकांत घर कब आएगा?
तभी श्रीधर बोला, बाबूजी यही खबर तो फौज ने भेजी है कि दो साल बाद पता चला है कि पच्चीस सैनिकों को दुश्मन सेना ने बंदी बना लिया था जिसमें कि एक हमारे शशी भइया भी है और सेना कब तक उन्हें छुड़ा पाएंगी, पता नहीं, इसके लिए कागजी कार्रवाई चल रही है लेकिन इतना पता चल गया है कि शशी भइया जीवित है,सब खुश भी हुए और निराश भी लेकिन आशा तो बंध गई कि शशी हमारे बीच है और एक ना एक दिन वो वापस आ जाएगा।
तभी प्रतिमा ने इच्छा जाहिर की कि बाबूजी मैं कल ही प्रयाग बाबूजी के पास जाऊंगी और त्रिवेणी संगम घाट पर जाकर डुबकी लगाऊंगी ताकि मेरा सुहाग सही-सलामत वापस आ जाए
सीताराम जी बोले, हमें कोई आपत्ति नहीं है,बहु तुम खुशी खुशी जाओ और मास्टर जी को भी ये खबर दो ताकि उनके मन को भी थोड़ी शांति मिल जाए और उन्होंने प्रतिमा से पूछा कि मैंने उन्हें निरंजन के आने की खबर देने को कहा था वो तुमने उन्हें दी थीं कि नहीं.....
इतना सुनकर प्रतिमा ने झूठ बोल दिया कि हां बाबूजी....
लेकिन झूठ बोलना तो प्रतिमा को भी अच्छा नहीं लग रहा था।
सीताराम जी ने गांव में सबको खबर कर दी कि हमारा शशी सही-सलामत है।
आज प्रतिमा ने शशी की पसंद की लाल साड़ी निकाली और सिन्दूर से मांग भरी, गले में मंगलसूत्र पहना, कलाइयों में लाल चूड़ियां पहनी, पैरों में महावर लगाया और अपने पिता जी के पास जाने के लिए तैयार हो गई,गुन्जा ने तुरंत प्रतिमा को काला टीका लगाया, बोली अब किसी की भी नजर ना लगे ,भइया जहां भी हो सही-सलामत वापस आ जाए।
गुन्जा ने आकाश को वहीं छोड़ा और निकल पड़ी पिता जी मिलने खुशखबरी के साथ, लेकिन रास्ते भर सोचती रही कि कैसे बताऊं पिताजी को कि श्रीधर ही निरंजन है।
और रास्ता इसी उधेड़बुन में पार हो गया,वो मास्टरजी के पास जैसे ही पहुंची, मास्टर जी पूरे श्रृंगार में प्रतिमा को देखकर आश्चर्यचकित हो गये,प्रतिमा उनके गले लगकर फूट-फूट रोने लगी और खुश होकर सारी बात बता दी, मास्टर जी उस दिन बहुत खुश हुए, तुरंत मंदिर गये और सियादुलारी को भी सारी बात बताई जो कि उस समय मंदिर में थी और दोनों ने पहले मंदिर में प्रसाद चढ़ाया और वापस कमरे में बेटी के पास आ गये, मां बेटी ने भी आपस में अपना दुख-सुख बांटा।
दूसरे दिन प्रतिमा ने इच्छा जाहिर की मैं त्रिवेणी संगम घाट पर स्नान करना चाहती हूं।
और वो दो-तीन रहकर वापस आ रही थी तो मास्टर जी बोले चल मैं छोड़ आता हूं।
प्रतिमा बहुत असमंजस में पड़ गई,ना हां ही बोल पा रही थी और ना ही बोल पा रही थी, उसने सोचा चलने दो पिता जी को साथ एक ना एक दिन तो सच्चाई बता चलनी है और जितनी जल्दी सच्चाई सबके सामने आ जाएगी उतनी ही जल्दी श्रीधर और गुन्जा का ब्याह हो जाएगा और वो मास्टरजी को अपने साथ ले आई ये सोचकर कि अब जो होगा देखा जायेगा।
प्रतिमा मास्टर जी के साथ घर लौटी और अंदर पहुंचते ही मास्टर जी ने सीताराम जी के साथ श्रीधर को बैठे देखा तो तुरंत पहचान लिया और बोले__ " श्रीधर तुम"!!
सीताराम जी बोले , मास्टर जी आप ग़लत समझ रहे हैं, ये निरंजन है,हमारा खोया हुआ बेटा, वर्षो बाद लौट कर आया है,आपको कोई शंका हो रही है।
मास्टर जी बोले, समधी जी आप ने कैसे मान लिया कि ये निरंजन है?
सीताराम जी बोले, मास्टर जी, हमें अपने खून को पहचानने के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है।
माफ कीजिए, समधी जी लेकिन आपकी नेत्रहीनता का अगर फायदा उठाया गया हो तो, मुझे कोई शंका नहीं है, मैं अपनी आंखों से देख पा रहा हूं कि ये निरंजन नहीं श्रीधर है, कुछ सालों पहले हमारे घर में इसके बाबा काम करते थे और ये हमारे घर में ही रहता था और मैं इसे पढ़ाया करता था, मुझे कोई धोखा नहीं हो सकता।
मैं और मेरी पत्नी तो नेत्रहीन है,हम तो पहले से ही अंधे थे और पुत्र मोह ने और भी अंधा बना दिया,श्रीधर तुम्हें लज्जा नहीं आई ये सब कहते हुए, कहां है हमारा निरंजन? सीताराम जी गुस्से से बोले।
मैं उस दिन आपसे मिलकर सारी सच्चाई बताना चाहता था लेकिन मैं जैसे ही कहने वाला था कि मैं निरंजन का मित्र हूं तो आपने मेरी पूरी बात सुनी ही नहीं,मैं निरंजन, इतना बस सुनकर तुंरत गले से लगा लगा और गुन्जा ने भी इशारा किया कि सच्चाई मत बताओ और सच बताऊं तो आप लोगों का दुःख देखकर मैं फिर बाद में कुछ नहीं बोल पाया जब ये बात प्रतिमा जी को बताई तो उन्होंने भी कहा कि अब इस बात को छुपाकर रखो कि निरंजन इस दुनिया में नहीं रहा, नहीं तो मां बाबूजी को गहरा आघात लगेगा तो मैंने आप लोगों से कुछ नहीं कहा और आप लोग चाहते हैं कि मैं यहां से चला जाऊं तो मैं चला जाता हूं।
तभी,प्रतिमा बोल पड़ी ,क्षमा कीजिएगा,पिता जी और बाबूजी आप दोनों ही घर के बड़े हैं,उस समय यही मुझे उचित लगा तो मैंने यही निर्णय लिया और निंरंजन अब हमारे बीच नहीं हैं, ये बहुत ही दुःख की बात है लेकिन अगर आपको श्रीधर जैसा दामाद मिल जाए जो आपकी बेटी को सच्चे हृदय से स्वीकारने को तैयार हो तो आपका क्या निर्णय होगा?
दोनों बुजुर्ग इस बात को सुनकर बहुत खुश हुए और सीताराम जी बोले हमें कोई आपत्ति नहीं है, हमें तुम्हारी बात पर भरोसा है बहु!!हमारी बेटी का घर बस रहा है,अब मुझे श्रीधर से कोई भी शिकायत नहीं है उसने हमारी भलाई के लिए ही झूठ बोला।
फिर क्या था,घर में शहनाई बजी,श्रीधर और गुन्जा का ब्याह हो गया, दोनों का ब्याह कराकर प्रतिमा घर की सारी जिम्मेदारी श्रीधर और गुन्जा के हाथो में और आकाश को भी सौंपकर बोली,अब मैं जा रही हूं अपने कर्तव्य का निर्वाह करने, वहीं त्रिवेणी संगम घाट पर अपने स्वामी का इंतजार करूंगी और तुम लोग भी अपना कर्तव्य निभाओ, अपनी गृहस्थी सम्भालो,समय समय पर आकाश को मुझसे मिलवाने ले आया करो, और प्रतिमा ,प्रयाग चली गई।
प्रतिमा को प्रयाग में रहते अब पांच साल हो चुके हैं और रोज वो त्रिवेणी संगम घाट पर जाती है, पता नहीं क्यों उसे वहां शांति मिलती है,गुन्जा की हर हफ्ते चिट्ठी आती है लेकिन शशीकांत की अब भी कोई खबर नहीं आई।
फिर एक दिन आकाश मिलने आया बोला मां आंखें बंद करों और एक सरकारी चिट्ठी प्रतिमा के हाथों में देता है जिसमें लिखा है कि शशीकांत सहित सभी सैनिकों को सरकार ने छुड़ा लिया है और अगले हफ्ते शशीकांत घर आ जाएगा लेकिन ये चिट्ठी तो एक हफ्ते पुरानी है तो शशी जी आजकल में आ जाएंगे और तभी पीछे से किसी ने प्रतिमा के कंधे पर हाथ रखा लेकिन ये स्पर्श तो कुछ जाना-पहचाना सा है और तभी वो मुड़ी और देखा तो शशी मुस्करा रहा है लेकिन उसका एक बाजू नहीं है और वो शशी के गले लगकर फूट-फूट कर रो पड़ी, उसने शिकायत भी की कि कहां थे अभी तक और सारे लोग सामने आ गये,सब शशी के साथ प्रयाग आये थे ,गुन्जा के दो बच्चे भी हैं साथ में इन पांच सालों में बहुत कुछ बदला लेकिन प्रतिमा की आश नहीं बदली उसे विश्वास था अपने सुहाग पर की शशी जी एक ना एक दिन जरूर लौटेंगे।
इस तरह शशीकांत और प्रतिमा का संगम पर संगम हो गया।

समाप्त____
सरोज वर्मा___🥀🙏