Mukambal Mohabat - 22 in Hindi Fiction Stories by Abha Yadav books and stories PDF | मुकम्मल मोहब्बत - 22

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मुकम्मल मोहब्बत - 22



मुकम्मल मोहब्बत -22


बेड टी लिए हुए आधा घंटा हो गया है. लेकिन, शरीर अभी भी अलसाया हुआ है. जबकि बेड टी लेने के बाद मैं दोबारा नहीं लेटता. लेकिन, आज उठने का मन ही नहीं कर रहा.काफी देर से उठने की कोशिश कर रहा हूँ.


शरीर भी दिमाग के कंट्रोल मेंं रहता है. दिमाग को पता है आज सारा दिन घर पर ही रहना है. बाहर जाना नहीं है. फिर उठने की जल्दी क्या. आज झील पर अपनी कहानी सुनाने आयेगी नहीं. उसे बादल से मिलने जाना है.मैं भी चाहता हूँ, आज बादल से उसकी मुलाकात हो जाये और वह अपने प्यार का इजहार कर दे.


अब,सोच रहा हूँ. आज का दिन कैसे गुजारना है.नैनीताल में बहुत सारे ऐसे स्थल हैं ,जिन्हें बार बार देखा जा सकता है-चायना पीक,टिफिन टॉप,स्नो व्यू,कहीं भी जाया जा सकता है. यूँही टाईम पास करना हो तो मालरोड पर घूमते हुए कुछ खाया पिया जा सकता है.

लेकिन, मेरा उद्देश्य तो घर से निकलने पर नैनीझील में वोटिंग करते हुए मधुलिका की कहानी लिखना बन गया है. अब,इससे अलग यहां बाहर निकलना सूझता ही.अच्छा लग रहा है, मधुलिका से उसकी लव स्टोरी सुनना .लव भी ऐसा जिसमें लव के सिवाय और कुछ है ही नहीं. न स्वार्थ, न कुछ पाने की ख्वाहिश, न कोई मंजिल. बस,प्यार... प्यार... प्यार...



कितना अधिक जुनून है मधुलिका में अपने प्यार को लेकर. बादल की शादी किसी और से सही लेकिन, उसका प्यार तब भी वही है. समझ नहीं आता इसे प्यार कहूं या छोटी उम्र की बचकानी हरकत.अब,कहो कुछ भी दिल पर भला किसका जोर है. लैला-मंजनू को ही देख लो ,जिस उम्र में उन्हें प्यार की परिभाषा भी नहीं पता थी.उनके दिल एकदूसरे के लिए प्यार से सराबोर थे.चोट मंजनू को लगे दर्द लैला के जख्मों से रिसे.कभी -कभी मुझे लगता है मधुलिका पिछले जन्मों की लैला तो नहीं. बादल उसका मंजनू तो नहीं. बिना कारण दिलों में इस कदर मोहब्बत कैसे भर सकती है. कहते हैं-अधूरी मोहब्बत अपनी चाहत के लिए बार बार जन्म लेती है. मोहब्बत और दुश्मनी का रिश्ता मिटता ही कहां है. अक्सर, मोहब्बत और दुश्मनी ही पुनर्जन्म की कहानियों को जन्म देती है.कोई अपने प्रेमी की तलाश में पुनर्जन्म लेता है कोई अपनी दुश्मनी का बदला लेने के लिए.


मधुलिका और बादल भी पिछले जन्म के प्रेमी होगें. इसलिए उनके मन मेंं अटूट प्रेम भरा है.


मैंने घड़ी की ओर निगाह डाली. घड़ी सुबह के साढ़े सात बजाने का ऐलान कर रही थी. अब उठना ही पड़ेगा. साढ़े नौ बजे जोशी आंटी का नाश्ता तैयार हो जायेगा. अभी शेविंग और बाशरूम से निपटना है.उठकर मैने स्लीपर पैर में डाले ही थे कि जोशी आंटी कप हाथ में लिए अंदर आ गईं.


"स्ट्रांग कॉफी. तुम्हें इसकी जरूरत है."कहते हुए जोशी आंटी ने कॉफी का कप टेवल पर रखा और चाय का खाली कप उठा लिया.


"आंटी,आप ममा की तरह जान जाती हो ,मुझे किस समय किस चीज की जरूरत है."मैंने कृतज्ञता प्रकट की.


"मां ही तो हूं."जोशी आंटी ने हँसकर कहा लेकिन अपने बेटे-बहू को खोने का दर्द उनके चेहरे पर साफ झलक गया.



"आंटी, मैं आपका बेटा ही हूं. मुझे केवल पेंईगगेस्ट समझने की भूल न करियेगा."मैने हँसकर कहा. मैं उनके मन की बोझिलता को कम करना चाहता था.


"बेटे तो तुम मेरे हो ही.अब,यह बताओ-नाश्ते में क्या लोगें-ब्रेड पकौड़ा, पनीर पकौडा,इडली..."

"इडली" मैने जल्दी से कहा.मुझे पता है.अंकल पकौड़े नहीं खाते. इडली वह खा लेगें. पकौडे आंटी मेरी बजह से बनायेगीं. मुझे वही खाने की डिश भाने लगी हैं जो यह दोनों खा लें और आंटी पर काम का जायदा बोझ भी न पड़े.


आंटी ने चाय का खाली कप उठाया और किचेन में चली गईं. मैं कॉफी लेकर गार्डेन में निकल आया.

अखरोट, चिनार, सेब के पेडों के बीच से होता हुआ मैं गेस्ट रूम की ओर चला आया. गेस्ट रूम के दरवाजे पर दोनों ओर कुछ हटकर बुराश की झाड़ियां थीं. वहीं गेस्ट रूम के दरवाजे के इधरउधर मैंने लाल गुलाब और रात की रानी के पौधे लगाए थे ,जो अभी भी हरे थे और अपनी सामर्थ्य के अनुसार फूल दे रहे थे.



वैसे मुझे वृक्षारोपण या गार्डनिंग का कोई बिशेष शौक नहीं है. लेकिन, किसी के प्यार को समर्पित कर कोई पौधा गमले या जमीन पर अवश्य रोपता हूँ.फिर उस पौधे को बढ़ते हुए देखने में जो खुशी मुझे होती है. उसको में बयां नहीं कर सकता. पहली बार जब में यहां जोशी आंटी के गेस्ट रूम मेंं रहने आया था और उनका जो प्यार मुझे मिला था. उसी को समर्पित कर मैंने यह लाल गुलाब और रात की रानी मंगा कर यहां लगाये थे.

जोशी आंटी ने भी उनकी प्यार से देखभाल की. तभी तो आज भी फूलों से लदे हैं.

मैंने कॉफी का आखिरी घूंट भरा और वापस लौटने लगा.तभी मुझे अपने पास ही मोगरों के फूलों की खुशबू महसूस हुई. मुस्कुराया मैं. इस बार मधुलिका के प्यार को मोंगरे का पौधा समर्पित होगा. रविश को फोन करुगां -मोंगरे के दो पौधे भिजवा दे.


क्रमशः