Mrutyu ka madhyantar - 2 in Hindi Fiction Stories by Vijay Raval books and stories PDF | मृत्यु का मध्यांतर - 2

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मृत्यु का मध्यांतर - 2

अंक - दूसरा/२

लगा कि इशिता के भीतर छलकते स्नेह की झील का बांध अचानक से फट जाने की वजह से जिस तरह पलक झपकते ही सबकुछ नष्ट करने के बाद शांत हो जाए, कुछ ऐसी ही अनुभूति के साथ इशिता अंदर से टूट गईं।'

भीगे हुए गालों को दुपट्टे से पोंछते हुए बोली,
मुझे इतना बताओगे कि..
'इशिता में अजीत कहां नहीं है...? औैर अजीत में इशिता कहां है..?'

थोड़ी देर चुप रहकर अजीत बोला,

'सॉरी इशिता, तुम इकोनॉमी औैर इमोशन्स दोनों मॅच करके बात कर रही हो। इट्स टोटली रॉन्ग फ्रॉम माय पॉइंट ऑफ व्यू। मैं ऐसा कह रहा हूं अभी हमारे पास मौका है, समय है, तो संघर्ष करके क्यूं न हमारी अपनी फ्यूचर लाइफ को बैटर औैर सेफ कर लिया जाय? औैर मेरे अमेरिका चले जानेसे क्या हमारे प्रेम या उसकी अनुभूति में कोर्इ कमी या नुकसान हाे जायेगा क्या? मेरा अमेरिका जाने का दूसरा कोई इंटेनशन नहीं है न?'

'बस फर्क इतना ही है अजीत, कि तुम मेरे बगैर रह सकते हो, मैं नहीं अब जब तुमने जाने का मन बना ही लिया है, तो हमारे विचार विमर्श के लिए कोई स्थान नहीं है।'

इतना बोलकर इशिता अजीत के गले लगकर चुपचाओ रोती रही।

'हां, लेकिन अजीत येे तो बताओ कि तुम जा रहे हो कौनसे वीज़ा पर?'इशिता ने पूछा।

'मुझे वर्जीनिया की एक यूनिवर्सिटी में स्कॉलरशिप के साथ एडमिशन मिल गया है। जिसके लिए पिछले एक साल से मेहनत कर रहा था।'अजीत ने रिप्लाइ दिया।

'ओ... तो यही थे तुम्हारे ऑनलाइन क्लासेज है न? सही में तुम एक नंबर के छुपे रुस्तम हो, मुझे भी नहीं बताया?' मीठा झगड़ा करते हुए इशानी बोली।

'सरप्राइज, माय डियर सरप्राइज।' अजीत बोला।

'तुम्हारी येे सरप्राइज देने की आदत एक दिन किसी की जान ले लेगी। औैर सुनो अजीत, मेरे मम्मी, पापा को मनाने की जिम्मेदारी तुम्हारी रहेगी।'
इशिता ने कहा।

'क्यूं?'अजीत ने पूछा।

'क्यूं क्या क्यूं? वाे जब उन्हें इस बात का पता चलेगा तब मेरा तो कोर्ट मार्शल कर देंगे देख लेना। औैर मुझे पचास सवालों के जवाब देने पड़ेंगे वाे अलग से। वाे लोग हर्ट होंगे वो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा।'

'उसकी टीम चिंता मत करो मैं संभाल लूंगा। ठीक है अब घर चलते है। नाऊ टु लेट।' अजीत ने जवाब दिया।

नेक्स्ट डे।

शाम के समय इशिता घर पर अकेली औैर घर के किसी काम में व्यस्त थीं तब आदित्य का कॉल आया।
'हा, आदि, बोल।'
'क्या बोलूं? कुछ बाकी है बोलने के लिए?'थोड़ा सा कुढ़कर आदित्य बोला।
'क्यूं आदि, क्या हुआ? एनीथिंग रॉन्ग?' आश्चर्य के साथ इशिता ने किचन में से ड्रॉईंग रूम में आते हुए पूछा।
'अजीत, अमेरिका जा रहा है?'
'हां, लेकिन तुम्हे किसने बताया?' आश्चर्य के साथ इशिता ने पूछा।
'इशिता दीक्षित ने तो नहीं बताया, इतना पता है।'
'लेकिन आदि, क्यूं ऐसे टोन में बात कर रहे हो? कुछ हुआ?'
'ठीक है चलो, तुम्हारे साथ बाद में बात करता हूं, बाय।'ऐसा बोलकर आदित्य ने कॉल कट कर दिया।
आदित्य का ऐसे एटिट्यूड में बात करते हुए कॉल कट करना इशिता को आश्चर्य हुआ। बाद में सोचा कि होगा कोई कारण, फिर से कॉल आयेगा तो पूछ लूंगी। ऐसा सोचकर अपने काम में लग गई।

इसी तरह से एक वीक चला गया।

अजीत, इशिता औैर आदित्य के साथ मिलकर इशिता के पेरेंट्स को भरोसा देकर समझाया और अंत में मान भी गए लेकिन एक शर्त कि, अजीत को सगाई कर के अमेरिका जानेका। औैर एक दिन दोनों फ़ैमिली ने मिलकर पारम्परिक विधि के अनुसार दोस्तों औैर संबंधीआे की उपस्थिति में खुशी खुशी दोनों की सगाई की रस्में सम्पन्न करी। इसके बाद ही इशिता के पेरेंट्स के मन को शांति हुई।

कल अजीत का मुंबई में आखिरी दिन था।

'अरे.. यार, नो... नो.. नो... कार तो बिलकुल नहीं। जाना तो बाइक पर ही है प्लीज़ अजीत। कल हमारे साथ का लास्ट सन्डे मुझे तुम्हारे साथ दिल फाड़कर जीना है, बस।' इशिता ने दोनों हाथ अजीत की कमर के इर्दगिर्द लपेटकर कहा।

सन्डे

इशिता की फरमाइश के अनुसार बाइक पर सुबह से लेकर देर रात ग्यारह बजे तक इशिता ने अंतिम दिन को अजीत के साथ जी भरकर बिताया।

मन्डे

रात के ११:३० बजे एयर इंडिया की मुंबई टु न्यूयॉर्क की सीधी फ्लाइट थी। ठीक शाम को ७:३० बजे आदित्य अपनी कार में इशिता के साथ अजीत को उसके घर से पिकअप करके ८:३० के आसपास एयरपोर्ट पर ड्रॉप करके, अंतिम घड़ी में इशिता, अजीत के गले लगकर बहुत रोने के बाद आदित्य ने बड़ी मुश्किल से शांत किया। अजीत अंदर गया और आदित्य औैर इशिता घर की ओर आने के लिए निकले।

नेक्स्ट डे इशिता औैर आदित्य ने इशिता के घर से वॉकिंग डिस्टेंस पर स्थित मॉल के नज़दीक एक हनुमान मंदिर में मिलने का तय किया था।उसे हिसाब से शाम के सात बजे के आसपास दोनों मिले।

शांति से दर्शन करने के बाद बाहर एक बेंच पर दोनों बैठे।
'अजीत का मैसेज आ गया?' आदित्य ने पूछा।
'हां, व्हाट्सएप कॉलिंग पर बात भी हो गई।'

'ओ.के. इशिता, मुझे तुम पर गुस्सा इस बात आता है कि, तुमसे रिलेटेड कोई भी तुम्हारी कोई बात मुझे थर्ड पार्टी के पास से जानने को मिले तब।'
'मतलब? कौनसी बात आदि?'
'अजीत अमेरिका जानेवाला था वाे।'
'लेकिन सच कहुं, उस बात से मैं इतनी अपसेट थी कि, आई वोज़ स्योर कि तुम्हें बोलूंगी तो तुम्हें पसंद ही नहीं आयेगा। इसलिए भी, उस दिन अच्छा हुआ कि अजीत के साथ घर आए और मेरे मम्मी, पापा को बहुत अच्छी तरह से कन्वींस किया।' इशिता ने कहा।

'फॉर यॉर काइंड इनफॉरमेशन, मैं आया नहीं था मुझे लाया गया था, समझी।' आदित्य ने कहा।

'लाया गया था, मतलब क्या आदि? कौन लाया था?' आश्चर्य के साथ इशिता ने पूछा।

तुम्हारे भावी पति श्री अजीत कुलकर्णी के कहने से। जिस दिन तुम्हें अमेरिका जाने की बात कही उसके दूसरे ही दिन मुझे मिला। औैर मुझे जिम्मेदारी सौंपी, वाे भी तुम्हें पता नहीं लगने देने की शर्त पर, बोलो।'

'ओह माय गॉड.. अरे लेकिन आदि, अजीत ने ऐसा क्यूं किया? कोर्इ ठोस वजह?' इशिता की धड़कनें बढ़ गई।

'मेरे विचार से अजीत को अंदाज़ा था कि वो तुम्हारे मम्मी, पापा को नहीं समझा सकेगा इसलिए मुझे आगे कर दिया।'
'लेकिन आदि, येे जिम्मेदारी तो अजीत की है न। वो क्यूं नहीं समझा सकता? इशिता ने पूछा।
इसलिए इशिता की ओर देखकर हंसते हुए आदित्य बोला, 'इशिता, वो बात जानने के लिए अब बहुत देर हो चुकी है।'
'आदि, जाे भी हो तुम साफ़ साफ़ बात करो। मुझे घबराहट हो रही है।'
'अरे, बाबा ऐसी कोई मैटर नहीं है। वाे तो अजीत का नेचर ऐसा है, बस। वाे उसका माइनस प्वाइंट है, बात छुपाना, ओर कुछ नहीं है।'
'आदि, आर यू स्योर? मेरी कसम?' आदित्य का हाथ अपने सिर पर रखते हुए इशिता ने पूछा।
'इशिता मैं अजीत जैसा तो करूंगा ही नहीं, इतना याद रखना। सच में कुछ भी नहीं है।'

थोड़ी देर बाद दोनों अलग हुए।

अजीत अमेरिका में बहुत खुश था। हररोज इशिता को दो से तीन कॉल करता। एक एक बात शेयर करता। थोड़े दिनों के बाद तो कॉलेज भी रेगुलर शुरू हो गई थी। इसलिए व्यस्तता के चलते कभी कॉल करने का समय भी नहीं मिलता था। लेकिन समयानुसार मैसेज से इशिता को अपडेट दे देता था।

समय समय का काम करता रहा। आजकल करते हुए अजीत को अमेरिका गए हुए दस महीने जैसा समय बीत गया। स्टडी के साथ साथ जॉब भी शुरू कर दी थी। फ्रेंड सर्कल भी अच्छा खासा हाे गया था। जिसमे इंडियन, यूरोपियन औैर अमेरिकन्स भी शामिल थे।

जॉब ज्वॉइन करने के बाद अजीत के कॉल्स इरेगुलर होने लगे। कभी कभी तो दो-दो, तीन-तीन दिन तक कुछ नहीं। औैर अब दस महीने के बाद इशिता को भी आदत हो गई थी। ज्यादा हुआ तो किसी भी कोने में जाकर रो लेती थी।

एक दिन सुबह आदित्य का कॉल आया।
'दोस्ती के नाते एक रिक्वेस्ट कर सकता हूं?'
'हां, बोल आदि।'
'आज तुम्हारे साथ डिनर करने की इच्छा है, बोलो, पूरी होगी?'
'हम्ममम.. लेकिन कहां? कितने बजे?'
'बस तुम्हारे एरिया के नज़दीक ही हूं मैं तुम्हें घर पर पीक अप करने आऊंगा, ८ बजे ठीक है?'
'हां, ठीक है।'
अजीत के अमेरिका जाने के बाद आज फर्स्ट टाइम इशिता डिनर के लिए बाहर जा रही थी। आठ और पांच मिनट बजे तक आदित्य आया। इशिता के मम्मी, पापा के चरण स्पर्श किए और स्वीट का बॉक्स उनके हाथ में दिया। इसलिए इशिता की मम्मी ने पूछा,
'क्यूं, येे स्वीट का बॉक्स, आज कुछ स्पेशल है?'
'ना, आंटी स्पेशल तो कुछ नहीं बस, मेरी जिन्दगी से एक साल कम हो गया आज।'
इतना सुनते ही इशिता का फेशियल एक्सप्रेशन देखकर आदित्य हंसने लगा।
'ओह.. माय गॉड आदि...'
इशिता अभी आगे कुछ बोलने जाए इससे पहले आदित्य बोला,

'अभी तो इंगेजमेंट ही हुई है, मैरिज के बाद तो शायद ऐसा भी पूछ सकती है कि कौन आदित्य? तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।'
'अरे.. सही मेें दो दिन पहले तक मुझे बिलकुल याद था कि परसों आदित्य का बर्थडे है लेकिन..' ऐसा बोलकर आदित्य के साथ हाथ मिलाते हुए कहा,
'तहे दिल से तुम्हें जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाए..'
इतना बोलते ही इशिता की आंखों में पानी आ गया।

थोड़ी देर बाद दोनों निकले।

कार में बैठते ही इशिता रोने लगी तो आदित्य ने पूछा,
'अरे.. क्या हुआ?'
'सॉरी, आदि मैं तुम्हारा बर्थडे भूल गई.. लेकिन आदि।'
'प्लीज़ स्टॉप क्राइंग। एक बात कहूं इशिता यादगार बर्थडे किसे कहते है? आपके जन्मदिन पर आपका सब से करीबी आपको बर्थडे विश करना जाए वही बेस्ट विश एण्ड बेस्ट गिफ्ट, समझी। वाे इसलिए कि हज़ारों की उपस्थिति मे के बीच किसी एक की अनुपस्थिति आपको चुभती हो तो कितना मेमोरेबल होता है न?'
'अब ज्यादा रुलाओगे?'
इशिता, आदित्य के सामने देखकर बोली।

आदित्य इशिता को उसके फेवरेट रेस्टोरेंट लेकर आया। तो इशिता बोकी,
'आदि.. तुम्हें याद था येे रेस्टोरेंट?'
'इशिता इस बात पर मुझे मनहर उधास ने गाई हुई एक गज़ल का शेर याद आ रहा है, कि.. 'भूल जाना वाे बात मेरे हाथ बाहर की बात है, औैर याद रखना वाे आपका विषय नहीं है।' 'ऐसा ही कुछ है।'
दोनों चेयर पर बैठते ही इशिता बोली, 'लेकिन सच कहूं आदि, पिछले एक वीक से पता नहीं पर एक अलग ही तरीके की बेचैनी महसूस हो रही है। ओन्ली तुम्हारा बर्थडे ही नहीं लेकिन आजकल तो बहुत सारे काम भी उलट पुलट हो रहे हैं।'
'यू आर राइट, उसमें तुम्हारी गलती नहीं है।'इशिता की फेवरेट डिशेस का ऑर्डर देने के बाद आदित्य बोला।
'ऐसा तुम्हें किस बात से लग रहा है?' इशिता ने पूछा।
'हम्ममम... कुछ नहीं मैं सिर्फ़ अनुमान लगाया।' आदित्य ने जवाब दिया।
'लेकिन कौन सी बात पर से?'इशिता ने पूछा।
'जैसे कि... कृष्ण के वियोग में मीरा उदास प्रेम दिवानी बन गई थी ऐसे ही तुम कहीं..' बोलते हुए आदित्य हंसने लगा।

'आदि, एक वीक से अजीत का कोई कॉल या एक मैसेज नहीं है। औैर ऐसा पहली बार हुआ है। मेरे मैसेजेस डेलिवर्ड नहीं हो रहे हैं, औैर कॉल करती हूं तो डायरेक्ट ऑटो आंसरिंग मैसेज आता है। घर में किसी को बोल नहीं सकती औैर तुम्हें बोलूं तो तुम..' आगे बोलते हुए अटक गई।
'मै क्या इशिता?'
'तुम भी क्या कर सकते हो इसमें? इसलिए मैं..' इतना बोलते ही इशिता की आंखें भीग गई।
'हां, तुम्हारी येे बात भी सही है कि मैं क्या कर सकता हूं इसमें? चलो कोई रास्ता सोचें उससे पहले डिनर फिनिश करें।'

'आदि, दस महीनों में अजीत में बहुत बदलाव आ गया है। एक बात मेरी समझ में नहीं आती आदि कि.. अजीत को समझने में मुझसे कहां कमी रह गई? मेरे स्नेह की या मेरी समझ की?'

'कमी नहीं इशिता, लेकिन कुछ ज्यादा ही।' आदित्य ने जवाब देते हुए कहा।
'यानि?'
'आई थिंक कि.. तुम्हारी समझ औैर स्नेह दोनों अजीत डाइजेस्ट नहीं कर सका औैर आदरपूर्वक नजरअंदाज़ भी नहीं कर सका।'

'मुझे खुशी भी हो रही है औैर दुःख भी कि.. हम दोनों की मनोस्थिति का तुम इतने अच्छे से कैसे विश्लेषण कर सकते हो? आई कांट बिलीव धीज़।'इशिता ने पूछा।

'आसान है इशिता, अगर आप किसीको ज़िन्दा रखते हो तो, सिर्फ़ खुद के लिए जीते हो तो नहीं'
'लेकिन आदि तुम क्यूं ऐसे हो?'
'ऐसा यानि? मेरे सिर पर सिंग लगे हैं?' बोलकर हंसने लगा।
'अरे.. ऐसा यानि की.. दुनिया से ज़्यादा लोगों के दिल पर राज करना अच्छा आता है ऐसा।'इशिता ने जवाब दिया।
'लेकिन, जिन्हें दिल जीतना आता है उन्हें बाद में दुनिया छोटी लगने लगती है, दुनिया से ज़्यादा दिल जीतना मुश्किल है।'आदित्य ने कहा।
'लेकिन.. अजीत तो दिल जीतने के बाद भी दुनिया जीतने निकला है, आदि।'
'ना, अजीत दिल जीतकर नहीं उसको ज़रिया बनाकर दुनिया को खरीदने निकला है।'
'मतलब?'
उसके बाद आदित्य इशिता की ओर देखता ही रहा येे देखकर इशिता को आश्चर्य हुआ।
'यानि?' इशिता ने पूछा।
'क्या देख रहे हो आदि?'
'यही कि, जाे अब मैं फ़िर कभी देख पाऊंगा या नहीं।'
'क्या?'
'तुम्हारी स्माइल'आदित्य ने जवाब दिया।
'क्यूं तुम कहीं जानेवाले हो? मुझे छोड़कर अजीत की तरह।'
'ना, मैं नहीं लेकिन जो छोड़कर गया है उसकी बात कर रहा हूं।'आदित्य बोला।
'अजीत?'
'हां,'

इशिता को अंदाज़ा हो गया कि आदित्य, अजीत के बारे में ही कुछ कहना चाह रहा है लेकिन कह नहीं पा रहा है, इशिता की धड़कनें बढ़ गई। इसलिए घबराते हुए पूछा,

'आदि, एनीथिंग सीरियस?'

एक मिनट चुप रहने के बाद आदित्य बोला, 'चलो, हम कार में बैठकर बात करते हैं।'

पांच मिनट कार में बैठने के बाद ही आदित्य की चुप्पी इशिता को खलने लगी तो बोली,
'आदि आई कांट कंट्रोल माइ हार्ट बिट्स प्लीज़, क्या हुआ है?'

आदित्य ने अपना मोबाइल हाथ में लिया, सर्च करके इशिता के हाथ में देते हुए बोला, 'पहले, एक गहरी सांस लेकर बाद में देखना।'इतना सुनते ही इशिता के हाथ पांव ठंडे पड़ गए।
थोड़ी देर आदित्य की ओर देखने के बाद और मुश्किल से हिम्मत जुटाकर मोबाइल में नज़र डाली।

एक, दो, तीन, चार, पांच, छ औैर सात, फोटोग्राफ्स देखने के बाद तो एक चीख के साथ इशिता के हाथ में से मोबाइल गिर गया। औैर आदित्य के गले लगकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। इशिता के हाथ पैर कांपने लगे। रोते रोते एकदम से सुबकने लगी। इशिता की हालत देखकर गुस्से से लाल होते हुए आदित्य बोल पड़ा,

'आई विल किल हिम।'

रुकी रुकी सी आवाज़ में बोलने का प्रयास करते हुए इशिता ने पूछा,

'आदि.. आदि येे क्यूं?'

'इशिता... तीन दिन पहले ही अजीत ने मैरिज कर लिया है।'

आगे अगले अंक में....


© विजय रावल

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