श्रीधर ने जैसे ही प्रतिमा को देखा और प्रतिमा ने श्रीधर को, पर दोनों ने एक-दूसरे को देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी,बस एक-दूसरे की आंखों में ही देखकर एक-दूसरे का दर्द समझ लिया, दोनों जीभर रोना चाहते थे, एक-दूसरे से अपनें-अपने मन की बातें कहकर मन हल्का करना चाहते थे लेकिन दोनों में से किसी ने भी ऐसा नहीं किया क्योंकि समाज के कुछ बन्धन और नियम होते हैं जो कि किसी भी सामाजिक प्राणी को ये करने की अनुमति नहीं देते, या कहें कि समाज में रहने के लिए इंसान खुद ही एक दायरा बना लेता है और वो उससे बाहर नहीं निकलना चाहता,यही दायरा शायद दोनों ने अपने अपने बीच बना लिया था।
प्रतिमा बोली,गुन्जा मैं इन्हें जानती हूं, ये मेरे पिताजी के छात्र रह चुके हैं।
तब ठीक है भाभी लेकिन जो इन्होने निरंजन भइया के बारे में कहा कि भइया अब नहीं रहे और ये बात मां बाबूजी को पता चली तो उनका क्या हाल होगा, मैंने जबसे सुना है तो मेरा तो मन तबसे बहुत दुःखी हो रहा और मां बाबूजी..........
इतना कहकर गुन्जा रोने लगी____
प्रतिमा ने गुन्जा को तुरंत गले लगा कर सान्त्वना दी और बोली पता नहीं भगवान! हमारी कौन सी परीक्षा ले रहा और कौन से बुरे कर्म किए हैं हमने जो ऐसी सजा दे रहा है और वो भी फूट-फूटकर रोने लगी।
दोनों की ऐसी हालत देखकर श्रीधर का मन भी बहुत दुःखी हो आया, तभी बिस्तर पर सोए हुए आकाश ने आंखें खोली और ये सब देखकर पूछा__
क्या हुआ मां आप और बुआ क्यो रो रहे हो और ये कौन है?
गुन्जा बोली, कुछ नहीं आकाश बेटा, ऐसे ही और ये हमारे मेहमान है।
आकाश बहुत खुश हुआ और भागते हुए,दादा जी के पास पहुंचा जो कि दुकान में ही बैठे थे जो कि घर के बाहर वाले कमरे में हैं__
दादा जी हमारे घर में मेहमान आए हैं, आकाश बोला।
सीताराम जी बोले, अरे वो तेरे चाचा है तूने उनके पैर छुए।।
नहीं मैंने तो नहीं छुए, आकाश बोला।
आकाश भागकर श्रीधर के पास गया और उसके पैर छूकर बोला,दादा जी तो कह रहे हैं कि आप मेरे चाचा है!!
तभी प्रतिमा बोली, हां बेटा ये तुम्हारे चाचा जी ही है!!
अच्छा,अभी दादा जी के पास जाओ, चाचा जी स्नान करके भोजन कर लें फिर उनके साथ खेलना,गुन्जा बोली।
ठीक है, बुआ, इतना कहकर आकाश चला गया।
तभी प्रतिमा बोली, ये तो बड़ी समस्या पैदा हो गई, ऐसे कब तक मां बाबूजी को धोखे में रखेंगे कि ये निरंजन भइया नहीं है और अगर सच्चाई बता दी तो दोनों जीते जी मर जाएंगे।
गुन्जा बोली लेकिन, भाभी कब तक छुपायेगे।
दोनों की बातें सुनकर श्रीधर बोला,ये मुझसे ना हो पाएगा, बूढ़े मां-बाप को मैं कैसे धोखे में रख सकता हूं, अपने अंतरात्मा को बहुत मुश्किल से समझा पाया हूं, मेरे बाबा को जो मेरी वजह से कष्ट हुआ था ,उसकी याद को मैं बड़ी मुश्किल से अपने जीवन से धुंधला कर पाया हूं लेकिन अभी उसके चिन्ह मेरे हृदय पर अंकित है और फिर दुबारा किसी बूढ़े और नेत्रहीन मां बाप का हृदय मेरी वजह से दुखा तो ये मुझसे सहन नहीं हो पाएगा।
प्रतिमा बोली,अगर तुम्हारे पास इससे बेहतर और कोई विकल्प हो तो बताओ, तुम्हारी वजह से अगर बूढ़े मां-बाप को थोड़ी देर के लिए झूठी ख़ुशी मिलती है तो उसमें क्या बुराई है, वर्षो से अपने बेटे की राह देख रहे हैं बेचारे, उनकी खुशी उनसे मत छीनो, पहले छोटा बेटा चला गया घर छोड़कर, ये तो झूठी आश पर जी रहे थे कि एक ना एक दिन उनका बेटा लौटकर आएगा, लेकिन जब उसकी मृत्यु का समाचार सुनेंगे तो पूरी तरह से टूट जायेंगे और बड़ा बेटा जबसे शहीद हुआ है तब से हंसना-बोलना ही भूल गए हैं।
प्रतिमा की बात सुनकर, श्रीधर बहुत असमंजस में पड़ गया, बूढ़े मां-बाप को धोखा भी नहीं देना चाहता था और सच्चाई भी नहीं बता सकता था फिर उसने निर्णय लिया कि वो कुछ दिन यहां रूकेगा और किसी दिन मौका देखकर सब कुछ बता देगा।
अब श्रीधर ने वहां रहकर सब कुछ सम्भाल लिया,वो बोलता बाबूजी अब आप आराम कीजिए, मैं दुकान पर बैठकर पर सब कुछ सम्भालता हूं,श्रीधर के दुकान को सम्भालते ही दुकान अच्छे से चलने लगी, क्योंकि वो दुकान में अच्छे से अच्छा समान रखता, लेन-देन भी समय पर करता, और भी जो लोग माल देने आते थे उनसे भी उसके अच्छे सम्बन्ध हो गये,अब दुकान भी बहुत मुनाफे में चलने लगी,वह समय-समय पर गांव जाकर खेती-बाड़ी भी देख आता,अब पार्वती और सीताराम जी के चेहरे पर थोड़ी थोड़ी मुस्कुराहट लौट आई थी, उन्हें अब अपना सहारा जो मिल गया था, धीरे धीरे अपने दुःख भूलने लगे थे और तो और अब आकाश दिनभर श्रीधर के ही पास रहता, चाचा जी ये करो, चाचा जी वो करो और श्रीधर भी उसकी शरारतों से कभी तंग ना होता, बड़े दुलार से उसे सम्भालता।
लेकिन इन सब से प्रतिमा ने कुछ बातें गौर की कि गुन्जा और श्रीधर के दिल के तार धीरे धीरे जुड़ने लगे थे,श्रीधर ने कभी गुन्जा से कुछ कहा नहीं लेकिन ये बात प्रतिमा की पारखी नजर से छुप नहीं सकी और प्रतिमा के दिल को भी सुकून मिला कि गुन्जा को कोई अपना लें तो इसमें क्या बुराई है,वो बाल-विधवा है तो इसमें उसका क्या दोष और फिर वो तो गुड्डे गुड़ियों का खेल था, जिससे उसने कभी प्रेम ही नहीं किया,जिसे दिल से कभी चाहा ही नहीं, जो बचपन में ही उसे छोड़कर चला गया,भला उसके लिए क्यो वो अपना जीवन बर्बाद करें और इसमें कोई बुराई नहीं, पहले ये बात मुझे श्रीधर से पूछनी होगी, उसकी रजामंदी के बाद ही कोई फैसला लेना होगा....
क्रमशः____
सरोज वर्मा___🥀