टूटा कप
‘‘विनी, दिव्या का विवाह पास आ गया है, पहले सोच रही थी सब काम समय से निबट जाएंगे पर ऐसा नहीं हो पा रहा है । थोड़ा जल्दी आ सको तो अच्छा है. बहुत काम है, समझ नहीं पा रही हूँ कि कहाँ से कार्य प्रारंभ करूँ, कुछ शौपिंग कर ली है और कुछ बाकी है ।’’
‘‘दीदी, आप चिंता न करें, मैं अवश्य पहुँच जाऊँगी । आखिर मेरी बेटी का भी तो विवाह है। ’’ विनीता ने उत्तर दिया ।
विनीता अपनी बड़ी बहन सुनीता की बात मान कर विवाह से लगभग 15 दिन पूर्व ही चली आई थी। उस की 7 वर्षीय बेटी पूर्वा भी उस के साथ आ गई थी । विशाल, विक्रांत की पढ़ाई के कारण बाद में आने वाले थे । विनीता को आया देख कर सुनीता ने चैन की सांस ली । चाय का प्याला उस के हाथ में देते हुए बोली, ‘‘पहले चाय पी ले, बाकी बातें बाद में करेंगे ।"
विनीता ने चाय का प्याला उठाया, टूटा हैंडिल देख कर वह आश्चर्य से भर उठी । ऐसे कप में किसी को चाय देना तो दूर वह उसे उठा कर फेंक दिया करती थी पर इतने शानोशौकत से रहने वाली दीदी के घर भला ऐसी क्या कमी है जो उन्होंने उसे ऐसे कप में चाय दी । मन किया वह चाय न पीए पर रिश्ते की बझजग वमर्यादा को ध्यान में रखते हुए खून का घूंट पी कर चाय सिप करने लगी पर उस की पुत्री पूर्वा से नहीं रहा गया, उसने कहा , ‘‘मौसी, इस कप का हैंडिल टूटा हुआ है ।’’
‘‘क्या, मैं ने ध्यान ही नहीं दिया । सारे कप गंदे पड़े हैं, मुनिया भी पता नहीं कहाँ चली गई । चाय की पत्ती लाने भेजा था, एक घंटे से ज्यादा हो गया, अभी तक नहीं आई । नौकरानियों से कप ही नहीं बचते । अभी कुछ दिन पहले ही तो खरीद कर लाई थी । दूसरा निकालूँगी तो उस का भी यही हाल होगा । वैसे भी विवाह से 3 दिन पहले होटल में शिफ्ट होना ही है ।अभी तो हम लोग ही हैं, इन्हीं से काम चला लेते हैं ।’’ सुनीता ने सफाई देते हुए कह ।
विनीता ने कुछ नहीं कहा , चुपचाप चाय पीने लगी तथा पूर्वा खेलने में लग गई । विनीता भी सुनीता के साथ विवाह के कार्यों की समीक्षा करने व उन्हें पूर्ण करने में जुट गई । कुछ दिन बाद नंदिता भी आ गई. उसे देखते ही सुनीता और विनीता की खुशी की सीमा न रही, दोनों एकसाथ बोल उठीं, ‘‘अरे, अचानक तुम कैसे, कोई सूचना भी नहीं दी ।’’
‘‘मैं सरप्राइज देना चाहती थी, मुझे पता चला कि तुम दोनों अभी एक साथ हो तो मुझ से रहा नहीं गया । मैं ने सुजय से कहा कि विक्की की परीक्षा की सारी तैयारी करा दी है, आप बाद में आ जाना । मैं जा रही हूँ, कम से कम हम तीनों बहनें दिव्या के विवाह के बहाने ही कुछ दिनों साथ-साथ रह लेंगी ।’’
‘‘बहुत अच्छा किया, हम दोनों तुम्हें ही याद कर रहे थे । मुनिया, 3 कप चाय बना देना और हाँ , नए कप में लाना ।’’ सुनीता ने नौकरानी को आवाज लगाते हुए कहा । फिर नंदिता की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘अगर पहले सूचना दी होती तो गाड़ी भिजवा देती । "
सुनीता दीदी की बात सुन कर विनीता के मन में कुछ दरक गया । नन्ही पूर्वा के कान भी खड़े हो गए । नंदिता के आते ही दूसरे कप निकालने के आदेश के साथ गाड़ी भिजवाने की बात ने उस के शांत दिल में हलचल पैदा कर दी थी । जब वह आई थी तब तो दीदी को पता था, फिर भी उन्होंने किसी को नहीं भेजा । वह स्वयं ही आटो कर के घर पहुँची थी । बात साधारण थी पर विनीता को ऐसा महसूस हो रहा था कि अनचाहे ही सुनीता दीदी ने उस की हैसियत का एहसास करा दिया है । वह पिछले 8 दिनों से वह उसी टूटे कप में चाय पीती रही थी पर नंदिता के आते ही दूसरे कप निकालने के आदेश के साथ गाड़ी भिजवाने की बात को वह पचा नहीं पा रही थी । मन कर रहा था वह वहाँ से उठ कर चली जाए पर न जाने किस मजबूरी के कारण उस के शरीर ने उस के मन की बात मानने से इनकार कर दिया । विनीता तीनों बहनों में छोटी है ।सुनीता और नंदिता के विवाह संपन्न परिवारों में हुए थे पर पिताजी की मृत्यु के बाद घर की स्थिति दयनीय हो गई थी ।
भाई ने अपनी हैसियत के अनुसार घर वर ढूँढा और विवाह कर दिया । यद्यपि विशाल की नौकरी उस के जीजाजी की तुलना में कम थी, संपत्ति भी उनके बराबर नहीं थी पर वह अत्यंत परिश्रमी, सुलझे हुए व स्वभाव के बहुत अच्छे इंसान हैं । उन्होंने उसे कभी किसी कमी का एहसास नहीं होने दिया था और उसने भी अपने छोटे से घर को इतने सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा रखा है कि विशाल के सहकर्मी उस से ईर्ष्या करते हैं । स्वयं काम करने के कारण उस के घर में कहीं भी गंदगी का नामोनिशान नहीं रहता था और न ही टूटे-फूटे बरतनों का जमावड़ा । यह बात अलग है कि ऐसे ही पारिवारिक आयोजन उसे चाहे अनचाहे उसकी हैसियत का एहसास करा जाते हैं पर अपनी सगी बहन को अपने साथ ऐसा व्यवहार करते देख कर वह स्तब्ध रह गई । क्या अब नया सैट खराब नहीं होगा? हमेशा की तरह इस बार भी सुनीता व नंदिता गप मारने लग जातीं और विनीता काम में लगी रहती थी । अगर वह समय निकाल कर उन के पास बैठती तो थोड़ी ही देर बाद कोई काम आने पर उसे ही उठना पड़ता था । पहले वह इन सब बातों पर इतना ध्यान नहीं दिया करती थी पर इस बार उसे काम में लगा देख कर एक दिन उस की पुत्री पूर्वा ने कहा, ‘‘ममा, दोनों मौसियाँ बातें करती रहती हैं और आप काम में लगी रहती हो, मुझे अच्छा नहीं लगता ।"
‘‘बेटा, वे दोनों बड़ी हैं, मुझे उन का काम करने में खुशी मिलती है ।"पूर्वा की बात सुनकर वह चौंकी पर संतुलित उत्तर दिया ।
उस ने उत्तर तो दे दिया पर पूर्वा की बातें चाहे अनचाहे उस के दिमाग में गूँजने लगीं । पहले भी इस तरह की बातें उस के मन में उठा करती थीं पर यह सोच कर अपनी आवाज दबा दिया करती थी कि आखिर वे उस की बड़ी बहनें हैं, अगर वे उस से कोई काम करने के लिए कहती हैं तो इस में बुराई क्या है. पर इस बार बात कुछ और ही थी जो उसे बारबार चुभ रही थी । न चाहते हुए भी दीदी का नंदिता के आते ही नए कप में चाय लाने व गाड़ी भेजने का आग्रह उस के दिल और दिमाग में हथौड़े मारने लगता ।
जब जब ऐसा होता वह यह सोच कर मन को समझाने का प्रयत्न करती कि हो सकता है वह सब दीदी से अनजाने में हुआ हो, उन का वह मंतव्य न हो जो वह सोच रही है । आखिर वह उनकी छोटी बहन है, वे उस के साथ भेदभाव क्यों करेंगी ? सच तो यह है कि दीदी का उस पर अत्यंत ही विश्वास है तभी तो अपनी सहायता के लिए दीदी ने उसे ही बुलाया । उन का उसके बिना कोई काम नहीं हो पाता है । चाहे वह दुल्हन की ड्रैस की पैकिंग हो या बक्से को अरेंज करना हो, चाहे मिठाई के डब्बे रखने की व्यवस्था करनी हो...और तो और, विवाह के समय काम आने वाली सारी सामग्री की जिम्मेदारी भी उसी पर थी ।
दिव्या भी अकसर उस से ही आ कर सलाह लेते हुए पूछती, ‘‘मौसी, इस ड्रैस के साथ कौन सी ज्वैलरी पहनूँगी या ये चूड़ियाँ पर्स और सैंडिल मैच कर रही हैं या नहीं?’’
विवाह की लगभग आधी से अधिक शौपिंग तो दिव्या ने उस के साथ ही जा कर की थी । वह कहती, ‘मौसी, आप का ड्रैस सैंस बहुत अच्छा है वरना ममा और नंदिता मौसी को तो भारी भरकम कपड़े या हैवी ज्वैलरी ही पसंद आती हैं । अब भला मैं उन को पहन कर औफिस तो जा नहीं सकती, फिर लेने से क्या फायदा?’
कहते हैं मन अच्छा न हो तो छोटी से छोटी बात भी बुरी लगने लग जाती है । शायद यही कारण था कि आजकल वह हर बात का अलग ही अर्थ निकाल रही थी । यह सच है कि दिव्या का निश्छल व्यवहार उस के दिल पर लगे घावों पर मरहम का काम कर रहा था पर दीदी की टोका टाकी असहनीय होती जा रही थी । उसे लग रहा था कि काम निकालना भी एक कला है । बस, थोड़ी सी प्रशंसा कर दो, और उस के जैसे बेवकूफ बेदाम के गुलाम बन जाते हैं । मन कह रहा था व्यर्थ ही जल्दी आ गई । काम तो सारे होते ही, कम से कम यह मानसिक यंत्रणा तो न झेलनी पड़ती ।
‘‘विनीता, जरा इधर आना,’’ सुनीता ने आवाज लगाई ।
‘‘देख, यह सैट, नंदिता लाई है दिव्या को देने के लिए ।" विनीता के आते ही सुनीता ने नंदिता का लाया सैट उसे दिखाते हुए कहा ।
‘‘बहुत खूबसूरत है ।"विनीता ने उसे हाथ में ले कर देखते हुए निश्छल मन से कहा।
‘‘पूरे ढाई लाख रुपए का है ।’’ नंदिता ने दर्प से सब को दिखाते हुए कहा ।
‘‘मौसी, आप मेरे लिए क्या लाई हो?’’ वहीं खड़ी दिव्या ने विनीता की तरफ देख कर बच्चों सी मनुहार की ।
नंदिता का यह वाक्य सुन कर विनीता का मन बुझ गया । अपना लाया गिफ्ट उस बहुमूल्य सैट की तुलना में नगण्य लगने लगा पर दिव्या के आग्रह को वह कैसे ठुकराती, उस ने सकुचाते हुए सूटकेस से अपना लाया उपहार निकालकर उसे दिखाया । उसका उपहार देख कर दिव्या खुशी से बोली, ‘‘वाउ, मौसी, आप का जवाब नहीं, यह पैंडेंट बहुत ही खूबसूरत है... साथ ही व्हाइट गोल्ड की चेन. ऐसा ही कुछ तो मैं चाहती थी । इसे तो मैं हमेशा पहन सकती हूँ ।’’ दिव्या की बात सुन कर विनीता के चेहरे पर रौनक लौट आई । लाखों के उस डायमंड सैट की जगह हजारों का उपहार दिव्या को पसंद आया । यही उस के लिए बहुत था ।
विवाह खुशीखुशी संपन्न हो गया और सभी अपनेअपने घर चले गए । विनीता भी धीरे धीरे सब भूलने लगी । समय बड़े से बड़े घाव को भर देता है, वैसे भी दिव्या के विवाह के बाद मिलना भी नहीं हो पाया न ही दीदी आईं और न ही उस ने प्रयत्न किया । बस फोन पर ही बातें हो जाया करती थीं. समय के साथ विक्की को आईआईटी कानपुर में दाखिला मिल गया और पूर्वा प्लस टू में आ गई, इसके साथ ही वह मैडिकल की तैयारी कर रही थी । समय के साथ विशाल के प्रमोशन होते गए और अब वे मैनेजर बन गए हैं । एक दिन सुनीता दीदी का फोन आया कि तुम्हारे जीजाजी को वहाँकिसी प्रोजैक्ट के सिलसिले में आना है । मैं भी आ रही हूँ, बहुत दिन हो गए तुम सब से मिले हुए ।
दीदी पहली बार उस के घर आ रही हैं, सो पिछली सारी बातें भूल कर उत्सुकता से विनीता उन के आने का इंतजार करने के साथ तैयारियाँ भी करने लगी । सोने के कमरे को उन के अनुसार सैट कर लिया और दीदी की पसंद की खस्ता कचौड़ी बना लीं व रसगुल्ले मंगा लिए । खाने में जीजाजी की पसंद का मलाई कोफ्ता व पनीर भुर्जी भी बना ली थी । उसने दीदी, जीजाजी की खातिरदारी का पूरा इंतजाम कर रखा था । पर न जाने क्यों पूर्वा को उस का इतना उत्साह पसंद नहीं आ रहा था । जीजाजी दीदी को ड्रौप कर यह कहते हुए चले गए, ‘‘मुझे देर हो रही है, विनीता, मैं निकलता हूँ, आते आते शाम हो जाएगी, तब तक तुम अपनी बहन से खूब बात कर लो । बहुत तरस रही थीं ये तुम से मिलने के लिए । शाम को आ कर तुम सब से मिलता हूँ ।"
दीदी ने उस का घर देख कर कहा, ‘‘छोटे घर को भी तूने बहुत ही करीने से सजा रखा है। ’’ विशेषतया उन्हें पूर्वा का कमरा बहुत पसंद आया ।
तब तक पूर्वा ने नाश्ता लगा दिया । नाश्ते के बाद पूर्वा चाय ले आई । चाय का कप मौसी को पकड़ाया । सुनीता उस कप को देख कर चौंकी, विनीता कुछ कहने के लिए मुँह खोलती उस से पहले ही पूर्वा ने कहा, ‘‘मौसी, इस कप को देख कर आप को आश्चर्य हो रहा होगा...पर दिव्या दीदी के विवाह में आप ने ममा को ऐसे ही कप में चाय दी थी । हफ्ते भर तक वे ऐसे ही कपों में चाय पीती रहीं जबकि नंदिता मौसी के आते ही आप ने नया टी सैट निकलवा दिया था
‘‘मौसी तब से मेरे मन में यह बात रह रह कर टीस देती रहती थी । वैसे तो टूटे कप हम फेंक दिया करते हैं पर यह कप मैं ने बहुत सहेज कर रखा था, उस याद को जीवित रखने के लिए कि कैसे कुछ अमीर लोग अपनी करनी से लोगों को उनकी हैसियत बता देते हैं, चाहे वे उन के अपने ही क्यों न हों ? आज उस अपमान के साथ अपनी बात कहने का अवसर भी मिल गया ।"
सुनीता चुप रह गई । बाद में वह पूर्वा के कमरे में गई और बोली, ‘‘सौरी बेटा, आज तूने मुझे आईना ही नहीं दिखाया, सबक भी सिखा दिया है । शायद मैं नासमझ थी, मैं यह सोच ही नहीं पाई थी कि हमारे हर क्रियाकलापों को बच्चे बहुत ध्यान से देखते हैं और हमारी हर छोटी बड़ी बात का वे अपनी बुद्धि के अनुसार अर्थ भी निकालते हैं । मुझे इस बात का एहसास ही नहीं था कि व्यक्ति चाहे छोटा हो या बड़ा, सब में आत्मसम्मान होता है । बड़े एक बार आत्मसम्मान पर लगी चोट को रिश्तों की परवाह करते हुए भूलने का प्रयत्न कर भी लेते हैं किंतु बच्चे अपने या अपने घर वालों के प्रति होते अन्याय को सहन नहीं कर पाते और अपना आक्रोश किसी न किसी रूप में निकालने की कोशिश करते हैं।
पूर्वा, तुम ने अपने मन की व्यथा को इतने दिनों तक स्वयं तक ही सीमित रखा और आज इतने वर्षों बाद अवसर मिलते ही प्रकट भी कर दिया । मुझे खुशी तो इस बात की है कि तुम ने अपनी बात इतने सहज और सरल ढंग से कह दी । आज तुमने मुझे एहसास करा दिया बेटा कि उस समय मैंने जो किया, वह गलत था । एक बार फिर से सौरी बेटा,’’ कहते हुए उन्होंने पूर्वा को गले से लगा लिया ।
जहां सुनीता अपने पिछले व्यवहार पर शर्मिंदा थी वहीं विनीता पूर्वा के कटु वचनों को सुन कर उसे डाँटना चाह कर भी नहीं डाँट पा रही थी... संतोष था तो सिर्फ इतना कि दीदी ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए अपनी गलती मान ली थी ।
सच तो यह था कि आज उसके दिल से भी वर्षों पुराना बोझ उतर गया था, आखिर आत्मसम्मान तो हर एक में होता है । उस पर लगी चोट व्यक्ति के दिन का चैन और रात की नींद चुरा लेती है । शायद उस की पुत्री के साथ भी ऐसा ही हुआ था । आज उसे यह भी एहसास हो गया कि आज की पीढ़ी अन्याय का उत्तर देना जानती है, साथ ही बड़ों का सम्मान करना भी...अगर ऐसा न होता तो पूर्वा ‘सौरी मौसी’ कह कर उन के कदमों में न झुकती।
सुधा आदेश