Apne-Apne Karagruh - 11 in Hindi Moral Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | अपने-अपने कारागृह - 11

Featured Books
Categories
Share

अपने-अपने कारागृह - 11

अपने-अपने कारागृह-10

थोड़ी ही देर में ही अपनी जगह पर आकर विमान रुक गया ,.। विमान का गेट खुलते ही यात्री एक-एक करके उतरने लगे । गेट पर परिचारिका हाथ जोड़कर अभिवादन करते हुए सभी यात्रियों को विदा कर रही थी । एयरपोर्ट छोटा था अतः हम पैदल ही बाहर आए । बाहर आकर सामान ले ही रहे थे कि एक आदमी ने पूछा, ' मेम क्या आपने भानुप्रिया को देखा ?'

'कौन भानुप्रिया ?'

' मेम आप भानुप्रिया को नहीं जानतीं ? वह बहुत अच्छी फिल्म एक्ट्रेस है । वह यहाँ फिल्म की शूटिंग करने आ रही है ।'

तब याद आया जब वे दमदम एअरपोर्ट पर सिक्यूरिटी चेक के पश्चात वेटिंग एरिया में बैठे बोर्डिंग का इंतजार कर रहे थे । तभी एक सुंदर लंबी लड़की को देखा तो था पर वह एक्ट्रेस होगी, उसने सोचा भी नहीं था । वैसे भी वह साउथ की हीरोइन है हिंदी बेल्ट में बहुत कम जानी पहचानी जाती है ।

बाहर निकलते ही हम टैक्सी करके अपने होटल पहुंचे । उसी टैक्सी को हमने पूरे दिन के लिए बुक कर लिया था । दरअसल हमारे पास अंडमान निकोबार घूमने के लिए सिर्फ एक ही दिन था क्योंकि अजय ने पहले ट्रेन का रिजर्वेशन यह सोचकर करा लिया था कि प्लेन का रिजर्वेशन तो मिल ही जाएगा । तब रिजर्वेशन आज की तरह कहीं भी बैठे बैठे ऑनलाइन नहीं हुआ करते थे ।

अजय ने एजेंट के द्वारा पहले रांची से कोलकाता तथा मद्रास से रांची का ट्रेन का टिकट बुक करा लिया था । जब प्लेन का रिजर्वेशन कराने लगे तो जिस दिन हमें कोलकाता से पोर्ट ब्लेयर के लिए चलना था उस दिन का रिजर्वेशन मिला ही नहीं जिसके कारण हमें 2 दिन कलकत्ता रुकना पड़ा पर इसका एक फायदा यह हुआ कि हमने कोलकाता आराम से घूम लिया । कोलकाता का जू देखा ही, विक्टोरिया मेमोरियल कॉलोनियल युग( अंग्रेजों )की याद करा गया । चौरंगी लेन में घूम-घूम पर शॉपिंग की, हावड़ा ब्रिज जैसा सुना था, वैसा ही पाया । ट्राम में बैठकर सैर करने के साथ, देश की पहली मेट्रो ट्रैन का लुफ्त उठाने से भी नहीं चुके ।

एयरपोर्ट से होटल ज्यादा दूर नहीं था । लगभग 10 मिनट में हम होटल पहुंच गए । होटल का नाम अभी भी याद है एन.के. इंटरनेशनल…. फ्रेश होकर होटल के ही रेस्टोरेंट में नाश्ता कर बाहर निकले । टैक्सी ड्राइवर हमारा ही इंतजार कर रहा था । सर्वप्रथम हमने टैक्सी ड्राइवर को सेल्यूलर जेल लेकर चलने के लिए कहा ।

अरेबियन समुन्द्र के किनारे बनी यह जेल अंग्रेजों के समय काला पानी के नाम से प्रसिद्ध थी । जिस स्वतंत्र सेनानी को अंग्रेज कड़ी से कड़ी सजा देना चाहते थे उसे यहां भेज दिया करते थे क्योंकि यह दीप चारों ओर से समुद्र से घिरा हुआ है जिसके कारण कोई भी यहाँ से कहीं भाग नहीं सकता था । उस समय यहाँ आने जाने का एक मात्र साधन जहाज हुआ करते थे । यह जेल स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को दी गई भीषण यातनाओं का दर्द समेटे हुए है ।

हमारे गाइड ने हमें बताया कि सेलुलर जेल की इमारत का निर्माण 1896 से 1906 किया गया था किंतु इसके बहुत पहले 1857 में हुए गदर में बचे वीर सेनानियों को भी दंड स्वरूप यहीं रखा गया था । सबसे बड़ी बात यह है कि हाथ पैरों में बेड़ियां पहने उन वीर सेनानियों से इस जेल का निर्माण तो कराया ही गया, कुछ सेनानियों को इमारतों और बंदरगाह के निर्माण के कार्य में भी लगाया गया । यह जेल सात भागों में विभक्त है । हर भाग तीन मंजिला है । इस जेल के बीच में स्थित सेंटर टावर के द्वारा सभी कैदियों पर नजर रखी जा सकती है । इसका एक-एक कमरा लगभग 13 फीट लंबा और 7 फीट चौड़ा है इसका निर्माण ऐसे किया गया है कि एक कमरे में रहने वाला दूसरे कमरे में रहने वाले को न देख पाए । इस जेल में प्रत्येक कमरे में सलाखें भी ऐसी लगाई गई हैं कि सलाखों से देखने पर दूसरे कमरे का पीछे वाला हिस्सा अर्थात दीवार ही दिखाई दे । कमरे में हवा पानी के लिए सिर्फ एक छेद था । इस तरह के इस जेल में 693 कमरे (सेल) हैं ।

जेल में प्रवेश करते ही सामने फ़ोटो गैलरी में लगे वीर शहीदों के चित्रों को नमन कर हम आगे बढे। प्रवेश करते ही गाइड ने जेल के दाहिनी तरफ स्थित एक कमरा दिखाया जहाँ स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को फांसी दी जाती थी तथा इसी कोठारी के बाहर खुलते दरवाजे से उनके शवों को समुन्द्र में फेंक दिया जाता था । इस कोठरी से सटी इमारत।की तीसरी मंजिल में वीर सावरकर को दस वर्ष रखा गया जिससे वे विचलित होकर अंग्रेजी साम्राज्य के आगे झुक जायें ।


इस जेल में वीर सावरकर , बटुकेश्वर दत्त, बहादुर शाह जफर, नंद गोपाल, सोहन सिंह, वामन राव जोशी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने जीवन बिताया । 1930 में प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महावीर सिंह जो आजादी की लड़ाई में शहीद भगत सिंह के सहयोगी रह चुके थे उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दिये जा रहे अमानवीय अत्याचारों के खिलाफ भूख हड़ताल भी की थी जिसे वीर सावरकर ने यह कहकर तुड़वाया था कि जब हम ही नहीं रहे तो देश को आजाद करवाने की लड़ाई कौन लड़ेगा !!

इन वीर सेनानियों को दी गई यातनाओं को चित्रों द्वारा दर्शाया गया है । गले में लोहे का मोटा सा रिंग, उससे ही लगी लोहे की सलाखों को हाथ पैरों में लगे लोहे के छल्ले को जोड़ा गया था । चित्रों को दिखाने के पश्चात जब गाइड ने जब स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जाने वाली यातनाओं के बारे में बताया तो रोंगटे खड़े हो गए थे । लोहे की छड़ों से पीटना , जख्मों पर नमक छिड़कना, नंगे बदन बर्फ की शिला पर लेटने को मजबूर करना, कई-कई दिन खाने के लिए न देना, इत्यादि इत्यादि। सच इन वीर सेनानियों ने हमारे लिए अपनी जान कुर्बान कर दीं पर हम उन्हें क्या दे पाए , सम्मान करना तो दूर उनका नाम लेना भी को याद नहीं रहता है । कोई लेता भी है तो सिर्फ अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए । देशभक्ति का ऐसा जज्बा और जुनून, आज शायद ही नवयुवकों में देखने को मिले । आज की पीढ़ी तो सिर्फ और सिर्फ अपने लिए ही जीना चाहती है ।

भरे मन से वे जेल से बाहर निकले तथा सिप्पी घाट की ओर चल दिए । 80 एकड़ में फैला यह उपजाऊ जमीन है । यहाँ मसालों जैसे दालचीनी, तेजपत्ता, काली मिर्च ,जायफल इत्यादि की खेती होती है । वहाँ उपस्थित कर्मचारी ने हमें लौंग,दालचीनी के नमूने दिखाये। उनकी खुशबू देख कर हमें असली-नकली का भेद समझ मे आ गया था । आवश्यकता के कुछ मसाले हमने वहां से खरीदे । मन तो था कुछ देर और यहां घूमा जाए किन्तु समय कम था । हम बाहर निकल आए तथा कोरेबियन कोव बीच की ओर चल दिये ।

कोरेवियन कोव बीच नारियल के हरे भरे पेड़ों से घिरा सैंडी बीच है । समुद्र का नीला पानी जहां मन को मोह रहा था वहीं समुद्र की ऊंची- ऊंची लहरें उसकी विशालता का अनुभव कर आ रही थीं । अजय, पदम और रिया के साथ समुद्र की लहरों में प्रवेश कर अठखेलियां करने लगे । पदम और रिया बहुत ही एक्साइटेड थे ।उन्होंने उसे भी पानी के अंदर खींचने का प्रयत्न किया पर उसने मना कर दिया । दरअसल उसने बच्चों और और अजय के कपड़े तो रख लिए थे पर अपने कपड़े रखना भूल गई थी । एक घंटा बीत गया पर फिर भी उनका बाहर निकलने का मन नहीं कर रहा था । अंततः अजय ने यह कहकर बच्चों को बाहर निकाला था कि और जगह भी घूमनी है । वैसे कोरेवियन कोव बीच सनसेट पॉइंट के लिए भी प्रसिद्ध है । अगर शाम तक रुकते तो अन्य जगह नहीं घूम पाते ।

अब जंगलों और छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच गुजरते हुए चिड़िया टापू पहुंचे । हमें बताया गया कि इस टापू पर तरह-तरह की चिड़ियाएं आती हैं शायद इसीलिए इसका नाम 'चिड़िया टापू 'पड़ा । हम अंदर जा ही रहे थे कि एक आदमी ने बताया कि यहां फिल्म की शूटिंग चल रही है । हम भी दर्शकों की पंक्ति में जाकर खड़े हो गए । पहली बार फिल्म की शूटिंग देखने का अवसर मिल रहा था अतः बहुत ही उत्सुक थे । हीरो तो पता नहीं कौन था पर एक्ट्रेस भानुप्रिया ही थी । गाना तमिल भाषा में होने के कारण समझ में नहीं आ रहा था पर लग रहा था कि गाने की एक ही पंक्ति पर तीन बार रिटेक हुआ । तब जाकर शॉट ओ.के. हुआ । कैमरा एक घूमने वाली गाड़ी पर था जिसे विभिन्न एंगिल पर घुमाया जा सकता था । लाइट वाले तो थे ही, हीरोइन के बाल और कपड़ों को लहराने के लिए बड़े-बड़े पेडेस्टल फैन भी लगाए हुए थे । एक अनोखा अनुभव था ।

' सुनो कुछ खाओगी ?' अजय ने पूछा ।

अजय की आवाज सुनकर वह अपने विचारों के भंवर से बाहर आई । उसने पुनः अजय की ओर प्रश्नवाचक नजरों से देखा । अजय ने अपना प्रश्न पुनः दोहराया , उनका प्रश्न सुनकर उसने नकारात्मक स्वर में सिर हिलाया ।

' क्या बात है ?अनमयस्क बैठी हो। तबीयत तो ठीक है न । सुबह से कुछ खाया नहीं है । कुछ खा लो । तब शायद ठीक लगे । मैं ब्रेड सैंडविच ले लेता हूँ । इस फ्लाइट में खाना ऑन पेमेंट बेसिस पर मिल रहा है ।'

' ले लीजिए अजय जानते थे कि जब उसका मूड ठीक नहीं होता तब कुछ भी खाने पर वह स्वयं को फ्रेश महसूस करती है । शायद खाना उसे डिप्रेशन से मुक्त करता है पर इस समय वह डिप्रेस्ड नहीं थी । बस ख्यालों में खो गई थी ।

वे खाकर चुके ही थे कि घोषणा हुई कि आप सभी सीट बेल्ट बांध लें ,विमान लखनऊ एयरपोर्ट पर लैंड करने वाला है । कुछ ही मिनटों पश्चात हमारे वायुयान जमीन छू ली । विमान से उतर कर उन्होंने एयरपोर्ट में प्रवेश किया । एयरपोर्ट काफी बदला बदला लग रहा था । पुराने एयरपोर्ट की तुलना में इसकी इमारत भव्य थी । सामान आने में लगभग 20 मिनट लग गए ।

सुधा आदेश

क्रमशः