Stone sculpture in Hindi Moral Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | पत्थर की मूरत

Featured Books
Categories
Share

पत्थर की मूरत



छमाही इम्तिहान के नतीजे घोषित हो चुके थे । कमल को सत्तर प्रतिशत अंक मिले थे । अपने इस प्रदर्शन से वह स्वयं ही काफी निराश था । लेकिन वह इससे भी ज्यादा परेशान था परिचित लोगों के अफ़सोस जताने से ।

नतीजे देखकर पहले तो स्कूल में उसके वर्ग शिक्षक ने ही नाराजगी जताई ” यह क्या कमल ! अभी यह हाल है तो वार्षिक परीक्षा में क्या करोगे ? हमने तो तुमसे उम्मीद लगा रखी थी कि तुम इस साल हमारे स्कूल को मेरिट में स्थान दिलाओगे । लेकिन अभी का तुम्हारा प्रदर्शन देख कर लगता है हमारे स्कूल को मेरिट में आने के लिए अभी और प्रतीक्षा करनी पड़ेगी । ”

पिताजी नाराज हुए ” क्या है बेटा ये ? ये क्या किया है तुमने ? क्या किसी चीज की तुम्हें कोई कमी रह गयी थी ? फिर ऐसे नतीजे कैसे ? ”

कमोबेश ऐसी ही प्रतिक्रिया उसे सभी से सुननी पड़ी ।

मानसिक सांत्वना के लिए वह भगवान के दर पर मंदिर जा पहुंचा । मंदिर में कोई भीडभाड नहीं थी ।

कमल मंदिर में भगवान की मूर्ति के सामने अपने दोनों हाथ जोड़े अच्छे नतीजे के लिए प्रार्थना कर रहा था कि अचानक उसे लगा जैसे वह पत्थर की मूर्ति उससे कुछ कह रही हो ।

” हाँ बेटा कमल ! मैं तुमसे ही मुखातिब हूँ । ” अब मूर्ति की आवाज स्पष्ट रूप से उसके कानों में गूँज रही थी ” तुम लोगों के थोड़े तानों और उलाहनों से ही परेशान हो गए हो । मुझे देखो ! पत्थर की एक चट्टान से इस मंदिर की मूरत बनने तक का मेरा सफ़र क्या कम कष्टदायक रहा है ? जब छेनी और हथोडी लेकर बुततराश मेरे जिस्म पर अनगिनत वार किये जा रहा था तब मैं भी तुम्हारी ही तरह दुखी था । सोच रहा था यह इन्सान मुझसे किस जनम का बदला ले रहा है ? लेकिन आज देखो ! उसी असहनीय दर्द को झेलने की वजह से जो उस कारीगर ने मुझे दिए आज मैं इस मंदिर में मूरत बन कर स्थापित हूँ और तुम्हारे जैसे लाखों लोग यहाँ आकर अपने दुखड़े रोकर अपना जी हल्का करते हैं । अपने निर्माण की अवस्था में मैं सीढ़ी की किस्मत से जलता था कि उसे कोई दर्द नहीं झेलना पड़ रहा है जबकि मुझे असहनीय दर्द हो रहा था । लेकिन मैंने धीरज रखा और खुद को टूटने नहीं दिया और अब नतीजे तुम्हारे सामने हैं । कहाँ सीढ़ी का पत्थर और कहाँ मैं ! ये तुम्हारी आलोचना करने वाले तुम्हारे पिताजी’ गुरूजी ‘मित्र ‘ सभी तुम्हारे शुभचिंतक हैं जो तुम्हें दर्द देकर तुम्हें तराश कर मेरी तरह बनाना चाहते हैं । अब यह तुम्हारे हाथ में है कि तुम क्या बनना चाहते हो ‘ मेरी तरह किसी मंदिर की मूरत या फिर सीढ़ी का पत्थर या फिर रास्ते का पत्थर ? ”

कमल की आँखें खुल चुकी थीं ।अब उसे किसीसे कोई शिकायत नहीं रह गयी । उसने दृढ़ निश्चय कर लिया चाहे जो हो जाये मुझे सीढ़ी का पत्थर नहीं बनना है ।
भगवान के सामने हाथ जोड़कर घर जाते हुए उसके चहरे पर एक अतरिक्त उर्जा और आत्मविश्वास झलक रहा था ।

राजकुमार कांदु
मौलिक / स्वरचित