Mother's courage in Hindi Motivational Stories by आशा झा Sakhi books and stories PDF | माँ का हौंसला

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माँ का हौंसला

सृष्टिकर्ता ने जब इस संसार में प्राणियों की रचना की ,तो माँ के निर्माण में उसने भावनाओं और हिम्मत का एक विशेष अवयव अलग से सम्मिलित किया । एक माँ अपनी संतान के लिए दुनिया में किसी से भी टकरा सकती है ।किसी भी चुनौती को पार कर सकती है। इसका ही उदाहरण है मीना ।
मीना की बिटिया शीतल को आज विश्वविद्यालय की तरफ से स्वर्णपदक दिया गया । जिसे लेते देखते हुए मीना की आँखों में खुशी के आँसू आ गए और साथ ही तैर गया वो सारा समय ,जिसमें शीतल की मंदबुद्धि व लापरवाह रवैये के बारे में उसकी प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिकाओं और घर वालों का रवैया। उसे याद आने लगा वो पल जब शीतल का जन्म हुआ था। मीना को एक बेटा तो पहले से ही था ,तो शीतल के आने से सब बहुत खुश थे।पर ये खुशी ज्यादा दिन टिक न सकी। मीना की सास ने जव शीतल की कुंडली बनवाई तो उसके अनुसार शीतल के भाग्य में शिक्षा का योग न था। ये सुनकर घर पर सबको बहुत दुख हुआ। पर सबने इसे विधि का विधान मानकर स्वीकार कर लिया ।पर पता नहीं क्यों मीना को ये बात चुभ गयी ।उसने विधि के विधान को बदलने की ठानी। विधि का विधान कितना सशक्त है इसका आभास उसे होने लगा ।जब शीतल की स्कूल से शिकायत मिलना शुरू हो गयी। आपकी बेटी पढ़ने में ध्यान नहीं देती।कितना भी समझाओ पर उसे समझ नही आता। हर बात जल्द ही भूल जाती है।ये नहीं पढ़ पाएगी , आदि आदि---- । घर पर भी पति और सास भी हर समय यही दोहराते रहते।अरे जब भाग्य में ही नहीं है तो क्यों पीछे पड़ी रहती हो हरदम। पर मीना ने किसी की बातों पर ध्यान नहीं दिया। उसने सोच लिया था ये मेरी परीक्षा है । ये परीक्षा कुछ घण्टों की न होकर कुछ सालों की है। इसका परिणाम शीतल की उच्च शिक्षा की डिग्री होगी । वो बस लगातार इस बात को मन में दोहराती और शीतल को पढ़ाने में जुट जाती। इस एक लक्ष्य को पाने के लिए उसने अपने सारे शौक खत्म कर लिए। न कहीं घूमने - फिरने जाती । न किसी सहेली के साथ बातों में समय व्यतीत करती।सिर्फ घर के काम और बच्चों की पढ़ाई ,यही बातें उसके जीवन का लक्ष्य हो गयी। बेटा तो पढ़ने में बहुत होशियार था तो उसकी तरफ से निश्चिंत रहती ,पर शीतल उसकी चिंता का कारण बनी रहती। उसने शीतल को मन एकाग्र करने के लिए कुछ प्राणायाम व योग करवाना शुरू कर दिया । साथ ही स्वंय ही उसके साथ बैठ कर 2 से 3 घण्टे पढ़ाती । हर बात समझाती , शुरुआत में तो नतीजा शून्य दिखाई देता था ।पर लगातार प्रयास का फल अब दिखाई देने लगा। मीना ने जो नियम बनाया पढाई का उसे कभी टूटने नहीं दिया। चाहे कुछ भी हो जाये। चाहे इसके लिए उसे कितनी भी बातों को, कष्टों को सहन करना पड़े। उसे याद है एक बार मासिक परीक्षा के दौरान ही उसके मायके में उसके भाई की बेटी का जन्मदिन था पर वो नहीं गई तो उसे कितना कुछ सुनना पड़ा था। पतिदेव से भी और मायके वालों से भी , हाँ भाई तुम्हारे ही बच्चे तो पढ़ रहे हैं । हम लोग तो अनपढ़ है। हमारे यहाँ तो कोई स्कूल जाता ही नहीं। अरे एक दिन में ही कलेक्टर बना दोगी क्या। पर उसने हँस कर सब सुन लिया। उसे पता था यदि एक बार भी लय टूटी पढाई की ,तो फिर शीतल को दुबारा से उसी सुरताल में लाना बहुत ही मुश्किल होगा। उसने एक जो नियम बनाया बिना की व्यवधान के लगातार शीतल को पढ़ाने का ,उसमें किसी भी वजह से बाधा नहीं आने दी।
प्राथिमक स्तर पर बहुत लंबा संघर्ष किया मीना से शीतल के साथ उसे बार - बार एक ही बात दुहराना पड़ती ।पर हर बार शीतल भूल जाती या कभी याद किये का दशान्श ही याद रख पाती। पर कहते हैं न कि पत्थर पर भी यदि लगातार की कोई वस्तु घिसो तो उसके अमिट चिन्ह उस बस्तु पर पड़ने लगते। मीना की लगातार मेहनत ने आखिर रंग दिखाना शुरू कर ही दिया। मिडिल कक्षा में प्रवेश के साथ ही धीरे- धीरे शीतल की क्षमता में उत्तरोत्तर वर्द्धि होती गयी। शायद ये शीतल की बढ़ती उम्र का भी असर था। और मीना की लगन तो काम कर ही रही थी। थोड़ा समझ आने पर जब शीतल अपने परिवार के ,बाहर के सदस्यों से अपनी माँ के लिए बोले गये शब्द सुनती तो उसका बाल -मन आहत होता और वो थोड़े और जोश के साथ कोशिश करने में जुट जाती। हमेशा अपने मन में यही विचार करती कि कैसे वो अपनी माँ गर्व की वजह बने।

दसवीं की परीक्षा में जब उसने अपने स्कूल में सर्वाधिक अंक प्राप्त किये तो फिर उसमें जो आत्मविश्वास जागा कि फिर उसने एक बार भी पलटकर नहीं देखा। बस निरन्तर आगे ही बढ़ती गयी। दसवीं में सर्वोच्च अंक देख कर उसके घवालों ने भी शीतल के लिए बहुत खुशी व्यक्त की ,साथ ही उसके बारे में नकारात्मक विचार व्यक्त करना बन्द कर दिये ।इस बात से मीना को एक अजीब सा सुकून मिला।लगा कि मंजिल की ओर एक कदम तो बढ़ा। एक बार शीतल को गति व दिशा मिल जाने से मीना भी मन में शांति महसूस करती।पर फिर भी उच्चशिक्षा वाली बात पूरी करने के लिए वो शीतल को हमेशा प्रोत्साहित करती रही ।साथ ही रातों को जागकर उसका साथ देती रही।जिससे शीतल कभी कमजोर न पड़े।
आज मीना की मेहनत व हौसले की वजह से ही शीतल इस मुकाम तक पहुँच सकी । तालियों की गड़गड़ाहट के साथ ही मीना की तन्द्रा भंग हुई ।उसने पाया कि उस जगह उपस्थित हर व्यक्ति उसे ही घूर रहा हैं। शीतल के शब्द," आज मै जो कुछ भी पा सकी ,वो सिर्फ मेरी माँ की हिम्मत और हौंसले के कारण ही " सुनकर तो उसकी आँखों से अश्रुधारा ही बहने लगी। तब तक शीतल भी उसके पास आ खड़ी हुई और अपने गले में पड़ा पदक अपनी माँ के गले में डालते हुए बोली- ये आपकी हिम्मत और हौंसले का पुरस्कार है , और अब ये अपनी सही जगह आया है। इतना सुनकर मीना ने शीतल को गले लगा लिया। ।
💐💐💐💐समाप्त💐💐💐💐