Manas Ke Ram - 27 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | मानस के राम (रामकथा) - 27

Featured Books
Categories
Share

मानस के राम (रामकथा) - 27





मानस के राम
भाग 27




हनुमान का लंका पहुँचना


सारी बाधाओं को पार कर हनुमान लंका के तट पर पहुँच गए। वहाँ नारियल तथा केले के बहुत से पेड़ थे। चारों तरफ घने जंगल तथा पहाड़ थे। लंका बहुत ही सुंदर व समृद्ध नगरी थी। वह एक पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए। वहाँ से उन्हें त्रिकूट पर्वत पर बसी लंका नगरी साफ दिखाई दे रही थी। हनुमान उसकी भव्यता को देख कर दंग रह गए। वह मन ही मन सोचने लगे कि क्या इस विशाल नगरी पर चढ़ाई कर इसे नष्ट किया जा सकता है। यदि यह संभव भी हो तो संपूर्ण सेना के साथ सौ योजन समुद्र लांघ कर आ सकना संभव होगा।
उन्होंने सोचा कि यह सब तो बाद की बात है पहले उन्हें इस नगरी में प्रवेश कर सीता की स्थिति का पता लगाना है। यह काम बहुत सावधानी से करना होगा। यदि वह पकड़े गए तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी। उन्होंने तय किया कि वह रात के समय लंका नगरी में प्रवेश करेंगे।
सूर्यास्त होने के बाद हनुमान लंका में प्रवेश करने के लिए लंका नगरी के द्वार पर आए। वह चाहते थे कि कोई उन्हें लंका में प्रवेश करते ना देख सके। अतः उन्होंने अपना आकार बहुत छोटा कर एक साधारण वानर के जितना कर लिया। वह दबे पांव अंदर प्रदेश करने का प्रयास कर रहे थे कि तभी द्वार पर पहरा देती एक राक्षसी की दृष्टि उन पर पड़ी। उसने गरज कर कहा,
"ऐ वानर कौन है तू ? तू चुपचाप लंका में घुसने का प्रयास क्यों कर रहा है ?"
हनुमान ने कहा,
"मैं एक साधारण वानर हूँ। इस सुंदर लंका नगरी को देखना चाहता हूँ। इसका भ्रमण करने के बाद लौट जाऊँगा।"
हनुमान की बात सुनकर राक्षसी ने उन पर ज़ोर से प्रहार किया। हनुमान ने भी अपने बाएं हाथ से उस राक्षसी को एक मुक्का मारा। हनुमान के प्रहार से राक्षसी के चेहरे से खून बहने लगा। उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। खुद को संभाल कर वह बोली,
"मेरा नाम लंकिनी है। ब्रह्मा जी ने जब रावण को अमरता का वरदान दिया था तब उन्होंने मुझसे कहा था कि जब एक वानर के वार से मैं विकल हो जाऊँगी तब रावण का अंत निकट होगा। आप कोई साधारण वानर नहीं हो सकते। आप लंका में प्रवेश करके अपना काम कीजिए।"
यह कहकर लंकिनी एक तरफ होकर खड़ी हो गई।
हनुमान ने अपना बायां पांव आगे कर लंका में प्रवेश किया। स्वर्ण निर्मित लंका की सुंदरता को देखकर वह विस्मित रह गए। चौड़ी वीथियां। उनके दोनों तरफ बड़े-बड़े भवन थे। भवनों की सुंदरता देखते ही बनती थी। इन भवनों के अंदर से गीत संगीत की ध्वनि आती सुनाई पड़ रही थी। हनुमान ने इन भवनों के अंदर झांक कर देखा।
कुछ भवनों के अंदर रास रंग का वातावरण था। मंदिर के नशे में झूमते पुरुष सुंदर स्त्रियों को अपने आलिंगन में खींच रहे थे। कहीं स्त्रियां अपने नृत्य और मोहक अदाओं से पुरुषों को रिझा रही थीं।
कुछ भवन ऐसे भी थे जहाँ से मंत्रोच्चार की ध्वनि आ रही थी। कहीं लंकापति रावण के शौर्य और पराक्रम की चर्चा हो रही थी।
इन सभी भवनों में बड़े ही सुरुचिपूर्ण तरीके से सजावट की गई थी।
वीथियों के किनारे छायादार वृक्ष थे। जगह जगह पर सुंदर उपवन बने हुए थे। इन उपवनों में तरह तरह के वृक्ष थे। सुगंधित फूलों की महक वातावरण में फैली हुई थी। हनुमान ने अनुभव किया कि रावण की लंका सुंदरता एवं वैभव में इंद्र की अमरावती और कुबेर की अलकापुरी से कम नहीं थी।
लंका में रहने वाले निवासियों का रूप और रंग भी अलग अलग प्रकार का था। कुछ लोग बहुत ही रूपवान थे। तो कुछ लोग कुरूप। कुछ बहुत ही हष्ट पुष्ट शरीर वाले थे। कुछ लोग मध्यम कद काठी के थे। कुछ गौरवर्ण के थे तो कुछ सांवले। कुछ अत्यंत ही काले थे।
कुछ देर तक हनुमान विस्मय से लंका की सुंदरता और वैभव को निहारते रहे। परंतु उन्हें अपने उद्देश्य का भली भांति ज्ञान था। वह उन स्थानों के बारे में सोच रहे थे जहांँ सीता के होने की संभावना थी।
हनुमान ने सीता की खोज में कई भवनों में तांक झांक की‌। उन भवनों में उन्हें एक से बढ़कर एक रूपवती स्त्रियां दिखाई पड़ीं। कुछ स्त्रियां अपने पतियों के साथ आमोद प्रमोद में व्यस्त थीं। कुछ अपनी सखियों के साथ थीं। कुछ स्त्रियां हास परिहास और क्रीड़ाओं में व्यस्त थीं तो कुछ निश्चिंत होकर सो रही थीं।
हनुमान जानते थे कि इन स्त्रियों में कोई भी सीता नहीं है। पति से विलग सीता ना तो आमोद प्रमोद में संलग्न हो सकती हैं और ना ही निश्चिंत होकर सो सकती हैं।
कई भवनों को देखते हुए हनुमान एक बहुत ही सुंदर और भव्य महल के सामने आकर रुके। भवन की सुंदरता और भव्यता इस बात का साक्ष्य थी कि यह भवन रावण का महल था।
हनुमान ने रावण के महल में प्रवेश किया। उसकी भव्यता देखते ही बनती थी। ऐसा लग रहा था जैसे कि यह धरती का कोई जगह ना होकर स्वर्गलोक हो। इस महल में भी कई सुंदर उद्यान थे। कई सुंदर भवन थे।
रावण के महल की सुंदरता निहारते हुए हनुमान उसके अंतःपुर में पहुँचे। यहाँ कई सुंदर भवन थे। सोने, चांदी, हाथी दांत और रत्नों से इनकी सजावट की गई थी। इन सुंदर भवनों में रावण की कई रानियां रहती थीं।
हनुमान ने रावण के महल में भी सीता की खोज की। पर यहाँ भी जो स्त्रियां थीं। उनमें सीता नहीं हो सकती थीं। यहाँ भी सारी स्त्रियां वस्त्र आभूषणों से सुसज्जित प्रसन्न थीं। अपने अपहरणकर्ता के भवन थे सीता का इस तरह श्रंगार कर प्रसन्न रहना संभव नहीं था।
हनुमान सीता के ना मिलने से निराश हो रहे थे। वह समझ नहीं पा रहे थे कि सीता की खोज कहाँ और कैसे करें।

विभीषण से भेंट
रावण के महल से निकल कर हनुमान अन्य स्थानों पर सीता की खोज करने लगे। इस खोज में उन्हें रावण का शस्त्रागार दिखाई पड़ा। इस शस्त्रागार में भांति भांति के शस्त्र रखे थे। लेकिन हनुमान की रुचि उसमें नहीं थी।
वहाँ से निकल कर हनुमान आगे बढ़े। एक जगह एक भवन को देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। यह भवन लंका के अन्य भवनों से भिन्न था। इस भवन में शुभ चिन्ह बने थे। भवन के प्रांगण में तुलसी का पौधा लगा था। हनुमान विस्मित हुए कि राक्षसों की नगरी में यह सज्जन कौन है जिसका यह भवन है।
हनुमान चकित से उस भवन को देख रहे थे। तभी उनके कानों में राम नाम की ध्वनि सुनाई पड़ी। राम नाम का सुमिरन सुनकर हनुमान को पूरा भरोसा हो गया कि यह भवन किसी सज्जन पुरुष का है।
सत्य का पता करने के लिए उन्होंने एक ब्राह्मण का भेष धारण किया और द्वार पर जाकर पुकारा। द्वार पर किसी आगंतुक की आवाज़ सुनकर भवन स्वामी बाहर आए। सामने एक ब्राह्मण को खड़ा देखकर उन्होंने कहा,
"हे ब्राह्मण देव आप कौन हैं ? कृपया अपना परिचय दें।"
हनुमान ने उनको अपना परिचय देते हुए कहा,
"मैं श्रीराम का भक्त हूँ। उनकी आज्ञा से उनकी पत्नी का पता करने के लिए लंका आया हूँ। हे भद्रपुरुष आप भी अपना परिचय दीजिए। इस लंका में राम का नाम लेने वाले आप कौन हैं ?"
"मैं लंकापति रावण का भाई विभीषण हूँ। राम की कीर्ति और शोर्य से प्रभावित होकर मैं उनका भक्त बन गया हूँ। परंतु राक्षस कुल में जन्म लेने के कारण पता नहीं राम मुझे स्वीकार करेंगे या नहीं।"
विभीषण का परिचय जानकर हनुमान ने कहा,
"राम विशाल ह्रदय हैं। वह अपनी शरण में आने वाले लोगों को निराश नहीं करते हैं। मैं हनुमान नाम का एक वानर हूँ। उन्होंने मुझ जैसे वानर को अपना लिया है तो आपको भी अपना लेंगे।"
अपनी बात कहकर हनुमान वास्तविक रूप में आ गए। उन्होंने विभीषण से कहा,
"क्या आप सीता का पता लगाने में मेरी सहायता कर सकते हैं। मैंने लंका में कई स्थानों पर उन्हें खोजा। परंतु उनका कोई पता नहीं चला।"
हनुमान की बात सुनकर विभीषण ने कहा,
"सीता अत्यंत दुखी अवस्था में हैं। यहाँ आने के बाद रावण ने उन्हें कई तरह से मनाने का प्रयास किया। परंतु सीता किसी भी तरह उसके प्रभाव में नहीं आईं।"
विभीषण की बात सुनकर हनुमान बहुत दुखी हुए। उन्होंने कहा,
"मैं सीता की स्थिति के बारे में सुनकर बहुत द्रवित हूँ। कृपया मुझे बताएं कि मैं उनसे कैसे मिल सकता हूँ।"
"रावण ने सीता को अशोक वाटिका में रखा हुआ है। वहाँ भयानक राक्षसियां उन्हें परेशान करती हैं।"
सीता का पता जानकर हनुमान के ह्रदय को बहुत ठंडक पहुँची।

राक्षसियों के पहरे में सीता

विभीषण से मिली जानकारी के बाद हनुमान सीता से भेंट करने अशोक वाटिका गए।
अशोक वाटिका बहुत सुंदर थी। रात्रि के समय इस वाटिका की सुंदरता और भी अधिक निखर कर सामने आ रही थी। हनुमान सीता को देखते हुए एक ऐसे स्थान पर पहुँचे जहाँ एक स्त्री अशोक के एक वृक्ष के नीचे बैठी थी। उस स्त्री के मुखमंडल पर एक आभा थी जो दुख के कारण वह धूमिल दिखाई पड़ रही थी। हनुमान को भरोसा हो गया कि यही सीता हैं।
हनुमान उस पेड़ के पास एक ऐसे स्थान पर छिप गए जहाँ से सीता पर दृष्टि रख सकें।
चारों तरफ राक्षसियां पहरा दे रही थीं। वह राक्षसियां बहुत भयानक थीं। हाथों में हथियार लिए वह सीता के आसपास घूम रही थीं। सीता को भयभीत करने का प्रयास कर रही थीं।
उनके बीच सीता अशोक के पेड़ के नीचे बैठी थीं। अत्यंत दुर्बल दिखाई पड़ रही थीं। उनकी आंँखों से निरंतर आंसू बह रहे थे। ऐसा लग रहा था कि उनके प्राण केवल अपने पति से मिलने के लिए ही शरीर नहीं छोड़ रहे हैं।
उसी समय कोलाहल हुआ। पहरे पर तैनात राक्षसियां सावधान हो गईं। लंकापति रावण सीता से मिलने अशोक वाटिका में आ रहा था।