Mission Sefer - 14 in Hindi Moral Stories by Ramakant Sharma books and stories PDF | मिशन सिफर - 14

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मिशन सिफर - 14

14.

पता नहीं वह कितनी देर तक सोता रहा था। खिचड़ी लेकर आई नुसरत ने ही उसे उठाया था और पूछा था – “अब कैसा लग रहा है?”

“बुखार तो कम हुआ है, पर कमजोरी बहुत महसूस हो रही है।“

“बुखार कम है, यह तो अच्छी बात हुई ना। डाक्टर साहब ने कहा था कि बुखार उतरने में थोड़ा समय लगेगा। वायरल बुखार में कमजोरी तो आती है। कहते हैं, बुखार उतरने के बाद भी कमजोरी जाते-जाते ही जाती है। मैं खिचड़ी लेकर आई हूं। आप उठकर मुंह हाथ धो सकते हैं या फिर पानी यहीं लेकर आऊं?”

“नहीं, मैं उठता हूं।“

उसने उठकर हाथ-मुंह धोए थे, पर कमजोरी की वजह से तुरंत वापस आकर खाट पर बैठ गया था।

नुसरत उसे खिचड़ी खिलाकर और दवाई देकर चली गई थी। जाते-जाते कह गई थी कि वह पूरा आराम करे। शाम को वह चाय-नाश्ता लेकर ही आएगी।

नुसरत के जाने के बाद वह फिर से लेट गया था। वाकई कमजोरी इतनी थी कि उससे बैठा नहीं जा रहा था।

दवाई खाते-खाते उसे आज तीसरा दिन हो गया था। बुखार उतर चुका था, पर कमजोरी बदस्तूर जारी थी। इस बीच अब्बू आकर कई बार उसे देख गए थे। उसका बुखार उतर जाने से वे खुश नजर आ रहे थे – “बुखार उतर गया है आपका। ऑफिस से दो-तीन दिन की छुट्टी और ले लो। पूरी तरह तंदुरुस्त होने पर ही ऑफिस जाने की सोचना।“

उसने ‘हां’ में सिर हिलाया तो अब्बू उसे तसल्ली देकर चले गए।

अब्बू के जाने के बाद नुसरत ने कहा था – “ अल्लाहताला का शुक्र है, आपकी तबीयत में काफी सुधार है। कई दिन से खिचड़ी खा रहे हो। आज कुछ अच्छा लेकिन हल्का बना कर लाती हूं आपके लिए।“

“मैं आप लोगों को बहुत परेशान कर रहा हूं ना” – राशिद ने कहा था।

“कैसी बात कर रहे हैं आप? जानबूझ कर बीमारी थोड़े ही मोल ली है आपने। हारी-बीमारी तो लगी ही रहती है। अब्बू कह रहे थे – हमारे घर में रह रहा है तो हारी-बीमारी में हम उसका ख्याल नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा।“

“आप लोग वाकई बहुत अच्छे हैं। एक अजनबी इंसान के लिए इतना कर रहे हैं। सच बताऊं, मुझे इसकी आदत नहीं है। मेरी अब तक की जिंदगी में ऐसा कभी नहीं हुआ कि कोई मेरा इतना ख्याल रखे -----“ राशिद का गला रुंधने लगा था।

“आप ज्यादा मत सोचिए राशिद, अपनी तबीयत का ख्याल रखिए। चुपचाप सो जाइये। मैं बाद में आती हूं।“

नुसरत के जाते ही राशिद अपने आप पर काबू करने की कोशिश करने लगा, पर कुछ आंसू उसके गालों पर लुढ़क ही आए थे। उसने उन्हें पौंछा और सोने की कोशिश करने लगा।

अभी उसे झपकी आई ही थी कि खटखट की आवाज से उसकी नींद खुल गई। उसने सोचा अब्बू या फिर नुसरत में से कोई होगा। पर दरवाजा तो अंदर से बंद नहीं था। कमजोरी की वजह से उसे बार-बार दरवाजा खोलने के लिए नहीं उठना पड़े, इसलिए उसने अंदर से दरवाजा बंद नहीं किया था और यह बात अब्बू और नुसरत दोनों को मालूम थी। फिर कौन था, यह देखने के लिए वह उठने की कोशिश कर ही रहा था कि फिर से वही खटखट की आवाज आई। उसने महसूस किया कि यह खटखट की आवाज दरवाजे से नहीं आ रही थी। फिर कहां से आ रही थी? शायद गली के बाहर से कोई खिड़की पर दस्तक दे रहा था। उसने अपने ऊपर पड़ी चादर हटाई और खिड़की का पल्ला पूरा खोल दिया। वह यह देखकर चौंक गया कि खिड़की के बाहर वही आदमी खड़ा हुआ था जो उसे इस घर तक पहुंचा कर गया था। वह कुछ कहने ही जा रहा था कि उस आदमी ने उसे चुप रहने का इशारा किया और खिड़की की सलाखों के बीच से एक लिफाफा उसे पकड़ा कर तुरंत चलता बना।

राशिद लिफाफा हाथ में लिए बैठा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस लिफाफे में क्या है। उसने खिड़की का पल्ला वापस बंद करते हुए उस लिफाफे को खोल डाला। उसमें कुछ कागज रखे थे। वह समझ गया कि उसके लिए कोई इंस्ट्रक्शंस भेजे गए हैं।

कमजोरी की वजह से बड़ी मुश्किल से वह खाट से उठा। उसने दरवाजा अंदर से बंद किया और लाइट जला कर उन कागजों को देखने लगा। उसे यह देखकर हैरानी हुई कि उसके हाथ में भारत की किसी यूनिवर्सिटी द्वारा जारी आइटी और सिस्टम इंजीनियरिंग की डिग्री और मार्क्सशीट थी। उसने ध्यान से देखा उनपर उसका नाम लिखा था। दोनों बिलकुल सही मालूम होते थे, डिग्री पर वाइसचांसलर के साइन थे और यूनिवर्सिटी की मोहर भी। मार्क्सशीट पर अहमदाबाद के किसी कॉलेज का नाम दर्ज था। लिफाफे में एक पर्ची भी थी, जिसमें लिखा गया था, “आपको इस यूनिवर्सिटी और कॉलेज का नाम अच्छी तरह से याद रखना है। इन दोनों के बारे में जरूरी जानकारी इस पर्ची के पीछे लिखी हुई है, इस सबको ध्यान से देख लें और अच्छे से याद कर लें। आगे के इंस्ट्रक्शंस आपको बाद में भेजे जाएंगे।“

राशिद ने तुरंत वह लिफाफा अपने बैग में डाल दिया और दरवाजे की चिटखनी खोलकर खाट पर लेटने के लिए चला गया। लेटने से पहले उसने धीरे से खिड़की का पल्ला खोला और बाहर झांका, वहां कोई नहीं था। उसने एक गहरी सांस ली और वह चादर ओढ़कर फिर से लेट गया। आज का यह वाकया उसके सोचने के लिए काफी मसाला दे गया था। यह लिफाफा इस बात का इशारा था कि उसे अपने मकसद को पाने के लिए कमर कस लेनी थी। उसने अल्लाहताला से दुआ मांगी कि वह उसे जल्दी पूरी तरह तंदुरुस्त कर दे ताकि वह जिस मकसद से भारत आया है, उसे पूरी शिद्दत से अंजाम दे सके।

तभी दरवाजा खुलने की आवाज आई। उसने देखा अब्बू और नुसरत दोनों आए थे। अब्बू ने आते ही उसके माथे पर हाथ रखा और कहा – “बुखार तो बिलकुल भी नहीं है। पहले से बेहतर लग रहा है ना?”

“जी अब्बू। पर, कमजोरी बेहद है।“

“वह भी एक-दो दिन में चली जाएगी। डाक्टर साहब ने कहा था दवा खाते रहो और आराम करते रहो, तबीयत बिलकुल ठीक हो जाएगी।“ फिर उन्होंने नुसरत से कहा था – “नुसरत बेटा, पहले इन्हें कुछ खाने को दो और उसके बाद दवा भी दे दो।“

नुसरत अपने साथ खाने के लिए कुछ लेकर आई थी। उसे प्लेट में निकाल कर उसने राशिद को दिया तो वह उठकर बैठ गया। उसे उठकर बैठते देख नुसरत ने सहारे के लिए तकिया उसकी पीठ के पीछे रख दिया और कहा – “अब टिक कर आराम से बैठ कर खाओ।“

राशिद ने उसे शुक्रिया कहा और तकिए के सहारे बैठ गया। वह जब खा चुका तो नुसरत ने उसे दवा और पानी पकड़ाया और कहा – “बस, अब आप जल्दी ठीक हो जाएंगे। फिर वापस ऑफिस जाना शुरू कर देंगे। आदमी तो काम पर जाता ही अच्छा लगता है। ऑफिस में बहुत काम होता है क्या?”

राशिद ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह किस काम से और कहां जाता है, उसे क्या बताता। वह नहीं चाहता था कि नुसरत इस बारे में उससे और कुछ पूछे। उसकी चुप्पी देखकर नुसरत ने भी और कुछ नहीं पूछा था। उसे लगा था कि कमजोरी की वजह से उससे बात भी नहीं की जा रही है, इसलिए वह उसे आराम करने की हिदायत देकर चली गई।

राशिद सोच रहा था कि उसके लिए भारत की यूनिवर्सिटी की इंजीनियरिंग की डिग्री और मार्क्सशीट तो आ गए थे, पता नहीं अब अगले कदम का उसे कब तक इंतजार करना होगा। बीमार होने का यह फायदा जरूर हुआ था कि उसे यह जताने के लिए बेकार में ही सड़कों पर इधर-उधर मारा-मारा नहीं फिरना पड़ रहा था कि वह ऑफिस जाता है। उसने सोच लिया था कि कमजोरी दूर होने के बाद भी वह कुछ दिन ऐसे ही और निकालेगा।

फिलहाल उसके पास इंतजार करने के अलावा कोई चारा था भी नहीं। उसे पता था कि मिशन को अंजाम देने के लिए जरूरी इंतजामात करने में आइएसआइ पूरी ताकत से लगा होगा और जल्दी ही उसे अपने मकसद को पूरा करने में जुट जाना होगा। वह खुद भी चाहता था कि उसके मुल्क ने उसे जो अहम काम करने के लिए चुना है, वह उसे जल्दी से जल्दी पूरा करे और अपने वतन और मज़हब के लिए अपना फर्ज पूरा करे।

उसने उठकर अपना बैग खोला और उसमें से वे कागज निकाल कर फिर से देखे। उसने यूनिवर्सिटी और कॉलेज का नाम कई बार पढ़ा ताकि उसे रट जाए और फिर उनके बारे में पर्ची में दी गई मालूमात को भी ध्यान से पढ़ा। वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था, पता नहीं कब इस सबकी जरूरत उसे पड़ जाए।

थकान महसूस हुई तो उसने कागजात को संभाल कर बैग में रखा और फिर से खाट पर जाकर लेट गया। इस कमजोरी की वजह से उसकी नमाज कजा हो रही थी। उसने तय किया कि इंशाअल्लाह वह कल से कमरे में ही नमाज़ अदा करना शुरू कर देगा। उसने ऊपर वाले का हर चीज के लिए शुक्रिया किया और सोने की कोशिश करने लगा।