samiksha ke aine me ratnavali in Hindi Book Reviews by ramgopal bhavuk books and stories PDF | समीक्षा के आइने में-रत्नावली

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समीक्षा के आइने में-रत्नावली

समीक्षा के आइने में-रत्नावली

वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’

कभी- कभी, विनोद के लहजे में कही गई अटल सत्य बात भी इतनी कड़वी हो जाती है कि जीवनभर सभाँलने पर भी नहीं सभँलती। इसीलिये विद्वान मनीषियों का उपदेश है -‘सत्यं ब्रूयात प्रियम।’ इसी धारणा ने श्री रामगोपाल भावुक जी को उद्वेलित कर, रत्नावली जैसें उपन्यास की संरचना करवायी है। श्री भावुक जी का मानस इन्हीं रंगों को आवरण पृष्ठ पर उकेरते हुये, जीवन यात्रा के संघर्षें को नया रूप देता दिखा है। जिसकी झलक अपनी भावांज्ली- ‘ऐसे मिली रत्नावली’ में सारतत्व की परिधि के साथ दी गई है।

उपन्यास रत्नावली मानव जीवन की गहरी पर्तों का गम्भीर चिन्तन है। इसका प्रथम सर्ग ही ताने-वाने के साथ प्ररम्भ होता है, जिसमें रत्नावली का यह कथन-‘ हाड़मांस के लिये इतने अधीर बने फिरते हो......उद्धार हो गया होता।’ पृष्ठ-13 अग्नि में घी की आहुति का कार्य करता है। जिसके लिये रत्नावली की संवदनायें न जाने कितने अनछुये धरातलों को स्पर्श करती है। यहाँ से रत्नावली के जीवन का एक नया ही अध्याय शुरू हो जाता है, जिस पर सर्ग दो से लेकर छह तक अनेक सम्वादों का सिल सिला रहा है। जीवन घरातल को यदि संबल मिला है तो कबीर के चिन्तन पर आस्था का टिकना भर। अनेकों उथल-पुथल में विवाह का चिन्तन, दाम्पत्य जीवन की पलटती गहरी पर्तों तथा पुनः अपने ही घर पर आने में जीवन की समरसता का पाना भर रहा है एवं बालक तारापति का अबलम्व, इसी के साथ अन्य अनेकों परिकल्पनायें भावुक जी के ताने-वाने को कफी गहराइयों तक ले जाती है।

सर्ग सात से उपन्यास का नया स्वरूप मिलता है, जहाँ हरको और धनियाँ के साथ नवीन लक्ष्य का निर्धारण होता है। यहाँ से जीवन पश्चातापों से परे होकर कर्मठ जीवन के रास्ते पर चलता दिखा है। साथ ही नारी स्वाभिमान के बीजों का अंकुरण और पल्लवन होना पाया जाता है। बक्शे में रखे वस्त्रों में तीनों कालों को देखना नवीन चिन्तन देता है यथा- ‘ भूत, भविष्य और वर्तमान एक साथ अपने- अपने प्रश्न और उत्तर लेकर आगये..... समाहित करता चलता है।’पृष्ठ-41 इस प्रकार के अनेक चिन्तन-संवादों में ग्यारहवे सर्ग तक जीवन की अनेकों परछाइयों को छूते जीवन- पन्ने रहे है, जिनका सामना बुद्धि और साहस से किया गया है। अनेक नये पहलू जैसे- पिछड़े वर्ग के बच्चों को तथा मुस्लिम सम्प्रदाय के बच्चों को पढ़ने के अधिकार में सामिल करना, बकरीदी के चिन्तन को बदलने का जो उपक्रम किया गया है वह भले ही वर्तमान सा लगता हो किन्तु भावुक जी को एक नवीन प्रथम पक्ति में अवश्य स्थान देता है। यह सारा वृत तारापति के शोक को भुलाता दिखा है।

वारहवे सर्ग की शुरूआत, इस पृष्ठ भूमि से होती है-‘ किसी ने कह दिया, कुछ नहीं हुआ, गाँव भर में तमाम तारा तो हैं। मन के विस्तार का नाम ही संसार है। पृष्ठ 60 अनेक ताराओं के साथ शिक्षा का पुनः प्रारम्भ ही जीवन का सच्चा धरातल रहा जिसमें चित्रकूट यात्रा, गाोस्वामी जी सो भेंट वार्ता, पूरा जीवन चिन्तन की झाँकी,संदेशों की आवा-जाही आदि का सर्ग पन्द्रह तक भली-भाँति निर्वाह किया गया है। जीवन मनों विनोंदो का भी नाम है जिसमें हरको के साथ जीवन यात्रा का चलना- चेतना दायक रहा है। रामायण के रचना प्रसंग को नवीनता के साथ दर्शाया गया है।

सर्ग सालह में रत्नावली का काशी जाना, रामायण की प्रति की प्राप्ति तथा जीवन में एक वार मिलन का आश्वासन-उपन्यास में बहुत सारी नई संभावनाऐं प्रदान करता है। रामायण का निरन्तर पठन- पाठन, जीवन के अवगुंठनों को बड़ी ही सहजता से खोलता है, जो नारी शक्ति के साथ- साथ, नारी महत्ता, नाँद ब्रह्म आदि के मूल रहस्यों तक जन-जीवन के धरातल को सशक्त बनाता है। चिन्तन की विस्तार वादी नीति विकास पाती है। इसी के साथ अनेकों उपदेशों को भी स्थान दिया गया है। उन्नीसवाँ अंतिम अध्याय- जीवन का उपसर्ग सा बन पड़ा है, जिसमें जीवन के चौथे पायदान या सोपान का अनूठा-सा दर्शन है। जिंदगी की आस का संवल उस समय पूरा होता है, जब गोस्वामी जी के दर्शनों के साथ इस उपन्यास दर्शन की भी इति होती है। जीवन का अंतिम पाथेय पा लेना ही मोक्ष है।

सच पूछा जाये तो भावुक जी की सहजता ही, इस उपन्यास की अपनी कसौटी है जिसमें आपका सरल स्वभाव सच्चा सधक है। इस कृति हेतु अनेकवार उन सभी स्थानों का भ्रमण किया गया है । सच्चाई की तहतक जाने का भरसक प्रयास किया गया है। अनेक संबधित पुस्तकों का भी अध्ययन किया गया है। यह नारी व्यथा का गहरा अन्बेषण है। साथ ही नारी जागरण का घोष है। इस कृति पर अनेकों विद्वानों की चिंतन झाँकी- कृति की उत्कृष्टता का मुखर आईना है। सुधी- समीक्षकों की तुलापर यह उपन्यास कितमना खरा उतरा है, उसका निनाद अंतिम पृष्ठाकन दर्शाता है। रत्नावली उपन्यास पर डॉ. कामिनी- प्राचार्य शा0 डिग्री कालेज सेवढ़ा का चिन्तन दृष्टव्य है-‘ भावुक जी का काव्य सौन्दर्य अलग है और रांगेय राधव का अलग। मानस के हंस में भी रत्नावली है किन्तु एक ही नायिका, एक ही चरित्र, लेकिन रचना फलक अलग- अलग। नारी संघर्ष, नारी स्वाभिमान और चेतना का जीवन्त दस्तावेज इस रत्नावली का अनूठा है।’ अतः उपरोक्त सभी अनूठे भावों के साथ रत्नावली पाठकों को अधिक कुछ देने में सक्षम होगी। इन्हीं मंगल कामनाओं के साथ कृति के भावी समुन्नयन के साथ भावुक जी की कलम का बन्दन एवं भावुक जी का अभिनन्दन।

पुस्तक- रत्नावली उपन्यास, कलम की उन्मुक्तता का पक्षधर

लेखक- रामगोपाल भावुक, वेदराम प्रजापति‘मनमस्त’

प्रकाशक - पराग बुक्स नई दिल्ली सम्पर्क सूत्र- गायत्री शक्ति

मूल्य- 200 रुपये पीठ रोड़ गुप्ता पुरा डबरा,

भवभूति नगर जि. ग्वालियार म

समीक्षक- वेदराम प्रजापति‘मनमस्त’ मो0- 99812 84876

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