सुधी समीक्षकों की दृष्टि में ‘रत्नावली‘
पुस्तक- रत्नावली उपन्यास,
लेखक- रामगोपाल भावुक,
प्रकाशक - पराग बुक्स नई दिल्ली
संस्करण - 2018
पृष्ठ - 112
मूल्य- 200 रुपये
‘रत्नावली‘ के आद्योपांत अध्ययन से, उनके संघर्ष मयजीवन और मानवजीवन की सार्थकता के प्रति अपने द्रष्टिकोण के बीच जो व्यवहारिक जीवन उन्होंने जिया उसका स्पंदन पाठक के हृदय को झंकृत किये बिना नहीं रहता।
स्वामी हरि ओम तीर्थ गुरूनिकेतन
डबरा
बम्वई से प्रकाशित अमन प्रिय अकेला जी द्वारा संपादित पत्रिका ‘बराबर’ में एवं हैदरावाद से प्रकाशित पत्रिका ‘अहल्या’ में ‘‘रत्नावली’ ’उपन्यास को धारावाहिक रूप में प्रकाशित किया गया है। इसके अतिरिक्त पं0 गुलाम दस्तगीर विराजदार ,मुम्वई ने इसका संस्कृत अनुवाद किया है, जिसका प्रकाशन विश्व संस्कृत प्रतिष्ठानम् राम नगर वाराणसी ने ‘‘विश्वभाषा’’ पत्रिका में महाकथा के रूप में किया गया है। श्री अनन्त राम गुप्त का भावानुवाद एवं श्री राजवीर खुराना जी ने रत्नावली के प्रसंगों को काव्य में जो अभिव्यक्ति दी, वह सराहनीय है। मेरी दृष्टि में रत्नावली तुलसी पंचसती के दौरान प्रकाशित एक रत्न है।
डॉ. भगवान स्वरूप शर्मा ‘चैतन्य‘
सम्पादक ‘ रत्नावली ’ प्रथम संस्करण
संपादक,लोकमंल, पत्रिका ,साहित्य अकादमी,
माधैगंज ग्वालियर-4
ं रत्नावली‘ आपकी विशिष्ट औपन्यासिक
प्रतिभा का सुन्दर निर्देशन है। इस पुस्तक ने मेरे मन को प्रारंभ से ही ऐसा बाँध दिया है कि उसमें पूर्णरूपेण रम गया । डा0 वीरेन्द्र शर्मा
पूर्व राजदूत, नई दिल्ली
रत्नावली का अंश ‘अभिज्ञानम‘ तुलसी सम्मेलन अमेरिका विशेषांक में दिया जा रहा है।
रामशरण वाजपेयी
सम्पादक ‘अभिज्ञानम‘ कानपुर
आपकी औपन्यासिक कृति रत्नावली पढ़ी। विश्वभाषा के पिछले दो अंकों में पं0 गुलाम दस्तगीर विराजदार द्वारा किया गया उसका संस्कृत रूपान्तर भी पढ़ा। हार्दिक प्रसन्नता हुयी। मैंने अवधी के श्रेष्ठकवि विकल गोंडवी की रत्ना विषयक कविताए मंच पर सुनी थीं, सराहा भी था। उनकी रत्ना उनकी अपनी सृष्टि थी। परन्तु आपकी रत्ना व्यष्टि की नहीं समष्टि की सृष्टि है। उपन्यास रोचक विश्वसनीय एवं उत्कृष्ट लगा।
डा0 राजेन्द्र मिश्र
पूर्व कुलपति संस्कृत वि.वि. वाराणसी
पूरे उपन्यास में भावुकता का समावेश है जो कि इस चरित्र की जान है। लेखक की संवेदनशीलता सराहनीय है। और कथा में वह उपस्थित भी रही है।
राजनारायण बोहरे,
दतिया
भावुक जी ने शाश्वत ढंग से जो कुछ भी कहा है वह सीधे अन्तस् को बेधती है।
डा0 हरिप्रसाद दुबे, फैजाबाद
भाभी-ननद के सम्वाद-सूत्र के सहारे रोचकता प्रकट करने का प्रयास जहाँ मनमोहक एवं आकर्षण पैदा करता है, वहीं अनुसुइया द्वारा सीता को दिये गये मानस की चौपाइयों का उपदेश प्रकारान्तर से रत्नावली अपने लिए आक्षेप रूप में ग्रहण कराकर कृतिकार ने साहित्यिक कल्पनाशीलता का अच्छा दृष्टांत प्रस्तुत किया है।
पं0 रामचन्द्र शु
पूर्व न्यायधीस एंव सम्पादक साहित्यकार कल्याण परिषद्
रायवरेली
रामगोपाल भावुक का उपन्यास रत्नावली मुगलिया सल्तनत को आधुनिक परिवेश में लाकर खड़ा कर देता है।
डॉ0 वनवारी सिंह, वाराणसी
रत्नावली‘ अत्यंत सुन्दर उपन्यास है। मैं इसे पढ़कर आपकी संवेदनाओं से प्रभावित हुआ हूँ। अनेक जीवन सत्यों की चर्चा हुयी है। ऐतिहासिक साँस्कृतिक संदर्भ रत्ना के साथ-साथ चले हैं। पं0 मुलाम दस्तगीर जी इसके संस्कृत अनुवाद के पृष्ठ दे गये हैं, उन्हें देख रहा हूँ।
विजय नारायण गुप्त कानपुर
रत्नावली उपन्यास में नारी जीवन के संघर्ष का चित्रण बडे़ ही सुन्दर शब्दों में चित्रित किया है।
श्रीमती केलकर
से.नि. प्राचार्य, उज्जैन
कुछ वर्ष हुये जब आपने ‘रत्नावली‘ को जन्म दिया था। उसकी प्रतिलिपियाँ बनवाकर मैंने अनेक लोगों तक रत्नावली पहुँचाई थी। और कई लोगों ने उसके विषय में अपनी प्रतिक्रियायें हिन्दी चेतना में प्रकाशित करवाई थीं।
श्याम त्रिपाठी
सम्पादक, ‘हिन्दी चेतना’ कैनेडा
अपनी आदत के अनुसार जब मैंने 10 बजे के करीब रत्नावली को पढ़ना शुरू किया तो रात्रि के 2 बजे तक उसे पढे़ बिना नहीं छोड़ सकी। मैं इसे पढ़ती जाती थी, उतनी ही इस कृति में मेरी उत्कंठा बढ़ती जाती थी। इतनी सुन्दर कृति की रचना करके नारी जाति के ऊपर बहुत बड़ा उपकार किया है।
कमलेश मिश्र; मेपल
रत्नावली कालजयी रचना है। मानस पढ़ने वालों के लिए तो यह और भी आवश्यक है।
पं0 मालचन्द्र शर्मा
सम्पादक विप्र पंचायत, नीमच
‘रत्नावली‘ पढ़कर ऐसा लगा जैसे सभी पात्र साक्षात अभिनय कर रत्नावली के अन्तस् की व्यथा में पाठक को भाव विभोर कर रहे हों। रत्नावली के बाद आपको अन्य कृति की दरकार नहीं है।
ममता मानव भिण्ड
पूरी कृति के साथ यात्रा करना सुखद अनुभव है। नारी पुरूष सम्बन्धों में आपने जो ऊॅंचाई दी है उसे सराहता हूँ।
प्रेमशंकर, पूर्व प्राचार्य हिन्दी विभाग, सागर
आपका काव्य सौन्दर्य अलग है और रांघेय राघव का अलग। मानस के हंस में भी रत्नावली है किन्तु एक ही नायिका एक ही चरित्र लेकिन रचना फलक अलग-अलग।
नारी संघर्ष, नारी स्वाभिमान और चेतना का जीवंत दस्तावेज है रत्नावली।
डा0 कामिनी
प्राचार्य, शा. गोविन्द डिग्री कॉलेज सेंवढ़ा ‘रत्नावली‘ ने मेरे लिए रत्नावली जी को तुलसीदास जी से भी ऊँचे आसन पर बैठा दिया है। आज के अमेरिका की हिम्मती नारी से भी अधिक स्वाभिमानी और तेजस्वनी थी सोहलहवीं सदी की भारतीय रत्नावली।
अरूण प्रकाश
प्रवक्ता हिन्दी, यूनिवर्सिटी ऑफ हॉस्टन अमेरिका
रत्नावली सनातन परम्पराओं में आबद्ध प्रगतिशील मूल्यों को सार्थक स्वरूप में स्थापित करने वाली उत्कृष्ट कृति है।
प्रमोद भार्गव
लेखक एवं पत्रकार शिवपुरी
मुझे हिन्दी आलोचना की यह अद्धितीय टिप्पणी लगी। बड़े-बड़े आलोचकों ने इस प्रसंग को लेकर या तो मानसकार का पक्ष लेकर लीपा-पोती की है या सीधे उनका अन्ध विरोध किया है। इससे बेहत्तर रचनात्मक आलोचना हो ही नहीं सकती।
डॉ0 महाराजदीन पाण्ड़ेय
अध्यक्ष संस्कृत विभाग
अवध विश्वविद्यालय,फैजावाद
सच पूछा जाये तो भावुक जी का काव्य सौन्दर्य अलग है और रांगेय राधव का अलग। मानस के हंस में भी रत्नावली है किन्तु एक ही नायिका, एक ही चरित्र, लेकिन रचना फलक अलग- अलग। नारी संघर्ष, नारी स्वाभिमान और चेतना का जीवन्त दस्तावेज इस रत्नावली का अनूठा है।’
कलम की उन्मुक्तता का पक्षधर
मो0- 99812 84876 वेदराम प्रजापति‘मनमस्त’
सम्पर्क सूत्र- गायत्री शक्ति
रत्नावली के देशकाल वातावरण को देखते हैं तो लगता है जैसे- तुलसीबाबा के जमाने में समाहित हो गये हैं।, साथ ही नवीनता की पैनी धार भी दिखाई देती है वही बोली, वही भाषा, वही वातावरण, वैसे ही संस्कार लगता है जैसे तुलसीबाबा और माँ रत्नावली के साथ-साथ ही चल रहे हैं।
डॉ. अरुण दुवे प्राध्यापक- हिन्दी
वृन्दासहाय शा. स्नातकोत्तर महाविद्यालय
डबरा, भवभूति नगर जिला ग्वालियर म. प्र.
मो0-9926259900