Antardwand - 4 in Hindi Women Focused by Sunita Agarwal books and stories PDF | अंतर्द्वन्द - 4

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अंतर्द्वन्द - 4

अभी तक आपने पढ़ा कि नेहा गर्भवती हो जाती है।नेहा बहुत खुश थी और सोच रही थी कि शायद अब उसकी स्थिति पहले से बेहतर हो जाए, आखिर उनके परिवार के अंश को जन्म देने वाली थी ।लेकिन ऐसा न हो सका; अब भी सब अपने एक - एक काम के लिये उस पर निर्भर थे।वह ऐसी हालत में भी घर के सारे काम करती।खाना,कपड़ा,बर्तन,साफ सफाई ,कपड़ों पर इस्त्री करना आदि।इस पर भी जरा भी लेट हो जाती या कोई कमी रह जाती तो उसको दस बातें सुननी पड़तीं।इस तरह मानसिक तनाव और काम के बोझ के कारण उसका गर्भपात हो जाता है।इस पर भी उसकी सास उसे सुनाकर पड़ोसिन से कहती है कि हमारे तो कभी ऐसा नहीं हुआ हमारे तो पूरे पाटे बच्चे हुए ।सुनकर उसे बहुत दुख होता है,और वह अकेले में रोती है।मानसिक तनाव और जद्दोजहद के साथ, कुछ माह का समय गुजरा। और चार पाँच माह बाद वह दुबारा गर्भवती हो जाती है।निखिल नेहा को चेकअप के लिये अस्पताल ले गया।डॉक्टर ने नेहा के नियमित चेकअप के लिये कहा और ज्यादा से ज्यादा आराम करने की सलाह दी।फिर भी, काम तो वह, सारा ही करती लेकिन काम खत्म होने पर थोड़ा आराम भी कर लेती थी।निखिल भी नेहा का ख्याल रख रहा था ।लेकिन निखिल की एक आदत ज्यों की त्यों थी, वह थी उसका छोटी छोटी बात पर रूठना।जब अच्छे मूड में होता तो लगता ,इससे अच्छा इंसान कोई नहीं है, और जब नाराज होता तो पूरी तरह दुश्मन बन जाता, फिर हर रिश्ते नाते को ताक पर रख देता।एक दिन सोमवार का दिन था,उसकी सासुजी का सोमवार का व्रत था।वह नहा धोकर मंदिर चली गईं।नेहा घर के जरूरी काम निबटा कर कपड़ों की तह करने लग गई ।अभी थोड़े से कपड़े बाकी थे कि सासुजी मंदिर से लौट आईं। तब निखिल कमरे में आया और नेहा से बोला "मम्मी को चाय बना कर दे दो "।चार पाँच कपड़े ही बचे थे नेहा बोली-"अभी तो आई हैं, इन कपड़ों को और तह करके रख दूँ,तब बनाउँगी।इस पर निखिल नाराज हो गया और नेहा पर गुस्सा करने लगा।नेहा उसी वक्त उठकर चाय बनाकर सासुजी को दे आई।इस पर भी उसका गुस्सा शांत नही हुआ ।वह नेहा के साथ बेरुखा बर्ताव करने लगा ,उससे बात तक करनी बंद कर दी।उसे कभी-कभी उसे लगता कि निखिल को उससे प्रेम नहीं है ।लेकिन उसका मन इस बात को मानने को तैयार नहीं होता।क्योंकि गुस्से में ही वह बेरुखा बर्ताव करता था,वैसे तो उसका व्यवहार ठीक ही था।उसके मन में हमेशा अंतर्द्वन्द चलता रहता ।सासुजी की सेवा वह अब भी खूब कर रही थी, बिस्तर पर चाय से लेकर उनके पाँव दबाने तक वह सब काम पूरे मन से कर रही थी।फिर भी कहीं न कहीं कोई कमी निकल ही जाती या कहें निकाल दी जाती।गर्मियों के दिन थे ,अब वह आठ माह की गर्भवती थी।सासुजी और ससुर जी के कमरे में एक तख्त था, जिस पर ससुर जी सोते थे,और एक बड़ी सी -भारी सी चार पाई थी ,जिस पर सासुजी सोती थीं।रात के आठ बजे थे, सब लोग खाना खाकर आराम कर रहे थे।वह रसोई का काम निबटा रही थी।तभी बिजली चली गई, उस वक्त घर में इनवर्टर नहीं होते थे।'सासुजी' ने नेहा को चारपाई बाहर छत पर निकालने को कहा।नेहा ने जैसे -तैसे चारपाई बाहर निकाली और बचा हुआ काम निबटाने लगी।थोड़ी देर में सासुजी फिर आवाज देती हैं कि यहाँ मच्छर काट रहे हैं,चारपाई अंदर कर दे।वह फिर काम छोड़कर गई और चारपाई अंदर करके आई।अंदर आकर थोड़ी देर बाद उन्हें फिर गर्मी लगने लगी फिर वह चारपाई बाहर निकालने के लिये कहने लगीं,तब निखिल बोला "ये क्या मम्मी; कभी चार पाई अंदर करवा रही हो कभी बाहर"।लेकिन माँ बेटे दोनों में से किसी ने यह नहीं सोचा कि ऐसी हालत में इससे ऐसे काम कैसे करवाएँ। वह तो सिर्फ उनके लिये एक नौकरानी बन कर रह गई थी ,वह भी बिन तनख्वाह की।क्या शादी से पहले ये लोग अपने काम खुद नहीं करते थे लेकिन अब अपने हर छोटे बड़े सभी कामों के लिये नेहा पर निर्भर थे।वह ऐसी हालत में भी सब के सारे काम करती।
जो सासुजी इतनी भारी चारपाई उससे दो तीन बार इधर से उधर करवा रही थीं,उन्होंने जरा भी इस बात का ख्याल नहीं किया कि नेहा दूसरे की बेटी ही सही लेकिन उनके खानदान के अंश को तो जन्म देने वाली थी। यह काम वह अपने बेटे से भी तो करवा सकती थीं।जबकि अधिकांश घरों में ऐसे काम लड़कों से ही करवाये जाते हैं।कुछ ससुराल वाले बहु के लिये इतने कठोर कैसे हो जाते हैं?।वह अपना सब कुछ छोड़कर आती है,उसे प्यार और अपनेपन की जगह तिरस्कार और परायेपन का अहसास ही क्यों मिलता है? खैर इसी तरह कुछ और वक्त गुजरा और वह वक्त भी आ पँहुचा जब नेहा को बच्चे होने का दर्द शुरू हो गया।ऐसी हालत में भी वह घर के सभी कामकाज निबटाकर अस्पताल गई।और दूसरे दिन सुबह उसने एक प्यारी- सी बेटी को जन्म दिया।